क्या 'संघी दलित' संतोषानंद ने ऐसा कहा होगा ?

Written by भंवर मेघवंशी | Published on: April 11, 2018
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उर्फ आरएसएस 2 अप्रेल के स्वतस्फूर्त भारतबन्द के पीछे की ताकतों की गहन खोज बीन में लगा है , इसी सिलसिले में 7 अप्रेल 2018 की रात 8 बजे से 11 बजे तक भीलवाड़ा जिला मुख्यालय पर स्थित संघ कार्यालय " संस्कृति भवन " पर भी एक विशेष बैठक आयोजित हुई।



प्राप्त जानकारी के मुताबिक संघ ने दलितों की प्रत्येक जाति में से अपने दो दो विश्वस्त स्वयंसेवक बुलाये और उनसे जानना चाहा कि अचानक इन दलित भाइयों को क्या हो गया कि वे ' हिन्दू हिन्दू - भाई भाई ' के बजाय 'दलित मुस्लिम एकता ज़िन्दाबाद' के नारे लगाने लग गये ?

यह भी सवाल आया कि इतने नीले झंडे शहर में कहाँ से आये ? ये एक जैसे नारे ,एक जैसा सॉन्ग डीजे पर पूरे जिले, प्रदेश और देश मे कैसे गूंजा ?

आरएसएस यह भी जानने का इच्छुक था कि इस आंदोलन को फंड कौन कर रहा था और क्या कह कर लोगों को सड़कों पर उतारा गया ? क्या उन्हें आरक्षण के नाम पर उकसाया गया ,क्या इसके पीछे विदेशी ताकतें और विदेशी धन है ,जो वृहत्तर हिंदू समाज को तोड़ने का काम कर रहा है ।

कमोबेश इन्हीं प्रश्नों को लेकर 8 अप्रेल 18 की सुबह संघ विचार परिवार के विविध क्षेत्रों से जुड़े कार्यकर्ताओं की भी बैठक हुई ,उसकी चर्चा फिर कभी करेंगे ,फ़िलहाल 7 अप्रेल की रात शुद्ध संघी दलितों के संघ कार्यालय में हुए जमावड़े और उसमें किये गये गहन चिंतन और विचार विमर्श की करते है ।

तो चिंतित भाईसाहब लोगों ने काफी गहराई में उतर कर पाया कि इस सारे फसाद की जड़ में मैं (भंवर मेघवंशी) हूँ , इस महान खोज का इकलौता श्रेय जिस महाविभूति को जाता है वो है परम् पूज्य प्रातः स्मरणीय अत्यंत आदरणीय इस सदी के महान बुद्धिजीवी वाल्मीकि समाज के रत्न संतोषानंद गारू ।

ये सज्जन भीलवाडा के माणिक्य लाल वर्मा कॉलेज में पढ़ाते हैं, बचपन से ही हाफपैंट पहना सीख गये थे ,बाद में ग्रोथ किये अखिल भारतीय बच्चा पार्टी में नियुक्त हो गये ,पता चला कि अभी भी बच्चा पार्टी में कोई पद प्राप्त है ,जिससे कईं बरस से चिपके हुये है ,भीलवाड़ा जिले की शाहपुरा सुरक्षित सीट से विधायक बनने के सपने दिन में भी खुली आँखों से देखते है ,इसी में उनको संतोष है और यही गारू जी को आनंद देने वाला विषय है।

संतोष जी का इतना सुदीर्घ परिचय इसलिए देना पड़ा ,क्योंकि मैं यहाँ पर उनकी महान खोज से आपको अवगत कराने जा रहा हूँ , उन्होंने अपने खुफिया संबंधों और अंतर्मन की ताकत तथा सारी इंद्रियों से प्राप्त आभासों के ज़रिये जो खोजा उससे शाखा शृगालों को लाभान्वित किया है ।

संघ के भीतरी सूत्रों से प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक -2 अप्रेल के भारतबन्द के पीछे के लोगों के बारे में सनसनीखेज खुलासा करते हुये संतोषानंद जी ने सदन को अवगत कराया कि -" एक भंवर मेघवंशी नामक दलित नेता है ,जो हवाई जहाजों में आता जाता है,एनजीओ में काम करता है ,विदेश से पैसा लेता है ,उसने जैसे देश को तोड़ने का ठेका ले रखा है ,ऐसे गद्दारों को हम कभी सफल नहीं होने देंगे ।"

महान अन्वेषक संतोषानंद आगे कहते है कि - "सारे दंगे भी इसी व्यक्ति ने भड़काये है ,बाकी संघ अखण्ड भारत बना कर रहेगा ,संघ सब जातियों की चिंता करने में समर्थ है ,वह भोले भाले दलितों को गुमराह नही होने देगा आदि इत्यादि ...!"

संघ संतोष जी की रिसर्च ,बुद्धिमत्ता और अथाह जानकारियों से जरूर लाभान्वित हुआ होगा ,मगर जिले भर में यह मैसेज जाने के बाद न केवल वाल्मीकि समाज बल्कि सम्पूर्ण दलित आदिवासी समाज में इसकी कड़ी प्रतिक्रिया हो रही है ,लोग कौम के गद्दारों को पहचानने की स्थिति में आ गये है ,उन्हें लग रहा है कि जब पूरा समुदाय अपने संवैधानिक अधिकारों की प्राप्ति हेतु सड़कों पर था,तब ये संघी जासूस क्या भूमिका निभा रहे थे ,खासतौर पर युवा इस बात से खफ़ा है कि आरएसएस ऐसे समाज से कटे हुए लोगों को दलितों का नेता बना कर क्यो थोंपने की कोशिश में है ?

खैर ,हर दौर में इस प्रवृत्ति के लोग रहे है,बाबा साहब की बदौलत मिले आरक्षण की मलाई खा कर ये लोग किन्ही और के गीत गाते है ,अपने ही वर्ग शत्रुओं की दलाली करते है ,अपने लोगों को बदनाम करने और मरवा तक डालने का काम भी कर बैठते है । हर दौर में इस तरह के संघप्रिय लोग पाये जाते है।

अगर वास्तव में संतोषानंद ने उस रात यह सब कहा हो तो मैं संतोष जी को धन्यवाद ज्ञापित करना चाहता हूं कि उन्होंने स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े स्वस्फूर्त दलित आदिवासी आंदोलन की सफलता का श्रेय मुझे दे कर गौरवान्वित किया है !

साधुवाद संतोष भाई ,काश मैं ऐसे हज़ारों आंदोलन और देख पाऊं और उनमें शिरकत करूँ ,ताकि आप जैसे लोग इसकी सूचना दे कर अपने नम्बर संघी भाईसाहबों के यहां बढ़वा सके ।
मैं आपका दर्द समझ सकता हूँ , भले ही आप पक्के संघी है तो क्या हुआ ? हैं तो दलित वंचित वर्ग से आने वाले स्वयंसेवक ही ना ?

-भंवर मेघवंशी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता है )

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