सब चंगा सी: गुजरात के 10.50 लाख परीक्षार्थियों और दिल्ली में 4000 शिक्षकों से पूछिए

Written by Ravish Kumar | Published on: October 15, 2019
गुजरात में 18 महीने से साढ़े दस लाख विद्यार्थी 3,738 पदों की परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे थे। 20 अक्तूबर को परीक्षा होनी थी लेकिन 12 अक्तूबर को ख़बर आती है कि परीक्षा रद्द हो गई है। गुजरात सबोर्डिनेट सर्विसेज़ सलेक्शन बोर्ड परीक्षा का आयोजक है। इस परीक्षा का विज्ञापन 12 नवंबर 2018 को आया था। इस संबंध लोकसभा चुनावों से पहले नौजवानों को बरगला कर रखने से है या नहीं, ये गुजरात के विद्वान नौजवान तय करेंगे।



12 अक्तूबर को GSSSB की वेबसाइट पर सूचना आती है कि परीक्षा रद्द कर दी गई है। क्योंकि सरकार ने 2014 के नियम में बदलाव कर दिया है जिसका नोटिफिकेशन 30 सितंबर को जारी हुआ है। इस कारण नई परीक्षा रद्द की जाती है। सरकार अपने फ़ैसले को पीछे से लागू कर रही है। जो फार्म भरे जा चुक हैं, उसे क्यों प्रभावित होना था। अदालतों के कई आदेश हैं कि बीच में परीक्षा के नियम नहीं बदले जा सकते हैं।

बहरहाल, परीक्षा रद्द कर दी गई। इस परीक्षा में 65-70 प्रतिशत बारहवीं पास के नौजवान थे। उन्हें बाहर कर दिया गया। कहा गया कि वे अब इस परीक्षा में शामिल नहीं हो सकते। सिर्फ स्नातक के छात्र शामिल हो सकते हैं। तो साढ़े दस लाख का सत्तर प्रतिशत कितना हुआ?

जब भी बहाली आती है, कोचिंग उद्योग की चांदी हो जाती है। इस परीक्षा की तैयारी में दस लाख छात्रों से कोचिंग ने कितने करोड़ कमाए होंगे, आप सोच नहीं सकते। एक छात्र ने बताया कि साल की फीस 50,000 दी। गांव से शहर में आकर रहने का किराया 3000 महीने का दिया और 2000 रुपया खर्च हुआ खाने पीने पर। किताब कापी पर भी 1000-2000 खर्च हो गए।

अब इन सभी को परीक्षा से बाहर कर दिया गया कि बारहवीं पास वाले शामिल नहीं हो सकते। अगली परीक्षा कब होगी, नहीं बताया। क्या 8 दिन पहले परीक्षा का नियम बदला जा सकता है?

अदालतों के कई आदेश हैं कि बीच में परीक्षा के नियम नहीं बदले जा सकते हैं। लेकिन जब नौजवान बौद्धिक और राजनीतिक रूप से अपनी चेतना नष्ट कर चुका हो तो उसके साथ कुछ भी किया जा सकता है। सभी राज्यों की सभी सरकारों ने ऐसा करके दिखा दिया है। तभी मैं कहता हूं कि भारत के नौजवानों से संवैधानिक और लोकतांत्रिक राजनीति की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। इनकी राजनीतिक समझ झुंड बनने की योग्यता तक ही सीमित है। हिन्दू मुस्लिम के नेशनल सिलेबस ने इन्हें ग़ुलाम सा बना दिया है। अब तो इसमें कश्मीर पर बोला गया झूठ भी शामिल हो गया है। पता कुछ नहीं है लेकिन कश्मीर पर सब हां-हां करते मिलेंगे। शायद झूठ का प्रयोग पूरी तरह सफल हो गया है तभी तो हरियाणा और महाराष्ट्र जहां सूखा, आत्महत्या और बेरोज़गारी पर बात होनी चाहिए वहां धारा 370 और एन आर सी के झूठ पर युवाओं में जोश भरा जा रहा है।

यह बात मैं बार-बार भारत के युवाओं से कहता हूं। उनके अंदर मुसलमानों के प्रति नफ़रत की परत जम गई है। जब तक वे इस झूठ और प्रोपेगैंडा से दबे रहेंगे उनकी मुक्ति नहीं होगी। वे अपने आस-पास खराब कालेज से लेकर नौकरी की हालत देख सकते हैं। यह स्थिति किसी भी सरकार या राजनीतिक दल की हालत ख़राब करने के लिए काफी है मगर सब निश्चिंत हैं।

उन्हें यकीन है भारत का युवा मुसलमानों से नफ़रत के बोतल में बंद हो चुका है। अब वो कभी नहीं निकल पाएगा। नफ़रत उसकी पहली अभिव्यक्ति हो गई है। आप भागते रहिए इस सच को स्वीकार करने से। आपकी मर्ज़ी। मैं जानता हूं कि आप क्यों भाग रहे हैं। मुझे गाली देकर आप इस झूठ का कब तक सुख लूटते रहेंगे?

पिछले साल 2 दिसंबर को पुलिस भर्ती की परीक्षा होनी थी। 8.75 लाख से अधिक परीक्षार्थी 2440 केंद्रों पर पहुंच गए थे लेकिन कुछ घंटे यह कह कर स्थगित कर दी गई कि पर्चा लीक हो गया है। बाद में यह परीक्षा हुई लेकिन अभी तक इसके नतीजे घोषित नहीं हुए हैं। यह गुजरात मॉडल भी बोगस है। दूसरे राज्यों में जहां गुजरात मॉडल नहीं है, वहां भी 4000 पदों के लिए दस लाख परीक्षा देने जाते हैं। तो अंतर क्या रह गया।

अच्छी बात है कि परीक्षा रद्द होने पर गुजरात के नौजवानों ने बोर्ड के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया है। लेकिन उन्हें इन्हीं प्रदर्शनों के दौरान अपनी लोकतांत्रिक और राजनीतिक चेतना का विस्तार करना होगा। बग़ैर वे झूठ और नफ़रत से मुक्त हुए अपने प्रदर्शनों से कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे। लाचार होकर हिंसा करेंगे और ये ग़लती कर दी तो सरकार के लिए कुचलना और आसान हो जाएगा।

दिल्ली में 15 अक्तूबर तक 4000 शिक्षकों को ज्वाइन करना था। दिल्ली सबोर्डिनेट सर्विसेज़ सलेक्शन बोर्ड ने इनका बायोडेटा तैयार कर अलग-अलग निगमों को भेज दिया था। निगमों की तरफ पत्र जारी कर दिए गए कि शिक्षक अपनी हामी भरें। एक दिन पहले यानि 14 अक्तूबर को केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट इन नियुक्तियों पर रोक लगा देता है। उन छात्रों का होगा जो बगैर शिक्षक के पढ़ने के लिए मजबूर हैं ?

पंजाब में 23 साल से कालेजों में नियमित नियुक्ति नहीं हुई है। या तो ठेके पर पढ़ा रहे हैं, कम पैसे पर या क्लास में टीचर नहीं है। वहां पहले अकाली बीजेपी सरकार थी। उसके पहले कांग्रेस सरकार थी और अब कांग्रेस सरकार है।

अब भी अगर आपको यह सब खेल समझ नहीं आता है तो ईश्वर मालिक है। जितनी जल्दी हो सके खुद को कश्मीर पर बोले जा रहे झूठ से मुक्त कर लें और अपनी अंतरात्मा से हिन्दू मुस्लिम का नेशनल सिलेबस उतार कर फेंक दें।

नोट- मुझे अलग अलग राज्यों से और अलग-अलग परीक्षाओं के लिए न लिखें। मुझे किसी को साबित करने की ज़रूरत नहीं है। इसी लेख को अपनी नौकरी पर लिखा गया लेख समझ कर पढ़ें और विचार करें। टीवी के लिए नौकरी सीरीज़ मैंने बंद कर दी है। कुछ नया मिलेगा तो उसे फेसबुक पर लिखूंगा। डेढ़ दो साल से इसी टापिक पर लिखता जा रहा हूं। बोलता जा रहा हूं। आपको फर्क ही नहीं पड़ा। खुद से उम्मीद करें। खुद को बदलें। खुद से लड़ें। मुझे नए विषयों की तरफ प्रस्थान करना है। आशा है आप समझेंगे।

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