कर्नाटका के तटीय जिलों में बढ़ता सांप्रदायिक तनाव: रिपोर्ट में 2024 में इस क्षेत्र में हुए सांप्रदायिक संकटों को उजागर किया गया है 

Written by Tanya Arora | Published on: January 17, 2025
कर्नाटक के तटीय जिलों में साम्प्रदायिक घटनाओं के बढ़ने का दस्तावेजीकरण करते हुए, सुरेश भट बी. द्वारा संकलित एक रिपोर्ट में 2024 में नफरत भरी बातें, निगरानी (vigilantism), और नैतिक पुलिसिंग की घटनाओं और पैटर्न को उजागर किया गया है।



कर्नाटक के तटीय जिले लंबे समय से भारत की जटिल सांप्रदायिक गतिविधियों का एक छोटे से क्षेत्र रहे हैं, जहां छिटपुट तनाव और ऐसी घटनाएं होती रहती हैं, जो गहरे विभाजन को उजागर करती हैं। कर्नाटक सांप्रदायिक सद्भाव मंच और पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) मैंगलोर के सदस्य सुरेश भट बी. द्वारा संकलित एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 कोई अपवाद नहीं था, जिसमें दक्षिण कन्नड़ और उडुपी क्षेत्र में कुल 48 सांप्रदायिक घटनाएं रिकॉर्ड की गईं। "अ क्रॉनिकल ऑफ कम्यूनल इंसिडेंट्स इन द कोस्टल डिस्ट्रिक्ट ऑफ कर्नाटका इन 2024" (2024 में कर्नाटक के तटीय जिलों में सांप्रदायिक घटनाओं का इतिहास) नामक रिपोर्ट में इन घटनाओं का विवरण शामिल है, जो नैतिक पुलिसिंग और धर्म परिवर्तन के आरोपों से लेकर अभद्र भाषा और पूजा स्थलों के अपमान तक एक व्यापक दायरे में फैली हुई हैं।

इस साल की घटनाओं की एक खास बात यह रही कि मोरल पुलिसिंग का प्रचलन बढ़ा, मुख्य रूप से हिंदू निगरानी समूहों द्वारा, जिसके कारण 10 घटनाएं हुईं, जबकि तीन अन्य घटनाओं में अज्ञात समूह शामिल थे। धर्म परिवर्तन के आरोपों ने भी तनाव को भड़काया, हालांकि ऐसी घटनाएं हिंदू कट्टरपंथियों से जुड़े एक मामले तक ही सीमित थीं। मवेशी निगरानी के विवादास्पद मुद्दे पर दो मामले सामने आए, दोनों कथित तौर पर हिंदू निगरानी समूहों द्वारा अंजाम दिए गए थे।

ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह की नफरत फैलाने वाली बातें और नफरत फैलाने वाले अपराध एक बड़ी चिंता का विषय बन गए हैं, जिनमें से 27 घटनाओं की रिपोर्ट की गई है। इनमें 15 मामलों में हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा भड़काऊ टिप्पणियां और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से नफरत फैलाने वाले भाषणों के 10 मामले शामिल हैं। हालांकि, मुस्लिम कट्टरपंथियों को दो ऑनलाइन नफरत फैलाने वाली घटनाओं से जोड़ा गया, लेकिन इस तरह की अधिकांश गतिविधियों के लिए हिंदू कट्टरपंथी समूहों को जिम्मेदार ठहराया गया।

कर्नाटक के तटीय जिले में पूजा स्थलों पर हमले अपेक्षाकृत दुर्लभ थे, लेकिन फिर भी ये सांप्रदायिक विभाजन के प्रतीक के रूप में सामने आए, जिनमें एक घटना में कथित तौर पर हिंदू कट्टरपंथियों की संलिप्तता पाई गई। इसके अलावा, चार अन्य सांप्रदायिक झड़पें या हिंसा की घटनाएं रिकॉर्ड की गईं, जिनमें से तीन हिंदू कट्टरपंथियों और एक मुस्लिम कट्टरपंथियों के कारण हुईं, जबकि एक अन्य में एक अज्ञात समूह शामिल था।

ये आंकड़े कर्नाटक के तटीय जिलों में लगातार जारी सांप्रदायिक तनाव को उजागर करते हैं, जो सद्भाव को बढ़ावा देने और सतर्कता समूहों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सक्रिय उपायों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। यह रिपोर्ट इन घटनाओं को रिकॉर्ड करने का प्रयास करती है, न केवल 2024 की घटनाओं को दस्तावेजबद्ध करने के लिए, बल्कि उन सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को भी उजागर करने के लिए जो ऐसी विभाजनकारी गतिविधियों को संभव बनाती हैं। इस रिपोर्ट और विश्लेषण के जरिए इस अशांत क्षेत्र में शांति और एकता को बढ़ावा देने की दिशा में चल रहे प्रयासों में योगदान देना है।
 
पिछले वर्ष के साथ इस वर्ष के आंकड़ों की तुलना यहां देखी जा सकती है:


मोरल पुलिसिंग की घटनाएं

यह रिपोर्ट तटीय कर्नाटक में हुई घटनाओं की एक श्रृंखला को उजागर करती है, जहां मोरल पुलिसिंग और सतर्कतावाद मुख्य रूप से अंतरधार्मिक रिश्तों के खिलाफ थे। धर्मस्थल में एक अंतरधार्मिक जोड़े को स्थानीय लोगों द्वारा परेशान किया गया और पुलिस स्टेशन ले जाया गया, हालांकि अंततः पाया गया कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था। इसी तरह, मैंगलोर के कादरी पार्क में तीन किशोरों ने एक नर्सिंग छात्र और उसके दोस्त पर हमला किया, उन्हें पुलिस द्वारा पकड़े जाने से पहले रिकॉर्ड किया और परेशान किया।

पुत्तूर में एक स्थानीय कार्यक्रम में भाग लेने गई नाबालिग लड़की को दूसरे धर्म के एक युवक ने कथित तौर पर परेशान किया, जिसके बाद हिंदुत्ववादी एक्टिविस्ट ने पुलिस स्टेशन के बाहर प्रदर्शन किया और युवक को सौंपने की मांग की। इस बीच, मैंगलोर के पनाम्बुर तट पर एक महिला को, जो अपने दोस्त के साथ थी, एक हिंदुत्ववादी समूह के सदस्यों ने परेशान किया, दोनों से बदसलूकी की और घटना का वीडियो भी बनाया।

अन्य घटनाओं में कडाबा में एक व्यक्ति और उसकी मां पर एक परेशान महिला की मदद करने के लिए हमला, आपसी सहमति से बने अंतरधार्मिक संबंधों को बार-बार "लव जिहाद" के तौर पर पेश करना और साथ में सफर करने वाले जोड़ों को निशाना बनाना शामिल है, जिसके चलते अक्सर विजिलेंट समूह द्वारा दखल के बाद पुलिस को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ता है। ये घटनाएं इलाके में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव और विजिलेंट समूहों द्वारा व्यक्तिगत मामलों में लगातार दखलंदाजी को उजागर करती हैं।

इस बीच, दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी समूह श्री राम सेना ने तथाकथित "लव जिहाद" मामलों से निपटने के लिए एक विवादास्पद हेल्पलाइन शुरू की, जिसका उद्देश्य अंतरधार्मिक संबंधों, विशेष रूप से मुस्लिम पुरुषों और हिंदू महिलाओं के रिश्तों को हल करना है। इस समूह का दावा है कि हिंदू महिलाओं को मुस्लिम पुरुषों द्वारा रिश्तों के लालच में फंसाया जाता है, जिनका कथित तौर पर उनका धर्म परिवर्तन करने का लक्ष्य होता है। यह पहल समाज के कुछ वर्गों में अंतरधार्मिक शादियों के बारे में बढ़ती चिंता को दर्शाती है और इसने पहले ही कानून प्रवर्तन की भागीदारी और इस तरह की कार्रवाइयों से बढ़ते सांप्रदायिक तनावों के बारे में चर्चाओं को हवा दे दी है।

सुल्लिया में 12 जनवरी, 2024 को जोस्टिन बाबू नाम के एक युवक को स्थानीय मंदिर के पास मेले में कुछ युवकों ने पीटा, क्योंकि उसे अपने कॉलेज की सीनियर छात्राओं से बात करते हुए देखा गया था। इस घटना के बाद सुल्लिया पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई गई। 20 अगस्त, 2024 को पुत्तूर में एक अलग घटना में, एक नाबालिग लड़की को एक युवक ने चाकू मार दिया, क्योंकि उसने उसके प्रोपोजल को ठुकरा दिया था। इस हमलावर का पहले से ही विवादों का इतिहास रहा है। उसने कथित तौर पर उस पर एक नुकीली चीज से हमला किया जिससे सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया क्योंकि दोनों अलग-अलग समुदायों से थे। लड़की का अस्पताल में इलाज किया गया और POCSO अधिनियम के तहत जांच शुरू की गई।

पुत्तूर की घटना की आगे की जांच में बाद में पता चला कि हो सकता है यह कहानी गढ़ी गई हो। सीसीटीवी फुटेज से लड़की के बयान में विरोधाभास पाया गया, जिससे पुलिस ने दावे की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया। कुछ छात्रों ने आरोपी लड़के की संलिप्तता पर भी सवाल उठाए, कुछ समूहों ने उसके परिवार को सहायता देने की पेशकश की और दावा किया कि सांप्रदायिक अशांति फैलाने के लिए इस घटना को गढ़ा जा रहा है। उसी कॉलेज के एक छात्र संगठन ने झूठा आरोप लगाने के लिए लड़की को निलंबित करने की भी मांग की।

यहां प्रस्तुत घटनाएं व्यक्तिगत संघर्षों, सांप्रदायिक संवेदनाओं और सामाजिक विभाजनों के जटिल अंतर्संबंध को उजागर करती हैं। प्रत्येक मामला बढ़ते तनाव को उजागर करता है, जो अक्सर विभिन्न समुदायों से जुड़े आरोपों और अभियोगों से बढ़ता है, जिससे भारत का सामाजिक ताना-बाना और भी ध्रुवीकृत हो जाता है।

 
घटनाओं से उभरने वाले पैटर्न
  1. अंतरधार्मिक रिश्तों को निशाना बनाना: अंतरधार्मिक जोड़ों के खिलाफ विजिलेंटिज्म का एक स्पष्ट पैटर्न उभरता है, खासकर जब एक साथी मुस्लिम हो। इनमें से कई घटनाओं में "लव जिहाद" के आरोप शामिल हैं, जिसमें सहमति से बनाए गए रिश्तों को अक्सर जबरदस्ती या हिंसा के रूप में गलत समझा जाता है। ऐसे रिश्तों को लगातार सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरा बताया जाता है, जिससे उत्पीड़न, सार्वजनिक अपमान और पुलिस की संलिप्तता होती है।
  2. हिंदुत्ववादी संगठनों की भूमिका: कई घटनाएं बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद जैसे हिंदुत्व समूहों की संलिप्तता से प्रेरित होती या बढ़ाई जाती हैं। ये संगठन अक्सर भीड़ इकट्ठा करते हैं, विरोध प्रदर्शन करते हैं और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिस पर दबाव डालते हैं। इनकी मौजूदगी और उनके कार्य सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं।
  3. आम लोग और पुलिस की मिलीभगत: इन घटनाओं में आम लोगों के शामिल होने के सबूत हैं, जहां लोग निगरानी समूहों को जानकारी देते हैं या सीधे दखल देकर अंतरधार्मिक जोड़ों से पूछताछ करते हैं या उन्हें हिरासत में रखते हैं। पुलिस की भागीदारी अक्सर होती है, जहां अधिकारी इन जोड़ों को हिरासत में लेते हैं, उनसे पूछताछ करते हैं और कभी-कभी महिलाओं को उनके परिवारों को सौंप देते हैं। यह मोरल पुलिसिंग की अंतर्निहित मान्यता को दर्शाता है।
  4. व्यक्तिगत गोपनीयता और अधिकारों का उल्लंघन: इन घटनाओं में नियमित रूप से गोपनीयता का उल्लंघन शामिल होता है, जिसमें जोड़ों की तस्वीरें और वीडियो बिना सहमति के लिए लिए जाते हैं और साझा किए जाते हैं। लोगों को सार्वजनिक जांच और नैतिक निर्णय का सामना करना पड़ता है, जो अक्सर सहमति देने वाले वयस्कों के अधिकारों का उल्लंघन करता है। खासकर महिलाओं को कड़ी निगरानी का सामना करना पड़ता है और अक्सर उनकी स्वायत्तता की अवहेलना करते हुए उन्हें उनके परिवारों को वापस भेज दिया जाता है।
  5. सांप्रदायिक नैरेटिव में बढ़ोतरी: जो कुछ व्यक्तिगत या आपसी विवाद के रूप में शुरू होता है, वह अक्सर सांप्रदायिक नैरेटिव में बदल जाता है। छोटे-मोटे विवादों या आपसी बातचीत का फायदा उठाकर निगरानी समूह विभाजनकारी बयानबाजी करते हैं, जिससे समुदायों में और अधिक ध्रुवीकरण होता है। “लव जिहाद” शब्द का इस्तेमाल बार-बार डर और अविश्वास को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है, यहां तक कि उन मामलों में भी जहां इस दावे का कोई सबूत नहीं मिलता।
  6. दबाव में पुलिस की कार्रवाई: कई मामलों में कानून प्रवर्तन एजेंसियां विजिलेंट ग्रुप के दबाव में काम करती हैं और सहमति से बनाए गए वयस्कों के रिश्तों को आपराधिक मामला मानती हैं। अक्सर हिंदुत्ववादी समूहों की मांग पर पुलिस की त्वरित कार्रवाई, सार्वजनिक और कानूनी प्रतिक्रियाओं का इस्तेमाल करने में इन संगठनों के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है।
धर्म परिवर्तन की घटनाएं

पुत्तूर में कदबा तालुक के पंजा और पल्लोडी के सात परिवार, जो 20 साल पहले ईसाई बन गए थे, वे बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा आयोजित एक समारोह में हिंदू धर्म में वापस आ गए। ये परिवार अनुसूचित जातियों से थे और बेहतर जिंदगी के लिए ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे, लेकिन वे गरीबी में रहे क्योंकि चर्च ने सहायता देना बंद कर दिया। VHP और बजरंग दल ने दो साल तक उनके साथ काम किया, उन्हें सहायता और धार्मिक शिक्षा देकर हिंदू धर्म में वापस आने के लिए प्रोत्साहित किया। श्री पंचलिंगेश्वर मंदिर में आयोजित पुनर्धर्मांतरण समारोह में पारंपरिक हिंदू अनुष्ठान किए गए और परिवारों को कपड़े, किराने का सामान और घरेलू सामान दिए गए।

यह घटना इस बात को उजागर करती है कि कैसे कट्टरपंथी हिंदू समूह धार्मिक और भौतिक दोनों तरह के लालच का इस्तेमाल करके कमजोर लोगों को अपनी धार्मिक पहचान बदलने के लिए मजबूर करते हैं। वे इसे अक्सर अपने "पैतृक" धर्म में वापसी के रूप में पेश करते हैं। यह धार्मिक जबरदस्ती को लेकर चिंताएं पैदा करता है, क्योंकि ऐसे आंदोलन अपने वैचारिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए सामाजिक-आर्थिक संघर्षों का फायदा उठाते हैं, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक विकल्प को कमजोर करते हैं।

 
घटनाओं से उभरने वाले पैटर्न
  1. कमजोर समुदायों का शोषण: इन घटनाओं में पीड़ित लोग अक्सर हाशिए पर मौजूद या आर्थिक रूप से वंचित समुदायों से होते हैं। उदाहरण के लिए, पुनःधर्मांतरण समारोहों में अनुसूचित जाति के लोगों को निशाना बनाया गया, जिन्होंने भौतिक सहायता के वादों के कारण ईसाई धर्म अपनाया था। यह एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति को उजागर करता है, जहां धार्मिक या राजनीतिक निष्ठा हासिल करने के लिए सामाजिक-आर्थिक कमजोरियों का फायदा उठाया जाता है।
  2. धार्मिक ध्रुवीकरण: इन घटनाओं में धार्मिक समुदायों के बीच स्पष्ट विभाजन शामिल होता है, जो निगरानी समूहों की कार्रवाइयों से और बढ़ता है। चाहे वह पुत्तूर में झूठे आरोपों का मामला हो या ‘लव जिहाद’ के बहाने अंतरधार्मिक रिश्तों को निशाना बनाना हो, ये घटनाएं धार्मिक विभाजन की नैरेटिव को बढ़ावा देती हैं।
  3. धर्म का राजनीतिक टूल के रूप में इस्तेमाल: पुनःधर्मांतरण और ‘लव जिहाद’ हेल्पलाइन दोनों ही धार्मिक पहचान के राजनीतिक टूल के रूप में बढ़ते इस्तेमाल को दर्शाते हैं। पुनःधर्मांतरण को “पैतृक” धर्म में वापसी के रूप में पेश किया गया, और अप्रत्यक्ष रूप से एक ऐसे नैरेटिव को बढ़ावा दिया गया जो धर्मांतरण को अप्राकृतिक या जबरदस्ती के रूप में चित्रित करता है।
  4. बाध्यकारी धार्मिक प्रथाएं: पुनःधर्मांतरण समारोह और अंतरधार्मिक जोड़ों के उत्पीड़न जैसी विजिलेंट कार्रवाइयां बताती हैं कि कैसे धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक दबाव का इस्तेमाल करके लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है।
  5. मीडिया और सोशल मीडिया पर बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना: इनमें से कई घटनाओं को सोशल मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है, जहां गलत सूचना या अपुष्ट दावे तेजी से वायरल होते हैं। यह सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाता है और लोगों की भावनाओं को भड़काता है।
  6. राज्य की निष्क्रियता या मिलीभगत: राज्य की स्पष्ट निष्क्रियता या ऐसी निगरानी गतिविधियों को अप्रत्यक्ष समर्थन इस बात को उजागर करता है कि एक मजबूत कानूनी ढांचा लागू करने की आवश्यकता है, ताकि चरमपंथी समूहों का प्रभाव रोका जा सके।
मवेशी निगरानी की घटनाएं

तटीय कर्नाटक में मवेशी निगरानी की घटनाएं बजरंग दल जैसे समूहों द्वारा धार्मिक रूप से प्रेरित कार्रवाइयों की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती हैं, जो मवेशियों के लाने-ले जाने से संबंधित कानूनों का पालन करने का कार्य खुद करते हैं। 25 फरवरी, 2024 को सुलिया में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एक वाहन को रोका, जिस पर उन्हें संदेह था कि वह मवेशियों के अवैध परिवहन में शामिल था। उन्होंने स्थानीय पुलिस को सूचना दी, जिसने चालक बिबिन पॉलोज़ को गिरफ्तार किया और मवेशियों को जब्त कर लिया। यह पूरे साल में इस तरह की घटनाओं में से एक थी।

25 मार्च, 2024 को पुत्तूर में भी ऐसी ही घटना उस समय हुई, जब बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को देर रात मवेशियों को ले जाने की सूचना मिली। उन्होंने एक स्विफ्ट कार को रोकने की कोशिश की, लेकिन ड्राइवर ने नियंत्रण खो दिया और कार खाई में जा गिरी। कार्यकर्ताओं ने पुलिस को सूचना दी, जिसने वाहन और मवेशियों को अपने नियंत्रण में ले लिया, हालांकि चालक भागने में सफल रहा। यह कार्रवाई निगरानी के व्यापक नेटवर्क का हिस्सा थी, जिसमें समुदाय के सदस्य स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलकर संदिग्ध लोगों को पकड़ने का काम करते हैं।

10 अप्रैल, 2024 को बजरंग दल की संलिप्तता फिर से स्पष्ट हुई, जब कार्यकर्ताओं ने पुलिस को सूचना दी कि मुल्की में एक अवैध बूचड़खाने में मवेशियों को ले जाया जा रहा है। पुलिस ने वाहन को रोका, चालक जया को गिरफ्तार किया और दो गायों को जब्त कर लिया। हालांकि, मुख्य आरोपी अशरफ भाग निकला। इस घटना ने कानून प्रवर्तन में धार्मिक रूप से प्रेरित समूहों की बढ़ती भूमिका के बारे में चिंताएं पैदा कीं।
सबसे हिंसक घटना 22 मई, 2024 को मुदुबिद्री में हुई, जहां निगरानी समूह के एक समूह ने कल्लमुंडकुर से मवेशियों को ले जा रहे तीन लोगों पर हमला किया। हमलावरों, जिन्हें बजरंग दल का हिस्सा माना जाता है, ने न केवल पीड़ितों पर हमला किया बल्कि उनके वाहन को भी काफी नुकसान पहुंचाया, यहां तक कि उनमें से एक व्यक्ति मुहम्मद ज़ियान की पीठ में चाकू घोंप दिया। शिकायत मिलने के बाद पुलिस ने हमलावरों और पीड़ितों के खिलाफ आरोप दर्ज किए, जिससे इन घटनाओं की जटिल गतिशीलता और भी उजागर हुई।

16 अक्टूबर, 2024 को पुत्तूर में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एक बछड़े को ले जा रहे ऑटो-रिक्शा का पीछा किया और पुलिस को इसकी सूचना दी। बछड़े को रेस्क्यू कर लिया गया और अधिकारियों ने इस घटना में शामिल चालक और दो महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया। ये घटनाएं अक्सर कानूनी और न्यायेतर कार्रवाइयों के बीच के फर्क को मिटा देती हैं, क्योंकि गौरक्षक अपनी मर्जी को थोपने के लिए कानून के दायरे से बाहर चले जाते हैं।

इसके अलावा, इस तरह की निगरानी केवल मुसलमानों तक ही सीमित नहीं है। उदाहरण के लिए, 27 जून, 2024 को विट्टल में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एक बैल को ले जा रहे वाहन को रोका और चालक और मवेशियों को पुलिस को सौंप दिया। यहां तक कि गैर-मुस्लिम व्यक्ति भी इस जाल में फंस गए, हिंदू कार्यकर्ताओं को मवेशी परिवहन के मामलों में फंसाया गया, जैसे कि 4 अक्टूबर, 2024 को बेलथांगडी में गायों को पकड़ने का मामला, जहां दो मुसलमानों के साथ दो भाजपा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। बेलथांगडी में 19 अक्टूबर, 2024 को एक अन्य मामले में अधिकारियों ने पाया कि मवेशियों को आवश्यक परमिट के बिना ले जाया जा रहा था और इसमें शामिल लोगों ने "तत्वमसि" और "जय श्री राम" जैसे नारों के साथ अपनी पहचान छिपाने की कोशिश की थी।

ये घटनाएं हिंसा, धमकी और गौरक्षक समूहों द्वारा धार्मिक रूप से प्रेरित कार्रवाइयों के बढ़ते पैटर्न को दर्शाती हैं, जो यह संकेत देती हैं कि गायों की सुरक्षा सांप्रदायिक एजेंडे से जुड़ गई है, जो अक्सर कानून के शासन को कमजोर करती है और समुदायों के बीच तनाव पैदा करती है।


घटनाओं से उभरने वाले पैटर्न

तटीय कर्नाटक में गौरक्षक समूहों द्वारा की गई घटनाओं से कई पैटर्न उभर कर सामने आते हैं:

1. धार्मिक प्रेरणा और सामुदायिक निगरानी: इनमें से ज्यादातर घटनाओं में बजरंग दल जैसे समूह शामिल हैं, जो हिंदुत्व विचारधारा से दृढ़ता से जुड़े हुए हैं। कार्यकर्ता अक्सर अपने कार्यों को धार्मिक संरक्षणवाद के रूप में उचित ठहराते हैं, खासकर गोहत्या के मामले में। जबकि कानून मवेशियों के अवैध वध को प्रतिबंधित करता है, इन समूहों ने औपचारिक कानूनी ढांचे से बाहर काम करते हुए एक प्रकार से पुलिस की भूमिका निभाई है।
2. बढ़ती हिंसा: कई घटनाओं में हिंसा का स्तर बढ़ता जा रहा है। सुल्लिया (फरवरी 2024) जैसी घटना शुरुआत में अहिंसक थी, लेकिन बाद की ये घटनाएं ज्यादा आक्रामक हो गईं, जिसका परिणाम लोगों पर हमलों के रूप में सामने आया। उदाहरण के लिए, 22 मई 2024 को मुदुबिद्री में हुए हमले में चाकू घोंपने की घटना हुई, जो इन टकरावों के खतरनाक रूप से बढ़ने को उजागर करता है। निगरानी करने वाले अब केवल संदिग्ध उल्लंघनों की ही रिपोर्ट नहीं कर रहे हैं, बल्कि सक्रिय रूप से हिंसा में शामिल हो रहे हैं, जिससे इन क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं।
3. स्थानीय अधिकारियों का इन्वॉल्वमेंट: पुलिस अक्सर शामिल होती है, लेकिन निगरानी समूह और स्थानीय अधिकारियों के बीच समन्वय का स्तर अलग-अलग होता है। कुछ मामलों में, जैसे कि पुत्तुर (मार्च 2024) और मुल्की (अप्रैल 2024) में पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की, संदिग्धों को गिरफ्तार किया और मवेशियों को पकड़ा। हालांकि, अन्य मामलों में, निगरानी समूह स्थानीय पुलिस की मौन स्वीकृति या सहायता से काम करते दिखते हैं, जो कानून प्रवर्तन की प्रभावशीलता और पुलिसिंग में सांप्रदायिक राजनीति की भूमिका पर सवाल उठाता है।
4. समुदाय विशेष को निशाना बनाना: हालांकि कुछ मामलों में गैर-मुस्लिम भी शामिल हैं, जैसे कि विट्टल (जून 2024) में की घटना, लेकिन ज्यादातर घटनाओं में संदिग्धों और अवैध मवेशी परिवहन के आरोपों के मामले में मुसलमानों को असमान रूप से निशाना बनाया जाता है। यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एक पैटर्न की ओर इशारा करता है, जहां निगरानी समूहों की नजर में मुसलमानों को इन कानूनों का प्राथमिक उल्लंघनकर्ता माना जाता है।
5. पूरे इलाके में निगरानी समूहों की बढ़ती गतिविधियां: घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जो मवेशियों के परिवहन और वध पर नियंत्रण बढ़ाने के लिए धार्मिक समूहों द्वारा समन्वित अभियान का संकेत देती है। जैसे-जैसे ज्यादा मामले सामने आते हैं, यह साफ होता है कि ये सतर्कता समूह स्थानीय अधिकारियों और राज्य सरकार के समर्थन या निष्क्रियता से उत्साहित होकर बढ़ती नियमितता और आत्मविश्वास के साथ काम कर रहे हैं।
6. अवैध कार्यों को उचित ठहराने के लिए धर्म का इस्तेमाल: कई मामलों में निगरानी समूहों ने "जय श्री राम" जैसे धार्मिक नारे लगाए हैं, अक्सर अपनी पहचान छिपाने या अपनी गतिविधियों की धार्मिक प्रकृति पर जोर देने के लिए। यह गौरक्षा का राजनीतिकरण करने और इसे व्यापक धार्मिक और सांप्रदायिक एजेंडे के लिए एक वाहन के रूप में इस्तेमाल करने के जानबूझकर किए गए कोशिश की ओर इशारा करता है।
7. कानूनी रूप से संदिग्ध क्षेत्र और न्यायेतर कार्रवाईयां: इन समूहों की कार्रवाइयां अक्सर कानूनी रूप से संदिग्ध क्षेत्रों में आती हैं। हालांकि वे कानून लागू करने का दावा करते हैं, वे ऐसा कानूनी अधिकार के बिना करते हैं, जिससे इन स्थितियों में कानून के शासन पर सवाल उठते हैं। निगरानी और परिणामी हिंसा अक्सर वास्तविक कानूनी उल्लंघनों की जांच और मामले को जटिल बना देती है क्योंकि अपराधियों और पीड़ितों दोनों पर कई आरोप लगाए जाते हैं, जिससे कानूनी क्षेत्र और भी जटिल हो जाता है।
8. अल्पसंख्यक समुदायों पर असर: ये घटनाएं डर और चेतावनी के माहौल को बढ़ावा देती हैं, खासकर मुस्लिम समुदायों के लिए, जिन पर अक्सर मवेशी परिवहन कानूनों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया जाता है। इन घटनाओं में शामिल मुसलमानों पर लगातार हमले धार्मिक तनाव को बढ़ाते हैं, जिससे विभिन्न सामुदायिक समूहों के बीच अविश्वास और दुश्मनी का चक्र चलता रहता है।

नफरत फैलाने वाले बयान/अपराध की घटनाएं

मैंगलोर में नफरत फैलाने वाले बयान और सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं धार्मिक असहिष्णुता और ऐसे मुद्दों के राजनीतिक शोषण की बढ़ती प्रवृत्ति को उजागर करती हैं। 12 फरवरी, 2024 को मैंगलोर सिटी नॉर्थ के विधायक वाई. भरत शेट्टी ने एक बयान दिया, जिसमें माता-पिता से अपने बच्चों को ईसाई मिशनरी स्कूलों में न भेजने का आह्वान किया गया। उन्होंने सेंट गेरोसा स्कूल में एक शिक्षक द्वारा की गई अपमानजनक टिप्पणी का हवाला दिया, जिसे हिंदू विरोधी भावनाओं के रूप में प्रस्तुत किया गया। इसने व्यापक विवाद को जन्म दिया। शेट्टी की टिप्पणियों ने सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ा दिया, जिसके कारण दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने स्कूल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। शेट्टी, विधायक डी. वेदव्यास कामथ और अन्य दक्षिणपंथी नेताओं के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शनों ने धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा दिया और ईसाई समुदाय को बदनाम किया, उन पर हिंदू भावनाओं के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया। पुलिस ने इन नेताओं के खिलाफ सांप्रदायिक नफरत भड़काने का मामला दर्ज किया, जो राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक शिकायतों का दुरुपयोग करने का स्पष्ट प्रयास था।

10 मार्च, 2024 को एक अन्य घटना में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेता शरण पंपवेल ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) से आग्रह किया कि वह बेंगलुरु कैफे विस्फोट से जुड़े सुरागों के लिए मदरसों और मस्जिदों पर छापेमारी करे। यह पूरी तरह से संदिग्ध के धर्म के आधार पर और बिना किसी ठोस सबूत के किया गया। निरंतर छापेमारी का यह आह्वान अपराध को धर्म से जोड़ने और सांप्रदायिक डर और नफरत को बढ़ाने के एक खतरनाक पैटर्न को दर्शाता है। पंपवेल की बयानबाजी मुस्लिम संस्थाओं और समुदायों को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत करने के एक बड़े नरेटीव का हिस्सा है, जो अक्सर बिना उचित कारण या कानून के शासन का पालन किए बिना की जाती है।

इसके अलावा, मई 2024 में कांकनाडी में खुलेआम सड़क पर शुक्रवार की नमाज अदा करने वाले मुसलमानों के एक समूह से जुड़ी घटना सांप्रदायिक बयानबाजी का एक और केंद्र बन गई। वीएचपी समेत दक्षिणपंथी समूहों ने इसकी निंदा की और उसी सड़क पर हनुमान चालीसा का पाठ करने जैसी प्रतिक्रिया की धमकी दी। इन समूहों ने इस कृत्य को हिंदू भावनाओं को भड़काने के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास बताया, इस तथ्य के बावजूद कि नमाज अदा करने वाले लोगों ने ऐसा कोई इरादा नहीं दिखाया था। हालांकि, पुलिस ने समूह के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की, जबकि वीएचपी नेता पंपवेल पर सामाजिक सद्भाव को खतरे में डालने और निगरानी कार्यों को बढ़ावा देकर समुदाय के भीतर डर पैदा करने का आरोप लगाया गया। बाद में मस्जिद समिति ने आश्वासन दिया कि ऐसी घटनाएं फिर नहीं होंगी, सार्वजनिक स्थान का सम्मान करने और भविष्य में होने वाले विवादों को रोकने की आवश्यकता पर जोर दिया।

जून 2024 में, मैंगलोर में सांप्रदायिक तनाव तब भड़क उठा जब भाजपा विधायक हरीश पूंजा ने मस्जिदों में हथियार छुपाने का झूठा आरोप लगाया, जिसके बाद मुस्लिम नेताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। इस घटना ने धार्मिक कलह को भड़काने के लिए भड़काऊ बयानबाजी के बढ़ते राजनीतिक इस्तेमाल को उजागर किया।

जुलाई में, डॉ. उपाध्याय द्वारा मुसलमानों के खिलाफ हिंसा भड़काने वाला एक सोशल मीडिया पोस्ट वायरल हुआ, जिसमें दिखाया गया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नफरत फैलाने वाले बयान कैसे तेजी से फैल सकते हैं और विभाजन को बढ़ावा दे सकते हैं। इसी तरह, अगस्त में सुलिया पुलिस ने एक घटना की जांच की, जिसमें लोगों ने एक मस्जिद में छात्रों को उनके पहनावे को लेकर धमकाया था, जो दर्शाता है कि बढ़ती असहिष्णुता के माहौल में व्यक्तिगत पसंद का भी तेजी से राजनीतिकरण हो रहा है।

अगस्त में एक सामूहिक बलात्कार का मामला तब राजनीतिक रूप से गरमा गया जब भाजपा नेताओं ने इसे “लव जिहाद” के तौर पर पेश करने की कोशिश की, जिससे मामले का और भी ध्रुविकरण हो गया। इस घटना ने अपराधों के राजनीतिकरण के जोखिमों को उजागर किया, जो न्याय से ध्यान भटकाता है और सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देता है।

सितंबर में भड़काऊ मामले जारी रहे, जिसमें अपमानजनक बैनर के माध्यम से नफरत को बढ़ावा देने के लिए सतीश देवडिगा की गिरफ्तारी और एक धार्मिक संगठन की ओर से एक पत्र शामिल था, जिसमें मुसलमानों से हिंदू त्योहार के दौरान भोजन बांटने को बंद करने की मांग की गई थी। इन घटनाओं ने सांप्रदायिक तनाव को भड़काने में प्रतीकवाद और बयानबाजी की भूमिका को दर्शाया।

अक्टूबर में अरुण उल्लाल के वीडियो में हिंदुओं से मुस्लिमों द्वारा संचालित स्कूलों से दूर रहने का आह्वान किया गया था, जिसके बाद कड़ी प्रतिक्रिया हुई, जिससे पता चला कि शैक्षणिक संस्थानों में किस हद तक नफरत भरी भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसी तरह, नवंबर में बस स्टॉप पर अपमानजनक संदेश और मंदिर के आयोजनों में केवल हिंदू दुकानदारों के लिए आह्वान जैसी घटनाओं ने धार्मिक विभाजन फैलाने के लिए सार्वजनिक स्थानों के निरंतर इस्तेमाल को दिखाया।

ये घटनाएं मैंगलोर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती हैं, जहां राजनेता, सोशल मीडिया और स्थानीय कार्यकर्ता धार्मिक भावनाओं का तेजी से इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि संघर्ष को बढ़ावा दिया जा सके। ये घटनाएं एक पैटर्न को दर्शाती हैं, जहां राजनीतिक और धार्मिक नेता सांप्रदायिक तनाव को भड़काने के लिए वास्तविक या मनगढ़ंत शिकायतों का इस्तेमाल करते हैं। शेट्टी, कामथ और पंपवेल जैसे लोगों द्वारा की जाने वाली बयानबाजी अक्सर भड़काऊ होती है, जो धार्मिक प्रथाओं और शैक्षणिक संस्थानों को वैचारिक लड़ाई के रूप में प्रस्तुत करती है। मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बाद के विरोध और कानूनी कार्रवाइयों ने इन विभाजनों को और बढ़ा दिया, जिससे ऐसा माहौल बना जहां राजनीतिक गणना के कारण शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की व्यवस्था कमजोर हो रही है। कानून लागू करने वाली संस्था की भूमिका भी चिंताजनक है, क्योंकि यह अक्सर प्रतिक्रियात्मक या मिलीभगत वाली लगती है, जो सांप्रदायिक बयानबाजी और हिंसा को रोकने में विफल रहती है। कुल मिलाकर यह कहानी बढ़ती असहिष्णुता की है, जिसमें राजनेता और दक्षिणपंथी समूह सत्ता को मजबूत करने और धार्मिक विभाजन को गहरा करने के लिए नफरत भरे बयान का इस्तेमाल कर रहे हैं।


घटनाओं से उभरने वाले पैटर्न

मैंगलोर में हुई घटनाओं से कई पैटर्न उभरकर सामने आए हैं, जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक शोषण की एक बड़ी प्रवृत्ति की ओर इशारा करते हैं। ये पैटर्न न केवल बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता को उजागर करते हैं, बल्कि नफरत और विभाजन को बढ़ाने में राजनीति, सोशल मीडिया और सार्वजनिक स्थानों की भूमिका को भी स्पष्ट करते हैं।
  1. धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक शोषण: घटनाओं के दौरान राजनेताओं द्वारा धार्मिक मुद्दों का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने का एक स्पष्ट पैटर्न सामने आता है। वाई. भारत शेट्टी और शरण पंपवेल जैसे लोग धार्मिक मुद्दों को राजनीतिक चर्चा का केंद्र बनाते हैं, शिकायतों को इस तरह से बढ़ाते हैं कि सांप्रदायिक तनाव भड़क उठता है। ईसाई मिशनरी स्कूलों पर शेट्टी की टिप्पणी और मुस्लिम संस्थानों पर छापे मारने के पंपवेल के आह्वान से पता चलता है कि कैसे राजनीतिक हस्तियां अपने आधार को मजबूत करने के लिए धार्मिक मुद्दों का फायदा उठाती हैं, जिससे समाज में डर और विभाजन पैदा होता है। इस रणनीति के परिणामस्वरूप अक्सर ध्रुवीकरण बढ़ता है, जहां राजनीतिक एजेंडा सामाजिक सद्भाव की आवश्यकता को पीछे छोड़ देता है।
  2. धार्मिक अल्पसंख्यकों को कलंकित करना: एक पैटर्न मुस्लिम संस्थानों और समुदायों को लगातार कलंकित करना है। पंपवेल द्वारा संदिग्ध के धर्म के आधार पर एनआईए छापे की मांग, हरीश पूंजा द्वारा मस्जिदों में हथियार छुपाने के झूठे आरोप, और व्यक्तिगत पसंद (जैसे पोशाक और धार्मिक प्रथाओं) को धमकी के रूप में पेश करना, ऐसे नैरेटिव को बढ़ावा देता है जो मुसलमानों के साथ अपराध और विभाजन को जोड़ता है। इससे संदेह और डर का माहौल बनता है, जहां तथ्यों की परवाह किए बिना मुस्लिम समुदाय को दुश्मनी की नजर से देखा जाता है। "लव जिहाद" मामले जैसी घटनाओं को एक बड़ी साजिश के हिस्से के रूप में पेश करना इस बात का एक अन्य उदाहरण है कि कैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों को बदनाम किया जाता है।
  3. सोशल मीडिया और सार्वजनिक स्थानों का हथियार के रूप में इस्तेमाल: सोशल मीडिया और सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल नफरत फैलाने और विभाजनकारी बयानों को बढ़ावा देने के लिए तेजी से किया जा रहा है। डॉ. उपाध्याय की वायरल पोस्ट और भड़काऊ वीडियो, जैसे कि अरुण उल्लाल का मुस्लिम-संचालित स्कूलों से दूर रहने का आह्वान, यह दिखाता है कि नफरत फैलाने वाली बातें कितनी तेजी से फैल सकती हैं, जनता की राय को प्रभावित कर सकती हैं और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकती हैं। इसी तरह, सार्वजनिक स्थान, जैसे कि कंकनाडी रोड की घटना या सितंबर में अपमानजनक बैनर, तेजी से वैचारिक लड़ाई की जगह बनते जा रहे हैं, जहां प्रतीकों और कार्यों का इस्तेमाल विभाजन को भड़काने और बढ़ाने के लिए किया जाता है।
  4. हिंसा को बढ़ावा देना और निगरानी: कई घटनाएं हिंसा को बढ़ावा देने और निगरानी कार्रवाई के लिए आह्वान करने के पैटर्न को दर्शाती हैं। सुलिया में एक मस्जिद में छात्रों के खिलाफ दी गई धमकियां, हनुमान चालीसा के पाठ करने की जवाबी कार्रवाई और सार्वजनिक प्रदर्शन और विरोध अक्सर सीधे टकराव में बदल जाते हैं। इससे न केवल एक अस्थिर माहौल बनता है बल्कि निगरानी को भी बढ़ावा मिलता है, जहां समूह कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए फैसले को अपने हाथों में ले लेते हैं और कानून व व्यवस्था को और भी ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
  5. चयनात्मक कानून का इस्तेमाल और दंड से छुटकारा: इन घटनाओं में एक परेशान करने वाला पैटर्न कानून प्रवर्तन की प्रतिक्रियात्मक या चयनात्मक प्रकृति है। हालांकि कभी-कभार कानूनी कार्रवाई की जाती है, जैसे कि शेट्टी जैसे नेताओं के खिलाफ सांप्रदायिक नफरत भड़काने या नफरत भरे बयान की जांच के लिए पुलिस केस, लेकिन ऐसी धारणा है कि कार्रवाई असमान है। दक्षिणपंथी नेताओं या कार्यकर्ताओं, विशेष रूप से धार्मिक नफरत फैलाने वालों से जुड़ी कई घटनाओं में अक्सर सजा नहीं होती है या उनके साथ नरमी से पेश आता है, जिससे दंड से छुटकारा की भावना बढ़ती है। यह चयनात्मक प्रवर्तन कानून के शासन में विश्वास को कम करता है और पक्षपात की धारणा को बढ़ावा देता है।
  6. शैक्षिक और सामाजिक स्थानों का ध्रुवीकरण: शिक्षा और सामाजिक प्रथाएं तेजी से वैचारिक संघर्ष के स्थल बनते जा रहे हैं, जिसमें धार्मिक पहचान विवाद का विषय बनती जा रही है। मुस्लिम संचालित स्कूलों के खिलाफ अरुण उल्लाल का वीडियो और प्रतीकों के माध्यम से नफरत को बढ़ावा देने के लिए सतीश देवडिगा की गिरफ्तारी इस बात के उदाहरण हैं कि कैसे शैक्षणिक संस्थानों और सामाजिक समारोहों का राजनीतिकरण किया जाता है, जिससे वे वैचारिक लड़ाई के क्षेत्र बन जाते हैं। ये घटनाएं सार्वजनिक जीवन में विभाजन की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती हैं, जहां साधारण दिखने वाले स्थानों को भी धार्मिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए हथिया लिया जाता है।
 
सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले बयानों की घटनाएं

फरवरी और दिसंबर 2024 के बीच मंगलुरु और आसपास के इलाकों में हुई घटनाएं सोशल मीडिया के कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती हैं। ये घटनाएं बताती हैं कि कैसे व्यक्ति और समूह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल भड़काऊ और अक्सर झूठी सामग्री फैलाने के लिए करते हैं, जिससे धार्मिक और राजनीतिक विभाजन को बढ़ावा मिलता है।

फरवरी महीने में, भाजपा विधायक हरीश पूंजा ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि हिंदुओं द्वारा दिए जाने वाले करों का लाभ केवल हिंदुओं को मिलना चाहिए। यह एक भड़काऊ बयान था, जिसको लेकर चौतरफा प्रतिक्रिया देखी गई और इसको लेकर संविधान-विरोधी बयानबाजी के आरोप लगे। इसके बाद एक शिकायत आई, जिसमें मंगलुरु के एक पूर्व पार्षद ने अज्ञात व्यक्तियों पर सेंट गेरोसा स्कूल के एक शिक्षक के बारे में फर्जी खबर फैलाने का आरोप लगाया, जिससे बढ़ते धार्मिक तनाव को और बढ़ावा मिला। इस बीच, गलत बयानी और धार्मिक दुर्भावना का एक पैटर्न अप्रैल में भी जारी रहा जब एक मंदिर अधिकारी की धार्मिक पहचान के बारे में झूठे दावे ऑनलाइन वायरल किए गए, जिसका उद्देश्य सांप्रदायिक भावना को भड़काना था। गलत सूचना के ये कृत्य अक्सर लोगों की आस्था का फायदा उठाते हैं और तनाव को तेजी से बढ़ा सकते हैं, जैसा कि जून में बंटवाल में एक मस्जिद के बाहर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा साझा किए गए भड़काऊ वीडियो से जुड़े मामले में देखा गया था।

व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने इस तरह की सामग्री को फैलाने में अहम भूमिका निभाई। बंटवाल में एक मस्जिद के सामने भड़काऊ नारे लगाते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं को चुनावी जीत का जश्न मनाते हुए दिखाने वाला एक वायरल वीडियो काफी चिंता का विषय बना, खासकर तब जब इसने असंवेदनशील कानून प्रवर्तन प्रतिक्रियाओं को उजागर किया, जिसने समुदायों को और अधिक ध्रुवीकृत कर दिया। इसी तरह, धार्मिक हस्तियों और प्रतीकों के बारे में अपमानजनक पोस्ट को लेकर सितंबर में पुलिस को शिकायत मिली और गिरफ्तारियां हुईं। इसने ऑनलाइन नफरत भरे बयान की विभाजनकारी शक्ति को उजागर किया।

भड़काऊ वॉयस मैसेज और पोस्ट की भूमिका सिर्फ एक समुदाय तक सीमित नहीं रही। जून में, एक मुस्लिम व्यक्ति पर सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ सामग्री पोस्ट करने का आरोप लगाया गया, जिसके कारण पुलिस जांच हुई, जो दूसरे पक्ष से नफरत फैलाने वालों की हरकतों को दर्शाती है। इसके अलावा, सितंबर में, ईद के जुलूस की योजना के विवादास्पद मुद्दे को लेकर और भी झड़पें हुईं, क्योंकि दोनों पक्षों की ओर से सोशल मीडिया पोस्ट ने तनाव बढ़ा दिया। भड़काऊ सामग्री का यह आदान-प्रदान इस बात को दर्शाता है कि कैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म वैचारिक लड़ाई के लिए युद्धक्षेत्र बन गए हैं, जो अक्सर वास्तविक जीवन के संघर्षों में बदल जाते हैं।

सितंबर में हिंदू जनजागृति वेदिक (HJV) ने भी फेसबुक पेज पर हिंदू देवताओं की बदनामी के बारे में शिकायत दर्ज कराई थी, जिससे एक बार फिर यह पता चला कि कैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अश्लील और अपमानजनक सामग्री फैलाने के लिए किया जाता है। ये घटनाएं सोशल मीडिया के उकसावे के साधन के रूप में इस्तेमाल किए जाने की कमजोरी और सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने में अनियंत्रित, भड़काऊ ऑनलाइन चर्चा के खतरों को उजागर करती हैं।

कुल मिलाकर ये घटनाएं सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका को दर्शाती हैं, जिसमें दोनों धार्मिक समुदाय गलत सूचना फैलाने, प्रतिक्रियाओं को भड़काने और सामाजिक सद्भाव को कमजोर करने के लिए इन प्लेटफॉर्म का तेजी से इस्तेमाल कर रहे हैं। कानून प्रवर्तन में असंगतता, विशेष रूप से भड़काऊ सामग्री से निपटने में, स्थिति को और भी बदतर बना देती है, जिससे प्रतिशोध का चक्र शुरू हो जाता है और समुदायों में तनाव बढ़ जाता है।

घटनाओं से उभरने वाले पैटर्न

मैंगलोर और आसपास के इलाकों में हुई घटनाओं से सांप्रदायिक तनाव से जुड़े पैटर्न और इन विभाजनों को बढ़ाने में सोशल मीडिया की भूमिका का पता चलता है:
  1. धार्मिक भावनाओं का शोषण: एक महत्वपूर्ण पैटर्न यह है कि राजनीतिक और सामुदायिक नेताओं द्वारा व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए जानबूझकर धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग किया जाता है। सार्वजनिक हस्तियों द्वारा दिए गए बयान, जैसे भाजपा विधायक हरीश पूंजा का हिंदुओं को कर लाभ सीमित करने का आह्वान और स्कूल की घटनाओं के बारे में भड़काऊ बयानबाजी, अक्सर समुदायों के बीच विभाजन पैदा करने और दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए किए जाते हैं।
  2. उत्प्रेरक के रूप में सोशल मीडिया: व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नफरत फैलाने वाले बयान, गलत सूचना और भड़काऊ सामग्री फैलाने के मंच बन गए हैं। शिक्षकों के बारे में नकली वॉयस मैसेज से लेकर धार्मिक हस्तियों और संस्थानों के बारे में अपमानजनक पोस्ट तक, ये प्लेटफॉर्म हानिकारक नैरेटिव की पहुंच को बढ़ाते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक तनाव को भड़काना आसान हो जाता है। सोशल मीडिया द्वारा प्रदान की जाने वाली गति और गुमनामी इसे भड़काने के लिए विशेष रूप से शक्तिशाली उपकरण बनाती है।
  3. धार्मिक ध्रुवीकरण और प्रतिवाद: समुदायों का ध्रुवीकरण एक पुनरावृत्त विषय बन गया है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों पर भड़काऊ पोस्ट और संदेशों के माध्यम से एक-दूसरे को भड़काने का आरोप लगाया जाता है। उदाहरण के लिए, हिंदू और मुस्लिम दोनों व्यक्तियों द्वारा प्रसारित भड़काऊ सामग्री के बारे में शिकायतें इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि दोनों पक्ष किस तरह से धार्मिक विभाजन को गहरा करने में योगदान दे रहे हैं। इन आरोपों की इर्द-गिर्द की प्रकृति संघर्ष को तेज करती है और दुश्मनी का चक्र बनाती है।
  4. कानून प्रवर्तन में असंगतियां: यह साफ तौर पर देखा जाता है कि कानून प्रवर्तन अधिकारियों की प्रतिक्रिया घटनाओं पर धार्मिक पहचान के आधार पर असंगत होती है। पुलिस अक्सर केवल तब कार्रवाई करती है जब घटना में कुछ विशेष समुदाय शामिल होते हैं, या जब वह घटना लोगों का ध्यान खींचती है, जिससे पक्षपात के आरोप लगते हैं। उदाहरण के लिए, मस्जिद के सामने चुनावी जीत का जश्न मनाते बीजेपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की कमी ने सार्वजनिक बहस को तेज कर दिया।
  5. भड़काऊ कार्यवाहियां और सार्वजनिक प्रतीकवाद: सड़कों और मस्जिदों सहित सार्वजनिक स्थान वैचारिक लड़ाइयों के अखाड़े बन गए हैं, जहां सड़कों पर नमाज पढ़ने या धार्मिक इमारतों के बाहर धार्मिक नारे लगाने जैसे प्रतीकात्मक कृत्यों का इस्तेमाल प्रतिक्रियाओं को भड़काने के लिए किया जाता है। ये कार्य, जिन्हें अक्सर धमकियों या जानबूझकर उकसावे के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तनाव बढ़ाते हैं और धार्मिक समूहों के बीच संघर्ष को बढ़ावा देते हैं।
  6. फर्जी खबरों और गलत बयानी की भूमिका: फर्जी खबरों का प्रसार तनाव को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कारक है। ऐसे उदाहरण जहां धार्मिक हस्तियों या समुदायों के बारे में फर्जी वॉयस मैसेज या झूठे दावे किए जाते हैं, यह दर्शाता है कि कैसे गलत सूचना को अंतर-सामुदायिक संबंधों को नुकसान पहुंचाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें अक्सर मनगढ़ंत आरोप होते हैं जो धार्मिक या सामुदायिक पहचान को निशाना बनाते हैं, जिससे अविश्वास और गहरी होती है।
 
धार्मिक स्थलों को अपवित्र करने की घटनाएं

15 सितंबर, 2024 को ईद मिलाद समारोह के दौरान मंगलौर के कटिपल्ला में मजीदुल्ला हुदाजुम्मा मस्जिद को निशाना बनाकर पत्थरबाजी की घटना हुई। हमले के सिलसिले में भारत शेट्टी, चेन्नाप्पा शिवानंद चालावडी, नितिन हडप, सुजीत शेट्टी, अनप्पा और प्रीतम शेट्टी के रूप में पहचाने गए छह लोगों को गिरफ्तार किया गया। माना जाता है कि यह हमला सांप्रदायिक तनाव को भड़काने के लिए किया गया था। हमलावर दो बाइकों पर आए और मस्जिद पर पत्थर फेंके, जिससे इसकी कांच की खिड़कियां क्षतिग्रस्त हो गईं। इसे इलाके में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच हिंसा भड़काने के प्रयास के रूप में देखा गया।
पुलिस आयुक्त और उपायुक्तों सहित वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व में पुलिस ने मामले की जांच के लिए तुरंत एक विशेष टीम बनाई। संदिग्धों को कुछ ही घंटों में गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे जिम्मेदार लोगों को पकड़ने में पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया का पता चलता है। हालांकि, यह तथ्य कि गिरफ्तार किए गए कुछ व्यक्तियों पर पहले भी कई आपराधिक मामले दर्ज थे, बार-बार अपराध करने वालों के लिए रोकथाम की कमी और प्रणालीगत मुद्दों के बारे में चिंता पैदा करता है, जो ऐसे व्यक्तियों को हिंसक कृत्य करने की अनुमति देते हैं।

यह हमला धार्मिक स्थलों और प्रतीकों का इस्तेमाल करके हिंसा भड़काने के बढ़ते रुझान को दर्शाता है। यह एक ऐसी रणनीति है जो मंगलुरु के राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लगातार हथियार के रूप में इस्तेमाल हो रही है। यह तथ्य कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति मुख्य रूप से स्थानीय क्षेत्रों से थे, समुदाय के भीतर गहरे होते सांप्रदायिक विभाजन को और स्पष्ट करता है, जहां स्थानीय लोग दक्षिणपंथी समूहों के प्रभाव में आकर हिंसक कृत्य करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। यह सवाल उठाता है कि स्थानीय राजनीतिक ताकतों की क्या भूमिका है, जो ऐसे वातावरण को बढ़ावा देती हैं जहां पूजा स्थलों पर हमले न केवल सहन किए जाते हैं, बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए इसे मौन रूप से प्रोत्साहित किया जा सकता है। गिरफ्तारियों के बावजूद मंगलुरु में बढ़ते सांप्रदायिक तनावों का व्यापक संदर्भ, जिसमें पहले की नफरत भरे बयान और विरोध प्रदर्शन शामिल हैं, यह संकेत देता है कि ये कृत्य एक बड़े, समन्वित प्रयास का हिस्सा हैं जिसका उद्देश्य विभाजन को और बढ़ावा देना है।
 
घटनाओं से उभरते पैटर्न

माजिदुल्ला हुदाजुम्मा मस्जिद पर पत्थरबाजी की घटना और मंगलुरु में बढ़ते सांप्रदायिक तनावों से कुछ चिंताजनक पैटर्न सामने आते हैं, जिनमें शामिल हैं:
  1. धार्मिक स्थलों को निशाना बनाना: धार्मिक स्थलों, खासकर मस्जिदों पर हमले, सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का एक बढ़ता हुआ तरीका प्रतीत होते हैं। कटिपल्ला में मस्जिद पर हमला धार्मिक स्थलों को विवाद के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करने की व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है, जो धार्मिक समुदायों के बीच तनाव को बढ़ाने का काम करता है। धार्मिक प्रतीकों को नष्ट करना अक्सर प्रतिक्रियाओं को भड़काने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे हिंसा शुरू होती है।
  2. सांप्रदायिक हिंसा में पुनरावृत्ति करने वाले अपराधी: इस मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों का कई बार अपराध में शामिल होने का इतिहास था, जो एक चिंताजनक पैटर्न को उजागर करता है, जहां पुनरावृत्ति करने वाले अपराधी सांप्रदायिक हिंसा में शामिल होते हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की मौजूदगी स्थानीय कानून प्रवर्तन की विफलता को दर्शाती है, जो इन लोगों को बढ़ते तनावों को भड़काने से रोकने में असमर्थ रही है। यह सवाल उठाता है कि कानून अपराधियों, खासकर उन लोगों से, जिनका सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास है, किस हद तक प्रभावी रूप से निपटता है।
  3. धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक लामबंदी: दक्षिणपंथी समूहों या राजनीतिक दलों से जुड़े स्थानीय लोगों की भागीदारी, जैसा कि भारत शेट्टी और उनके सहयोगियों के मामले में देखा गया है, राजनीतिक लाभ के लिए धर्म के इस्तेमाल को दर्शाता है। पत्थरबाजी की घटना जैसी भड़काऊ कृत्य अक्सर बड़ी राजनीतिक रणनीतियों से जुड़ी होती हैं, जो धार्मिक विभाजन को बढ़ाकर सत्ता को मजबूत करने की कोशिश करती हैं। यह पैटर्न राजनेताओं द्वारा अपने स्वयं के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए धार्मिक भावनाओं का शोषण करने के खतरे को उजागर करता है, भले ही इससे सामाजिक सद्भाव को कितना भी नुकसान क्यों न हो।
  4. मीडिया और सोशल मीडिया का प्रसार: सांप्रदायिक बयान फैलाने और लोगों को हिंसक कृत्यों के लिए प्रेरित करने के लिए सोशल मीडिया का एक मंच के रूप में इस्तेमाल मंगलुरु में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। नफरती बयानबाजी फैलाने या हिंसक कृत्यों का महिमामंडन करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने में योगदान देता है। यह केवल पारंपरिक मीडिया तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अधिक गुप्त डिजिटल स्थान भी शामिल हैं जो चरमपंथी विचारों को भड़काने के लिए काम करते हैं।
  5. असमान तरीके से कार्रवाई: हालांकि इस मामले में पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया थी, लेकिन कानून प्रवर्तन द्वारा सांप्रदायिक घटनाओं को संभालने के तरीके में असंगति के बारे में व्यापक चिंता है। यह इसी तरह की घटनाओं की प्रतिक्रिया में देखा जा सकता है, जहां कानूनी कार्रवाई धीमी या नहीं भी हो सकती है, जो शामिल लोगों की धार्मिक या राजनीतिक संबद्धता पर निर्भर करती है। कुछ मामलों में अपराधियों की गिरफ्तारी और सजा, जबकि अन्य में नरमी या कार्रवाई की कमी, चुनिंदा कार्रवाई का एक चिंताजनक पैटर्न दिखाती है।
  6. धार्मिक असहिष्णुता में वृद्धि: मस्जिद पर हमला कई घटनाओं के बाद हुआ है जिसमें नफरत फैलाने वाले बयान, राजनीतिक बयानबाजी और प्रतीकात्मक कार्य (जैसे विरोध प्रदर्शन) शामिल हैं, जो धार्मिक असहिष्णुता के बढ़ते मामले को दर्शाते हैं। ये घटनाएं बताती हैं कि यह क्षेत्र ज्यादा खुले तौर पर सांप्रदायिकता की ओर बढ़ रहा है, जहां धार्मिक पहचान का इस्तेमाल समुदायों को विभाजित करने और दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है।
 
अन्य सांप्रदायिक घटनाएं

रिपोर्ट में जिक्र की गई घटनाएं सांप्रदायिक तनाव में वृद्धि को दर्शाती हैं, खासकर मैंगलोर और आस-पास के क्षेत्रों में, जहां धार्मिक समूह, हिंदुत्व और मुस्लिम कट्टरपंथी दोनों ही भड़काऊ कृत्यों में लगे हुए हैं, जो मौजूदा विभाजन को और बढ़ाते हैं। मैंगलोर में शिक्षिका के निलंबन के मामले में "कार्य ही पूजा है" विषय पर एक कक्षा के दौरान हिंदू धर्म, भगवान राम और प्रधानमंत्री मोदी का अपमान करने के आरोप के बाद कई विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। विश्व हिंदू परिषद (VHP) और अन्य दक्षिणपंथी समूहों की सक्रिय भागीदारी से स्थिति और भी भड़क गई, जिन्होंने शिक्षिका के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की मांग की। यह घटना, जहां एक अभिभावक की शिकायत और उसके बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद वर्षों के अनुभव वाले एक शिक्षक को निलंबित कर दिया गया, दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा शैक्षणिक संस्थानों पर अपने वैचारिक मानकों के अनुरूप होने का दबाव डालने के परेशान करने वाले पैटर्न को उजागर करती है। असहमति को दबाने का यह दबाव न केवल अकादमिक स्वतंत्रता को दबाता है, बल्कि संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के व्यापक सिद्धांतों को भी कमजोर करता है। विधायकों जैसे राजनीतिक नेताओं ने विवाद को और हवा दी, विरोध प्रदर्शनों को राजनीतिक बल दिया, जिससे तनाव बढ़ गया। धार्मिक भावनाओं की रक्षा के नाम पर त्वरित कार्रवाई की मांग करने वाले इन समूहों की हरकतें अकादमिक स्थानों में भी किसी भी तरह की आलोचना के प्रति बढ़ती असहिष्णुता को दर्शाती हैं और समाज में बौद्धिक स्वतंत्रता और बहुलवाद के क्षरण के बारे में बड़ी चिंताएं पैदा करती हैं।

दूसरी ओर, मुस्लिम कट्टरपंथियों से जुड़ी कथित घटनाएं सांप्रदायिक हिंसा के प्रतिक्रियात्मक रूप को दर्शाती हैं, जो आक्रामकता को जारी रखती हैं। एक मामले में, भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के जश्न के बाद बोलियार में एक मस्जिद के पास कथित तौर पर भड़काऊ नारे लगाए गए थे। "तुम लोग पाकिस्तान के हो" जैसे इन भड़काऊ नारों ने दुश्मनी को भड़काया और मुस्लिम युवकों के एक समूह को हिंसक प्रतिक्रिया के लिए उकसाया, जिन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं का पीछा किया और एक विवाद में दो लोगों को चाकू से हमला कर दिया। हालांकि छुरा घोंपने की हिंसा की इस कृत्य की निंदा की गई थी। यह घटना अपने आप में व्याप्त सांप्रदायिक तनाव का संकेत है जो वर्षों से चल रहा है। हिंसक प्रतिक्रिया संभवतः नारों की उत्तेजक प्रकृति से भड़की थी, जिसने मुसलमानों को सीधे निशाना बनाया, जिससे एक अशांत स्थिति पैदा हुई, जो अंततः टकराव में बदल गई।

यह घटना एक व्यापक पैटर्न को उजागर करती है, जहां धार्मिक समुदाय कथित अपमान या उकसावे के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हैं, जिससे समूहों के बीच विभाजन और गहरा होता है। इन घटनाओं पर पुलिस की प्रतिक्रिया, हालांकि कुछ मामलों में तेज थी, निवारक की तुलना में अधिक प्रतिक्रियात्मक लगती है। हिंसा के बाद पुलिस बलों की तैनाती और शांति समितियों का गठन यह संकेत करता है कि इसके परिणामों को संभालने की कोशिश की गई, लेकिन पहले स्थान पर इन घटनाओं के बढ़ने को रोकने में असफलता कानून प्रवर्तन की सांप्रदायिक लड़ाई के मूल कारणों को निपटाने की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है।

इनमें से कई घटनाओं में राजनीतिक हस्तियों की संलिप्तता से एक और चिंताजनक पैटर्न उभर कर आता है। शिक्षक के निलंबन और बोलियार चाकू घोंपने के मामले में सांप्रदायिक विभाजन के दोनों पक्षों के स्थानीय विधायकों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने स्थिति को बिगाड़ने में भूमिका निभाई, या तो विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करके या ऐसे बयान देकर जो जनता की भावनाओं को भड़काते हैं। इन नेताओं की सक्रिय भागीदारी से पता चलता है कि सांप्रदायिक हिंसा का राजनीतिकरण तेजी से हो रहा है, दोनों पक्ष चुनावी लाभ के लिए धार्मिक मुद्दों का फायदा उठा रहे हैं। सांप्रदायिक संघर्षों का यह राजनीतिकरण मौजूदा विभाजन को और बढ़ाता है और तनाव को कम करना और भी मुश्किल बना देता है, क्योंकि धार्मिक मुद्दे राजनीतिक एजेंडे से जुड़ जाते हैं। इसके अलावा, इनमें से कई घटनाओं में कानून प्रवर्तन की चयनात्मक प्रकृति चिंताजनक है। जबकि दक्षिणपंथी समूहों के शामिल होने पर पुलिस तेजी से कार्रवाई करती दिखती है, लेकिन जब घटनाएं मुस्लिम समूहों से जुड़ी होती हैं, तो अक्सर देरी होती है या कार्रवाई नहीं होती है, जिससे पक्षपात और असमान न्याय की धारणा को और बढ़ावा मिलता है। भड़काऊ नारे और सार्वजनिक प्रदर्शनों सहित हिंदू और मुस्लिम दोनों समूहों की भड़काऊ कार्रवाइयों को रोकने में पुलिस की विफलता, कानून और व्यवस्था बनाए रखने और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने में प्रणालीगत विफलता की ओर इशारा करती है।

इसके अलावा, इन घटनाओं में सोशल मीडिया का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मैंगलोर के शिक्षक मामले में, हिंदू धर्म के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी का आरोप लगाने वाला एक वॉयस मैसेज वायरल हो गया और भाजपा कार्यकर्ताओं के मामले में भड़काऊ नारों को उजागर करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट ने आग में घी डालने का काम किया। ये वायरल संदेश अक्सर गलत सूचना फैलाते हैं, जहां धार्मिक समूह और ज्यादा ध्रुवीकृत हो जाते हैं। संभावित रूप से नुकसान पहुंचाने वाली सामग्री के तेजी से प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका सांप्रदायिक उद्देश्यों के लिए इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए अधिक प्रभावी रेगुलेशन और निगरानी की जरूरत को उजागर करती है।

कुल मिलाकर, ये घटनाएं एक खतरनाक प्रवृत्ति का उदाहरण हैं, जहां हिंदुत्व और मुस्लिम कट्टरपंथी दोनों समूह एक-दूसरे को भड़काने और जवाबी कार्रवाई करने के लिए भड़काऊ बयानबाजी और कृत्यों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अक्सर इसमें राजनीतिक हस्तियों की भागीदारी भी होती है, जो स्थिति को और बिगाड़ देती हैं। उकसावे और प्रतिशोध का यह चक्र न केवल हिंसा को बढ़ावा देता है, बल्कि कानून के शासन में विश्वास को भी खत्म करता है, क्योंकि पुलिस को सांप्रदायिक तनाव को प्रभावी ढंग से रोकने में असमर्थ या अनिच्छुक देखा जाता है। इसके अलावा, सांप्रदायिक हिंसा का बढ़ता राजनीतिकरण, चयनात्मक कानून प्रवर्तन और सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा का बेलगाम प्रसार एक अस्थिर और विभाजनकारी माहौल को बढ़ावा दे रहा है। वैचारिक और राजनीतिक प्रेरणाओं से प्रेरित सांप्रदायिक हिंसा के ये पैटर्न सामाजिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकता और भारतीय समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करते हैं।

घटनाओं से उभरने वाले पैटर्न

इन घटनाओं से एक स्पष्ट पैटर्न उभरता है जो भारत में निरंतर सांप्रदायिक हिंसा की प्रकृति को उजागर करता है, जहां हिंदुत्व और मुस्लिम कट्टरपंथी दोनों समूह भड़काऊ कार्रवाइयों में शामिल होते हैं, जो सामाजिक विभाजन को गहरा करते हैं। इस पैटर्न के प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:

1. भड़काऊ कृत्य और प्रतिशोध: घटनाएं अक्सर भड़काऊ कृत्यों या भड़काऊ बयानबाजी से शुरू होती हैं। मैंगलोर शिक्षक मामले में हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले एक बयान के कारण व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और सजा देने की मांग की गई। इसी तरह, बोलियार में चाकू घोंपने की घटना मुसलमानों को निशाना बनाकर लगाए गए भड़काऊ नारों से भड़की थी, जिसके बाद मुस्लिम युवकों ने हिंसक कृत्य किए। ये उकसावे अक्सर प्रतिशोध के चक्र को जन्म देते हैं, जिसमें प्रत्येक पक्ष अपनी धार्मिक पहचान के कथित अपमान का जवाब देता है। यह चक्र हिंसा को बनाए रखता है और तनाव को बढ़ाता है, जिससे सांप्रदायिक विभाजन मजबूत होता है।

2. राजनीतिक नेताओं की संलिप्तता: सांप्रदायिक विभाजन के दोनों पक्षों के राजनीतिक व्यक्ति या तो विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करके, भड़काऊ बयान देकर, या राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए धार्मिक समूहों के साथ जुड़कर इन घटनाओं को बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। शिक्षक निलंबन मामले में दक्षिणपंथी स्थानीय विधायकों की संलिप्तता देखी गई, जबकि दोनों समुदायों के राजनीतिक व्यक्ति अक्सर हिंसा के बाद पक्ष लेते हैं। सांप्रदायिक संघर्षों का यह राजनीतिकरण ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है और तनाव को कम करना मुश्किल बनाता है।

3. चयनात्मक कानून प्रवर्तन: इन घटनाओं की एक प्रमुख विशेषता कानून प्रवर्तन में कथित पक्षपात है। हालांकि दक्षिणपंथी समूहों के शामिल होने पर पुलिस बल तेजी से कार्रवाई कर सकते हैं, लेकिन जब घटनाएं मुस्लिम समूहों से जुड़ी होती हैं, तो देरी या कार्रवाई में कमी होती है। यह चुनिंदा प्रवर्तन असमान न्याय की धारणा में योगदान देता है, जो सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ाता है और अधिकारियों में विश्वास को खत्म करता है।

4. विभाजन को बढ़ाने में सोशल मीडिया की भूमिका: भड़काऊ सामग्री और गलत सूचना फैलाने में सोशल मीडिया की अहम भूमिका है। वायरल संदेश, वीडियो और पोस्ट अक्सर छोटी-छोटी घटनाओं को बड़े सांप्रदायिक तनाव में बदल देते हैं। मैंगलोर के शिक्षक के मामले में, एक वायरल वॉयस मैसेज विरोध को भड़काने के लिए पर्याप्त था, जबकि बोलियार की घटना को सोशल मीडिया पर भड़काऊ नारे लगाने वाले पोस्ट ने बढ़ा दिया। ऐसी सामग्री का तेजी से प्रसार ऐसे प्रतिध्वनि कक्ष बनाता है जो सांप्रदायिक पहचान को मजबूत करते हैं और नफरत को बढ़ावा देते हैं।

5. मूल कारणों को दूर करने में विफलता: यह पैटर्न सांप्रदायिक तनाव के मूल कारणों को दूर करने में प्रणालीगत विफलता को दर्शाता है। जबकि पुलिस और राजनीतिक नेता हिंसा भड़कने के बाद कार्रवाई कर सकते हैं, लेकिन निवारक उपायों या सांप्रदायिक दुश्मनी को बढ़ावा देने वाले अंतर्निहित मुद्दों को दूर करने पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। शैक्षणिक संस्थान, कानून प्रवर्तन और राजनीतिक नेता आपसी समझ को बढ़ावा देने और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के बजाय डैमेज कंट्रोल पर ध्यान देते हैं।

6. अनुष्ठानिक हिंसा के माध्यम से वृद्धि: हिंसा एक दोहराई जाने वाली और अनुष्ठानिक प्रतिक्रिया बन जाती है, जहां हर पक्ष एक दूसरे के खिलाफ प्रतिशोध लेने या जवाब देने के रूप में कृत्य करता है। यह एक खतरनाक प्रतिक्रिया चक्र पैदा करता है, जहां असहिष्णुता के मूल मुद्दों को दूर करने के बजाय, दोनों पक्ष हिंसा में एक दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं।

2022 की रिपोर्ट यहां देखी जा सकती है।

पूरी रिपोर्ट नीचे पढ़ी जा सकती है:



तुलनात्मक तालिका यहां देखी जा सकती है:
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