देश एक बेहद गंभीर वित्तीय संकट के मुहाने पर खड़ा है और यह बात अब मोदी सरकार को भी स्वीकार करनी पड़ रही है. कल आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) ने कंपनी मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर मौजूदा आर्थिक परिदृश्य पर गंभीर चिंता जताई है, DEA का कहना है कि यदि आने वाले 6 सप्ताह में बाजार में (डेट मार्केट) पर्याप्त पैसों की आपूर्ति नहीं की गई तो कई नॉन-बैंकिंग फायनेंस और हाउसिंग फायनेंस कंपनियों के सामने डिफॉल्ट होने का खतरा पैदा हो जाएगा.
जो सबसे गंभीर बात DEA बता रहा है वह यह है कि NBFC और HFC को दिसंबर, 2018 के अंत तक तकरीबन 2 लाख करोड़ रुपये का लोन चुकता करना है और यदि फंड जुटाने की रफ्तार अक्टूबर के पहले हाफ की तरह ही रही तो साल के अंत तक 1 लाख करोड़ रुपये का गैप आ जाएगा.
अब ऐसी स्थिति में जब बढ़ते NPA से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक लगातार घाटा दर्शा रहे है और आरबीआई ने लोन देने और उसकी वसूली में कोताही बरतने वाले सरकारी क्षेत्र के कई बैंकों को पीसीए (प्रॉम्प्ट करेक्टिव मेजर) की श्रेणी में डाल दिया है तो ऐसे में इन बैंकों के लिए इस सेक्टर को कर्ज देना आसान नहीं रह गया है, लिहाजा बाजार में लिक्विडिटी क्रंच की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
सरकार इस स्थिति से निबटने के लिए रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड को हड़पना चाहती है. आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार एमके वेणु का कहना है कि आरबीआई के पास लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए का कांटिजेंसी फंड है. सरकार इस फंड का इस्तेमाल वित्तीय घाटा कम करने में करना चाहती है.
रवीश कुमार ने कल मिहिर शर्मा के हवाले से लिखा है कि रिजर्व बैंक अपने मुनाफे से हर साल सरकार को 50 से 60 हज़ार करोड़ रुपये देती है. उसके पास साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक का रिज़र्व है अब मोदी सरकार उस फंड को हड़प कर जैसे तैसे मई 2019 के चुनाव तक पहुंचना चाहती है.
सरकार ने इस सम्बंध में रिजर्व बैंक को तीन पत्र लिखे हैं. पहले पत्र में रिजर्व बैंक को निर्देश दिया कि वह बिजली कंपनियों के कर्ज में छूट दे. फिर दूसरे पत्र में उसने आरबीआई को राजस्व की कमी को पूरा करने का निर्देश दिया. तीसरे पत्र में छोटे और मझोले उद्यमों को कर्ज देने की शर्त में छूट देने को कहा है और यह सारे पत्र धारा 7 का हवाला देते हुए लिखे गए हैं. धारा 7 के इस्तेमाल से रिजर्व बैंक बहुत नाराज है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज तक इस धारा का हवाला नहीं दिया गया है.
रिजर्व बैंक और केन्द्र सरकार के बीच धारा 7 के इस्तेमाल से स्वायत्तता को लेकर एक नयी बहस शुरू हो गई है.
इस विवाद में IMF भी कूद पड़ा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि वह भारत में जारी विवाद पर नजर बनाए हुए है. आईएमएफ ने कहा कि उसने दुनियाभर में ऐसी सभी कोशिशों का विरोध किया है जहां केन्द्रीय बैंकों की स्वतंत्रता को सीमित करने की कोशिश की गई है.
आईएमएफ के कम्युनिकेशन डायरेक्टर गेरी राइस कह रही है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय बैंकों के काम में किसी तरह का दखल न देना सबसे आदर्श स्थिति है.
कुल मिलाकर देखा जाए तो यह एक अभूतपूर्व स्थिति है जिससे अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किरकिरी हो रही है. अगर सरकार ने धारा सात का जबर्दस्ती उपयोग किया तो रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे देंगे, अगर ऐसा हुआ तो यह और गलत होगा, क्योंकि आज तक दुनिया में कहीं ऐसा नहीं हुआ कि सर्वोच्च बैंक के मुखिया को कार्यकाल समाप्त होने से पहले ऐसी स्थिति में अपना पद छोड़ना पड़ा हो.
जो सबसे गंभीर बात DEA बता रहा है वह यह है कि NBFC और HFC को दिसंबर, 2018 के अंत तक तकरीबन 2 लाख करोड़ रुपये का लोन चुकता करना है और यदि फंड जुटाने की रफ्तार अक्टूबर के पहले हाफ की तरह ही रही तो साल के अंत तक 1 लाख करोड़ रुपये का गैप आ जाएगा.
अब ऐसी स्थिति में जब बढ़ते NPA से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक लगातार घाटा दर्शा रहे है और आरबीआई ने लोन देने और उसकी वसूली में कोताही बरतने वाले सरकारी क्षेत्र के कई बैंकों को पीसीए (प्रॉम्प्ट करेक्टिव मेजर) की श्रेणी में डाल दिया है तो ऐसे में इन बैंकों के लिए इस सेक्टर को कर्ज देना आसान नहीं रह गया है, लिहाजा बाजार में लिक्विडिटी क्रंच की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
सरकार इस स्थिति से निबटने के लिए रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड को हड़पना चाहती है. आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार एमके वेणु का कहना है कि आरबीआई के पास लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए का कांटिजेंसी फंड है. सरकार इस फंड का इस्तेमाल वित्तीय घाटा कम करने में करना चाहती है.
रवीश कुमार ने कल मिहिर शर्मा के हवाले से लिखा है कि रिजर्व बैंक अपने मुनाफे से हर साल सरकार को 50 से 60 हज़ार करोड़ रुपये देती है. उसके पास साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक का रिज़र्व है अब मोदी सरकार उस फंड को हड़प कर जैसे तैसे मई 2019 के चुनाव तक पहुंचना चाहती है.
सरकार ने इस सम्बंध में रिजर्व बैंक को तीन पत्र लिखे हैं. पहले पत्र में रिजर्व बैंक को निर्देश दिया कि वह बिजली कंपनियों के कर्ज में छूट दे. फिर दूसरे पत्र में उसने आरबीआई को राजस्व की कमी को पूरा करने का निर्देश दिया. तीसरे पत्र में छोटे और मझोले उद्यमों को कर्ज देने की शर्त में छूट देने को कहा है और यह सारे पत्र धारा 7 का हवाला देते हुए लिखे गए हैं. धारा 7 के इस्तेमाल से रिजर्व बैंक बहुत नाराज है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज तक इस धारा का हवाला नहीं दिया गया है.
रिजर्व बैंक और केन्द्र सरकार के बीच धारा 7 के इस्तेमाल से स्वायत्तता को लेकर एक नयी बहस शुरू हो गई है.
इस विवाद में IMF भी कूद पड़ा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि वह भारत में जारी विवाद पर नजर बनाए हुए है. आईएमएफ ने कहा कि उसने दुनियाभर में ऐसी सभी कोशिशों का विरोध किया है जहां केन्द्रीय बैंकों की स्वतंत्रता को सीमित करने की कोशिश की गई है.
आईएमएफ के कम्युनिकेशन डायरेक्टर गेरी राइस कह रही है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय बैंकों के काम में किसी तरह का दखल न देना सबसे आदर्श स्थिति है.
कुल मिलाकर देखा जाए तो यह एक अभूतपूर्व स्थिति है जिससे अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किरकिरी हो रही है. अगर सरकार ने धारा सात का जबर्दस्ती उपयोग किया तो रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे देंगे, अगर ऐसा हुआ तो यह और गलत होगा, क्योंकि आज तक दुनिया में कहीं ऐसा नहीं हुआ कि सर्वोच्च बैंक के मुखिया को कार्यकाल समाप्त होने से पहले ऐसी स्थिति में अपना पद छोड़ना पड़ा हो.