माननीय श्री अखिलेश यादव जी!
मैंने जब यह सुना और देखा कि आपने समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय में परशुराम जयंती मनवाया है तो मुझे बड़ी कोफ्त हुई कि हम आखिर किस समाजवाद की परिकल्पना को मूर्त रूप देना चाहते हैं?
अखिलेश यादव जी! कोई ब्राह्मणवादी समाजवाद भी होता है क्या? आखिर आप परशुराम को किस रूप में देखते हैं?आखिर परशुराम जयंती मनाने के पीछे समाजवादी पार्टी के निहितार्थ क्या हैं?क्या खूबी है परशुराम के चरित्र में कि समाजवादी पार्टी परशुराम को सपा का आइकॉन बनाने को आतुर है?
अखिलेश यादव जी! समाजवाद का मतलब समता,सम्पन्नता,सद्भावना, साम्प्रदायिकता का ह्रास,सम्भव बराबरी,सामाजिक न्याय होता है तो क्या एक पौराणिक पात्र परशुराम ने इनमें से किसी के लिए काम किया है क्या?
अखिलेश यादव जी! राजनीति करने वाले लोग कोई भी कार्य दो कारणों से करते हैं,एक तो उनकी विचारधारा उस काम को करने के लिए आदेशित करती हो,दूसरे उस काम को करने से उसे वोट मिलता हो।मेरा सीधा सा सवाल है कि परशुराम जयंती मनाने में क्या आपकी समाजवादी रीति-नीति आदेशित करती है या इसे मनाने से आपको वोट मिला है?मेरे जैसे सामान्य बुद्धि के व्यक्ति का कन्क्लूजन होगा कि परशुराम भगवान मनुवाद के जीवंत पात्र हैं जिनका समाजवाद से बेर-केर जैसा रिश्ता है जबकि इनको महिमण्डित करने से एक वोट समाजवादी पार्टी को मिलना नही है।
अखिलेश यादव जी!आप इंजीनियरिंग के छात्र हैं।आप भलीभांति जानते हैं कि किरासन का तेल और घी एक कनस्तर में नही रखे जा सकते हैं।यदि घी और घासलेट (किरासन का तेल) एक कनस्तर में नही रह सकते तो क्या ब्राह्मणवाद और समाजवाद एक झंडे के नीचे रह सकते हैं?
अखिलेश यादव जी! पौराणिक पात्र परशुराम ब्राह्मण थे जिन्होंने पुराणों के मुताबिक अपनी माता के गर्दन काट दिये।ग़ैरराजकुमार कर्ण को शिक्षा देने के बाद यह ज्ञात होने पर की कर्ण राजकुमार नही है,कथित तौर पर श्राप दे डाला।21 बार क्षत्रियों का विनाश किया।इन कामो में अखिलेश यादव जी!कौन सा समाजवाद है?
अखिलेश यादव जी!विचारधारा के मामले में आपसे बेहतर तो योगी आदित्यनाथ जी हैं जिन्होंने आपद्वारा घोषित परशुराम जयंती के अवकाश को खत्म कर डाला तथा समस्त ब्राह्मण समाज के भाजपाई होने के बावजूद कहीं भी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से परशुराम जयंती नही मनवाया।
अखिलेश यादव जी! जो कोई व्यक्ति असमंजस में होता है या दुविधा में रहता है वह ऐक्सिडेंट का शिकार जरूर होता है।आखिर आप किस लिए परशुराम जयंती मनवाते है?आखिर समाजवादी पार्टी का परशुराम जयंती समारोह मनाने के पीछे क्या कांसेप्ट है?
अखिलेश यादव जी!अभी 13 अप्रैल को वीपी मण्डल जी की पुण्यतिथि थी,आपने उनकी पुण्यतिथि मनवाई?अखिलेश यादव जी! आप जान रहे हैं कि वीपी मण्डल ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने पिछड़े वर्गों को आरक्षण पाने का आधार दिया और हमारे जैसे असंख्य पिछड़े उन्ही की बदौलत रोजगार पाए हैं।क्या वीपी मण्डल की तुलना प्रशुरामम से हो सकती है?
अखिलेश यादव जी! 14 अप्रैल को अम्बेडकर साहब की जयंती थी, क्या आपने समाजवादी पार्टी के कार्यालय में उसे मनवाया?आपकी नजर में आखिर अम्बेडकर साहब से बड़े हैं क्या परशुराम जी व चन्द्रशेखर जी?कितनी बड़ी विडंबना है अखिलेश यादव जी! कि आप सपा कार्यालय में चन्द्रशेखर जयंती व परशुराम जयंती तो मनवाते हैं लेकिन पिछड़े वर्ग के रामस्वरूप वर्मा,ललई सिंह यादव,सन्त गाडगे,ज्योतिबा फुले,सावित्री बाई फुले,फातिमा शेख,पेरियार,महाराज सिंह भारती, बाबू जगदेव प्रसाद,रामसेवक यादव,रमा बाई, छत्रपति शाहू जी,रामनरेश यादव आदि के बारे में न बोलना चाहते हैं और न सुनना चाहते हैं।
अखिलेश यादव जी!जिस कौम को अपना इतिहास न पता हो वह कौम कभी भी तरक्की नही कर सकती है।हमे अपना इतिहास जानना होगा।हमे परशुराम और चन्द्रशेखर की जगह पर यदि पूजना ही है तो एकलब्य,शम्बूक,बलि,हिरणकश्यप आदि को पूजना होगा।
अखिलेश यादव जी! मैं आपसे क्या कहूँ, क्योकि आपके इस प्रयत्न से मैं विस्मित हूँ कि आप किरासन तेल और घी (परशुराम/चन्द्रशेखर और लोहिया/अम्बेडकर)एक मे मिलाकर जायकेदार बनाने की सोच में हैं जो कभी भी बन ही नही सकता।
अखिलेश यादव जी!दुविधा छोड़िए।एक बड़ी लकीर खींचिए जिसमे दलित/पिछड़ा/अल्पसंख्यक एवं सामाजिक न्याय के पक्षधर सामान्य वर्ग के चुनिंदा लोग आपके साथ सही दिशा में चलने हेतु आ सकें वरना यदि आप इसी तरह से गड्ड-मड्ड करते रहेंगे तो एक दिन ऐसा न आ जायेगा कि न माया मिलेगी और न ही राम ही मिलेंगे,बस परशुराम व चन्द्रशेखर जी का माला जपते हुए आप हाशिये पर खड़े दिखेंगे और सामाजिक न्याय समर्थक शक्तियां नए विकल्प को जन्म दे देंगी।
अखिलेश यादव जी! सभलिये,सुधरिये वरना आपका ही सब कुछ लुटेगा।सामाजिक न्याय,पिछड़ा/दलित/अकलियत का मजबूत गठबंधन बनाइये और दिल्ली फतह करिए।समाज को त्रिपुंड,माला-छापा,कथा-पोथी से मुक्त करवाके वैज्ञानिक धारा में "अत्त दीपो भव" के मूल मंत्र को स्वीकार्य बनाना होगा,इसी में वंचित तबकों का कल्याण है।
अखिलेश यादव जी! मुझे यदि कुछ आपके लिए अहितकर लगता है तो उसे लिख देने की धृष्टता करता रहता हूँ,जो शायद आपको पसंद नही आता होगा जिसके लिए क्षमा करेंगे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। चंद्रभूषण सिंह यादव त्रैमासिक पत्रिका यादव शक्ति के प्रधान संपादक हैं।)
मैंने जब यह सुना और देखा कि आपने समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय में परशुराम जयंती मनवाया है तो मुझे बड़ी कोफ्त हुई कि हम आखिर किस समाजवाद की परिकल्पना को मूर्त रूप देना चाहते हैं?
अखिलेश यादव जी! कोई ब्राह्मणवादी समाजवाद भी होता है क्या? आखिर आप परशुराम को किस रूप में देखते हैं?आखिर परशुराम जयंती मनाने के पीछे समाजवादी पार्टी के निहितार्थ क्या हैं?क्या खूबी है परशुराम के चरित्र में कि समाजवादी पार्टी परशुराम को सपा का आइकॉन बनाने को आतुर है?
अखिलेश यादव जी! समाजवाद का मतलब समता,सम्पन्नता,सद्भावना, साम्प्रदायिकता का ह्रास,सम्भव बराबरी,सामाजिक न्याय होता है तो क्या एक पौराणिक पात्र परशुराम ने इनमें से किसी के लिए काम किया है क्या?
अखिलेश यादव जी! राजनीति करने वाले लोग कोई भी कार्य दो कारणों से करते हैं,एक तो उनकी विचारधारा उस काम को करने के लिए आदेशित करती हो,दूसरे उस काम को करने से उसे वोट मिलता हो।मेरा सीधा सा सवाल है कि परशुराम जयंती मनाने में क्या आपकी समाजवादी रीति-नीति आदेशित करती है या इसे मनाने से आपको वोट मिला है?मेरे जैसे सामान्य बुद्धि के व्यक्ति का कन्क्लूजन होगा कि परशुराम भगवान मनुवाद के जीवंत पात्र हैं जिनका समाजवाद से बेर-केर जैसा रिश्ता है जबकि इनको महिमण्डित करने से एक वोट समाजवादी पार्टी को मिलना नही है।
अखिलेश यादव जी!आप इंजीनियरिंग के छात्र हैं।आप भलीभांति जानते हैं कि किरासन का तेल और घी एक कनस्तर में नही रखे जा सकते हैं।यदि घी और घासलेट (किरासन का तेल) एक कनस्तर में नही रह सकते तो क्या ब्राह्मणवाद और समाजवाद एक झंडे के नीचे रह सकते हैं?
अखिलेश यादव जी! पौराणिक पात्र परशुराम ब्राह्मण थे जिन्होंने पुराणों के मुताबिक अपनी माता के गर्दन काट दिये।ग़ैरराजकुमार कर्ण को शिक्षा देने के बाद यह ज्ञात होने पर की कर्ण राजकुमार नही है,कथित तौर पर श्राप दे डाला।21 बार क्षत्रियों का विनाश किया।इन कामो में अखिलेश यादव जी!कौन सा समाजवाद है?
अखिलेश यादव जी!विचारधारा के मामले में आपसे बेहतर तो योगी आदित्यनाथ जी हैं जिन्होंने आपद्वारा घोषित परशुराम जयंती के अवकाश को खत्म कर डाला तथा समस्त ब्राह्मण समाज के भाजपाई होने के बावजूद कहीं भी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से परशुराम जयंती नही मनवाया।
अखिलेश यादव जी! जो कोई व्यक्ति असमंजस में होता है या दुविधा में रहता है वह ऐक्सिडेंट का शिकार जरूर होता है।आखिर आप किस लिए परशुराम जयंती मनवाते है?आखिर समाजवादी पार्टी का परशुराम जयंती समारोह मनाने के पीछे क्या कांसेप्ट है?
अखिलेश यादव जी!अभी 13 अप्रैल को वीपी मण्डल जी की पुण्यतिथि थी,आपने उनकी पुण्यतिथि मनवाई?अखिलेश यादव जी! आप जान रहे हैं कि वीपी मण्डल ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने पिछड़े वर्गों को आरक्षण पाने का आधार दिया और हमारे जैसे असंख्य पिछड़े उन्ही की बदौलत रोजगार पाए हैं।क्या वीपी मण्डल की तुलना प्रशुरामम से हो सकती है?
अखिलेश यादव जी! 14 अप्रैल को अम्बेडकर साहब की जयंती थी, क्या आपने समाजवादी पार्टी के कार्यालय में उसे मनवाया?आपकी नजर में आखिर अम्बेडकर साहब से बड़े हैं क्या परशुराम जी व चन्द्रशेखर जी?कितनी बड़ी विडंबना है अखिलेश यादव जी! कि आप सपा कार्यालय में चन्द्रशेखर जयंती व परशुराम जयंती तो मनवाते हैं लेकिन पिछड़े वर्ग के रामस्वरूप वर्मा,ललई सिंह यादव,सन्त गाडगे,ज्योतिबा फुले,सावित्री बाई फुले,फातिमा शेख,पेरियार,महाराज सिंह भारती, बाबू जगदेव प्रसाद,रामसेवक यादव,रमा बाई, छत्रपति शाहू जी,रामनरेश यादव आदि के बारे में न बोलना चाहते हैं और न सुनना चाहते हैं।
अखिलेश यादव जी!जिस कौम को अपना इतिहास न पता हो वह कौम कभी भी तरक्की नही कर सकती है।हमे अपना इतिहास जानना होगा।हमे परशुराम और चन्द्रशेखर की जगह पर यदि पूजना ही है तो एकलब्य,शम्बूक,बलि,हिरणकश्यप आदि को पूजना होगा।
अखिलेश यादव जी! मैं आपसे क्या कहूँ, क्योकि आपके इस प्रयत्न से मैं विस्मित हूँ कि आप किरासन तेल और घी (परशुराम/चन्द्रशेखर और लोहिया/अम्बेडकर)एक मे मिलाकर जायकेदार बनाने की सोच में हैं जो कभी भी बन ही नही सकता।
अखिलेश यादव जी!दुविधा छोड़िए।एक बड़ी लकीर खींचिए जिसमे दलित/पिछड़ा/अल्पसंख्यक एवं सामाजिक न्याय के पक्षधर सामान्य वर्ग के चुनिंदा लोग आपके साथ सही दिशा में चलने हेतु आ सकें वरना यदि आप इसी तरह से गड्ड-मड्ड करते रहेंगे तो एक दिन ऐसा न आ जायेगा कि न माया मिलेगी और न ही राम ही मिलेंगे,बस परशुराम व चन्द्रशेखर जी का माला जपते हुए आप हाशिये पर खड़े दिखेंगे और सामाजिक न्याय समर्थक शक्तियां नए विकल्प को जन्म दे देंगी।
अखिलेश यादव जी! सभलिये,सुधरिये वरना आपका ही सब कुछ लुटेगा।सामाजिक न्याय,पिछड़ा/दलित/अकलियत का मजबूत गठबंधन बनाइये और दिल्ली फतह करिए।समाज को त्रिपुंड,माला-छापा,कथा-पोथी से मुक्त करवाके वैज्ञानिक धारा में "अत्त दीपो भव" के मूल मंत्र को स्वीकार्य बनाना होगा,इसी में वंचित तबकों का कल्याण है।
अखिलेश यादव जी! मुझे यदि कुछ आपके लिए अहितकर लगता है तो उसे लिख देने की धृष्टता करता रहता हूँ,जो शायद आपको पसंद नही आता होगा जिसके लिए क्षमा करेंगे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। चंद्रभूषण सिंह यादव त्रैमासिक पत्रिका यादव शक्ति के प्रधान संपादक हैं।)