उन्नाव रेप कांड और बलात्कृता के पिता की त्रासद मौत के बाद यूपी में सियासी ड्रामा और लंबा खिंच रहा है। खुद भाजपा के पदाधिकारियों की शर्मिंदगी की हालत यह हो गयी है कि पार्टी की प्रवक्ता अमित शाह से गुहार लगा रही है पार्टी की इज्जत बचा लीजिए लेकिन लखनऊ से लेकर दिल्ली तक कहीं कोई सुनवाई नहीं है।
पहले तो कुलदीप सिंह सेंगर को बुधवार देर रात के नाटकीय घटनाक्रम में एसएसपी ने गिरफ्तार करने से इनकार कर दिया। पूरे मीडिया में हल्ला हुआ कि विधायक सरेंडर करने जा रहा है, लेकिन ऐसा कछु भी नहीं हुआ। उसके बाद आखिरकार यूपी पुलिस ने उन्नाव रेप केस में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ एफआइआर तो दर्ज कर लिया, लेकिन गिरफ्तारी करने के बजाय प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली और मामला सीबीआइ को सौंप दिया।
गुरुवार को दिन में राज्य के प्रधान सचिव (गृह) अरविंद कुमार और पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने एक संयुक्त प्रेस वार्ता रखी जिसमें डीजीपी के मुंह खोलते ही पत्रकारों ने आपत्ति जता दी। डीजीपी बोले, ”…माननीय विधायक के विरुद्ध जो बलात्कार का आरोप लगाया गया है…।” इतने में ही पत्रकारों की ओर से आवाज़ उठने लगी कि आखिर वे विधायक को ”माननीय” कैसे कह रहे हैं। इस पर डीजीपी ने सफ़ाई दी कि ”आरोपी को सम्मान दे रहे ळैं विधायक होने के कारण तो कोई नहीं… अभी दोषी नहीं करार दिए गए हैं वो… एक आरोप लगा है और उस आरोप की जांच, उसकी विवेचना हमने सीबीआइ को दे दिया है।”
दिलचस्प बात यह है कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीजीपी और प्रधान सचिव (गृह) के साथ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार भी मौजूद थे। मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार का काम मुख्यमंत्री को मीडिया से जुड़े मामलों पर सलाह देना होता है। सवाल उठता है कि सूबे के दो आला अधिकारियों के आखिर मीडिया सलाहकार की मौजूदगी का क्या मतलब निकाला जाए।
लखनऊ के कुछ पत्रकार इस घटना से हैरत में हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद एक पत्रकार ने फोन पर बताया, ”कल रात के ड्रामे से राज्य सरकार की बहुत छीछालेदर हुई पड़ी है। अगर मीडिया को मैनेज ही करना था तो सरकार संपादकों को फोन करवा के भी कह सकती थी… ऐसा पहली बार देखा जा रहा है।”
ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि 10 अप्रैल की शाम उन्नाव मामले में जांच के लिए गठित एसआइटी की टीम को मुख्यमंत्री की ओर से निर्देश दिया गया था कि टीम मौका मुआयना कर के 11 की शाम तक रिपोर्ट पेश करे। एसआइटी भी बन गई, एफआइआर भी हो गई और राज्य सरकार ने सीबीआइ को जांच सौंपकर सारा मामला केंद्र के पाले में डाल दिया।
एफआइआर दर्ज किए जाने पर महिला के चाचा ने संतोष जाहिर किया है।
उधर महिला ने अपने चाचा की जान को कुलदीप सिह सेंगर से खतरा बताया है
इस समूचे घटनाक्रम पर न सिर्फ विपक्षी पार्टियों ने कठोर प्रतिक्रिया दी है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी कड़ा बयान जाहिर करते हुए मामले को संगीन बताया और यूपी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है।
खुद यूपी बीजेपी की प्रवक्ता डॉ. दीप्ति भारद्वाज दो दिनों से इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को ट्वीट कर के राज्य की इज्जत बचा लेने की गुहार किए जा रही हैं।
Courtesy: Media Vigil
पहले तो कुलदीप सिंह सेंगर को बुधवार देर रात के नाटकीय घटनाक्रम में एसएसपी ने गिरफ्तार करने से इनकार कर दिया। पूरे मीडिया में हल्ला हुआ कि विधायक सरेंडर करने जा रहा है, लेकिन ऐसा कछु भी नहीं हुआ। उसके बाद आखिरकार यूपी पुलिस ने उन्नाव रेप केस में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ एफआइआर तो दर्ज कर लिया, लेकिन गिरफ्तारी करने के बजाय प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली और मामला सीबीआइ को सौंप दिया।
गुरुवार को दिन में राज्य के प्रधान सचिव (गृह) अरविंद कुमार और पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने एक संयुक्त प्रेस वार्ता रखी जिसमें डीजीपी के मुंह खोलते ही पत्रकारों ने आपत्ति जता दी। डीजीपी बोले, ”…माननीय विधायक के विरुद्ध जो बलात्कार का आरोप लगाया गया है…।” इतने में ही पत्रकारों की ओर से आवाज़ उठने लगी कि आखिर वे विधायक को ”माननीय” कैसे कह रहे हैं। इस पर डीजीपी ने सफ़ाई दी कि ”आरोपी को सम्मान दे रहे ळैं विधायक होने के कारण तो कोई नहीं… अभी दोषी नहीं करार दिए गए हैं वो… एक आरोप लगा है और उस आरोप की जांच, उसकी विवेचना हमने सीबीआइ को दे दिया है।”
दिलचस्प बात यह है कि इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीजीपी और प्रधान सचिव (गृह) के साथ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार भी मौजूद थे। मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार का काम मुख्यमंत्री को मीडिया से जुड़े मामलों पर सलाह देना होता है। सवाल उठता है कि सूबे के दो आला अधिकारियों के आखिर मीडिया सलाहकार की मौजूदगी का क्या मतलब निकाला जाए।
लखनऊ के कुछ पत्रकार इस घटना से हैरत में हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद एक पत्रकार ने फोन पर बताया, ”कल रात के ड्रामे से राज्य सरकार की बहुत छीछालेदर हुई पड़ी है। अगर मीडिया को मैनेज ही करना था तो सरकार संपादकों को फोन करवा के भी कह सकती थी… ऐसा पहली बार देखा जा रहा है।”
ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि 10 अप्रैल की शाम उन्नाव मामले में जांच के लिए गठित एसआइटी की टीम को मुख्यमंत्री की ओर से निर्देश दिया गया था कि टीम मौका मुआयना कर के 11 की शाम तक रिपोर्ट पेश करे। एसआइटी भी बन गई, एफआइआर भी हो गई और राज्य सरकार ने सीबीआइ को जांच सौंपकर सारा मामला केंद्र के पाले में डाल दिया।
एफआइआर दर्ज किए जाने पर महिला के चाचा ने संतोष जाहिर किया है।
उधर महिला ने अपने चाचा की जान को कुलदीप सिह सेंगर से खतरा बताया है
इस समूचे घटनाक्रम पर न सिर्फ विपक्षी पार्टियों ने कठोर प्रतिक्रिया दी है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी कड़ा बयान जाहिर करते हुए मामले को संगीन बताया और यूपी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है।
खुद यूपी बीजेपी की प्रवक्ता डॉ. दीप्ति भारद्वाज दो दिनों से इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को ट्वीट कर के राज्य की इज्जत बचा लेने की गुहार किए जा रही हैं।
Courtesy: Media Vigil