लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे चौंकाने वाले रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी परंपरागत सीट अमेठी से हार गए हैं। बीजेपी की स्मृति ईरानी ने जीत दर्ज की है। स्मृति ईरानी ने जीत के बाद ट्वीट किया है, कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता.. एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो....
अमेठी से एक बार हार जाने के बाद गांधी परिवार के इस गढ़ को जीतना आसमां में सुराख करने जैसा ही माना जा सकता है। क्योंकि, काउंटिंग की सुबह तक कोई ये मानने को तैयार नहीं था कि राहुल अमेठी हार सकते हैं। यह जीत एक दिन की जीत नहीं है। न ही किसी एक करिश्मे की। ये जीत 5 साल के उस लगातार प्रयास की है, जिससे स्मृति अमेठी की जनता में विश्वास बनाने में कामयाब हुईं।
दरअसल अमेठी से हारने के बाद स्मृति ईरानी लगातार वहां के लोगों के संपर्क में रहीं। गांधी परिवार से लगाव रखने वाली अमेठी में राहुल गांधी बहुत कम ही गए। स्मृति ईरानी ने किसानों की लड़ाई लड़ी जिससे वे लोकप्रिय होती गईं और राहुल गांधी के प्रति लोगों के दिलों में दूरी बढ़ती गई।
इस सीट पर अभी तक 16 लोकसभा चुनाव और 2 उपचुनाव हुए हैं। इनमें से कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की है। वहीं, 1977 में लोकदल और 1998 में बीजेपी को जीत मिली है। जबकि बसपा और सपा अभी तक अपना खाता नहीं खोल सकी हैं। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन ने इस बार यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी थी और अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था। लेकिन राहुल गांधी अपनी सीट बचाने में नाकामयाब रहे।
अमेठी का जातीय समीकरण
अमेठी लोकसभा सीट पर दलित और मुस्लिम मतदाता किंगमेकर की भूमिका में हैं। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता करीब 4 लाख के करीब हैं और तकरीबन साढ़े तीन लाख वोटर दलित हैं। इनमें पासी समुदाय के वोटर काफी अच्छी तादाद में हैं। इसके अलावा यादव, राजपूत और ब्राह्मण भी इस सीट पर अच्छे खासे हैं।
अमेठी में स्मृति ईरानी को 211820 वोट मिले हैं जबकि राहुल गांधी को 192102 वोट मिले हैं। इस तरह करीब 20 हजार वोट से राहुल गांधी ने अपना परंपरागत किला गंवा दिया है। मीडिया रिपोर्ट में यहां राहुल गांधी की हार का सबसे बड़ा कारण राहुल गांधी का कम जनसंपर्क माना जा रहा है। लोगों की शिकायत है कि राजीव गांधी के समय से गांधी परिवार से उन्हें बहुत प्यार मिला लेकिन राहुल गांधी ने उन्हें ज्यादा तरजीह नहीं दी।
अमेठी से एक बार हार जाने के बाद गांधी परिवार के इस गढ़ को जीतना आसमां में सुराख करने जैसा ही माना जा सकता है। क्योंकि, काउंटिंग की सुबह तक कोई ये मानने को तैयार नहीं था कि राहुल अमेठी हार सकते हैं। यह जीत एक दिन की जीत नहीं है। न ही किसी एक करिश्मे की। ये जीत 5 साल के उस लगातार प्रयास की है, जिससे स्मृति अमेठी की जनता में विश्वास बनाने में कामयाब हुईं।
दरअसल अमेठी से हारने के बाद स्मृति ईरानी लगातार वहां के लोगों के संपर्क में रहीं। गांधी परिवार से लगाव रखने वाली अमेठी में राहुल गांधी बहुत कम ही गए। स्मृति ईरानी ने किसानों की लड़ाई लड़ी जिससे वे लोकप्रिय होती गईं और राहुल गांधी के प्रति लोगों के दिलों में दूरी बढ़ती गई।
इस सीट पर अभी तक 16 लोकसभा चुनाव और 2 उपचुनाव हुए हैं। इनमें से कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की है। वहीं, 1977 में लोकदल और 1998 में बीजेपी को जीत मिली है। जबकि बसपा और सपा अभी तक अपना खाता नहीं खोल सकी हैं। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन ने इस बार यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी थी और अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था। लेकिन राहुल गांधी अपनी सीट बचाने में नाकामयाब रहे।
अमेठी का जातीय समीकरण
अमेठी लोकसभा सीट पर दलित और मुस्लिम मतदाता किंगमेकर की भूमिका में हैं। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता करीब 4 लाख के करीब हैं और तकरीबन साढ़े तीन लाख वोटर दलित हैं। इनमें पासी समुदाय के वोटर काफी अच्छी तादाद में हैं। इसके अलावा यादव, राजपूत और ब्राह्मण भी इस सीट पर अच्छे खासे हैं।
अमेठी में स्मृति ईरानी को 211820 वोट मिले हैं जबकि राहुल गांधी को 192102 वोट मिले हैं। इस तरह करीब 20 हजार वोट से राहुल गांधी ने अपना परंपरागत किला गंवा दिया है। मीडिया रिपोर्ट में यहां राहुल गांधी की हार का सबसे बड़ा कारण राहुल गांधी का कम जनसंपर्क माना जा रहा है। लोगों की शिकायत है कि राजीव गांधी के समय से गांधी परिवार से उन्हें बहुत प्यार मिला लेकिन राहुल गांधी ने उन्हें ज्यादा तरजीह नहीं दी।