गोहत्या कानून का बेज़ा इस्तेमाल कर रही है योगी सरकार: हाईकोर्ट

Written by Navnish Kumar | Published on: October 27, 2020
गोरक्षा के लिए चलाए गए केसों पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी करते हुए उप्र की योगी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा हैं कि यूपी सरकार गोवध निषेध कानून-1955 का मासूम लोगों के खिलाफ बेजा इस्तेमाल कर रही है। 



गोहत्या और गोमांस की बिक्री के एक आरोपी रहमुद्दीन की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यह  कमेंट किया हैं। 

मामले में सुनवाई करते हुए एकल पीठ के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने कहा कि गोहत्या के नाम पर मॉब लिन्चिंग की ढेरों खबरें सामने आती रही हैं। जिनमें जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा, 'कानून का निर्दोष लोगों के खिलाफ गलत इस्तेमाल कर, उन्हें फंसाया जा रहा है। कोर्ट ने कहा हैं कि कोई भी मांस बरामद किया जाता है और उसे गोमांस के रूप में दिखा दिया जाता है। 

हैरानी की बात यह है कि तब तक इसकी जांच या फोरेंसिक लैब की ओर से कोई विश्लेषण भी सामने नहीं आया होता है। यही नहीं, कोर्ट ने यहां तक कहा कि ज्यादातर मामलों में मांस को जांच के लिए भी नहीं भेजा जाता है और लोगों को ऐसे अपराध के नाम पर जेल में रख दिया जाता है जो कभी हुए ही नहीं थे। 

अभी भी बड़ी संख्या में लोग ऐसे अपराध के लिए जेल में हैं, जो शायद किए ही नहीं गए। खास है कि सात साल तक की अधिकतम सजा होने की वजह से इन मामलों में प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट की ओर से ट्रायल भी किया जाता है।

कोर्ट की यह टिप्पणी तब आई है जब पीठ को इस बात की जानकारी दी गई कि आरोपी एक महीने से अधिक वक्त से जेल में था। यही नहीं, कथित तौर पर एफआईआर में उसके खिलाफ कोई आरोप नहीं है। यह भी आरोप लगाया गया है कि आवेदक को मौके से गिरफ्तार नहीं किया गया था।

यही नहीं, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह भी है कि यूपी पुलिस ने राज्य में जितने लोगों के खिलाफ एनएसए लगाया हैं उनमें से आधे केस गोहत्या से जुड़े हैं।

कोर्ट ने गायों की दशा पर भी चिंता जताते हुए कहा कि जब भी गायों को बरामद दिखाया जाता है, कोई उचित जब्ती मेमो तैयार नहीं किया जाता है। किसी को पता नहीं होता है कि गाय फिर मिलने के बाद कहां जाती हैं। गोशालाएं दूध ना देने वाली गायों और बूढ़ी गायों को स्वीकार नहीं करतीं हैं। उन्हें सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। दूध देने वाली गायों को भी उनका मालिक दूध निकालने के बाद सड़कों पर कचरा, पॉलिथीन आदि खाने के लिए और नाली का पानी पीने के लिए छोड़ देता है।

इसके अलावा, सड़क पर गायों और मवेशियों से वहां से गुजरने वाले लोगो के जीवन को भी खतरा होता है और उनके कारण सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी की रिपोर्ट है। 

ग्रामीण क्षेत्रों में भी पशुपालक जो अपने पशुओं को खिलाने में असमर्थ हैं, उन्हें छोड़ देते हैं। उन्हें स्थानीय लोगों और पुलिस के डर से राज्य के बाहर नहीं ले जाया जा सकता है। अब कोई चारागाह भी नहीं है। जिससे यह जानवर यहां-वहां भटकते हैं और फसलें नष्ट करते हैं।

यह भी कहा गया कि पहले, किसान 'नीलगाय' ( मृग की प्रजाति) से डरते थे, अब उन्हें अपनी फसलों को आवारा गायों से भी बचाना होगा। चाहे गाय सड़कों पर हों या खेतों पर, उनके परित्याग का समाज पर बड़े पैमाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून को उसकी भावना के तहत लागू किया जाना है तो उन्हें गाय आश्रय में या मालिकों के साथ रखने के लिए कार्यवाही की जानी चाहिए।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी एनएसए की कड़ी धाराओं का सबसे ज्यादा इस्तेमाल इस साल गोकशी के मामलों में हुआ है। अब तक एनएसए के तहत 139 लोगों पर कार्रवाई हुई है, जिनमें आधे से ज्यादा केस गोहत्या से जुड़े हैं।

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