कहानी एकदम हिंदुस्तान की तरह दिलचस्प है. कुछ सदी पहले की बात है. गुजरात के मोरबी में एक जातीय समुदाय है मोड मोदी. इसके एक परिवार में कोई औलाद नहीं थी. उनके बच्चे तो होते थे, लेकिन वे जिंदा नहीं बचते थे.
यहीं पर एक पीर हुआ करते थे हजरत दवलशा पीर. परिवार ने पीर की दरगाह में बच्चे के लिए दुआ मांगी. दुआ कबूल हो गई और परिवार में 7 बच्चे हुए.
इसके पीछे मेडिकल साइंस भले तर्क दे कि बच्चे पीर की दुआ से नहीं होते, लेकिन बेऔलाद को औलाद मिल जाए, इससे बड़ा दुनिया में कौन सा चमत्कार हो सकता है? अब इस परिवार की आस्था पीर बाबा में रम गई. परिवार में हिंदू देवी देवताओं के साथ पीर बाबा भी आ गए और बाद में अल्लाह भी. हिंदू त्यौहारों के साथ रमजान और ईद भी मनाई जाने लगी.
अब यह कुनबा बढ़कर 500 परिवारों का हो चुका है. जिग्नेश मोदी इसी परिवार की अगली पुश्तों के बच्चे हैं. यह कहानी उन्होंने ही सुनाई है. जिग्नेश कहते हैं कि उनका परिवार हिंदू भी है और मुसलमान भी.
यह परिवार हिंदू और मुसलमान दोनों परंपराओं को निभाता है. इस मोदी परिवार में यह प्रथा कई पीढ़ियों पहले से चली आ रही है. पीर दवलशा की दरगाह मोरबी के आमरान में है जहां ये लोग जियारत करते हैं.
जिग्नेश मोदी का परिवार इस्लाम को भी मानता है और हिंदू आस्था में भी विश्वास करता है. यह कुनबा रोजा रखता है, ईद मनाता है, दरगाह भी जाता है और हिंदू त्यौहार भी मनाता है. एक ही आंगन में ईद, होली, दीवाली, बकरीद, रमजान सब. ये लोग इस्लाम में निभाया जाने-वाला दान-पुण्य का कार्य भी करते हैं और बड़े पैमाने पर गरीबों की मदद भी करते हैं.
इसी परिवार के रूपेश हैं. वे गणेश की मूर्ति रखते हैं, रोजा भी रखते हैं. उनकी पत्नी एक डेरावासी जैन हैं, वे भी रोजा रखती हैं.
इस परिवार के लोगों का कहना है कि हमारे लिए दोनों धर्म एक समान हैं. हमारी परंपरा दोनों धर्मों को मिलाकर बनी है. हम दोनों का आस्थाओं का बराबर सम्मान करते हैं.
एक और दिलचस्प बात कि इस परिवार की कुल देवी बहूचर माता हैं. कहने को यह परिवार हिंदू है, लेकिन शादियां दोनों धर्मों की परंपराओं के मुताबिक होती हैं. किसी बच्चे की शादी हो तो पहले दिन हिंदू रीति-रिवाज निभाया जाता है और दूसरे दिन मुस्लिम रिवाज. इसके साथ पीर की दरगाह पर जाकर दुआ भी मांगी जाती है.
हजरत दवलशा पीर के बारे में कहा जाता है कि गुजरात में 15वीं सदी में एक सुल्तान हुए महमूद बेगडा. उनके समय से ही हजरत दवलशा के बारे में जाना जाता है.
जो लोग देश को बांटने की कोशिश कर रहे हैं, वे गुजरात के इन परिवारों को कैसे बांटेंगे जो न तो हिंदू हैं, न ही मुस्लिम हैं. लेकिन वे हिंदू भी हैं और मुस्लिम भी.
भारत की जिस गंगा-जमुनी तहजीब को दुनिया मानती है, यह उसकी छोटी सी बानगी है.
तक्षशिला को बिहार में रखने वाले ज्ञानी अपने प्रदेश के बारे में भी कुछ नहीं जानते, न ही देश के बारे में.
(यह स्टोरी पत्रकार कृष्ण कांत जी की फेसबुक वॉल से साभार ली गई है)
यहीं पर एक पीर हुआ करते थे हजरत दवलशा पीर. परिवार ने पीर की दरगाह में बच्चे के लिए दुआ मांगी. दुआ कबूल हो गई और परिवार में 7 बच्चे हुए.
इसके पीछे मेडिकल साइंस भले तर्क दे कि बच्चे पीर की दुआ से नहीं होते, लेकिन बेऔलाद को औलाद मिल जाए, इससे बड़ा दुनिया में कौन सा चमत्कार हो सकता है? अब इस परिवार की आस्था पीर बाबा में रम गई. परिवार में हिंदू देवी देवताओं के साथ पीर बाबा भी आ गए और बाद में अल्लाह भी. हिंदू त्यौहारों के साथ रमजान और ईद भी मनाई जाने लगी.
अब यह कुनबा बढ़कर 500 परिवारों का हो चुका है. जिग्नेश मोदी इसी परिवार की अगली पुश्तों के बच्चे हैं. यह कहानी उन्होंने ही सुनाई है. जिग्नेश कहते हैं कि उनका परिवार हिंदू भी है और मुसलमान भी.
यह परिवार हिंदू और मुसलमान दोनों परंपराओं को निभाता है. इस मोदी परिवार में यह प्रथा कई पीढ़ियों पहले से चली आ रही है. पीर दवलशा की दरगाह मोरबी के आमरान में है जहां ये लोग जियारत करते हैं.
जिग्नेश मोदी का परिवार इस्लाम को भी मानता है और हिंदू आस्था में भी विश्वास करता है. यह कुनबा रोजा रखता है, ईद मनाता है, दरगाह भी जाता है और हिंदू त्यौहार भी मनाता है. एक ही आंगन में ईद, होली, दीवाली, बकरीद, रमजान सब. ये लोग इस्लाम में निभाया जाने-वाला दान-पुण्य का कार्य भी करते हैं और बड़े पैमाने पर गरीबों की मदद भी करते हैं.
इसी परिवार के रूपेश हैं. वे गणेश की मूर्ति रखते हैं, रोजा भी रखते हैं. उनकी पत्नी एक डेरावासी जैन हैं, वे भी रोजा रखती हैं.
इस परिवार के लोगों का कहना है कि हमारे लिए दोनों धर्म एक समान हैं. हमारी परंपरा दोनों धर्मों को मिलाकर बनी है. हम दोनों का आस्थाओं का बराबर सम्मान करते हैं.
एक और दिलचस्प बात कि इस परिवार की कुल देवी बहूचर माता हैं. कहने को यह परिवार हिंदू है, लेकिन शादियां दोनों धर्मों की परंपराओं के मुताबिक होती हैं. किसी बच्चे की शादी हो तो पहले दिन हिंदू रीति-रिवाज निभाया जाता है और दूसरे दिन मुस्लिम रिवाज. इसके साथ पीर की दरगाह पर जाकर दुआ भी मांगी जाती है.
हजरत दवलशा पीर के बारे में कहा जाता है कि गुजरात में 15वीं सदी में एक सुल्तान हुए महमूद बेगडा. उनके समय से ही हजरत दवलशा के बारे में जाना जाता है.
जो लोग देश को बांटने की कोशिश कर रहे हैं, वे गुजरात के इन परिवारों को कैसे बांटेंगे जो न तो हिंदू हैं, न ही मुस्लिम हैं. लेकिन वे हिंदू भी हैं और मुस्लिम भी.
भारत की जिस गंगा-जमुनी तहजीब को दुनिया मानती है, यह उसकी छोटी सी बानगी है.
तक्षशिला को बिहार में रखने वाले ज्ञानी अपने प्रदेश के बारे में भी कुछ नहीं जानते, न ही देश के बारे में.
(यह स्टोरी पत्रकार कृष्ण कांत जी की फेसबुक वॉल से साभार ली गई है)