इतिहास

January 27, 2020
कहानी एकदम हिंदुस्तान की तरह दिलचस्प है. कुछ सदी पहले की बात है. गुजरात के मोरबी में एक जातीय समुदाय है मोड मोदी. इसके एक परिवार में कोई औलाद नहीं थी. उनके बच्चे तो होते थे, लेकिन वे जिंदा नहीं बचते थे. यहीं पर एक पीर हुआ करते थे हजरत दवलशा पीर. परिवार ने पीर की दरगाह में बच्चे के लिए दुआ मांगी. दुआ कबूल हो गई और परिवार में 7 बच्चे हुए. इसके पीछे मेडिकल साइंस भले तर्क दे कि बच्चे पीर की...
January 25, 2020
आज नेता और पार्टी कार्यकर्ता, क्षेत्रीय पदाधिकारी के बीच आत्मीयता घट रही है, दूरी बढ़ रही है, संवाद ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद के आगे बढ़ नहीं पाता। बहुत कम नेता अपनी प्रकृति में लोकतांत्रिक रह गए हैं जो बराबरी के सखा-भाव से कार्यकर्ताओं और नागरिकों से पेश आए जैसा कर्पूरी जी किया करते थे। पिछड़ों-दबे-कुचलों के उन्नायक, बिहार के शिक्षा मंत्री, एक बार उपमुख्यमंत्री (5.3.67 से 31.1.68) और दो बार...
January 22, 2020
1946 में जब आज़ादी की लड़ाई चरम सीमा पर थी और देश के कोने कोने में लाखों की भीड़ सड़क पर डंडे गोली खा रही थी, उसी समय राष्ट्रीय सेवा संघ ने अपने तीन प्रचारकों को चुपके से असम भेज दिया। उनका काम था सरसंघचालक गोलवलकर के विचारों का प्रचार करना। क्या था गोलवलकर का पैगाम? यही कि "राष्ट्र पांच तत्वों पर आधारित है - भूगोल, जाति, धर्म, संस्कृति, और भाषा; मुसलमान हमलावरों के आने के पहले ऐसा ही हिन्दू...
January 14, 2020
नई दिल्ली: सर्च इंजन गूगल ने मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी की 101 वीं जयंती डूडल बनाकर मनाई। प्रेम की कविताओं से लेकर बॉलीवुड गीतों, पटकथाओं तक लिखने में माहिर कैफ़ी आज़मी 20वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक थे।  उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में पैदा हुए सैयद अतहर हुसैन रिजवी यानी कैफ़ी आज़मी ने 11 साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिखी थी। कैफ़ी आज़मी उस वक्त 1942 में हुए महात्मा गांधी के...
December 11, 2019
CAB 2019, नागरिकता में भेदभाव और अब एक राष्ट्रव्यापी एनपीआर-एनआरसी: क्या भारत जर्मन तरीके से आगे बढ़ रहा है? 1930 के दशक में सत्ता में आने के बाद, जर्मनी की संसद ने अपने देश में यहूदियों, रोमनों, अश्वेतों और विरोधियों के खिलाफ भेदभाव करने वाले कानूनों को पारित किया। इस दौरान कहा गया कि ये कानून जर्मन रक्त शुद्धता और जर्मन सम्मान के संरक्षण के लिए बनाए गए हैं। दुनिया ने जर्मनी को अन्य तरीकों से...
November 28, 2019
हमारे देश में तवलीन सिंह जैसे 'भोले-भाले' राजनैतिक विश्लेषकों/पत्रकारों की कमी नहीं है जो प्रधान मंत्री, मोदी के नेतृत्व में आरएसएस/भाजपा शासकों के जनता और देश विरोधी विघटनकारी विचारों और कार्यकलापों के प्रति सजग हो उठे हैं। यह अच्छी बात है। हालांकि सच यह है की हिन्दुत्वादी शासकों की टोली जो खिलवाड़ प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र और इस की जनता के साथ आज कर रही है वे आरएसएस की पुरानी...
November 9, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मंदिर मामले पर सुनवाई के लिए एक Constitutional Bench का गठन किया है। पर आखिरकार राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद अयोध्या मुद्दा है क्या ? सुनिए अयोध्या की कहानी , तीस्ता सीतलवाड़ की ज़ुबानी.
November 5, 2019
जयपुर में जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के साझे प्रयास के अंतर्गत 15 से 17 नवंबर, तीन दिन का 'जन साहित्य पर्व' मनाया जा रहा है. इस बार जलियांवाला बाग जनसंहार के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं. जलियांवाला के शहीदों को समर्पित तीन दिन के इस आयोजन में पिछले सौ बरसों के भारत के विकास का लेखा जोखा लेने की कोशिश की जाएगी. साहित्य, सियासत, सिनेमा, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पत्रकारिता अलग अलग...
November 1, 2019
आरएसएस भारत में अल्पसंख्यकों को दो श्रेणियों में विभाजित करने से कभी नहीं थकता है। प्रथम श्रेणी में हैं जैन, बौद्ध तथा सिख जो भारत में ही स्थापित धर्मों का अनुसरण करते हैं। दूसरी श्रेणी में है मुस्लिम एवं ईसाई जो ‘विदेशी’ धर्मों के अनुयायी हैं। उसका दावा है कि वास्तविक समस्या दूसरी श्रेणी के साथ है जिनका हिन्दूकरण करने की जरूरत है जबकि प्रथम श्रेणी को अल्पसंख्यकों के लेकर कोई समस्या...
October 21, 2019
अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत: 7 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने बम्बई में अपनी बैठक में एक क्रांतिकारी प्रस्ताव पारित किया जिसमें अंग्रेज शासकों से तुरंत भारत छोड़ने की मांग की गयी थी। कांग्रेस का यह मानना था कि अंग्रेज सरकार को भारत की जनता को विश्वास में लिए बिना किसी भी जंग में भारत को झोंकने का नैतिक और कानूनी अधिकार नहीं है।  अंग्रेजों से भारत तुरंत छोड़ने का यह...