नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ की हिंसा और लोगों को पीट-पीट कर मारने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए दिए गए निर्देशों पर अमल नहीं करने के आरोपों पर शुक्रवार को केंद्र से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने ‘एंटी करप्शन काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट’ नाम के संगठन की याचिका पर गृह मंत्रालय और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए।
ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनुकूल चंद्र प्रधान ने कहा कि भीड़ द्वारा लोगों को पीट-पीट कर मार डालने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है और सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा जुलाई, 2018 में दिए गए निर्देशों पर अमल के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं। ट्रस्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 17 जुलाई, 2018 को सरकारों को तीन तरह के उपाय- एहतियाती, उपचारात्मक और दंडात्मक– करने के निर्देश दिए थे, लेकिन इन पर अमल नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में ऐसी घटनाओं की रोकथाम, उपचार और दंडात्मक उपायों का प्रावधान करने के लिए अनेक निर्देश दिए थे। न्यायालय ने राज्य सरकारों से कहा था कि वे प्रत्येक ज़िले में पुलिस अधीक्षक स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों को नोडल अधिकारी मनोनीत करें। भीड़ की हिंसा और लोगों को पीट-पीटकर मारने की घटनाओं की रोकथाम के उचित कदम उठाने के लिए नोडल अधिकारियों की मदद हेतु उपाधीक्षक रैंक का एक अधिकारी रहना चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा था कि यदि कोई पुलिस अधिकारी या जिला प्रशासन का अधिकारी इन निर्देशों का पालन करने में असफल रहता है तो इसे जान-बूझकर लापरवाही करने और अथवा कदाचार का कृत्य माना जाएगा और इसके लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। विभागीय कार्रवाई को छह महीने के भीतर निष्कर्ष तक पहुंचाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि भीड़ की हिंसा के अपराधों से निपटने के लिए नए दंडात्मक प्रावधानों वाला कानून बनाने और ऐसे अपराधियों के लिए इसमें कठोर सज़ा का प्रावधान करने पर विचार करना चाहिए।
अदालत ने इस निर्देश के बाद सितंबर 2018 में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए अपने निर्देशों पर अमल करने के लिए कहा था। कहा था कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा और भीड़ द्वारा हत्या की घटनाओं पर अंकुश के लिए उसके निर्देशों पर अमल किया जाए और लोगों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि ऐसी घटनाओं पर उन्हें कानून के कोप का सामना करना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला की याचिका पर ये निर्देश दिए थे। कोर्ट ने संसद से भी भीड़ हिंसा और गोरक्षकों द्वारा कानून अपने हाथ में लेने की बढ़ती प्रवृत्ति से सख्ती से निपटने के लिए उचित कानून बनाने पर विचार करने का आग्रह किया था।
ट्रस्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनुकूल चंद्र प्रधान ने कहा कि भीड़ द्वारा लोगों को पीट-पीट कर मार डालने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है और सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा जुलाई, 2018 में दिए गए निर्देशों पर अमल के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं। ट्रस्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 17 जुलाई, 2018 को सरकारों को तीन तरह के उपाय- एहतियाती, उपचारात्मक और दंडात्मक– करने के निर्देश दिए थे, लेकिन इन पर अमल नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में ऐसी घटनाओं की रोकथाम, उपचार और दंडात्मक उपायों का प्रावधान करने के लिए अनेक निर्देश दिए थे। न्यायालय ने राज्य सरकारों से कहा था कि वे प्रत्येक ज़िले में पुलिस अधीक्षक स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों को नोडल अधिकारी मनोनीत करें। भीड़ की हिंसा और लोगों को पीट-पीटकर मारने की घटनाओं की रोकथाम के उचित कदम उठाने के लिए नोडल अधिकारियों की मदद हेतु उपाधीक्षक रैंक का एक अधिकारी रहना चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा था कि यदि कोई पुलिस अधिकारी या जिला प्रशासन का अधिकारी इन निर्देशों का पालन करने में असफल रहता है तो इसे जान-बूझकर लापरवाही करने और अथवा कदाचार का कृत्य माना जाएगा और इसके लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। विभागीय कार्रवाई को छह महीने के भीतर निष्कर्ष तक पहुंचाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि भीड़ की हिंसा के अपराधों से निपटने के लिए नए दंडात्मक प्रावधानों वाला कानून बनाने और ऐसे अपराधियों के लिए इसमें कठोर सज़ा का प्रावधान करने पर विचार करना चाहिए।
अदालत ने इस निर्देश के बाद सितंबर 2018 में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए अपने निर्देशों पर अमल करने के लिए कहा था। कहा था कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा और भीड़ द्वारा हत्या की घटनाओं पर अंकुश के लिए उसके निर्देशों पर अमल किया जाए और लोगों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि ऐसी घटनाओं पर उन्हें कानून के कोप का सामना करना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला की याचिका पर ये निर्देश दिए थे। कोर्ट ने संसद से भी भीड़ हिंसा और गोरक्षकों द्वारा कानून अपने हाथ में लेने की बढ़ती प्रवृत्ति से सख्ती से निपटने के लिए उचित कानून बनाने पर विचार करने का आग्रह किया था।