ये हौज काज़ी (पुरानी दिल्ली) की दूसरी तस्वीर है। भंडारे वाली को तो झूठा साबित करने की कोशिशें होने लगी हैं। आप ये ग्राउंड रिपोर्ट पढ़िए।
PC- मोहम्मद असगर
बच्चा बच्चा राम का, मंदिर वहीं बनाएंगे, जय श्रीराम, जय श्रीराम...! इन नारों की गूंज ने बंद पड़ी लाल कुआं मार्केट के सन्नाटे को खत्म कर दिया था। पसीने से लथपथ भीड़ डीजे की धुन पर नाच रही थी। 'मुझे चढ़ गया भगवा रंग रंग, ओ मुझे चढ़ गया...' डीजे की आवाज पर बजता ये गाना रईस अनीस साबरी की कव्वाली 'मुझे चढ़ गया चिश्ती रंग रंग' की याद दिला रहा था। वही लय, बिल्कुल वैसा ही म्यूजिक। बस उनकी कव्वाली को भक्ति रंग में रंग दिया गया था, जो मिलीजुली संस्कृति की गवाही दे रहा था। हौज काजी चौक से लेकर लाल कुआं तक सब भगवा रंग ही नजर आ रहा था...।
यहां पहुंचने से पहले मेट्रो में भगवा पटके गले में डाले लोग चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन जाते मिले, जो भड़काऊ बातें कर रहे थे। किसी दल से जुड़े थे। उनकी बातों से डर लगा, क्या 5 जुलाई को एनबीटी में छपी ग्राउंड रिपोर्ट 'पुलिस फोर्स के साये में लौट आई हौज काजी की रौनक' झूठी साबित होगी, लेकिन ये डर मेट्रो से बाहर निकलते ही गायब हो गया। नारे लगाते जत्थे मंदिर की तरफ बढ़ रहे थे। उनके इस्तकबाल में मुसलमान पानी की छबील लगाए खड़े थे। एक अधेड़ उम्र का शख्स, जिसके गले में राम नाम का पटका पड़ा था। पानी के गिलास बांट रहे एक मुसलमान की तरफ ऐसे बढ़ा जैसे हुमक कर बच्चा गोद में आ जाता है। उस अधेड़ ने मुसलमान को पानी बांटते देखकर बड़ी ही मोहब्बत से गले लगा लिया। ये लम्हा कैमरे में कैद नहीं हो पाया, लेकिन सुकून देने वाला था। इसी लम्हें में नफरतें दम तोड़ चुकी थीं।
बाजार बंद था, इक्का दुक्का दुकानों के शटर उठे थे। लाल कुआं, पुरानी दिल्ली की वही जगह जहां कुछ दिन पहले आपसी झगड़े के दौरान मंदिर में तोड़फोड़ का मामला सामने आया था। मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के लिए शोभायात्रा शुरू हो चुकी थी। चप्पे-चप्पे पर पहरा क्या होता है, वो हौज काजी इलाके में दिख रहा था। गलियों से लेकर मकानों की छत तक पुलिस फोर्स, गलियों के सामने बैरिकेडिंग, सिर पर उड़ता ड्रोन ये व्यवस्था थी दिल्ली पुलिस की।
रथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे, उनपर सवार कलाकर नृत्य कर रहे थे। पीछे-पीछे हिंदू-मुस्लिम साथ चल रहे थे। कुछ गलियों में ऐसा भी दिखा, जहां मुस्लिम बुजुर्ग अपने नौजवानों से सौहार्द बनाये रखने की गुजारिश कर रहे थे। यहां तक कि कुछ गलियों से बाहर भी नहीं निकलने दे रहे थे। दुर्गा मंदिर गली के सामने एक मंच लगा था, जहां कुछ सियासी लोग भाषण दे रहे थे। बराबर में ही एक लंबी कतार में भंडारा बांटा जा रहा था। यहां सबसे खूबसूरत तस्वीर थी, जिसे असल हिंदुस्तान कहा जाए। मोहम्मद अहमद और अब्दुल बकी भंडारा परोस रहे थे। साथ में और भी मुस्लिम थे। दूर-दूर से मंदिर आए भक्त कतार में खड़े थे। अब्दुल बकी कहते हैं, 'नेता क्या बोल रहे हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता। हम क्या हैं, इससे फर्क पड़ता है। जैसा आप हमें भंडारा बांटते देख रहे हैं वैसे ही यहां के हिंदू हैं। अमन पसंद। बाहर के लोग लौट जाएंगे। हमें ही आपस में मिलकर रहना है। हम इंसानी फर्ज निभा रहे हैं। ये ही इस इलाके का सच है, ये ही भाईचारा है।'
PC- मोहम्मद असगर
हाथों में भगवा झंडे, माथे पर भभूत, चंदन के टीके देखकर लग रहा था आप पुरानी दिल्ली की गली में नहीं किसी तीर्थस्थल पर हैं। इस भीड़ में कुछ लड़कों ने भड़काऊ नारेबाजी कर माहौल को गर्माने की कोशिश की। एक-दो तो टीवी चैनल वालों से भिड़ गए, वो चाहते थे कि भंडारा बांटते मुसलमान टीवी पर न दिखें। कुछ बुजुर्गों ने उन्हें समझाया तो मान गए। मूर्तियां स्थापित करने के लिए मंदिर में गईं और लोग घरों को लौटने लगे। और इस तरह हौज काजी मिसाल बन गया, जिससे सबक लिया जाना चाहिए कि कैसे हिंदू-मुस्लिम मिलकर अफवाहों और नफरतों का खात्मा कर सकते हैं।
(मोहम्मद असगर एनबीटी में पत्रकार हैं, यह रिपोर्ट उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित की गई है।)
PC- मोहम्मद असगर
बच्चा बच्चा राम का, मंदिर वहीं बनाएंगे, जय श्रीराम, जय श्रीराम...! इन नारों की गूंज ने बंद पड़ी लाल कुआं मार्केट के सन्नाटे को खत्म कर दिया था। पसीने से लथपथ भीड़ डीजे की धुन पर नाच रही थी। 'मुझे चढ़ गया भगवा रंग रंग, ओ मुझे चढ़ गया...' डीजे की आवाज पर बजता ये गाना रईस अनीस साबरी की कव्वाली 'मुझे चढ़ गया चिश्ती रंग रंग' की याद दिला रहा था। वही लय, बिल्कुल वैसा ही म्यूजिक। बस उनकी कव्वाली को भक्ति रंग में रंग दिया गया था, जो मिलीजुली संस्कृति की गवाही दे रहा था। हौज काजी चौक से लेकर लाल कुआं तक सब भगवा रंग ही नजर आ रहा था...।
यहां पहुंचने से पहले मेट्रो में भगवा पटके गले में डाले लोग चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन जाते मिले, जो भड़काऊ बातें कर रहे थे। किसी दल से जुड़े थे। उनकी बातों से डर लगा, क्या 5 जुलाई को एनबीटी में छपी ग्राउंड रिपोर्ट 'पुलिस फोर्स के साये में लौट आई हौज काजी की रौनक' झूठी साबित होगी, लेकिन ये डर मेट्रो से बाहर निकलते ही गायब हो गया। नारे लगाते जत्थे मंदिर की तरफ बढ़ रहे थे। उनके इस्तकबाल में मुसलमान पानी की छबील लगाए खड़े थे। एक अधेड़ उम्र का शख्स, जिसके गले में राम नाम का पटका पड़ा था। पानी के गिलास बांट रहे एक मुसलमान की तरफ ऐसे बढ़ा जैसे हुमक कर बच्चा गोद में आ जाता है। उस अधेड़ ने मुसलमान को पानी बांटते देखकर बड़ी ही मोहब्बत से गले लगा लिया। ये लम्हा कैमरे में कैद नहीं हो पाया, लेकिन सुकून देने वाला था। इसी लम्हें में नफरतें दम तोड़ चुकी थीं।
बाजार बंद था, इक्का दुक्का दुकानों के शटर उठे थे। लाल कुआं, पुरानी दिल्ली की वही जगह जहां कुछ दिन पहले आपसी झगड़े के दौरान मंदिर में तोड़फोड़ का मामला सामने आया था। मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के लिए शोभायात्रा शुरू हो चुकी थी। चप्पे-चप्पे पर पहरा क्या होता है, वो हौज काजी इलाके में दिख रहा था। गलियों से लेकर मकानों की छत तक पुलिस फोर्स, गलियों के सामने बैरिकेडिंग, सिर पर उड़ता ड्रोन ये व्यवस्था थी दिल्ली पुलिस की।
रथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे, उनपर सवार कलाकर नृत्य कर रहे थे। पीछे-पीछे हिंदू-मुस्लिम साथ चल रहे थे। कुछ गलियों में ऐसा भी दिखा, जहां मुस्लिम बुजुर्ग अपने नौजवानों से सौहार्द बनाये रखने की गुजारिश कर रहे थे। यहां तक कि कुछ गलियों से बाहर भी नहीं निकलने दे रहे थे। दुर्गा मंदिर गली के सामने एक मंच लगा था, जहां कुछ सियासी लोग भाषण दे रहे थे। बराबर में ही एक लंबी कतार में भंडारा बांटा जा रहा था। यहां सबसे खूबसूरत तस्वीर थी, जिसे असल हिंदुस्तान कहा जाए। मोहम्मद अहमद और अब्दुल बकी भंडारा परोस रहे थे। साथ में और भी मुस्लिम थे। दूर-दूर से मंदिर आए भक्त कतार में खड़े थे। अब्दुल बकी कहते हैं, 'नेता क्या बोल रहे हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता। हम क्या हैं, इससे फर्क पड़ता है। जैसा आप हमें भंडारा बांटते देख रहे हैं वैसे ही यहां के हिंदू हैं। अमन पसंद। बाहर के लोग लौट जाएंगे। हमें ही आपस में मिलकर रहना है। हम इंसानी फर्ज निभा रहे हैं। ये ही इस इलाके का सच है, ये ही भाईचारा है।'
PC- मोहम्मद असगर
हाथों में भगवा झंडे, माथे पर भभूत, चंदन के टीके देखकर लग रहा था आप पुरानी दिल्ली की गली में नहीं किसी तीर्थस्थल पर हैं। इस भीड़ में कुछ लड़कों ने भड़काऊ नारेबाजी कर माहौल को गर्माने की कोशिश की। एक-दो तो टीवी चैनल वालों से भिड़ गए, वो चाहते थे कि भंडारा बांटते मुसलमान टीवी पर न दिखें। कुछ बुजुर्गों ने उन्हें समझाया तो मान गए। मूर्तियां स्थापित करने के लिए मंदिर में गईं और लोग घरों को लौटने लगे। और इस तरह हौज काजी मिसाल बन गया, जिससे सबक लिया जाना चाहिए कि कैसे हिंदू-मुस्लिम मिलकर अफवाहों और नफरतों का खात्मा कर सकते हैं।
(मोहम्मद असगर एनबीटी में पत्रकार हैं, यह रिपोर्ट उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित की गई है।)