Image Courtesy: Change.org
गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी ने विकलांगों को निराश किया है। विकलांगों के इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण मसलन व्हील चेयर, क्रच, सुनने की मशीन और चलने में मदद देने वाले अन्य उपकरण 5 से 18 फीसदी के टैक्स दायरे में होंगे। एक तरफ मोदी सरकार विकलांगों को दिव्यांग जन कह कर सम्मान देना चाहती है लेकिन दूसरी ओर इनकी सहूलियतों का ख्याल रखने के वक्त वह अपनी इन ‘भावनाओं’ को भूल जाती है।
जीएसटी के दायरे में विकलांगों के इस्तेमाल की चीजें आएंगी उनमें व्हील चेयर, सुनने की मशीन, इम्प्लाटंस, पैरों और एड़ियों की दिक्कतों को दूर करने के लिए प्रोस्टेथिक्स और ऑर्थोटिक्स जैसे कृत्रिम पैर शामिल हैं। विकलांगों के इस्तेमाल होने वाली साइकिलें, इंट्राऑक्युलर लेंस और चश्मे भी जीएसटी के तहत टैक्स दायरे में आएंगे। जीएसटी के तहत व्हील चेयर और इस तरह के अन्य आइटमों पर पांच फीसदी का टैक्स लगा दिया गया है। ब्रेल पेपर, ब्रेल टाइपराइटर और ब्रेल घड़ियों पर भी अब पांच फीसदी टैक्स लगेगा। भले ही बेल प्रिंटेड किताबों को छूट दी गई है लेकिन विकलांगों के लिए खास तौर पर बनाई गई कारों पर 18 फीसदी का टैक्स थोप दिया गया है।
सरकार ने जीएसटी के रेट तय करते वक्त न तो विकलांगों की जरूरतों का ध्यान रखा और न ही इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ कोई सलाह-मशिवरा किया। मसलन नेत्रहीन लोगों के लिए ब्रेल लिपि में जीएसटी की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। कई समूहों ने अपने लिए जीएसटी में सहूलियत हासिल की है। लेकिन विकलांगों को यह छूट नहीं मिल सकी।
कृत्रिम अंग बनाने वाली कंपनी आर्टिफिशियल लिम्ब्स मैन्यूफैक्चरिंग कॉरपोरेशन की ओर से बने कृत्रिम अंग और अन्य सहायक उपकरण कई रजिस्टर्ड गैर सरकारी संगठनों की से बांटे जाते हैं। अगर इन उपकरणों पर जीएसटी के तहत टैक्स लगाए जाते हैं तो इन गतिविधियों की रफ्तार भी धीमी होगी। इधर, बेहद गरीबों के लिए व्हील चेयर और ट्राइसाइकिल बांटने की गति बेहद धीमी रही है। 2015 में देश भर में इस तरह के सिर्फ 134 वितरण हुए थे। आर्टिफिशियल लिम्ब्स मैन्यूफैक्चरिंग कॉरपोरेशन ने 2016 में 766 वितरण कैंपों में 1.58 लाख विकलांगों को कृत्रिम अंग देने का दावा किया है।
विकलांगों की सहूलियतों के लिए नए नियम बनाने में मौजूदा सरकार पिछड़ी हुई दिखती है। सार्वजनिक स्थलों विकलांगों की सुविधाएं न के बराबर है। उनके लिए शौचालय, बसों और ट्रेनों में चढ़ने की खास सुविधाएं लगभग नदारद है। ऐसे में विकलांगों के उपकरणों को जीएसटी के दायरे में लाकर मोदी सरकार ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।