भिलाई स्टील प्लांट के आधुनिकीकरण के लिए यूपीए सरकार की योजना 11 साल बाद भी पूरी नहीं हो सकी है।18 हजार करोड़ रुपए की ये योजना 2007 से शुरू हुई थी, लेकिन अब तक पूरी नहीं की जा सकी है।
प्लांट का आधुनिकीकरण न होने से उत्पादन भी लगातार गिरता गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भिलाई स्टील प्लांट जा चुके हैं, लेकिन उनसे पुराने काम को पूरा करने का दावा करते हुए राष्ट्र को समर्पित करा लिया गया, जबकि उसमें समर्पित कराने लायक कुछ था ही नहीं।
(Courtesy: Reality Plus Magzine)
भिलाई स्टील प्लांट की स्थापना 1957 में रूस की मदद से की गई थी, और इसका आजादी के बाद देश को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान रहा है।
समय पर धमन भट्टियों की मरम्मत न होने से उत्पादन में भारी गिरावट आ रही है। मशीनें पुरानी होने के कारण अक्सर हादसे होते रहते हैं।
माना जा रहा है कि भिलाई स्टील प्लांट की हालत जानबूझकर खराब की जा रही है ताकि इसका निजीकरण किया जा सके। महारत्न उपक्रम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की कई अन्य इकाइयों के साथ भी ऐसा ही हो रहा है।
तीन इकाइयां सेलम, विश्वेश्वैरया और अलॉय स्टील प्लांट इस ओर बढ़ चुकी हैं। आशंका जताई जा रही है कि ऐसे ही हालात रहे तो अगला नंबर भिलाई स्टील प्लांट का हो सकता है।
सेल की सभी इकाइयों में भिलाई स्टील प्लांट का प्रदर्शन सबसे अच्छा होता था, लेकिन अब आधा वित्तीय वर्ष खत्म पर उत्पादन भी कम हो चुका है।
नईदुनिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भिलाई स्टील प्लांट में एक समय प्रतिदिन 16 हजार टन से ज्यादा इस्पात तैयार होता था, लेकिन यह बाद में आठ हजार टन तक गिर चुका है। फिलहाल ये11-12 हजार टन तक पहुंच सका है।
यूपीए के शासनकाल में 2007 में प्लांट के आधुनिकीकरण- विस्तारीकरण के लिए 18 हजार करोड़ रुपए की योजना मंजूर हुई थी, लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया।
इस्पात भवन के अफसर इसका दोष पूर्व प्रबंधन की सुस्ती को देते हैं।
अकुशल श्रमिकों को काम पर लगाने से भी मशीनें खराब हो रही हैं और इस कारण हादसे भी हो रहे हैं। 2015 से अब तक 25 श्रमिक इन हादसों में जान गंवा चुके हैं।
प्लांट का आधुनिकीकरण न होने से उत्पादन भी लगातार गिरता गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भिलाई स्टील प्लांट जा चुके हैं, लेकिन उनसे पुराने काम को पूरा करने का दावा करते हुए राष्ट्र को समर्पित करा लिया गया, जबकि उसमें समर्पित कराने लायक कुछ था ही नहीं।
(Courtesy: Reality Plus Magzine)
भिलाई स्टील प्लांट की स्थापना 1957 में रूस की मदद से की गई थी, और इसका आजादी के बाद देश को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान रहा है।
समय पर धमन भट्टियों की मरम्मत न होने से उत्पादन में भारी गिरावट आ रही है। मशीनें पुरानी होने के कारण अक्सर हादसे होते रहते हैं।
माना जा रहा है कि भिलाई स्टील प्लांट की हालत जानबूझकर खराब की जा रही है ताकि इसका निजीकरण किया जा सके। महारत्न उपक्रम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की कई अन्य इकाइयों के साथ भी ऐसा ही हो रहा है।
तीन इकाइयां सेलम, विश्वेश्वैरया और अलॉय स्टील प्लांट इस ओर बढ़ चुकी हैं। आशंका जताई जा रही है कि ऐसे ही हालात रहे तो अगला नंबर भिलाई स्टील प्लांट का हो सकता है।
सेल की सभी इकाइयों में भिलाई स्टील प्लांट का प्रदर्शन सबसे अच्छा होता था, लेकिन अब आधा वित्तीय वर्ष खत्म पर उत्पादन भी कम हो चुका है।
नईदुनिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भिलाई स्टील प्लांट में एक समय प्रतिदिन 16 हजार टन से ज्यादा इस्पात तैयार होता था, लेकिन यह बाद में आठ हजार टन तक गिर चुका है। फिलहाल ये11-12 हजार टन तक पहुंच सका है।
यूपीए के शासनकाल में 2007 में प्लांट के आधुनिकीकरण- विस्तारीकरण के लिए 18 हजार करोड़ रुपए की योजना मंजूर हुई थी, लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया।
इस्पात भवन के अफसर इसका दोष पूर्व प्रबंधन की सुस्ती को देते हैं।
अकुशल श्रमिकों को काम पर लगाने से भी मशीनें खराब हो रही हैं और इस कारण हादसे भी हो रहे हैं। 2015 से अब तक 25 श्रमिक इन हादसों में जान गंवा चुके हैं।