राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने अपने एक लेख में लिखा है कि कोरोना वायरस हमें याद दिला रहा है कि हम मात्र एक जीव हैं जिसका अस्तित्व दूसरे जीवों पर निर्भर है और मुनाफे के लिए प्रकृति को नियंत्रित करना और उसके संसाधनों का दोहन करने के लालच का एक सूक्ष्म जीव एक झटके में सफाया कर सकता है। वे कहते हैं कि हमारे पूर्वज प्रकृति को मां मानते थे और हमें उसका सम्मान करने की शिक्षा देते थे लेकिन हमने उस प्रचीन विवेक को भुला दिया। अब समय आ गया है कि हमें थोड़ा रुक कर सोचना होगा कि हम रास्ता कहां भटक गए और हम सही रास्ते पर कैसे लौट सकते हैं? अंत में वे ये भी याद दिलाते हैं कि प्रकृति के सामने हम सब एक हैं और एक छोटे से वायरस ने समाज में मानव निर्मित सभी किस्म के भेदभाव मिटा दिए हैं। यदि राष्ट्रपति कोविंद वसुधैवः कुटुम्बकम के विचार व इंसान की परस्पर निर्भरता को मानते हैं तो सबसे पहले उन्हें सरकार से धार्मिक भेदभाव के आधार पर बने नागरिकता संशोधन अधिनियम को वापस लेने की संस्तुति करनी चाहिए।
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राष्ट्रपति कुछ मौलिक दाश्र्निक तथ्यों की ओर संकेत कर रहे हैं जिन्हें हमारी सरकार मानने को तैयार नहीं हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रोफेसर गुरु दास अग्रवाल जो 2011 में संयास लेकर स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद बन गए थे, गंगा को अपनी मां मानते थे। 2018 में गंगा को बचाने के प्रयास में 112 दिनों के अनशन के बाद, जब प्रधान मंत्री को लिखे चार पत्रों में से किसी का जवाब नहीं मिला, तो उन्होंने देह त्याग दिया। प्रोफेसर अग्रवाल गंगा पर बड़े बांधों, उसमें अवैध खनन, नदी घाटी में वन कटान व नदी की लम्बाई में उसमें गंदी नालियों के अवजल के निस्तारण के मुद्दे उठा रहे थे जिनसे गंगा को नुकसान हो रहा है। उन्हें मालूम हुआ था कि गंगा में बैक्टिरियोफाज नामक वायरस है जो मनुष्य शौच में उपस्थिति एसकेरिकिया कोलाई जैसे नुकसानदायक बैक्टिरिया को नष्ट कर देता है। ये बैक्टिरियोफाज बालू के कणों के साथ बहते हैं और बांध की दिवार से टकरा कर नीचे बैठ जाते हैं। किंतु अंत में प्रोफेसर अग्रवाल की जान और गंगा के स्वास्थ्य पर बांध निर्माताओं व खनन माफिया, जो प्राकृतिक संसाधनों का खुलकर दोहन कर रहे हैं, अवजल शोधन संयंत्रों का निर्माण करने वाले ठेकेदारों, जबकि प्रोफेसर अग्रवाल का मानना था कि अवजल, गंदा या साफ किया हुआ भी, नदी में नहीं डालना चाहिए, व अन्य के निहित स्वार्थ भारी पड़े।
यह लेख लिखते समय साध्वी पद्मावती अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में व स्वामी शिवानंद मातृ सदन, हरिद्वार में स्वामी सानंद की अपूर्ण मांगों को लेकर अनशन पर बैठे हैं। किंतु इस संवेदनहीन सरकार, जो लोगों को कोरोना वायरस से बचाने का दिखावा कर रही है, को साधुओं की जान की तनिक भी चिंता नहीं जो प्रकृति को बचाने के लिए अपना बलिदान देने को तैयार हैं। अभी तक गंगा के लिए स्वामी सानंद सहित चार संत कुर्बानी दे चुके हैं।
यह सरकार की नीयत पर प्रश्न खड़ा करता है। वह कोरोना वायरस के संकट का इस्तेमाल अपने पक्ष में कर देश भर में नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर व राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ खासकर मुस्लिम महिलाओं के धरने खत्म कराना चाह रही है। जब लखनऊ के घंटाघर में जहां ऐसा एक धरना चल रहा था पुलिस पहली बार कोरोना वायरस की सूचना लेकर गई तो महिलाओं ने पुलिस से कहा कि वे अपनी चिंता पहले करें क्योंकि महिलाएं तो पहले से ही नकाब पहने हुए हैं। 19 मार्च, 2020 को पहले पुलिस ने कोरोना के नाम पर महिलाओं को संख्या घटाने को कहा और जब उनकी संख्या कम हो गई तो जबरिया उन्हें उठने के लिए पुलिस वाले महिलाओं से कहीं ज्यादा संख्या में आ गए। क्या पुलिस के भीड़ बढ़ाने से कोरोना का खतरा नहीं बढ़ेगा? जोर जबरदस्ती करने पर भी उस दिन पुलिस घंटाघर खाली नहीं करा पाई। 23 मार्च को फिर महिलाओं ने अपने आप ही शारीरिक उपस्थिति वाला धरना खत्म कर उसका रूवरूप बदला और अपने प्रतीकों को धरना स्थल पर छोड़ संघर्ष को अपने घरों और मोहल्लों से जारी रखा है। उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का बयान आया है कि जो लोग कोरोना पर काबू पाने में सरकार का साथ नहीं देंगे उन्हें जेल भेजा जाएगा बिना इस बात पर गौर किए कि यदि जेल में लोगों की संख्या बढ़ेगी तो वहां भी कोरोना का खतरा बढ़ सकता है।
केन्द्र सरकार तो इस बात की भी दोषी है कि उसने नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर व राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ चल रहे धरनों को खत्म कराने के लिए फरवरी माह में राष्ट्रीय राजधानी में तीन दिनों से ऊपर साम्प्रदायिक दंगे होने दिए जिसमें 50 से ज्यादा बहुमूल्य जानें चली गईं लेकिन वह दंगों की संख्या आधी करने में सफल रही। किंतु यह दिखाता है कि उसके लिए इंसान की जान की कीमत कुछ भी नहीं है। कोरोना वायरस को रोकने के नाम पर प्रचार ज्यादा है। अयोध्या में राम लला को स्थानांतरित करने का धार्मिक अनुष्ठान जारी हैं जिसमें दिल्ली-हरिद्वार से पुजारी बुलाए गए हैं। यह कार्यक्रम क्यों नहीं टाला जा सका?
सरकार बेशर्मी से अपने राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु अपने तंत्र व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल कर रही है। अब वह अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत के लिए भी कोरोना वायरस को दोषी ठहरा देगी जबकि अर्थव्यवस्था चैपट हुई है उसकी गलत नीतियों की वजह से।
स्वामी शिवानंद के अनुसार कोरोना वायरस ने हमें अपने चपेट में इसलिए ले लिया चूंकि हमारे शरीर का जो सुरक्षा तंत्र था उसे हमने खत्म कर दिया। हमने गंगा में एक ऐसे मित्र वायरस को खत्म कर दिया जो हमें खतरे से बचाता था और अब एक खतरनाक वायरस हमें ही खत्म करने के लिए आ गया है! स्वामी सानंद ने भी अपने मरने से पहले नरेन्द्र मोदी को जो पत्र लिखे थे उनमें लिखा था कि यदि अनशन करते हुए उनकी मौत हो जाती है तो इसके लिए वे मोदी को जिम्मेदार मानेंगे और राम जी के दरबार में मोदी को गंगा के हितों को नजरअंदाज करने के लिए उन्हें सजा दिलाने हेतु प्रार्थना करेंगे। जब नरेन्द्र मोदी ने प्रोफेसर अग्रवाल की जान नहीं बचाई तो वे कोरोना से हमें-आपको क्या बचाएंगे।
(नोटः लेखक सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के उपाध्यक्ष हैं।)
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राष्ट्रपति कुछ मौलिक दाश्र्निक तथ्यों की ओर संकेत कर रहे हैं जिन्हें हमारी सरकार मानने को तैयार नहीं हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रोफेसर गुरु दास अग्रवाल जो 2011 में संयास लेकर स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद बन गए थे, गंगा को अपनी मां मानते थे। 2018 में गंगा को बचाने के प्रयास में 112 दिनों के अनशन के बाद, जब प्रधान मंत्री को लिखे चार पत्रों में से किसी का जवाब नहीं मिला, तो उन्होंने देह त्याग दिया। प्रोफेसर अग्रवाल गंगा पर बड़े बांधों, उसमें अवैध खनन, नदी घाटी में वन कटान व नदी की लम्बाई में उसमें गंदी नालियों के अवजल के निस्तारण के मुद्दे उठा रहे थे जिनसे गंगा को नुकसान हो रहा है। उन्हें मालूम हुआ था कि गंगा में बैक्टिरियोफाज नामक वायरस है जो मनुष्य शौच में उपस्थिति एसकेरिकिया कोलाई जैसे नुकसानदायक बैक्टिरिया को नष्ट कर देता है। ये बैक्टिरियोफाज बालू के कणों के साथ बहते हैं और बांध की दिवार से टकरा कर नीचे बैठ जाते हैं। किंतु अंत में प्रोफेसर अग्रवाल की जान और गंगा के स्वास्थ्य पर बांध निर्माताओं व खनन माफिया, जो प्राकृतिक संसाधनों का खुलकर दोहन कर रहे हैं, अवजल शोधन संयंत्रों का निर्माण करने वाले ठेकेदारों, जबकि प्रोफेसर अग्रवाल का मानना था कि अवजल, गंदा या साफ किया हुआ भी, नदी में नहीं डालना चाहिए, व अन्य के निहित स्वार्थ भारी पड़े।
यह लेख लिखते समय साध्वी पद्मावती अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में व स्वामी शिवानंद मातृ सदन, हरिद्वार में स्वामी सानंद की अपूर्ण मांगों को लेकर अनशन पर बैठे हैं। किंतु इस संवेदनहीन सरकार, जो लोगों को कोरोना वायरस से बचाने का दिखावा कर रही है, को साधुओं की जान की तनिक भी चिंता नहीं जो प्रकृति को बचाने के लिए अपना बलिदान देने को तैयार हैं। अभी तक गंगा के लिए स्वामी सानंद सहित चार संत कुर्बानी दे चुके हैं।
यह सरकार की नीयत पर प्रश्न खड़ा करता है। वह कोरोना वायरस के संकट का इस्तेमाल अपने पक्ष में कर देश भर में नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर व राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ खासकर मुस्लिम महिलाओं के धरने खत्म कराना चाह रही है। जब लखनऊ के घंटाघर में जहां ऐसा एक धरना चल रहा था पुलिस पहली बार कोरोना वायरस की सूचना लेकर गई तो महिलाओं ने पुलिस से कहा कि वे अपनी चिंता पहले करें क्योंकि महिलाएं तो पहले से ही नकाब पहने हुए हैं। 19 मार्च, 2020 को पहले पुलिस ने कोरोना के नाम पर महिलाओं को संख्या घटाने को कहा और जब उनकी संख्या कम हो गई तो जबरिया उन्हें उठने के लिए पुलिस वाले महिलाओं से कहीं ज्यादा संख्या में आ गए। क्या पुलिस के भीड़ बढ़ाने से कोरोना का खतरा नहीं बढ़ेगा? जोर जबरदस्ती करने पर भी उस दिन पुलिस घंटाघर खाली नहीं करा पाई। 23 मार्च को फिर महिलाओं ने अपने आप ही शारीरिक उपस्थिति वाला धरना खत्म कर उसका रूवरूप बदला और अपने प्रतीकों को धरना स्थल पर छोड़ संघर्ष को अपने घरों और मोहल्लों से जारी रखा है। उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का बयान आया है कि जो लोग कोरोना पर काबू पाने में सरकार का साथ नहीं देंगे उन्हें जेल भेजा जाएगा बिना इस बात पर गौर किए कि यदि जेल में लोगों की संख्या बढ़ेगी तो वहां भी कोरोना का खतरा बढ़ सकता है।
केन्द्र सरकार तो इस बात की भी दोषी है कि उसने नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर व राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ चल रहे धरनों को खत्म कराने के लिए फरवरी माह में राष्ट्रीय राजधानी में तीन दिनों से ऊपर साम्प्रदायिक दंगे होने दिए जिसमें 50 से ज्यादा बहुमूल्य जानें चली गईं लेकिन वह दंगों की संख्या आधी करने में सफल रही। किंतु यह दिखाता है कि उसके लिए इंसान की जान की कीमत कुछ भी नहीं है। कोरोना वायरस को रोकने के नाम पर प्रचार ज्यादा है। अयोध्या में राम लला को स्थानांतरित करने का धार्मिक अनुष्ठान जारी हैं जिसमें दिल्ली-हरिद्वार से पुजारी बुलाए गए हैं। यह कार्यक्रम क्यों नहीं टाला जा सका?
सरकार बेशर्मी से अपने राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु अपने तंत्र व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल कर रही है। अब वह अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत के लिए भी कोरोना वायरस को दोषी ठहरा देगी जबकि अर्थव्यवस्था चैपट हुई है उसकी गलत नीतियों की वजह से।
स्वामी शिवानंद के अनुसार कोरोना वायरस ने हमें अपने चपेट में इसलिए ले लिया चूंकि हमारे शरीर का जो सुरक्षा तंत्र था उसे हमने खत्म कर दिया। हमने गंगा में एक ऐसे मित्र वायरस को खत्म कर दिया जो हमें खतरे से बचाता था और अब एक खतरनाक वायरस हमें ही खत्म करने के लिए आ गया है! स्वामी सानंद ने भी अपने मरने से पहले नरेन्द्र मोदी को जो पत्र लिखे थे उनमें लिखा था कि यदि अनशन करते हुए उनकी मौत हो जाती है तो इसके लिए वे मोदी को जिम्मेदार मानेंगे और राम जी के दरबार में मोदी को गंगा के हितों को नजरअंदाज करने के लिए उन्हें सजा दिलाने हेतु प्रार्थना करेंगे। जब नरेन्द्र मोदी ने प्रोफेसर अग्रवाल की जान नहीं बचाई तो वे कोरोना से हमें-आपको क्या बचाएंगे।
(नोटः लेखक सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के उपाध्यक्ष हैं।)