आखिर चुनावों में नामांकन खारिज क्यों होते हैं?

Written by sabrang india | Published on: May 2, 2019
वर्ष 2009 में मैं महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में अपने दोस्तों के साथ बैठा था उनमें से एक ने मुझे बोला क्यूँ न हेमन्त इस बार लोक सभा का चुनाव लड़ जाते हो। मित्र का सुझाव अच्छा लगा और मैंने वर्ष 2009 के लोक सभा वाराणसी से नामांकन करने का मन बना लिया। उस मित्र ने मुझे आर.पी. आई से टिकट भी दिला दिया था। चूंकी टिकट मिलने में देरी हो गयी थी जिस कारण मुझे निर्दलीय के रूप में नामांकन करना पड़ा था.

मुझे वो दिन याद है जब मैं अपने दस प्रस्तावक के साथ नामांकन करने गया था लेकिन इस्तेफ़ाक़ से उसी दिन सिटिंग एमपी राजेश मिश्रा का भी नामांकन था। मैं उनकी नामांकन रैली जो बीएचयू गेट से नामांकन स्थल राइफल क्लब (वाराणसी) तक की सड़क पर थी, देखकर अचम्भित हो गया। उस दिन सभी के हाथों में कांग्रेस का झंडा था। मैं तो एक सामाजिक कार्यकर्ता था। मैंने जब भी स्वछता अभियान के दौरन सफाई या किसी अन्य कार्य के लिए 100 दोस्तों और आम नागरिक को बुलाता था तो केवल दस से पंद्रह लोग ही आते थे। लेकिन आज पंद्रह किलोमीटर की सड़क राजनीतिक विचारधारा के फॉलोवरों से भरी थी। मुझे उस दिन राजनीति की ताकत का एहसास हुआ।  


मैंने मन ही मन में सोचा अगर इतनी सारी भीड़ अगर मुझे मिल जाती तो मैं एक दिन में सबके हाथ में झाड़ू थमा कर वाराणसी की गंदगी को एक बार में साफ़ कर देता। मैंने उस दिन अपना नामांकन किया। उस समय रिटर्निग ऑफिसर एक उपाध्याय जी थे जिनका पूरा नाम मुझे याद नहीं है। मैंने नामांकन का पर्चा देते हुए निवेदन किया कि श्रीमान चेक कर लीजिये अगर कोई गलती हो तो बता दें मैं सुधार कर लूंगा (अगर उस समय की वीडियो रिकार्डिंग चेक किया जाय तो प्राप्त होगी)। मेरी बात पर उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, 'हाँ हाँ' कल दो बजे आईये आपकी जो भी गलती होती है बता दिया जायेगा। मैं तब तक छात्र जीवन ही जी रहा था और कई सारी परीक्षाओं के लिये आवेदन किया था जिसमें सभी के आवेदन सही हुए थे, किसी भी परीक्षा का आवेदन निरस्त नहीं हुआ था।  


मैं अगले दिन दो बजे पहुंचा तो रिटर्निग आफिसर ने मेरे आवेदन की निरस्त होने की नोटिस मुझे सौंप दी जिसमें कई सारी त्रुटियों का जिक्र था। मैंने रिटर्निग ऑफिसर उपाध्याय जी से बोला कि श्रीमान ये कैसे हो सकता है। कल तो आपने मुझे समय दिया था कि आप मेरे आवेदन की त्रुटिओं को बताएँगे इस पर वे मुझपर फटकार लगाते हुए बोले- तुम सीरियस कैंडिडेट नहीं हो (हिन्दुस्तान अख़बार ने भी यही हेडलाईन लिखी थी)।  मैं कितना दुखी था मैं लिख नहीं पा रहा हूँ जिसकी कोई सीमा नहीं थी। मैंने पांच साल का इंतजार किया और 2014 लोकसभा के चुनाव में नामांकन करने का मन बनाया।  


मैंने 2014 के लोकसभा में नामांकन किया उस समय रिटर्निंग ऑफिसर श्री प्रांजल यादव थे।  इस बार वकील की सहायता से नामांकन किया था तब भी मेरे नामांकन में दो जगह त्रुटियां पायी गयीं।  मुझे उसी दिन नामांकन कार्यालय से फोन आया, सर आपके आवेदन में दो त्रुटियाँ हैं उनको आकर सुधार लीजिये जिसके लिए आपको दोपहर तीन बजे का समय दिया गया है।  मैं अगले दिन दस बजे तक नामांकन कार्यालय पहुंच गया और वकील की सहायता से उस त्रुटि को दूर किया। उसी दिन शाम चार बजे मुझे मेरे नामांकन वैध होने का नोटिस मिला मुझे ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। अगले दिन जब मैं प्रचार के लिए निकला तो मैंने अपनी मन से बोला कि आज मुझे समाज को नजदीक से समझने वाली जिम्मेदारी मिली है। वर्ष 2014 लोक सभा चुनाव में कुल सैंतालिस उम्मीदवार चुनाव में उतरे थे।  

इस बार वर्ष 2019 में वाराणसी लोक सभा की सीट से कुल 101 नामांकन दाख़िल किए गए जिनमें से 71 नामांकन पत्रों को ख़ारिज कर दिया गया है। आखिर ये पर्चे क्यूँ ख़ारिज होते हैं। क्या पर्चों को ख़ारिज होने से बचाने के लिए रिटर्निग ऑफिसर की जिम्मेदारी नहीं होती और उसके आलावा वहां पर बैठे अन्य आफिसर जो आईएस, पीसीएस होते हैं वे क्या करते हैं।  मैंने ये सारे प्रश्न राइफल क्लब के बाबू से वर्ष 2014 में ही पूछा था, उस बाबू ने साफ़ साफ बता दिया की भीड़ को हटाने के लिए ये सब किया जाता है। अगर सभी के पर्चे वैध हो जायेंगे तो सभी के लिए ईवीएम मशीन उपलब्ध कराना पड़ेगा और उसको ले जाने आने में जो खर्च होगा, जो मेहनत लगेगी वो बहुत  अधिक होगी।

फिर मैंने उससे प्रश्न किया था क्या ये पार्टियों वालों के पर्चे ख़ारिज नहीं होते। इस पर बाबू ने उत्तर दिया नहीं। क्योंकि पहले तो उनके पास अनुभवी लोग होते हैं और कोई त्रुटि हो भी जाती है तो उसी समय सुधार लिया जाता यही कारण है कि बड़े नेताओं के नामांकन में समय अधिक लगता है और ऐसे-वैसों यानि निर्दलीय उम्मीदवारों को कम समय दिया जाता है। अब मेरा प्रश्न प्रजातंत्र से है, क्या देश का कानून समान्य नागरिक को चुनाव लड़ने हेतु लड़ने हेतु प्रोत्साहित भी नहीं कर सकता। उस समय नामाकंन शुल्क दस हजार था जो 5 वर्ष में बीस हजार हो गया और वर्तमान में चालीस हजार। आखिर क्यूं? क्या किसानों या मजदूरों की आय भी इसी तरह दूनी हुई है ये उत्तर आप जनता को ही देना होगा।

(लोकसभा वाराणसी वर्ष 2014 के उम्मीदवार हेमंत यादव की कलम से)

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