गुस्से से आग बबूले हुए गौ रक्षक रामलाल गाय को डेढ़ हाथ की लाठी से पीटने लगे

Written by Mithun Prajapati | Published on: July 2, 2018
करीब रात साढ़े नौ बजे का वक्त था। रामलाल गौरक्षा समिति की अध्यक्षता करके और गौ के महत्व पर  भाषण देकर घर वापस लौट आये थे। उस दिन पूरे दिन रिमझिम रिमझिम बारिश हुई थी।  गांव की कच्ची सड़कों पर कीचड़ ही कीचड़ हो गया था। सड़क की चिकनी मिट्टी का हाल ये था कि कोई चप्पल पहनकर चलने लगे तो दो किलो मिट्टी तो एक पैर में समेट ही ले। रामलाल के  दुआर पर भी सब कीचड़-कीचड़ हो गया था। आलम ये था कि  गाय और भैंस के खुर से मिट्टी सब उखड़ गयी थी। रामलाल की साइकिल के टायर में सब मिट्टी ही मिट्टी भर गयी थी। वे पैदल साइकिल खींच रहे थे। उन्हें बहुत मुश्किल हो रही थी अचानक उनका पैर सड़क पर पड़े गोबर के बीचो बीच पड़ गया। उन्होंने गाय और भैंस की माँ को दो चार गंदी-गंदी गालियां दे डाली। गुस्से में झुंझलाया इंसान कुछ न कर पाने की स्थिति में माँ बहन की गालियां देकर ही मन को शांत करता है।

gaurakshak
 
समय करीब पौने दस बजे का था।  बारिश फिर शुरू हो गयी थी। रामलाल घर पहुंच चुके थे।  उन्होंने साइकिल ओसारे में खड़ी की। वो खुश थे कि घर पहुंचने के बाद बारिश आयी। बच्चे सब सो रहे थे। रामलाल की माँ भी खाना खाकर सो रही थीं। रामलाल की पत्नी उनके खाना खाने के बाद ही खाती है इसलिए वो चूल्हे के सामने बैठी जलती लालटेन को निहारती रामलाल का इंतजार कर रही थी। 
                  
हाथ मुंह धोकर वे खाट पर जाकर बैठ गए। पत्नी ने खाना लाकर दिया और वे खाने लगे।  खाते हुए वे पत्नी से पूरे दिन का ब्यौरा मांगते हुए पूछने लगे कि गाय और भैंस ने अच्छी तरह से खाया की नहीं। कितनी बार सानी दी !
 
 घर में तीन भैंसे थी और एक गाय। उन्हें गाय रखने का शौक नहीं था लेकिन गौरक्षा समिति के अध्यक्ष थे  इसलिए वे गाय रखते थे। कुछ साल पहले उनके यहां एक काले रंग की गाय हुआ करती थी। वह बूढ़ी हो गयी थी। वह  सिर्फ चारा खाती थी और किसी काम की नहीं थी। रामलाल ने उसे गाड़ी में डलवाकर दूर घर से बहुत दूर छुड़वा दिया था।  इस समय उनकी तीन भैसों में  से दो दूध देती थीं।  दोनों का मिलाकर दिनभर में करीब बारह लीटर दूध हो जाता था। उनकी गाय भी दूध दे रही थी लेकिन दिनभर में महज डेढ़ लीटर क्योंकि उसकी क्षमता इतनी ही थी। पत्नी ने बताया कि आज गाय दुहते वक्त कूद गई और जरा भी दूध नहीं दिया। रामलाल को गुस्सा आया। वे गुस्सा पत्नी पर ही निकालना चाहते थे लेकिन किसी तरह अपने को नियन्त्रण में रखा। वह अपनी गाय से बहुत दिन से खुन्नस खाये बैठे थे। उनका मानना था कि गाय भैंस के मुकाबले चारा ज्यादा खा रही है दूध कम दे रही है।
 
रामलाल खाना खाकर बिस्तर पर लेट गए। बरसात ने अब जोर पकड़ लिया था। बादल की गरज से लग रहा था मानो धरती फट जाएगी। उनकी  पत्नी उनके बगल में ही लेटी थी।  वे उसके गालों पर हाथ फिरा रहे थे। वह दिनभर की थकी सोना चाहती थी लेकिन कह नहीं सकती थी। घर मे रिवाज था कि पति के सोने के बाद ही पत्नी को सोना चाहिए। 
 
अचानक उनका ध्यान गया कि पड़ोसी जमुनाप्रसाद उनका नाम लेकर चिल्लाए जा रहा है- हे रामलाल तोर गाय तोड़ा लिहले ब रे।
 
जमुनाप्रसाद से उनका छत्तीस का आंकड़ा था।जमुनाप्रसाद रामलाल से  बात करना पसंद नहीं करता लेकिन रामलाल की गाय उसके धान की बेहन चर रही थी इसलिए उसे चिल्लाना पड़ा।  जमुनाप्रसाद फिर चिल्लाया- हे रामलाल तोर गाय हमार बेहन चर रहल ब रे..... खियावे भरे के औकात ना ब त काहें राखे बाड़े !!
 
रामलाल को बात चुभ गयी। वो झट से उठ गए और डंडा लेकर गाय पकड़ने दौड़ पड़े पड़े। बारिश और तेज हो गयी। बादल भी खूब गरज रहे थे। दृश्य बड़ा डरावना था। रामलाल गाय तक पहुंचते पहुंचते भीग गए । जैसे ही पगहा पकड़ने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ाया गाय आगे खिसक गई। वो आगे बढ़े , गाय एक फलांग कूदकर और आगे बढ़ गयी। रामलाल गुस्से में लालपीले हो रहे थे। उन्होंने फिर आगे हाथ बढ़ाया तो गाय दूसरी तरफ मुड़ भागने लगी। वे उसके पीछे भागे। गाय और तेज भागने लगी। गाय कभी रुक जाती तो कभी भागने लगती। रामललाल का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। दिमाग  में बस यही चल रहा था कि किसी तरह एक बार पकड़ में आ जाये तो सीधा कर दूं इसे। गाय हरियाली देखकर आगे बढ़ जाती और रामलाल के हाथ से फिर पगहा छूट जाता।
        
करीब दस मिनट भीगने और मशक्कत के बाद आखिर गाय पकड़ा गयी। रामलाल का गुस्सा सातवें आसमान पर था। बदन पूरा भीग गया था। इस भागदौड़ में दो जगह उनका पैर अरहर की खूँटियों से जख्मी हो गया था। किसी तरह वे गाय को खींचकर खूंटे तक लाये।
 
उन्होंने आव देखा न ताव, गाय को खूंटे में  बांध पीटना शुरू कर दिया है। बांस की डेढ़ हाथ की लाठी से वे गाय को पिटे जा रहे थे और गाय चिल्लाए जा रही है। पांच महीने का बछड़ा भी चिल्लाए जा रहा था जो बगल में बंधा था। पीटते-पीटते पाँच मिनट गुजर गए। बारिश और अंधेरे के डर से कोई उन्हें रोकने नहीं आया। उनकी पत्नी ओसारे में खड़ी सब देख रही थी। उसे लगा की वो अब नही रुकने वाले हैं तो आकर हाथ पकड़ लिया और बोली- अब क्या मार ही डालोगे ?
 
किसी तरह उसने रामलाल  के हाथ से लाठी छुड़ा लिया । गाय कराहती चिल्लाती जमीन पर लेट गयी।  पत्नी किसी तरह उन्हें खींचकर बिस्तर तक ले आई। 
 
सुबह का वक्त था। रातभर बारिश से गांव नहाया हुआ लग रहा है। नीम के पत्ते नए से लग रहे हैं। चीजें वही थीं पर सब कुछ नया सा लग रहा था। दुआर पर रोज की अपेक्षा ज्यादा चिड़ियां उतरी थीं।  रामलाल की पत्नी  भैसों और गाय को नांद से बाधने के लिये खोलने गयी।  लेकिन उसने जो देखा वह वहीं पत्थर से जम गई।
 
गाय गिरी पड़ी थी। उसकी एक सींग टूटी हुई थी। एक तरफ का कान फट गया था। दोनों आंखे बाहर आ गयी थीं  और उसके ऊपर मक्खियां भिनभिना रही थीं...... पूंछ में जान होती तो वह मक्खियां उड़ा देती। 
 
पांच महीनें का बछड़ा अपनी माँ को चाटे जा रहा था जैसे पैदा होते ही उसकी माँ ने  उसे चाटकर जीभ से साफ किया था।

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