कंगना और रिया मोहरा है और सुशांत का केस बिहार में मजबूत चुनावी एजेंडा

Written by Amrita pathak | Published on: September 12, 2020
सुशांत केस पर कंगना की कलाकारी, संघ की चालबाजी और भावुक जनता के बीच बिहार चुनाव को साधने की तैयारी लगभग पूरी की जा चुकी है। पुलवामा पर राजनीति करने वाले अगर आज सुशांत के नाम पर राजनीति कर रहे हैं तो कोई अचरज की बात नहीं है लेकिन इस केस में कंगना का सर पर कफ़न बांध कर खड़े हो जाना कई सारे सवाल पैदा करती है। समझना यह है कि आज फ़िल्मी लोगों को राजनीति रोमांचित कर रही है या राजनीतिक लोग फ़िल्मी लोगों के मोहपाश में जकड़ते चले जा रहे हैं।



यह देख कर अच्छा लगता है कि बाकि देशवासियों के साथ कंगना भी सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलवाने के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। सुशांत सिंह राजपूत को निश्चित तौर पर न्याय मिलनी चाहिए और मुझे अपने देश की पुलिस और कानून व्यवस्था पर पूरा भरोसा है कि सच सामने आएगा।  दुखद यह है कि देश बाँटने का इरादा रखने वाले लोग आज देश के हर क्षेत्र को दो भागों में विभाजित करने पर तुले हुए हैं जिसमे सुशांत, रिया, कंगना सहित कई नामों को समय समय पर शामिल किया जाता रहा है। आज देश-राज्य, हिन्दू मुसलमान, देशभक्ति-देशद्रोही, गोदी मीडिया-सोशल मीडिया की तरह ही देश के सभी लोकतान्त्रिक, संवैधानिक संस्थाओं और मूल्यों को विभाजित किया जा रहा है।

हालांकि इससे ज्यादा गंभीर मुद्दे देश में हैं, जिन पर चर्चा की जानी चाहिए, लेकिन भावुक जनता गंभीर और जरुरी मुद्दों से खुद का वास्ता नहीं समझते हैं उसी का नतीजा है कि 10 सितंबर को हरियाणा के पीपली में किसानों को पीटा गया, सिर्फ कोरोना काल में रोजगार ख़त्म हो जाने से केवल नोएडा में लगभग 200 लोगों ने आत्महत्या कर लिया है, 15 करोड़ रोजगार देश से ख़त्म किए जा चुके हैं और हजारों के ख़त्म किए जाने की प्रक्रिया जारी है। मजदुर भुखमरी के कगार पर खड़े हैं, कोरोना महामारी के दौरान भी महिलाओं के साथ बलात्कार और उनकी हत्या का सिलसिला बदस्तूर जारी है, इस बीमार समाज के लोग 3 महीने की बच्ची तक को चीथड़े करने से नहीं हिचकिचाते हैं, युवाओं पर यूनिवर्सिटी के अन्दर घुसकर लाठियां बरसाई जा रही हैं और वो भी कम पड़ जाए तो नजीब की तरह हमेशा के लिए गायब भी कर दे रहे हैं। ऐसी गंभीर हालत में संस्थाओं और मूल्यों के आमने-सामने की लड़ाई लोकतंत्र की जड़ को हिला कर रख सकती है। 

भावनाओं और चेहरों को सामने रख कर राजनीति करना संघ की पुरानी आदत है जिसे बिहार चुनाव में फिर से आजमाया जा रहा है और इस बार वो मोहरा कंगना और रिया है। जातिवादी  बयानबाजी कर लोगों की भावनाओं को उत्तेजित करने की सफल कोशिश करने वाली कंगना का हर रोज समाज में हर जाति, धर्म की लड़कियों, महिलाओं को नोच कर खाने वाले दरिंदों व् भेड़ियों के ऊपर निशब्द रहना राजनीति से प्रेरित जान पड़ता है। उनके वर्तमान के क्रियाकलाप में सुशांत के लिए चिंता कम और विरोधी वैचारिक समझ रखने वाले लोगों के लिए बदले की भावना ज्यादा दिखती है। राजनितिक के नाम पर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ हो रहा है जो मुलभुत सवालों की तरफ से हमारा ध्यान भटकाता है।  

वर्तमान सत्ता धारी पार्टियों के कर्ताधर्ता, चुनाव के पहले जनता को एक नए खेल में मशगूल कर देने की कला में माहिर हैं और विडम्बना यह है कि बिहार चुनाव में सुशांत केस का उपयोग इस काम के लिए हो रहा है। कंगना राणावत का इस केस में प्रवेश, उनके द्वारा सोच समझ कर सिर्फ विशेष मुद्दों पर बोलना और मीडिया द्वारा पत्रकारिता के उसूलों को ताक पर रख कर बातें करना एक खास सोच को बढ़ावा देने की प्रक्रिया की तरफ इशारा कर रहा है।

बिहार में चुनाव का समय नजदीक आ गया है। हालांकि चुनाव आयोग की ओर से अभी औपचारिक तौर पर चुनाव का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन राजनीतिक दलों की चुनावी गतिविधियां तेज हो गई हैं। सूबे की गठबंधन सरकार में साझेदार और भाजपा ने सुशांत सिंह राजपूत की तस्वीर के साथ एक पोस्टर तैयार किया है, जिसका शीर्षक है- ”जस्टिस फॉर सुशांत: ना भूले हैं ना भूलने देंगे!’’ इस पोस्टर पर सुशांत की तस्वीर के साथ ही भाजपा का चुनाव चिन्ह भी अंकित है। पोस्टर के अलावा वाहनों पर लगाने के लिए भी इसी तरह के स्टिकर और घर-घर बांटने के लिए पर्चे तैयार किए गए हैं।  इस अभिनेता की मौत की जांच को लेकर महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल देने वाली अभिनेत्री कंगना राणावत को भी भाजपा ने हाथों हाथ ले लिया है।

कोरोना काल में ही 10 से अधिक आत्महत्या सिर्फ फ़िल्मी जगत में हो चुकी है उस पर कंगना की चुप्पी, और एक अभिनेता के मौत पर बयानों में मुखरता इनको सवालों के घेरे में खड़ा करता है। कंगना का नफरत भरे जातिवादी और क्षेत्रवाद वाले बयानबाजी यह दर्शाता है कि संघ के सह पर उनको मोहरा करार दे दिया गया है।



बिहार का एक बड़ा हिस्सा अभी भी बाढ़ से उपजी समस्याओं से जूझ रहा है। वहां कोरोना का संक्रमण तेजी फैलना जारी है, जबकि उसका मुकाबला करने में भाजपा समर्थित राज्य सरकार पूरी तरह नाकाम साबित हो चुकी है। सूबे में पहले से ही बने हुए रोजगार के संकट को लाखों प्रवासी मजदूरों की वापसी ने और ज्यादा गहरा कर दिया है लेकिन ये सारी समस्याएं किसी भी राजनीतिक दल की चिंता के दायरे में नहीं हैं, खासकर सत्तारूढ़ जनता दल (यू) और भारतीय जनता पार्टी की चिंता के दायरे में तो कतई नहीं।

भाजपा का बिहार के लिए चुनावी मोहरा कंगना का नफरत भरा बयान बिहार में हिदू वोट को एकजुट करने को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जिसे गहराई और गंभीरता से समझने की जरुरत है। अभिनेता की मौत पर शुरू किए गए शह और मात के खेल को उजागर करने की जरुरत है ताकि राजनितिक दलों द्वारा आधारभूत सवालों पर चुनाव लड़े जाएँ। जनता के हित और लोकतंत्र की मजबूती जनता की भावनाओं को चुनावी बाजार में पडोसने में नहीं है बल्कि उनका ख्याल करते हुए उनकी समस्याओं के समाधान करने में है जो आज नदारद होती दिखाई पड़ रही है। 

 

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