यह जो युवक मेरे सामने बैठा है, बेरोजगार है। सिर्फ बेरोजगार ही नहीं है, पढ़ा लिखा बेरोजगार है। पढ़े- लिखे बेरोजगार को समाज धरती का बोझ समझता है। घर वाले उसे बैल समझते हैं। वह बैल जो उस किसान के द्वार पर बंधा है जिसके पास खेती के लिए जमीन नहीं है। बिना पढ़े लिखे बेरोजगारों के साथ एक फायदे की बात ये हो जाती है कि उन्हें जमाने के ताने नहीं सुनने पड़ते।
Image Courtesy : Pradeep Gaur/Mint
तो मैं अभी बात मेरे सामने बैठे बेरोजगार की कर रहा था जो बदनसीबी से पढ़ा लिखा भी है अक्सर मेरे पास आ जाया करता है। किसी काम से नहीं, क्योंकि उसके पास कोई काम नहीं है। वह समय काटने मेरे पास आ जाता है। समय काटना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है। वह समय काट रहा है। बेरोजगार होते हुए भी सबसे मुश्किल काम कर रहा है। समय काटते हुए आदमी ऊबने लगता है। उसे मनोरंजन चाहिए होता है। आम आदमी के पास मनोरंजन के साधन कम होते हैं। वह बातों से ही मनोरंजन हासिल करना चाहता है।
यह जो बेरोजगार है। एक दिन समय काटते हुए मनोरंजन करने के उद्देश्य कहने लगा- फला आदमी कैरेक्टर का ढीला है। वह उस औरत से रोज मिलता है।
मैंने कहा- फिर हम क्या करें ? कोई आदमी किसी से मिलता है तो हम क्यों दुःखी या खुश होएं ?
वह हंसने लगा। उसे मन मुताबिक उत्तर नहीं मिला। वह चाहता था कि मैं उसके साथ मिलकर उस फला आदमी की खिंचाई करूं। पर मैंने ऐसा नहीं किया। वह मन ही मन उदास हुआ। भारतीय समाज में महिलाओं से संबंधित बातें लोगों को खाने में अचार सा फील देती हैं। चल रही बात उबाऊ हो रही हो तो 'किसी महिला पुरुष के संबंध' की चर्चा करके महफ़िल में जान डाल दी जाती है।
'किसी महिला पुरुष के संबंध' की चर्चा कभी कभी राष्ट्रीय बहस का मुद्दा भी बन जाती हैं। मैंने अक्सर देखा है, जब सरकार महंगाई, बेरोजगारी या भ्रष्ट्राचार से घिर जाती है तो मुद्दों से जनता को भटकाने के लिए नेहरू और गांधी की विदेशी महिलाओं के साथ फोटोशॉप की हुई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल करवाने लगती है। ऐसी तस्वीरें जिनमें नेहरू किसी महिला से गले मिल रहे हैं, किसी महिला को सिगरेट दे रहे हैं, गांधी किसी महिला से हंसकर बात कर रहे हैं। जनता खूब मनोरंजन लेती है। नेहरू को, गांधी को पढ़े लिखे बुद्धिजीवी भी खूब गरियाते हैं। जनता का इनसे मोह भंग हो जाता है।
मैं पूछता हूँ, नेहरू, गांधी या कोई भी नेता किसी महिला से गले मिल रहा है, हंसकर बात कर रहा है तो इसमें आपत्ति जैसा क्या है !! हमें तो खुश होना चाहिए कि आज से 80- 90साल पहले ही नेहरू या गांधी इतने प्रोग्रेसिव थे। महिलाओं को बराबर का दर्जा देते थे।
ये भारतीय जनता है। इसका दंगाइयों, बलात्कारियों, भ्रष्टाचारियों से मोहभंग नहीं होता। ये उन्हें संसद में भेजती है। सेकुलरिज्म की बात करने वाले नेहरू, गांधी इसे चुभते हैं।
मेरे सामने बैठा पढ़ा लिखा बेरोजगार युवक अब ऊबने लगता है। उसे बात में अचार नहीं मिल रहा है। फिर वह अपने पूर्व प्रेमिका की बात करता है जिसकी अब शादी हो चुकी है। मैं उसे सामाजिक मुद्दों पर खींच लाता हूँ। वह उदास सा उठते हुए जाने लगता है। मैं उदास सा उसकी तरफ देखते हुए बस यही सोचता हूँ- इंसान के सबसे बुरे दिन उसके बेरोजगारी वाले दिन होते हैं।
Image Courtesy : Pradeep Gaur/Mint
तो मैं अभी बात मेरे सामने बैठे बेरोजगार की कर रहा था जो बदनसीबी से पढ़ा लिखा भी है अक्सर मेरे पास आ जाया करता है। किसी काम से नहीं, क्योंकि उसके पास कोई काम नहीं है। वह समय काटने मेरे पास आ जाता है। समय काटना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है। वह समय काट रहा है। बेरोजगार होते हुए भी सबसे मुश्किल काम कर रहा है। समय काटते हुए आदमी ऊबने लगता है। उसे मनोरंजन चाहिए होता है। आम आदमी के पास मनोरंजन के साधन कम होते हैं। वह बातों से ही मनोरंजन हासिल करना चाहता है।
यह जो बेरोजगार है। एक दिन समय काटते हुए मनोरंजन करने के उद्देश्य कहने लगा- फला आदमी कैरेक्टर का ढीला है। वह उस औरत से रोज मिलता है।
मैंने कहा- फिर हम क्या करें ? कोई आदमी किसी से मिलता है तो हम क्यों दुःखी या खुश होएं ?
वह हंसने लगा। उसे मन मुताबिक उत्तर नहीं मिला। वह चाहता था कि मैं उसके साथ मिलकर उस फला आदमी की खिंचाई करूं। पर मैंने ऐसा नहीं किया। वह मन ही मन उदास हुआ। भारतीय समाज में महिलाओं से संबंधित बातें लोगों को खाने में अचार सा फील देती हैं। चल रही बात उबाऊ हो रही हो तो 'किसी महिला पुरुष के संबंध' की चर्चा करके महफ़िल में जान डाल दी जाती है।
'किसी महिला पुरुष के संबंध' की चर्चा कभी कभी राष्ट्रीय बहस का मुद्दा भी बन जाती हैं। मैंने अक्सर देखा है, जब सरकार महंगाई, बेरोजगारी या भ्रष्ट्राचार से घिर जाती है तो मुद्दों से जनता को भटकाने के लिए नेहरू और गांधी की विदेशी महिलाओं के साथ फोटोशॉप की हुई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल करवाने लगती है। ऐसी तस्वीरें जिनमें नेहरू किसी महिला से गले मिल रहे हैं, किसी महिला को सिगरेट दे रहे हैं, गांधी किसी महिला से हंसकर बात कर रहे हैं। जनता खूब मनोरंजन लेती है। नेहरू को, गांधी को पढ़े लिखे बुद्धिजीवी भी खूब गरियाते हैं। जनता का इनसे मोह भंग हो जाता है।
मैं पूछता हूँ, नेहरू, गांधी या कोई भी नेता किसी महिला से गले मिल रहा है, हंसकर बात कर रहा है तो इसमें आपत्ति जैसा क्या है !! हमें तो खुश होना चाहिए कि आज से 80- 90साल पहले ही नेहरू या गांधी इतने प्रोग्रेसिव थे। महिलाओं को बराबर का दर्जा देते थे।
ये भारतीय जनता है। इसका दंगाइयों, बलात्कारियों, भ्रष्टाचारियों से मोहभंग नहीं होता। ये उन्हें संसद में भेजती है। सेकुलरिज्म की बात करने वाले नेहरू, गांधी इसे चुभते हैं।
मेरे सामने बैठा पढ़ा लिखा बेरोजगार युवक अब ऊबने लगता है। उसे बात में अचार नहीं मिल रहा है। फिर वह अपने पूर्व प्रेमिका की बात करता है जिसकी अब शादी हो चुकी है। मैं उसे सामाजिक मुद्दों पर खींच लाता हूँ। वह उदास सा उठते हुए जाने लगता है। मैं उदास सा उसकी तरफ देखते हुए बस यही सोचता हूँ- इंसान के सबसे बुरे दिन उसके बेरोजगारी वाले दिन होते हैं।