बड़ा खुलासाः नीरव मोदी को वापस लाने में भारत ने नहीं की ब्रिटेन की मदद

Written by Sabrangindia Staff | Published on: March 12, 2019
बैंक धोखाधड़ी के मामले में लंबे समय से फरार चल रहे हीरा कारोबारी नीरव मोदी पिछले दिनों लंदन में नजर आए थे, इसका एक वीडियो भी सामने आया था। इस पर केंद्र की मोदी सरकार ने दावा किया था कि नीरव मोदी को वापस लाने की आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन अब चौंकाने वाली खबर यह सामने आ रही है कि केंद्र सरकार नीरव मोदी को वापस लाने में ब्रिटेन की सरकार की मदद नहीं कर रही है।




एनडीटीवी की रिपोर्ट की माने तो नीरव मोदी के मामले में ब्रिटिश अधिकारियों की ओर से भारत से कई बार जानकारियाँ माँगी गईं, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया। ब्रिटेन की ओर से एक क़ानूनी टीम ने भी नीरव मोदी के ख़िलाफ़ कार्रवाई में मदद करने के लिए भारत आने की पेशकश की थी, लेकिन भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

रिपोर्ट के मुताबिक़, लंदन स्थित सीरियस फ्रॉड ऑफिस (एसएफ़ओ) से एनडीटीवी को जो जानकारी मिली है, जिसके मुताबिक़, भारत ने इस बारे में पहली बार फ़रवरी 2018 में ब्रिटेन को जो अलर्ट भेजा था, वह वापस आ गया था। यह अलर्ट म्युचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी (एमएलएटी) यानी पारस्परिक क़ानूनी सहायता संधि के तहत भेजा गया था। इसके कुछ ही समय बाद सीबीआई ने पंजाब नैशनल बैंक धोखाधड़ी मामले में नीरव मोदी और उसके परिवार के सदस्यों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर लिया था। .

क़ानूनी सहायता संधि का मतलब यह है कि गृह मंत्रालय लंदन में भारतीय उच्चायोग को सीधे सम्मन या वारंट दे सकता है, और भारतीय उच्चायोग बाद में इसे ब्रिटेन के केंद्रीय प्राधिकरण को भेज सकता है। इस मामले में ब्रिटेन के केंद्रीय प्राधिकरण ने यह फ़ैसला किया कि वहाँ की प्रमुख अभियोजन सेवा और एसएफ़ओ, दोनों में से यह मामला एसएफ़ओ को भेज दिया जाए। इससे पहले, विदेश में अपराधियों को पकड़ने के लिए क़ानूनी सहायता लेने में ज़्यादा समय लगता था।

ख़बर के मुताबिक़, एसएफ़ओ ने भारत को बताया कि मार्च तक नीरव मोदी ब्रिटेन में ही थे। उस समय तक भारतीय अधिकारी यह पता करने की कोशिश कर रहे थे कि नीरव मोदी यूरोप में हैं या हांगकांग में। एसएफ़ओ इस मामले में कार्रवाई करना चाहता था और इसीलिए उसने भारत की मदद के लिए अपने एक वकील बैरी स्टेनकोम्ब को भी कार्रवाई के लिए नियुक्त किया। स्टेनकोम्ब को धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि स्टेनकोम्ब और उनकी टीम इस मामले में ज़्यादा से ज़्यादा सबूत जुटाने के लिए भारत आना चाहती थी, जिससे कि वह नीरव मोदी को गिरफ़्तार कर सके लेकिन भारत की ओर से उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया। 

वहीं खबर है कि नीरव मोदी ने अपनी दो क़ानूनी टीम तैयार की हैं जिसमें से एक टीम उसके ब्रिटेन में रहने के मुद्दे पर काम कर रही थी और इस टीम का नेतृत्व कमाल रहमान कर रहे थे। जबकि दूसरी टीम प्रत्यर्पण के मुद्दे पर काम कर रही थी जिसे आनंद दुबे संभाल रहे थे। 

बता दें कि विदेश मंत्रालय ने शनिवार को बताया था कि अगस्त 2018 तक सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की ओर से नीरव मोदी के प्रत्यर्पण से संबंधित दो अनुरोध ब्रिटेन को भेजे गए थे। 

एनडीटीवी को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़, दिसंबर तक भारत की ओर से इस मामले में सही जवाब न मिलने के कारण एसएफ़ओ ने इस बारे में कार्रवाई बंद कर दी थी। एनडीटीवी की ओर से जब इस बारे में एसएफ़ओ कार्यालय से संपर्क किया गया तो वहाँ के प्रवक्ता ने जवाब दिया, 'एसएफ़ओ की दिलचस्पी के बारे में हम न तो पुष्टि कर सकते हैं और न ही इससे इनकार कर सकते हैं।’ 

एनडीटीवी ने इस मामले में वकील बैरी स्टेनकोम्ब से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। एनडीटीवी ने भारत के विदेश मंत्रालय और सीबीआई को फ़ोन कॉल की और ई-मेल भेजे लेकिन उन्होंने भी कोई जवाब नहीं दिया। 

बता दें कि पंजाब नेशनल बैंक में हुए 13 हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले का पता लगने से पहले ही नीरव मोदी ने भारत छोड़ दिया था। नीरव मोदी के अलावा बिज़नेस पार्टनर और उनके मामा मेहुल चौकसी और मोदी की पत्नी ने भी जनवरी 2018 में भारत छोड़ दिया था। सीबीआई ने जनवरी 2018 में ही आरोपियों के ख़िलाफ़ लुक आउट नोटिस जारी किया था। कदम उठाए जा रहे हैं। 

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