कोई माने या न माने लेकिन यह सच है कि रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन के इस्तीफे ओर यस बैंक में चल रही उठापटक के बीच सीधा संबंध है। कल सुबह खबर आई कि आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन ने अपना कार्यकाल समाप्त होने से तीन महीने पहले ही स्वास्थ्य कारणों से अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एन.एस. विश्वनाथन ही रिजर्व बैंक में बैंकिंग रेगुलेशन, कॉपरेटिव बैंकिंग, नॉन बैंकिंग रेगुलेशन, डिपॉजिट इंश्योरेंस, फाइनेंशियल स्टेबिलिटी और इंस्पेक्शन आदि मामलों को देखते थे, एनएस विश्वनाथन सबसे वरिष्ठ डिप्टी गवर्नर थे।
दरअसल आरबीआई में चार डिप्टी गवर्नर होते हैं जिसमें से दो आरबीआई में रैंक के अनुसार चुने जाते हैं। एक डिप्टी गवर्नर कमर्शियल बैंकिंग क्षेत्र से होता है। जो अभी विश्वनाथन थे, चौथा डिप्टी गवर्नर कोई जाना माना अर्थशास्त्री होता है। जो विरल आचार्य थे... कुछ महीने पहले विरल आचार्य ने भी रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था। उनसे पहले उर्जित पटेल भी रिजर्व बैंक से इस्तीफा दे चुके थे।
नवम्बर 2019 में डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन ने बैंकों को सलाह दी थी कि बैंकों को बैड लोन, फ्रॉड और इन सबसे होने वाले नुकसान के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी देनी चाहिए। एन एस विश्वनाथन का कहना है कि अगर बैंक इनका खुलासा समय पर नहीं करते हैं तो रिस्क लेने की क्षमता घटेगी. एनएस विश्वनाथन ने उस वक्त भी आगाह किया था कि पूर्व में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जब रिजर्व बैंक के निरीक्षण में कई बैंकों के एनपीए का खुलासा हुआ है। ऐसे में बैंकों को अपनी सेहत का ध्यान रखने के लिए रेगुलेटरी के नियमों से इतर सोचना होगा।
अब इन बातों के संदर्भ में आप यस बैंक को देखिए जिस पर पिछले साल रिजर्व बैंक 1 करोड़ का जुर्माना लगा चुका है जिसने अपने तीसरी तिमाही के परिणाम अब तक घोषित नही किये है, जबकि 2 महीने ऊपर हो चुके हैं, यानी अब तक कोइ फाइनल हिसाब किताब तक नही दिया है और जिस बैंक का 36 फीसदी कैपिटल बैड लोन में फंसा हुआ है। जिसकी रिकवरी की कोई उम्मीद नही है।
हो सकता है कि जैसे PMC बैंक के बारे मे बाद में पता चला कि इसकी तो पूरी पूंजी ही डूब चुकी है वैसा ही कुछ दिनों बाद यस बैंक के साथ भी सामने आए,..... यह भी सम्भव है कि उसके असली NPA का खुलासा ही नही किया गया हो।
अब ऐसे बैंक को बचाने के लिए स्टेट बैंक को आगे किया जा रहा है, तो जो व्यक्ति जो रिजर्व बैंक में मूल रूप से बैंकिंग रेगुलेशन के लिए जिम्मेदार हो वह यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि ऐसे प्राइवेट बैंक को बचाने के लिए देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक को आगे किया जा रहा है......... उसने यह खबर सामने आने से पहले ही अपना इस्तीफा आरबीआई को सौप दिया....
एन एस विश्वनाथन के ही निर्देश पर आरबीआई, एनबीएफसी को बेल आउट देने के विरोध में अपने कदम पर कायम रही थी और अब यह यस बैंक का मामला और सामने आ गया है। मेरे विचार से एन एस विश्वनाथन का इस्तीफा आज की सबसे बड़ी खबर है जो भारत की बदहाल हो चुकी बैंकिंग प्रणाली असलियत बयान करती है।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)

रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एन.एस. विश्वनाथन ही रिजर्व बैंक में बैंकिंग रेगुलेशन, कॉपरेटिव बैंकिंग, नॉन बैंकिंग रेगुलेशन, डिपॉजिट इंश्योरेंस, फाइनेंशियल स्टेबिलिटी और इंस्पेक्शन आदि मामलों को देखते थे, एनएस विश्वनाथन सबसे वरिष्ठ डिप्टी गवर्नर थे।
दरअसल आरबीआई में चार डिप्टी गवर्नर होते हैं जिसमें से दो आरबीआई में रैंक के अनुसार चुने जाते हैं। एक डिप्टी गवर्नर कमर्शियल बैंकिंग क्षेत्र से होता है। जो अभी विश्वनाथन थे, चौथा डिप्टी गवर्नर कोई जाना माना अर्थशास्त्री होता है। जो विरल आचार्य थे... कुछ महीने पहले विरल आचार्य ने भी रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था। उनसे पहले उर्जित पटेल भी रिजर्व बैंक से इस्तीफा दे चुके थे।
नवम्बर 2019 में डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन ने बैंकों को सलाह दी थी कि बैंकों को बैड लोन, फ्रॉड और इन सबसे होने वाले नुकसान के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी देनी चाहिए। एन एस विश्वनाथन का कहना है कि अगर बैंक इनका खुलासा समय पर नहीं करते हैं तो रिस्क लेने की क्षमता घटेगी. एनएस विश्वनाथन ने उस वक्त भी आगाह किया था कि पूर्व में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जब रिजर्व बैंक के निरीक्षण में कई बैंकों के एनपीए का खुलासा हुआ है। ऐसे में बैंकों को अपनी सेहत का ध्यान रखने के लिए रेगुलेटरी के नियमों से इतर सोचना होगा।
अब इन बातों के संदर्भ में आप यस बैंक को देखिए जिस पर पिछले साल रिजर्व बैंक 1 करोड़ का जुर्माना लगा चुका है जिसने अपने तीसरी तिमाही के परिणाम अब तक घोषित नही किये है, जबकि 2 महीने ऊपर हो चुके हैं, यानी अब तक कोइ फाइनल हिसाब किताब तक नही दिया है और जिस बैंक का 36 फीसदी कैपिटल बैड लोन में फंसा हुआ है। जिसकी रिकवरी की कोई उम्मीद नही है।
हो सकता है कि जैसे PMC बैंक के बारे मे बाद में पता चला कि इसकी तो पूरी पूंजी ही डूब चुकी है वैसा ही कुछ दिनों बाद यस बैंक के साथ भी सामने आए,..... यह भी सम्भव है कि उसके असली NPA का खुलासा ही नही किया गया हो।
अब ऐसे बैंक को बचाने के लिए स्टेट बैंक को आगे किया जा रहा है, तो जो व्यक्ति जो रिजर्व बैंक में मूल रूप से बैंकिंग रेगुलेशन के लिए जिम्मेदार हो वह यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि ऐसे प्राइवेट बैंक को बचाने के लिए देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक को आगे किया जा रहा है......... उसने यह खबर सामने आने से पहले ही अपना इस्तीफा आरबीआई को सौप दिया....
एन एस विश्वनाथन के ही निर्देश पर आरबीआई, एनबीएफसी को बेल आउट देने के विरोध में अपने कदम पर कायम रही थी और अब यह यस बैंक का मामला और सामने आ गया है। मेरे विचार से एन एस विश्वनाथन का इस्तीफा आज की सबसे बड़ी खबर है जो भारत की बदहाल हो चुकी बैंकिंग प्रणाली असलियत बयान करती है।
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)