सुप्रीम कोर्ट में "वनाधिकार कानून" को लेकर आज पुनः सुनवाई होगी। यह मसला 20 लाख से अधिक आदिवासी व वन में निवासित लोगों के लिए अहम रहेगा। 13 फरवरी को वर्ड वाइल्ड लाइफ एनजीओ की एक याचिका द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखा गया कि आदिवासियों व वनवासियों को उस जल, जंगल व जमीन से निकाला जाये, यह वहां के जंगल व पशुओं के लिए नुकसानदायक हैं। इसी सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा करीब 20 लाख आदिवासियों को 12 जुलाई से पहले बेदखली का फरमान जारी कर दिया।
जिस वक्त यह फैसला आया उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से कोई वकील ही मौजूद नहीं था। ना सरकार की अपनी तरफ से कोई खास पक्ष रखने मंशा थी। इसका कारण बताया जा रहा है कि आदिवासी सरकार और कॉर्पोरेट की खुली लूट का विरोध करते हैं। जल जंगल और जमीन को लेकर आदिवासी अपनी जान तक दे देते हैं। ऐसे में सरकार पर मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ताओं का दवाब रहता है तब ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने खनिज लूट की राह आसान कर दी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देशभर में वनाधिकार कानून को लेकर आंदोलन चल रहे हैं। कथित मेन स्ट्रीम मीडिया इस मुद्दे को कुछ समझ ही नहीं रहा हैं, इसे इग्नोर किया जा रहा है। ऐसे में सामाजिक संगठन ने अनुरोध किया है कि आज सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आने वाले निर्णय के खिलाफ अभी से अपनी अपनी तरफ से ट्विटर पर विरोध करना शुरू करें।
सरकार के वन एंव पर्यावरण मंत्री, आदिवासी मंत्री, प्रधानमंत्री व नामी गिनामी मीडिया को मेंशन करते हुए अपना प्रतिशोध जतायें। कड़ी चेतावनी दें। जिससे सरकार दबाव में आये और अच्छा वकील सुप्रीम कोर्ट में भेजे, अच्छे से पैरवी करे। हमारे हक, अधिकार तय व सुनिश्चित करके आधिकारिक तौर पर पुख्ता करें। अन्यथा बाद में निर्णय आने के बाद, प्रतिशोध जताना कोई उसका खास महत्व नहीं रह जाता।
#OurForestsOurRights
जिस वक्त यह फैसला आया उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से कोई वकील ही मौजूद नहीं था। ना सरकार की अपनी तरफ से कोई खास पक्ष रखने मंशा थी। इसका कारण बताया जा रहा है कि आदिवासी सरकार और कॉर्पोरेट की खुली लूट का विरोध करते हैं। जल जंगल और जमीन को लेकर आदिवासी अपनी जान तक दे देते हैं। ऐसे में सरकार पर मानवाधिकार व सामाजिक कार्यकर्ताओं का दवाब रहता है तब ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने खनिज लूट की राह आसान कर दी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देशभर में वनाधिकार कानून को लेकर आंदोलन चल रहे हैं। कथित मेन स्ट्रीम मीडिया इस मुद्दे को कुछ समझ ही नहीं रहा हैं, इसे इग्नोर किया जा रहा है। ऐसे में सामाजिक संगठन ने अनुरोध किया है कि आज सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आने वाले निर्णय के खिलाफ अभी से अपनी अपनी तरफ से ट्विटर पर विरोध करना शुरू करें।
सरकार के वन एंव पर्यावरण मंत्री, आदिवासी मंत्री, प्रधानमंत्री व नामी गिनामी मीडिया को मेंशन करते हुए अपना प्रतिशोध जतायें। कड़ी चेतावनी दें। जिससे सरकार दबाव में आये और अच्छा वकील सुप्रीम कोर्ट में भेजे, अच्छे से पैरवी करे। हमारे हक, अधिकार तय व सुनिश्चित करके आधिकारिक तौर पर पुख्ता करें। अन्यथा बाद में निर्णय आने के बाद, प्रतिशोध जताना कोई उसका खास महत्व नहीं रह जाता।
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