आगामी पांच अगस्त को उस स्थान पर राम मंदिर का निर्माण शुरू किया जाना प्रस्तावित है जहाँ एक समय बाबरी मस्जिद हुआ करती थी. इसी बीच, इस मुद्दे पर दो विवाद उठ खड़े हुए हैं. पहला यह कि कुछ बौद्ध संगठनों ने दावा किया है कि मंदिर के निर्माण के लिए ज़मीन का समतलीकरण किये जाने के दौरान वहां एक बौद्ध विहार के अवशेष मिले हैं, जिससे ऐसा लगता है उस स्थल पर मूलतः कोई बौद्ध इमारत थी. दूसरे, नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने दावा किया है कि वह अयोध्या, जिसमें राम जन्में थे, दरअसल, नेपाल के बीरगंज जिले में है. यह कहना मुश्किल है कि ओली ने इसी मौके पर यह मुद्दा क्यों उठाया. उनके इस दावे की उन्हीं के देश में जम कर आलोचना हुई जिसके बाद उनके कार्यालय ने एक स्पष्टीकरण जारी कर कहा कि प्रधानमंत्री का इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का नहीं था.
रामकथा को लेकर यह पहला विवाद नहीं है. सन 1980 के दशक में जब महाराष्ट्र सरकार ने बी.आर. आंबेडकर के वांग्मय का प्रकाशन शुरू किया था उस समय भी उनकी पुस्तक ‘रिडल्स ऑफ़ राम एंड कृष्ण’ को इस संग्रह में शामिल किये जाने का भारी विरोध हुआ था. इस पुस्तक में आंबेडकर ने शम्बूक नामक शूद्र की तपस्या करने के लिए हत्या करने, जनप्रिय राजा बाली को धोखे से मारने और अपनी गर्भवती पत्नि सीता को त्यागने के लिए भगवान राम की आलोचना की है. इसके अलावा, सीता को अग्निपरीक्षा देने के लिए मजबूर करने के लिए भी आंबेडकर राम की निंदा करते हैं.
आंबेडकर के पहले जोतीराव फुले ने राम द्वारा छुप कर बाली को बाण मारने की निंदा की थी. बाली एक स्थानीय राजा था, जो अपने प्रजाजनों का बहुत ख्याल रखता था और उनमें बहुत लोकप्रिय था. पेरियार ई.वी. रामासामी नायकर ने भगवान राम के व्यक्तित्व के इन पक्षों पर केन्द्रित ‘सच्ची रामायण’ लिखी थी. रामकथा के प्रचलित संस्करण के पात्र जिस तरह का लैंगिक और जातिगत भेदभाव करते दिखते हैं, पेरियार उसके कटु आलोचक थे. पेरियार तमिल अस्मिता के पैरोकार थे. उनके अनुसार, रामायण की कहानी ऊंची जातियों के संस्कृतनिष्ठ, जातिवादी उत्तर भारतीयों द्वारा राम के नेतृत्व में दक्षिण भारत के लोगों पर अपने आधिपत्य स्थापित करने के ऐतिहासिक घटनाक्रम का रूपक मात्र है. पेरियार के अनुसार, रावण, प्राचीन द्रविड़ों के सम्राट थे और उन्होंने सीता का अपहरण केवल अपनी बहन शूर्पनखा के अपमान और उसके विकृत किये जाने का बदला लेने के लिए किया था. पेरियार के अनुसार, रावण एक महान भक्त और एक नेक और धर्मात्मा व्यक्ति थे.
बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद सन 1993 में सफ़दर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (सहमत) द्वारा पुणे में लगाई गई एक प्रदर्शनी में तोड़-फोड़ की गई थी. वह इसलिए क्योंकि वहां बौद्ध जातक कथा पर आधारित एक पेंटिंग प्रदर्शित की गई थी, जिसमें सीता को राम की बहन बताया गया था. इस कथा के अनुसार, राम और सीता उच्च जाति के एक ऐसे कुल से थे जिसके सदस्य अपनी पवित्रता बनाये रखने के लिए अपने कुल से बाहर शादी नहीं करते थे.
कुछ वर्ष पूर्व, आरएसएस की विद्यार्थी शाखा एबीवीपी ने ए.के. रामानुजन के लेख ‘थ्री हंड्रेड रामायणास’ को पाठ्यक्रम से हटाने की मांग को लेकर आन्दोलन किया था. इस लेख में रामानुजन बताते हैं कि रामायण के कई संस्करण हैं जिनमें अनेक विभिन्नताएं हैं और जिनमें घटनाओं का स्थान अलग-अलग बताया गया है.
संस्कृत के विद्वान और भारत में पुरातत्वीय उत्खनन के अगुआ एच.डी. सांकलिया के अनुसार यह हो सकता है कि रामायण में वर्णित अयोध्या और लंका, आज की अयोध्या और लंका से अलग कोई स्थान रहे हों. उनके अनुसार, लंका शायद आज के मध्यप्रदेश में कोई स्थान रहा होगा क्योंकि इस बात की प्रबल संभावना है कि ऋषि वाल्मीकि, विंध्य पर्वतमाला के दक्षिण में स्थित इलाके के बारे में कुछ नहीं जानते होंगे. आज जिसे श्रीलंका कहा जाता है, उसका पुराना नाम ताम्रपर्णी था. रामायण के अलग-अलग आख्यान भारत ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में पाए जाते हैं और इनमें से कई बहुत दिलचस्प हैं. पौला रिचमन की पुस्तक ‘मेनी रामायणास’ (ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) में भगवान राम की विभिन्न कथाओं की दिलचस्प झलकियाँ दी गयीं हैं.
भारत में राम कथा का जो संस्करण आज सबसे अधिक प्रचलित है वह वाल्मीकि की ‘रामायण’, गोस्वामी तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ और रामानंद सागर के टीवी सीरियल ‘रामायण’ पर आधारित है. इस सीरियल का कोरोना लॉकडाउन के दौरान पुनर्प्रसारण किया गया. राम के कथा का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है जिनमें बाली, संथाली, तमिल, तिब्बती और पाली शामिल हैं. पश्चिमी भाषाओं में इसके अनेकानेक संस्करण हैं, जिनकी कथाएँ एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं. थाईलैंड में प्रचलित रामकीर्ति या रामकियेन संस्करण में भारतीय संस्करण के विपरीत, हनुमान ब्रह्मचारी नहीं हैं. रामायण के जैन और बौद्ध संस्करणों में राम, क्रमशः महावीर और गौतम बुद्ध के अनुयायी हैं. इन दोनों संस्करणों में रावण को एक विद्वान और महान ऋषि बताया गया है. कुछ संस्करणों, जो विदेशों में लोकप्रिय हैं, में सीता को रावण की पुत्री बताया गया है. मलयालम कवि वायलार रामवर्मा की कविता ‘रावणपुत्री’ भी यही कहती है. कई संस्करणों के अनुसार, दशरथ अयोध्या के नहीं वरन वाराणसी के राजा थे.
फिर, रामायण के एक वह संस्करण भी है जो महिलाओं में प्रचलित है’. तेलुगू ब्राह्मण महिलाओं द्वारा जो ‘महिला रामायण गीत’ गाए जाते हैं, उन्हें रंगनायकम्मा ने संकलित किया है. इनमें महिलाओं की केन्द्रीय भूमिका है. इन गीतों में बताया गया है कि अंत में सीता राम पर भारी पडतीं हैं और शूर्पनखा राम से बदला लेने में सफल रहती है.
इन आख्यानों की समृद्ध विविधता से पता चलता है कि भगवान कथा की कथा दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में भी लोकप्रिय है और इसके कई रूप हैं. राममंदिर आन्दोलन पूरी तरह से रामकथा के उस आख्यान पर केन्द्रित है जिसे वाल्मीकि, तुलसीदास और रामानंद सागर ने प्रस्तुत किया है. उन तीनों में भी कुछ मामूली अंतर हैं, विशेषकर लैंगिक और जातिगत समीकरणों के सन्दर्भ में. वर्तमान में भारत में प्रचलित आख्यान, लैंगिक और जातिगत पदक्रम के पैरोकार हैं. और यही पदक्रम, सांप्रदायिक राजनीति के मूल में भी हैं. रामकथा के इस संस्करण के जुनूनी समर्थक पैदा कर दिए गए हैं. वे इस कथा के हर उस संस्करण, हर उस व्याख्या पर हमलावर हैं, जो सांप्रदायिक राजनीति के हितों से मेल नहीं खाते.
रामायण पर विद्वतापूर्ण रचनायें, तत्कालीन समाज में व्याप्त मूल्यों और परम्पराओं में विविधता को रेखांकित करतीं हैं. हर राष्ट्रवाद, अतीत का अपना संस्करण रचता है. एरिक होब्स्वाम के अनुसार, “राष्टवाद के लिए इतिहास वह है जो अफीमची के लिए अफीम”. ऐसा लगता है कि विभिन्न प्रकार के राष्ट्रवाद, इतिहास की नहीं वरन पौराणिकी के भी वही संस्करण चुनते हैं जिनसे उनके निहित स्वार्थों की पूर्ती होती हो.
(हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया)
रामकथा को लेकर यह पहला विवाद नहीं है. सन 1980 के दशक में जब महाराष्ट्र सरकार ने बी.आर. आंबेडकर के वांग्मय का प्रकाशन शुरू किया था उस समय भी उनकी पुस्तक ‘रिडल्स ऑफ़ राम एंड कृष्ण’ को इस संग्रह में शामिल किये जाने का भारी विरोध हुआ था. इस पुस्तक में आंबेडकर ने शम्बूक नामक शूद्र की तपस्या करने के लिए हत्या करने, जनप्रिय राजा बाली को धोखे से मारने और अपनी गर्भवती पत्नि सीता को त्यागने के लिए भगवान राम की आलोचना की है. इसके अलावा, सीता को अग्निपरीक्षा देने के लिए मजबूर करने के लिए भी आंबेडकर राम की निंदा करते हैं.
आंबेडकर के पहले जोतीराव फुले ने राम द्वारा छुप कर बाली को बाण मारने की निंदा की थी. बाली एक स्थानीय राजा था, जो अपने प्रजाजनों का बहुत ख्याल रखता था और उनमें बहुत लोकप्रिय था. पेरियार ई.वी. रामासामी नायकर ने भगवान राम के व्यक्तित्व के इन पक्षों पर केन्द्रित ‘सच्ची रामायण’ लिखी थी. रामकथा के प्रचलित संस्करण के पात्र जिस तरह का लैंगिक और जातिगत भेदभाव करते दिखते हैं, पेरियार उसके कटु आलोचक थे. पेरियार तमिल अस्मिता के पैरोकार थे. उनके अनुसार, रामायण की कहानी ऊंची जातियों के संस्कृतनिष्ठ, जातिवादी उत्तर भारतीयों द्वारा राम के नेतृत्व में दक्षिण भारत के लोगों पर अपने आधिपत्य स्थापित करने के ऐतिहासिक घटनाक्रम का रूपक मात्र है. पेरियार के अनुसार, रावण, प्राचीन द्रविड़ों के सम्राट थे और उन्होंने सीता का अपहरण केवल अपनी बहन शूर्पनखा के अपमान और उसके विकृत किये जाने का बदला लेने के लिए किया था. पेरियार के अनुसार, रावण एक महान भक्त और एक नेक और धर्मात्मा व्यक्ति थे.
बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद सन 1993 में सफ़दर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (सहमत) द्वारा पुणे में लगाई गई एक प्रदर्शनी में तोड़-फोड़ की गई थी. वह इसलिए क्योंकि वहां बौद्ध जातक कथा पर आधारित एक पेंटिंग प्रदर्शित की गई थी, जिसमें सीता को राम की बहन बताया गया था. इस कथा के अनुसार, राम और सीता उच्च जाति के एक ऐसे कुल से थे जिसके सदस्य अपनी पवित्रता बनाये रखने के लिए अपने कुल से बाहर शादी नहीं करते थे.
कुछ वर्ष पूर्व, आरएसएस की विद्यार्थी शाखा एबीवीपी ने ए.के. रामानुजन के लेख ‘थ्री हंड्रेड रामायणास’ को पाठ्यक्रम से हटाने की मांग को लेकर आन्दोलन किया था. इस लेख में रामानुजन बताते हैं कि रामायण के कई संस्करण हैं जिनमें अनेक विभिन्नताएं हैं और जिनमें घटनाओं का स्थान अलग-अलग बताया गया है.
संस्कृत के विद्वान और भारत में पुरातत्वीय उत्खनन के अगुआ एच.डी. सांकलिया के अनुसार यह हो सकता है कि रामायण में वर्णित अयोध्या और लंका, आज की अयोध्या और लंका से अलग कोई स्थान रहे हों. उनके अनुसार, लंका शायद आज के मध्यप्रदेश में कोई स्थान रहा होगा क्योंकि इस बात की प्रबल संभावना है कि ऋषि वाल्मीकि, विंध्य पर्वतमाला के दक्षिण में स्थित इलाके के बारे में कुछ नहीं जानते होंगे. आज जिसे श्रीलंका कहा जाता है, उसका पुराना नाम ताम्रपर्णी था. रामायण के अलग-अलग आख्यान भारत ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में पाए जाते हैं और इनमें से कई बहुत दिलचस्प हैं. पौला रिचमन की पुस्तक ‘मेनी रामायणास’ (ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) में भगवान राम की विभिन्न कथाओं की दिलचस्प झलकियाँ दी गयीं हैं.
भारत में राम कथा का जो संस्करण आज सबसे अधिक प्रचलित है वह वाल्मीकि की ‘रामायण’, गोस्वामी तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ और रामानंद सागर के टीवी सीरियल ‘रामायण’ पर आधारित है. इस सीरियल का कोरोना लॉकडाउन के दौरान पुनर्प्रसारण किया गया. राम के कथा का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है जिनमें बाली, संथाली, तमिल, तिब्बती और पाली शामिल हैं. पश्चिमी भाषाओं में इसके अनेकानेक संस्करण हैं, जिनकी कथाएँ एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं. थाईलैंड में प्रचलित रामकीर्ति या रामकियेन संस्करण में भारतीय संस्करण के विपरीत, हनुमान ब्रह्मचारी नहीं हैं. रामायण के जैन और बौद्ध संस्करणों में राम, क्रमशः महावीर और गौतम बुद्ध के अनुयायी हैं. इन दोनों संस्करणों में रावण को एक विद्वान और महान ऋषि बताया गया है. कुछ संस्करणों, जो विदेशों में लोकप्रिय हैं, में सीता को रावण की पुत्री बताया गया है. मलयालम कवि वायलार रामवर्मा की कविता ‘रावणपुत्री’ भी यही कहती है. कई संस्करणों के अनुसार, दशरथ अयोध्या के नहीं वरन वाराणसी के राजा थे.
फिर, रामायण के एक वह संस्करण भी है जो महिलाओं में प्रचलित है’. तेलुगू ब्राह्मण महिलाओं द्वारा जो ‘महिला रामायण गीत’ गाए जाते हैं, उन्हें रंगनायकम्मा ने संकलित किया है. इनमें महिलाओं की केन्द्रीय भूमिका है. इन गीतों में बताया गया है कि अंत में सीता राम पर भारी पडतीं हैं और शूर्पनखा राम से बदला लेने में सफल रहती है.
इन आख्यानों की समृद्ध विविधता से पता चलता है कि भगवान कथा की कथा दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में भी लोकप्रिय है और इसके कई रूप हैं. राममंदिर आन्दोलन पूरी तरह से रामकथा के उस आख्यान पर केन्द्रित है जिसे वाल्मीकि, तुलसीदास और रामानंद सागर ने प्रस्तुत किया है. उन तीनों में भी कुछ मामूली अंतर हैं, विशेषकर लैंगिक और जातिगत समीकरणों के सन्दर्भ में. वर्तमान में भारत में प्रचलित आख्यान, लैंगिक और जातिगत पदक्रम के पैरोकार हैं. और यही पदक्रम, सांप्रदायिक राजनीति के मूल में भी हैं. रामकथा के इस संस्करण के जुनूनी समर्थक पैदा कर दिए गए हैं. वे इस कथा के हर उस संस्करण, हर उस व्याख्या पर हमलावर हैं, जो सांप्रदायिक राजनीति के हितों से मेल नहीं खाते.
रामायण पर विद्वतापूर्ण रचनायें, तत्कालीन समाज में व्याप्त मूल्यों और परम्पराओं में विविधता को रेखांकित करतीं हैं. हर राष्ट्रवाद, अतीत का अपना संस्करण रचता है. एरिक होब्स्वाम के अनुसार, “राष्टवाद के लिए इतिहास वह है जो अफीमची के लिए अफीम”. ऐसा लगता है कि विभिन्न प्रकार के राष्ट्रवाद, इतिहास की नहीं वरन पौराणिकी के भी वही संस्करण चुनते हैं जिनसे उनके निहित स्वार्थों की पूर्ती होती हो.
(हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया)