आज दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हेमन्त अत्री ने मनमोहन सिंह जी से मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर सरकार की नीतियों और अर्थव्यवस्था की चुनौतियों पर बात की। उन्होंने अपनी पहले कही बात पर ही मुहर लगाते हुए कहा कि नोटबंदी और त्रुटिपूर्ण जीएसटी ही मौजूदा संकट के मुख्य कारण हैं।
उन्होंने कहा कि 'सरकार अब अर्थव्यवस्था के बारे में इनकार की मुद्रा में नहीं रह सकती। भारत बहुत चिंताजनक आर्थिक मंदी में है। पिछली तिमाही की 5% जीडीपी विकास दर 6 वर्षों में सबसे कम है। नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ भी 15 साल के निचले स्तर पर है। अर्थव्यवस्था के कई प्रमुख क्षेत्रों को प्रभावित हुए हैं।
ऑटोमोटिव सेक्टर उत्पादन में भारी गिरावट से संकट में है। साढ़े तीन लाख से ज्यादा नौकरियां जा चुकी हैं। मानेसर, पिंपरी-चिंचवड़ और चेन्नई जैसे ऑटोमोटिव हबों में इस दर्द को महसूस किया जा सकता है। असर इससे संबंधित उद्योगों पर भी है। अधिक चिंता ट्रक उत्पादन में मंदी से है, जो माल और आवश्यक वस्तुओं की धीमी मांग का स्पष्ट संकेत है। समग्र मंदी ने सेवा क्षेत्र को भी प्रभावित किया है।
पिछले कुछ समय से रियल एस्टेट सेक्टर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है, जिससे ईंट, स्टील व इलेक्ट्रिकल्स जैसे संबद्ध उद्योग भी प्रभावित हो रहे हैं। कोयला, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में गिरावट के बाद कोर सेक्टर धीमा हो गया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था फसल की अपर्याप्त कीमतों से ग्रस्त है। 2017-18 में बेरोजगारी 45 साल के उच्च स्तर पर रही। आर्थिक विकास बढ़ाने का विश्वसनीय इंजन रही खपत, 18 महीने के निचले स्तर तक पहुंच गई है। बिस्कुट के पांच रुपए के पैकेट की बिक्री में गिरावट ने सारी कहानी खुद बयां कर दी हैा। उपभोक्ता ऋण की सीमित उपलब्धता और घरेलू बचत में गिरावट से खपत भी प्रभावित होती है।
मेरे अनुमान में, इस मंदी से बाहर आने में कुछ साल लगेंगे बशर्ते सरकार अभी समझदारी से काम ले। हालांकि हम यह न भूलें कि नोटबंदी की भयंकर गलती के बाद जीएसटी के दोषपूर्ण अमल ने इस मंदी को जन्म दिया। आरबीआई ने हाल ही में ऐसे आंकड़े पेश किए हैं, जिनसे पता चलता है कि उपभोक्ता वस्तुओं के ऋणों के लिए सकल बैंक जोखिम में 2016 के अंत अर्थात नोटबंदी के बाद से लगातार गिरावट हुई है। इस डेटा से अर्थव्यवस्था की मांग संबंधी समस्याएं प्रदर्शित होती हैं।
उन्होंने आर्थिक हालात सुधारने के लिए निम्नलिखित पांच कदम उठाने की बात कही। पहला: जीएसटी को तर्कसंगत करना होगा, भले ही थोड़े समय के लिए टैक्स का नुकसान हो।
दूसरा: ग्रामीण खपत बढ़ाने और कृषि को पुनर्जीवित करने के लिए नए तरीके खोजने होंगे। कांग्रेस के घोषणा-पत्र में ठोस विकल्प हैं, जिसमें कृषि बाजारों को फ्री करके लोगों के पास पैसा लौट सकता है।
तीसरा: पूंजी निर्माण के लिए कर्ज की कमी दूर करनी होगी। सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक नहीं, बल्कि एनबीएफसी भी ठगे जाते हैं।
चौथा: कपड़ा, ऑटो, इलेक्ट्रॉनिक्स और रियायती आवास जैसे प्रमुख नौकरी देने वाले क्षेत्रों को पुनर्जीवित करना होगा। इसके लिए आसान कर्ज देना होगा। खासकर एमएसएमई को।
पांचवां: हमें अमेरिका-चीन में चल रहे ट्रेडवॉर के चलते खुल रहे नए निर्यात बाजारों को पहचाना होगा। याद रखना चाहिए कि साइक्लिक और स्ट्रक्चरल दोनों समस्याओं का समाधान जरूरी है। तभी हम 3-4 साल में उच्च विकास दर को वापस पा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि 'सरकार अब अर्थव्यवस्था के बारे में इनकार की मुद्रा में नहीं रह सकती। भारत बहुत चिंताजनक आर्थिक मंदी में है। पिछली तिमाही की 5% जीडीपी विकास दर 6 वर्षों में सबसे कम है। नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ भी 15 साल के निचले स्तर पर है। अर्थव्यवस्था के कई प्रमुख क्षेत्रों को प्रभावित हुए हैं।
ऑटोमोटिव सेक्टर उत्पादन में भारी गिरावट से संकट में है। साढ़े तीन लाख से ज्यादा नौकरियां जा चुकी हैं। मानेसर, पिंपरी-चिंचवड़ और चेन्नई जैसे ऑटोमोटिव हबों में इस दर्द को महसूस किया जा सकता है। असर इससे संबंधित उद्योगों पर भी है। अधिक चिंता ट्रक उत्पादन में मंदी से है, जो माल और आवश्यक वस्तुओं की धीमी मांग का स्पष्ट संकेत है। समग्र मंदी ने सेवा क्षेत्र को भी प्रभावित किया है।
पिछले कुछ समय से रियल एस्टेट सेक्टर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है, जिससे ईंट, स्टील व इलेक्ट्रिकल्स जैसे संबद्ध उद्योग भी प्रभावित हो रहे हैं। कोयला, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में गिरावट के बाद कोर सेक्टर धीमा हो गया है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था फसल की अपर्याप्त कीमतों से ग्रस्त है। 2017-18 में बेरोजगारी 45 साल के उच्च स्तर पर रही। आर्थिक विकास बढ़ाने का विश्वसनीय इंजन रही खपत, 18 महीने के निचले स्तर तक पहुंच गई है। बिस्कुट के पांच रुपए के पैकेट की बिक्री में गिरावट ने सारी कहानी खुद बयां कर दी हैा। उपभोक्ता ऋण की सीमित उपलब्धता और घरेलू बचत में गिरावट से खपत भी प्रभावित होती है।
मेरे अनुमान में, इस मंदी से बाहर आने में कुछ साल लगेंगे बशर्ते सरकार अभी समझदारी से काम ले। हालांकि हम यह न भूलें कि नोटबंदी की भयंकर गलती के बाद जीएसटी के दोषपूर्ण अमल ने इस मंदी को जन्म दिया। आरबीआई ने हाल ही में ऐसे आंकड़े पेश किए हैं, जिनसे पता चलता है कि उपभोक्ता वस्तुओं के ऋणों के लिए सकल बैंक जोखिम में 2016 के अंत अर्थात नोटबंदी के बाद से लगातार गिरावट हुई है। इस डेटा से अर्थव्यवस्था की मांग संबंधी समस्याएं प्रदर्शित होती हैं।
उन्होंने आर्थिक हालात सुधारने के लिए निम्नलिखित पांच कदम उठाने की बात कही। पहला: जीएसटी को तर्कसंगत करना होगा, भले ही थोड़े समय के लिए टैक्स का नुकसान हो।
दूसरा: ग्रामीण खपत बढ़ाने और कृषि को पुनर्जीवित करने के लिए नए तरीके खोजने होंगे। कांग्रेस के घोषणा-पत्र में ठोस विकल्प हैं, जिसमें कृषि बाजारों को फ्री करके लोगों के पास पैसा लौट सकता है।
तीसरा: पूंजी निर्माण के लिए कर्ज की कमी दूर करनी होगी। सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक नहीं, बल्कि एनबीएफसी भी ठगे जाते हैं।
चौथा: कपड़ा, ऑटो, इलेक्ट्रॉनिक्स और रियायती आवास जैसे प्रमुख नौकरी देने वाले क्षेत्रों को पुनर्जीवित करना होगा। इसके लिए आसान कर्ज देना होगा। खासकर एमएसएमई को।
पांचवां: हमें अमेरिका-चीन में चल रहे ट्रेडवॉर के चलते खुल रहे नए निर्यात बाजारों को पहचाना होगा। याद रखना चाहिए कि साइक्लिक और स्ट्रक्चरल दोनों समस्याओं का समाधान जरूरी है। तभी हम 3-4 साल में उच्च विकास दर को वापस पा सकते हैं।