GST की व्यवस्था ढाई साल पूरे होने को है और अब यह व्यवस्था फेल होने की कगार पर है. कल नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 1 करोड़ जीएसटी रजिस्ट्रेशन वाले समय पर रिटर्न फाइल नहीं कर रहे हैं। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि कुल जीएसटी रजिस्ट्रेशन ही 1 करोड़ 22 लाख हैं. यह भी खबर है कि सरकार ऐसे करीब 11 लाख से ज्यादा जीएसटी रजिस्ट्रेशन को कैंसिल कर सकती है जिन्होंने 6 बार या 6 बार से ज्यादा जीएसटी रिटर्न नहीं भरा है. इसके अलावा अभी तक 3.47 लाख डीलर्स के ई-वे बिल ब्लॉक किए जा चुके हैं.
जीएसटी पर मंत्रियों के समूह (जीओएम) के संयोजक सुशील कुमार मोदी का कहना है कि GST में 66.79 लाख जो नए करदाता जुड़े हैं उनका कुल जीएसटी में महज 15 फीसदी ही योगदान है। हमें उनसे सिर्फ 10 हजार करोड़ रुपये कर ही मिल रहा है।
जीएसटी कलेक्शन में कोई सुधार नही है, पानी सर तक आने को है. हालत अब इतनी खराब है कि सरकार कर अधिकारियों को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देना चाह रही है यह जीएसटी की मूल भावना के प्रतिकूल है. मोदी सरकार का नया नियम जीएसटी अधिकारियों को यह अधिकार देता है कि रिटर्न फाइल करने में लगातार नोटिस को अनदेखा करने पर वह कार्रवाई के रूप में आपकी संपत्ति और बैंक अकाउंट को अटैच कर सकता है.
आपको याद होगा कि 2017 में इसे लागू करने से पहले इसे गुड एंड सिंपल टैक्स कहा जा रहा था. लेकिन जब इसे लागू किया गया तो पाया गया कि जीएसटी अपने आप में अत्यंत जटिल है और इसके चलते ढाई साल पूरे हो जाने के बाद भी पहले साल के इनपुट टैक्स क्रेडिट का इनवॉइस से मिलान का काम भी उचित तरीके से नहीं हो सका है.
यह इतना सिंपल है कि जीएसटी सालाना रिटर्न-9 भरने की तारीख बार-बार बढ़ा दी जाती हैं, बड़े बड़े कर सलाहकार व कारोबारी हैरान-परेशान हैं. किसी को रिटर्न फॉर्म समझ ही नही आ रहा है. बताया जाता है कि इस फॉर्म में हिंदी में 10 पेज के 66 कॉलम में 6 भाग हैं, जिनमें लगभग 468 जानकारियां मांगी हैं. इसमें सालभर पुरानी जानकारी भी शामिल है. नतीजा यह है कि बड़ी संख्या में यह रिटर्न भरे नहीं गए हैं और अब तो इसमें ढेर सारे फर्जी इनवॉइस सामने आने लगे हैं. पिछले साल करीब 38000 करोड़ के जीएसटी फ्रॉड पकड़े गए थे, जिनमें 11,251 करोड़ के मामले सिर्फ फेक बिलिंग के जरिए क्रेडिट क्लेम के थे. मौजूदा वित्त वर्ष के सात महीनों में ही 8000 करोड़ से ज्यादा बोगस बिलिंग पकड़े जाने का अनुमान है.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि जीएसटी, जिसे देश के इतिहास के सबसे बड़े सुधारों में से एक माना जा रहा था, वह वांछित तरीके से काम नहीं कर रहा है जिससे देश की राजस्व वसूली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. सुब्रमण्यम स्वामी ने जब जीएसटी लागू किया जा रहा था तब इसे वाटरलू की संज्ञा दी थी. ढाई साल के हमारे अनुभव बता रहे हैं कि स्वामी की बात बिल्कुल ठीक थी.
जीएसटी पर मंत्रियों के समूह (जीओएम) के संयोजक सुशील कुमार मोदी का कहना है कि GST में 66.79 लाख जो नए करदाता जुड़े हैं उनका कुल जीएसटी में महज 15 फीसदी ही योगदान है। हमें उनसे सिर्फ 10 हजार करोड़ रुपये कर ही मिल रहा है।
जीएसटी कलेक्शन में कोई सुधार नही है, पानी सर तक आने को है. हालत अब इतनी खराब है कि सरकार कर अधिकारियों को ज्यादा से ज्यादा अधिकार देना चाह रही है यह जीएसटी की मूल भावना के प्रतिकूल है. मोदी सरकार का नया नियम जीएसटी अधिकारियों को यह अधिकार देता है कि रिटर्न फाइल करने में लगातार नोटिस को अनदेखा करने पर वह कार्रवाई के रूप में आपकी संपत्ति और बैंक अकाउंट को अटैच कर सकता है.
आपको याद होगा कि 2017 में इसे लागू करने से पहले इसे गुड एंड सिंपल टैक्स कहा जा रहा था. लेकिन जब इसे लागू किया गया तो पाया गया कि जीएसटी अपने आप में अत्यंत जटिल है और इसके चलते ढाई साल पूरे हो जाने के बाद भी पहले साल के इनपुट टैक्स क्रेडिट का इनवॉइस से मिलान का काम भी उचित तरीके से नहीं हो सका है.
यह इतना सिंपल है कि जीएसटी सालाना रिटर्न-9 भरने की तारीख बार-बार बढ़ा दी जाती हैं, बड़े बड़े कर सलाहकार व कारोबारी हैरान-परेशान हैं. किसी को रिटर्न फॉर्म समझ ही नही आ रहा है. बताया जाता है कि इस फॉर्म में हिंदी में 10 पेज के 66 कॉलम में 6 भाग हैं, जिनमें लगभग 468 जानकारियां मांगी हैं. इसमें सालभर पुरानी जानकारी भी शामिल है. नतीजा यह है कि बड़ी संख्या में यह रिटर्न भरे नहीं गए हैं और अब तो इसमें ढेर सारे फर्जी इनवॉइस सामने आने लगे हैं. पिछले साल करीब 38000 करोड़ के जीएसटी फ्रॉड पकड़े गए थे, जिनमें 11,251 करोड़ के मामले सिर्फ फेक बिलिंग के जरिए क्रेडिट क्लेम के थे. मौजूदा वित्त वर्ष के सात महीनों में ही 8000 करोड़ से ज्यादा बोगस बिलिंग पकड़े जाने का अनुमान है.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि जीएसटी, जिसे देश के इतिहास के सबसे बड़े सुधारों में से एक माना जा रहा था, वह वांछित तरीके से काम नहीं कर रहा है जिससे देश की राजस्व वसूली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. सुब्रमण्यम स्वामी ने जब जीएसटी लागू किया जा रहा था तब इसे वाटरलू की संज्ञा दी थी. ढाई साल के हमारे अनुभव बता रहे हैं कि स्वामी की बात बिल्कुल ठीक थी.