जब भारत की जनता गहरी नींद में सो रही थी, तब दिल्ली पुलिस के जवान अपने जूते की लेस बाँध रहे थे। बेख़बर जनता को होश ही नहीं रहा कि पुलिस के जवानों के जूते सीबीआई मुख्यालय के बाहर तैनात होते हुए शोर मचा रहे हैं। लोकतंत्र को कुचलने में जूतों का बहुत योगदान है। जब संविधान की धज्जियाँ उड़ती हैं, तब रात को जूते बाँधे जाते हैं। पुलिस के जवान सीबीआई दफ्तर को घेर लेते हैं। रात के पौने एक बज रहे होते हैं।
वैसे अंग्रेज़ों में वह गुडमार्निंग कहने का होता है। हम रात को रात कहते हैं। मुल्क पर काली रात का साया गहरा गया है। तभी एक अफ़सर जो शायद जागा हुआ था, उस कुर्सी पर बैठने के लिए घर से निकलता है जिस कुर्सी पर बैठे आलोक वर्मा ने उसके ख़िलाफ़ CVC यानी केंद्रीय सतर्कता आयुक्त से गंभीर आरोपों में जाँच की अर्ज़ी दी है।
CVC के वी चौधरी एम नागेश्वर राव को सीबीआई का नया चीफ़ बनाने का रास्ता साफ़ कर देते हैं। एम नागेश्वर राव अपने नंबर वन चीफ़ आलोक वर्मा को हटाने के आदेश देते हैं जिसे छुट्टी पर भेजना कहते हैं। आलोक अस्थाना जिनकी गिरफ़्तारी की अनुमति माँगी गई थी उन्हें भी हटा दिया जाता है। काली रात के बंद कमरे में बारह अफ़सरों को मुख्यालय से बाहर भेजने के आदेश पर दस्तखत होते हैं। नींद में सोई जनता करवट बदल लेती है। तख्ता पलट हो जाता है।
हम जिन आहटों की बात करते रहे हैं, वो सुनाई दें इसलिए जूतों ने वफ़ादारी निभाई है। अब आप पर है कि आप उन जूतों का इशारा समझ पाते हैं या नहीं। मदहोश जनता और ग़ुलाम मीडिया आँखें बंद कर लेती है। शहशांह का इंसाफ़ शहंशाह के लिए होता है। शहंशाह ने अपने लिए इंसाफ़ कर लिया।
दि वायर में स्वाति चतुर्वेदी ने लिखा है कि सीबीआई के इतिहास में कभी नहीं हुआ कि इंस्पेक्टर जनरल( IG) को चीफ़ बना दिया गया। स्वाति ने लिखा है कि वर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय के क़रीबी यानी जिगरी राकेश अस्थाना के गिरफ़्तारी की अनुमति माँगी थी और वे रफाल डील मामले में जाँच की तरफ़ बढ़ने लगे थे। प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी से मिल लेने की ख़बर से सरकार रातों को जागने लगी। दिन में प्रधानमंत्री के भाषणों का वक़्त होता है इसलिए ‘इंसाफ़’ का वक़्त रात का चुना गया। आधी रात के बाद जब जब सरकारें जागीं हैं तब तब ऐसा ही ‘ इंसाफ़’ हुआ है। जूतों की टाप सुनाई देती है।
जनवरी 2017 में आलोक वर्मा को एक कोलिजियम से दो साल के लिए सीबीआई का चीफ़ बनाया गया। आलोक वर्मा का कार्यकाल अगले साल फ़रवरी तक था। इस कोलिजियम में चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया भी थे। जब आलोक वर्मा को हटाया गया तब कोई कोलेजीयम नहीं बना। चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया तक को नहीं बताया गया। जब आलोक वर्मा को हटाकर एम नागेश्वर राव को चीफ़ बनाया गया तब इसके लिए कोई कोलिजियम नहीं बनाया गया। चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया की कोई भूमिका ही नहीं रही। आलोक वर्मा ने प्रधानमंत्री के ‘इंसाफ़’ के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ की अपील की है।
आप हिन्दी के पाठकों की हत्या अगर हिन्दी के अख़बारों और चैनलों ने नहीं की होती तो आपको पता होता कि अगस्त महीने में जब सीबीआई लंदन की अदालत में अपने दस्तावेज लेकर पहुँची कि इन गवाहों के बयान के आधार पर विजय माल्या को भारत ले जाना ज़रूरी है तब उन सात गवाहों के बयान पर दस्तखत ही नहीं थे। विजय माल्या 36 सूटकेस लेकर भागा था। स्वाति चतुर्वेदी ने दि वायर में इसे रिपोर्ट किया था।
विजय माल्या ने तभी तो कहा था कि भागने से पहले जेटली से मिला था। जेटली ने खंडन किया। राहुल गांधी ने दस्तावेज़ो के साथ आरोप लगाया कि जेटली की बेटी दामाद के लॉ फ़र्म को माल्या ने फ़ीस दी थी जो उसके भागने को विवाद के बाद लौटा दी गई। एक नैतिक सवाल उठाया गया था मगर तमाम अख़बारों ने इसे जनता तक पहुँचने से रोक दी। जब ख़बरों के पर क़तरे जाते हैं तब जनता के ही पर क़तरे जाते हैं। पाँव परिंदों के कटते हैं और ख़ून जनता का बहता है।
राकेश अस्थाना जो एक वीडियो में ख़ुद को सरदार पटेल के जैसा बता रहे हैं, 2016 में आर के दत्ता को हटाकर सीबीआई में लाए गए थे। इनके बारे में आलोक वर्ना ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी फ़रियाद में कहा है कि यह आदमी अफ़सरों के बहुमत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ जाकर काम करता है और केस को कमजोर करता है। आलोक वर्ना ने कहा है कि वह ऐसे केस की डिटेल दे सकते हैं।
सवाल उस सीवीसी से है, जिसके पास अस्थाना और राव की शिकायतें थीं। धीमी गति के समाचार की तरह काम करने से सवालों से बचने का मौक़ा मिल जाता है। सीवीसी अपने कर्तव्य के निर्वाहन में फ़ेल रही इसलिए सबसे पहले के वी चौधरी को बर्खास्त करना चाहिए था मगर चौधरी ने ‘चौधरी’ की लाज रख ली! जब अस्थाना मामले की शिकायत पहुँची तब सीवीसी ने क्या किया? जाँच शुरू की?
इंडियन एक्सप्रेस के सुशांत सिंह की ख़बर है। जब अस्थाना ने आलोक वर्मा की शिकायत की तो सीबीआई से दस्तावेज माँगे गए। सीबीआई ने कहा कि अस्थाना ने क्या शिकायत की वो तो बताइये मगर सीवीसी ने नहीं बताया। सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर ने नौ अक्तूबर को सीवीसी को पत्र लिखकर पूछा था।
इस मामले में वित्त मंत्री जेटली बयान दे रहे हैं। दो अफसरो ने एक दूसरे पर आरोप लगाए हैं। संस्था का मज़ाक़ उड़ने नहीं दिया जा सकता था। यह ज़रूरी था कि दोनों के आरोपों की जाँच के लिए एस आई टी बने और इन्हें अपने प्रभावों से दूर रखा जाए।
अस्थाना कोर्ट में हैं। आलोक वर्ना कोर्ट में हैं। एक डीएसपी जेल में है। और सरकार का आदमी सीबीआई के भीतर है।
इस मामले में इंसाफ़ हो चुका है। अब और इंसाफ की उम्मीद न करें। आइये हम सब न्यूज़ चैनल देखें। वहाँ सर्वे चल रहे हैं। बीजेपी की सनातन जीत की घोषणा हो रही है। चैनलों पर आपकी बेहोशी का इंजेक्शन फ्री में मिल रहा है। आइये हम सब संविधान के बनाए मंदिरों को ढहता छोड़ कर अयोध्या में राम मंदिर बनाने पर बहस करें। ओ मेरे भारत की महान जनता, जब संविधान के बनाए मंदिरों को तोड़ना ही था तो आज़ादी के लिए डेढ़ सौ साल का संघर्ष क्यों किया?
वैसे अंग्रेज़ों में वह गुडमार्निंग कहने का होता है। हम रात को रात कहते हैं। मुल्क पर काली रात का साया गहरा गया है। तभी एक अफ़सर जो शायद जागा हुआ था, उस कुर्सी पर बैठने के लिए घर से निकलता है जिस कुर्सी पर बैठे आलोक वर्मा ने उसके ख़िलाफ़ CVC यानी केंद्रीय सतर्कता आयुक्त से गंभीर आरोपों में जाँच की अर्ज़ी दी है।
CVC के वी चौधरी एम नागेश्वर राव को सीबीआई का नया चीफ़ बनाने का रास्ता साफ़ कर देते हैं। एम नागेश्वर राव अपने नंबर वन चीफ़ आलोक वर्मा को हटाने के आदेश देते हैं जिसे छुट्टी पर भेजना कहते हैं। आलोक अस्थाना जिनकी गिरफ़्तारी की अनुमति माँगी गई थी उन्हें भी हटा दिया जाता है। काली रात के बंद कमरे में बारह अफ़सरों को मुख्यालय से बाहर भेजने के आदेश पर दस्तखत होते हैं। नींद में सोई जनता करवट बदल लेती है। तख्ता पलट हो जाता है।
हम जिन आहटों की बात करते रहे हैं, वो सुनाई दें इसलिए जूतों ने वफ़ादारी निभाई है। अब आप पर है कि आप उन जूतों का इशारा समझ पाते हैं या नहीं। मदहोश जनता और ग़ुलाम मीडिया आँखें बंद कर लेती है। शहशांह का इंसाफ़ शहंशाह के लिए होता है। शहंशाह ने अपने लिए इंसाफ़ कर लिया।
दि वायर में स्वाति चतुर्वेदी ने लिखा है कि सीबीआई के इतिहास में कभी नहीं हुआ कि इंस्पेक्टर जनरल( IG) को चीफ़ बना दिया गया। स्वाति ने लिखा है कि वर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय के क़रीबी यानी जिगरी राकेश अस्थाना के गिरफ़्तारी की अनुमति माँगी थी और वे रफाल डील मामले में जाँच की तरफ़ बढ़ने लगे थे। प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी से मिल लेने की ख़बर से सरकार रातों को जागने लगी। दिन में प्रधानमंत्री के भाषणों का वक़्त होता है इसलिए ‘इंसाफ़’ का वक़्त रात का चुना गया। आधी रात के बाद जब जब सरकारें जागीं हैं तब तब ऐसा ही ‘ इंसाफ़’ हुआ है। जूतों की टाप सुनाई देती है।
जनवरी 2017 में आलोक वर्मा को एक कोलिजियम से दो साल के लिए सीबीआई का चीफ़ बनाया गया। आलोक वर्मा का कार्यकाल अगले साल फ़रवरी तक था। इस कोलिजियम में चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया भी थे। जब आलोक वर्मा को हटाया गया तब कोई कोलेजीयम नहीं बना। चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया तक को नहीं बताया गया। जब आलोक वर्मा को हटाकर एम नागेश्वर राव को चीफ़ बनाया गया तब इसके लिए कोई कोलिजियम नहीं बनाया गया। चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया की कोई भूमिका ही नहीं रही। आलोक वर्मा ने प्रधानमंत्री के ‘इंसाफ़’ के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ की अपील की है।
आप हिन्दी के पाठकों की हत्या अगर हिन्दी के अख़बारों और चैनलों ने नहीं की होती तो आपको पता होता कि अगस्त महीने में जब सीबीआई लंदन की अदालत में अपने दस्तावेज लेकर पहुँची कि इन गवाहों के बयान के आधार पर विजय माल्या को भारत ले जाना ज़रूरी है तब उन सात गवाहों के बयान पर दस्तखत ही नहीं थे। विजय माल्या 36 सूटकेस लेकर भागा था। स्वाति चतुर्वेदी ने दि वायर में इसे रिपोर्ट किया था।
विजय माल्या ने तभी तो कहा था कि भागने से पहले जेटली से मिला था। जेटली ने खंडन किया। राहुल गांधी ने दस्तावेज़ो के साथ आरोप लगाया कि जेटली की बेटी दामाद के लॉ फ़र्म को माल्या ने फ़ीस दी थी जो उसके भागने को विवाद के बाद लौटा दी गई। एक नैतिक सवाल उठाया गया था मगर तमाम अख़बारों ने इसे जनता तक पहुँचने से रोक दी। जब ख़बरों के पर क़तरे जाते हैं तब जनता के ही पर क़तरे जाते हैं। पाँव परिंदों के कटते हैं और ख़ून जनता का बहता है।
राकेश अस्थाना जो एक वीडियो में ख़ुद को सरदार पटेल के जैसा बता रहे हैं, 2016 में आर के दत्ता को हटाकर सीबीआई में लाए गए थे। इनके बारे में आलोक वर्ना ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी फ़रियाद में कहा है कि यह आदमी अफ़सरों के बहुमत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ जाकर काम करता है और केस को कमजोर करता है। आलोक वर्ना ने कहा है कि वह ऐसे केस की डिटेल दे सकते हैं।
सवाल उस सीवीसी से है, जिसके पास अस्थाना और राव की शिकायतें थीं। धीमी गति के समाचार की तरह काम करने से सवालों से बचने का मौक़ा मिल जाता है। सीवीसी अपने कर्तव्य के निर्वाहन में फ़ेल रही इसलिए सबसे पहले के वी चौधरी को बर्खास्त करना चाहिए था मगर चौधरी ने ‘चौधरी’ की लाज रख ली! जब अस्थाना मामले की शिकायत पहुँची तब सीवीसी ने क्या किया? जाँच शुरू की?
इंडियन एक्सप्रेस के सुशांत सिंह की ख़बर है। जब अस्थाना ने आलोक वर्मा की शिकायत की तो सीबीआई से दस्तावेज माँगे गए। सीबीआई ने कहा कि अस्थाना ने क्या शिकायत की वो तो बताइये मगर सीवीसी ने नहीं बताया। सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर ने नौ अक्तूबर को सीवीसी को पत्र लिखकर पूछा था।
इस मामले में वित्त मंत्री जेटली बयान दे रहे हैं। दो अफसरो ने एक दूसरे पर आरोप लगाए हैं। संस्था का मज़ाक़ उड़ने नहीं दिया जा सकता था। यह ज़रूरी था कि दोनों के आरोपों की जाँच के लिए एस आई टी बने और इन्हें अपने प्रभावों से दूर रखा जाए।
अस्थाना कोर्ट में हैं। आलोक वर्ना कोर्ट में हैं। एक डीएसपी जेल में है। और सरकार का आदमी सीबीआई के भीतर है।
इस मामले में इंसाफ़ हो चुका है। अब और इंसाफ की उम्मीद न करें। आइये हम सब न्यूज़ चैनल देखें। वहाँ सर्वे चल रहे हैं। बीजेपी की सनातन जीत की घोषणा हो रही है। चैनलों पर आपकी बेहोशी का इंजेक्शन फ्री में मिल रहा है। आइये हम सब संविधान के बनाए मंदिरों को ढहता छोड़ कर अयोध्या में राम मंदिर बनाने पर बहस करें। ओ मेरे भारत की महान जनता, जब संविधान के बनाए मंदिरों को तोड़ना ही था तो आज़ादी के लिए डेढ़ सौ साल का संघर्ष क्यों किया?