एम्स का चंदा पीएम केयर्स फंड में चला गया !

Written by Sanjay Kumar Singh | Published on: April 4, 2020

मैं शुरू से पीएम केयर्स फंड के खिलाफ हूं। प्रधानमंत्री का काम नहीं है कि वे चंदा बटोरें और उससे देश सेवा करें। उन्हें देश सेवा के लिए तनख्वाह मिलती है और यह पूर्णकालिक पद है। दूसरी ओर, देश में चंदा देने वाले लोग हैं, व्यवस्था है और जरूरत है इसलिए प्रधानमंत्री राहत कोष भी है। उसके उद्देश्य साफ हैं। हो सकता है समय के साथ उसमें बदलाव जरूरी हो तो बदलाव किया जा सकता है पर प्रधानमंत्री राहतकोष के समानांतर एक और केयर्स फंड की कोई जरूरत नहीं है। जरूरत हो भी तो आरोपों और भ्रम से बचने के लिए प्रधानमंत्री की साख की कीमत पर ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। देश भर में कई गैर सरकारी संगठन सेवा के लिए हैं लोग भी हैं। पैसा भी है। फिर कोई मंत्रलब नहीं है कि प्रधानमंत्री या उनका कार्यालय ऐसे छोटे मोटे (भले बहुत महत्वपूर्ण और जरूरी हों) काम करे।



देश में सेवा करने के इच्छुक राजा और पूर्व सांसद भी अगर राज्यसभा की सदस्यता मांगते हैं तो सेवा मुफ्त की चीज भी नहीं होनी चाहिए ना ही पार्ट टाइम की नौकरी। पर अभी वह मुद्दा नहीं है। अब यह मामला देखिए। एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) के रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि पीपीई के लिए दान के पैसे पीएम केयर्स को ट्रांसफर कर दिए गए। एम्स ने कह दिया कि पैसे आए ही नहीं। दोनों अपनी जगह सही हैं। पर आग है तो धुंआ भी होगा और वह अखबारों में नहीं दिखेगा। आजकल यही सरकारी व्यवस्था है तथा इसीलिए पीएम केयर्स ज्यादा बुरा है। हुआ यह होगा कि एक सरकारी कंपनी को कुछ रुपए दान देने थे। (आजकल दान देना असल में दान नहीं है, कानूनी जरूरत है और कई बार दान असल में दान नहीं होता वह आयकर में छूट या बचत के काम आता है पर वह मुद्दा अलग है)। उसने एम्स को दान देना तय किया। हो सकता है पहले से देता रहा हो। दान देने वाला और कोई नहीं रक्षा मंत्रालय है। पर वह पैसा किसी तरह पीएम केयर्स में पहुंच गया। आप जानते हैं कि पीएम केयर्स के ट्रस्टियों में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी हैं।

दान देने वाले का तो काम हो गया पर प्रधानमंत्री कार्यालाय या पीएम केयर्स फंड ने एम्स के साथ नाइंसाफी कर दी। देश में स्थिति ऐसी नहीं है कि ऐसे मामलों पर कोई बोले। सबको लोयालुहान किया जा चुका है। इसके बावजूद एम्स के आरडीए ने आवाज उठाई और हिन्दू में खबर छप गई। पत्रकारिता के अपने सिद्धांत हैं उसे एम्स का पक्ष भी लेना था। एम्स ने कह दिया पैसे आए ही नहीं तो हमने कैसे ट्रांसफर कर दिया। खेल यहीं है। पैसे आने से पहले ट्रांसफर हो गए। इस मामले में कायदे से उस कंपनी से बात की जानी चाहिए थी जिसने दान दिया है। रक्षा मंत्रालय की यह कंपनी है, भारत डायनैमिक्स लिमिटेड (बीडीएल)। आज के समय में किसी सरकारी अधिकारी की हिम्मत नहीं है कि वह सच बता दे। पर जो बताएगा उससे पाठक को अंदाजा लग जाएगा। पर सख्ती के इस जमाने में कोई रिपोर्टर या अखबार कितना सिरदर्द ले। और किसलिए। इस तरह हिन्दू की खबर पूरी हुई। सही है या गलत आप तय कीजिए।

मैं जानता हूं कि पाठक भी दलों में बंटे हुए हैं। इसलिए इतने से खबर का मकसद पूरा होगा नहीं। हालांकि हिन्दू के रिपोर्टर की समस्या रही होगी कि खबर देने के समय तक दान दे दिया गया है वह पक्का नहीं होगा। मैंने अभी उंगलिया चलाईं तो तो सरकार की प्रिय समाचार एजेंसी एएनआई की खबर मिल गई। वैसे तो यह खबर एएनआई के साइट पर नहीं है लेकिन bignewsnetwork.com के साइट पर एएनआई के हवाले से है। और आज की खबर है। हिन्दू की खबर कल की है। इसके मुताबिक मामला 50 लाख का नहीं 9.02 करोड़ का है। इस खबर को पढ़िए, आप मानेंगे कि यह एम्स को 50 लाख रुपए दिए जाने का खंडन है। कायदे से एम्स को 50 लाख दे दिए जाते तो पीएम केयर्स फंड गरीब नहीं हो जाता और यह विवाद भी नहीं होता। लेकिन मीडिया गोदी में हो तो इसकी भी क्या जरूरत। दूसरी ओर, जब देश का प्रधानमंत्री कटोरा लेकर खड़ा हो तो कोई किसी और को चंदा क्यों दे और कटोरे में सिक्का थोड़े डालेगा। नया खाता खुला है 9.02 करोड़ रुपए दे दिए। कानूनन इसमें कुछ भी गलत नहीं है। तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री राहत कोष के चंदे के पैसे से जो भी चीज जरूरतमंदों को बांटी जाती उसपर भाजपा या मोदी नहीं लिखा होता। पीएम केयर्स वाले पर लिखा हो सकता है और यह भी गलत नहीं है।

तकनीकी तौर पर सिर्फ इसीलिए पीएम केयर्स गलत है। काम तो उसी पीएम ने किया, चंदा उसी पीएम ने बटोरा (या अपने लोगों से इकट्ठा कराया) पर स्टिकर भाजपा का लग रहा है। मोदी किट बन रहा है। अगर आप समझ गए तो ठीक, नहीं समझ पाए तो अब जीवन में नहीं समझेंगे। मेरी सलाह मानिए, कोशिश भी मत कीजिए। इसमें सवाल-जवाब की भी गुंजाइश नहीं है क्योंकि मैंने लिखा है कि इसमें कानूनन कुछ गलत नहीं है।

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