हिमाचल में क्वारंटीन नियम न मानने वाले मंत्री के ख़िलाफ प्रदर्शन करने पर 200 महिलाओं पर मुकदमा दर्ज

Written by sabrang india | Published on: July 3, 2020
शिमला। स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बनाए गए कोविड-नियमों का प्रदेश के कैबिनेट मंत्री द्वारा उल्लंघन किए जाने को लेकर विरोध करने वाली हिमाचल प्रदेश के स्पीति जिले के काजा गांव की 200 आदिवासी महिलाओं के खिलाफ स्थानीय प्रशासन ने मामला दर्ज कर लिया है।



इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के कृषि मंत्री राम लाल मार्कंडा के खिलाफ पिछले महीने गांव के हर प्रवेश द्वार पर धरना-प्रदर्शन करने के लिए पुलिस ने महिला मंडल की 200 सदस्यों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है।

दरअसल, बीते 9 जून को काजा गांव की महिला मंडल की 200 सदस्यों ने गांव के हर प्रवेश द्वार पर यह मांग करते हुए धरना प्रदर्शन किया था कि जन समिति द्वारा तय किए गए कोविड नियमों के अनुसार स्पीति घाटी में प्रवेश करने के लिए मंत्री और उनके समर्थकों को क्वांरटीन किया जाए।

इसके बाद लाहौल-स्पीति के विधायक मार्कंडा वापस लौट गए और अपना विधानसभा क्षेत्र छोड़ दिया। अगले दिन पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया।

प्रदर्शनकारियों को मामला दर्ज किए जाने की जानकारी तब मिली जब कुछ दिन बाद उन्हें समन आने लगे।

काजा गांव की लगभग आबादी 1,700 है। 200 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से गांव की कुल आबादी के 10 फीसदी लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हो चुका है।

इन महिलाओं पर आईपीसी की धारा 341 (किसी व्यक्ति को गलत तरीके से रोकना), 143 (गैरकानूनी सभा) और 188 (सार्वजनिक आदेश की अवज्ञा) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

प्रदर्शन में शामिल होने के लिए एफआईआर का सामना कर रहीं महिला मंडल की अध्यक्ष सोनम डोलमा ने कहा, ‘महिला प्रदर्शनकारियों की पहचान करने के लिए पुलिस हर घर में आ रही थी इसलिए हमने स्वयं एक सूची पेश की है। नामों में लगभग गांव की हर घर की महिलाएं शामिल हैं और अब उन सभी पर मामला दर्ज हो चुका है।’अभी तक इस मामले में किसी गिरफ्तारी नहीं हुई है।

बता दें कि कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए स्पीति आदिवासियों की एक स्थानीय समिति ने 15 मार्च को बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था।

इस समिति में पांच मठों (गोम्पा) के सदस्य और अन्य समुदाय के नेता शामिल हैं। अधिकतर आदिवासी इलाकों की तरह यहां भी स्थानीय समूहों द्वारा लिए गए फैसले कई बार सरकारी फैसलों से अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

अप्रैल में जब राज्य सरकार ने हिमाचल के लोगों को वापस लौटने की मंजूरी दे दी तब समिति ने वापस लौटने वाले सभी लोगों को क्वारंटीन करने का फैसला किया।

स्थानीय लोगों ने बताया कि नियमों का पालन करवाने के लिए वे गांव के गेट पर खड़े रहने लगे। उनके नियम के अनुसार, केवल स्थानीय निवासियों को काजा में प्रवेश करने की अनुमति है।

वहीं, राज्य के अन्य हिस्सों से आने वालों को 14 दिन तक क्वारंटीन रहने पड़ेगा। बीते 9 जून को जब मार्कंडा के गाड़ियों का काफिला वहां पहुंचा तब महिला मंडल, युवा मंडल और अन्य समूहों के लोग सरकार के साथ स्थानीय मुद्दों पर चर्चा के लिए गेट पर खड़े हो गए।

प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाली युवा मंडल की अध्यक्ष केसांग ने कहा, ‘यह विरोध यह सुनिश्चित करने के लिए था कि विधायक दूसरों की तरह क्वांरटीन का पालन करें।’

मार्कंडा ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उन्हें आधिकारिक कामकाज के लिए वापस शिमला जाना था, जिसके कारण वे क्वारंटीम के लिए सहमत नहीं हुए और वापस लौट गए।

उन्होंने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ किया गया विरोध प्रदर्शन राजनीति से प्रेरित था और कुछ प्रदर्शनकारियों ने कांग्रेस समर्थित नारे भी लगाए।

सोनम डोलमा ने इन आरोपों को साफ तौर पर खारिज करती हैं। उन्होंने बताया, ‘राजनीतिक नारेबाजी के लिए कुछ लोगों ने हमसे लिखित माफीनामा मांगा। हम किसी ऐसे काम के लिए माफी नहीं मांगेंगे जो हमने किया ही नहीं। यह एक गैर-राजनीतिक और कोविड-विरोधी प्रदर्शन था।

वहीं लाहौल-स्पीति के पुलिस अधीक्षक राजेश धर्मानी का कहना है कि स्थानीय निवासियों ने क्वारंटीन प्रतिबंधों का पालन करने के लिए मंत्री को चुना और उनका रास्ता रोक दिया। राज्य सरकार के नियमों के तहत राज्य के अंदर यात्रा करने पर क्वारंटीन की आवश्यकता नहीं है इसलिए मामला दर्ज किया गया है। अभी तक स्पीति कोविड मुक्त है।

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