बुलंदशहर की हत्यारी भीड़ के नेताओं को पहचानिए. क्या जहर उगलते नेताओ और अफवाह फ़ैलाने वाले भाड़े के दलालों का पर्दाफाश नहीं होना चाहिए? ड्यूटी पे तैनात और अपने फ़र्ज़ निभा रहे पुलिस अधिकारी को क्रूरता से मार देने वाले लोगों की राजनीति की क्या पहचान नहीं होनी चाहिए. हम जानते हैं कि पत्रकारिता का चोगा पहने अपराधी इस खबर में भी अपनी बदमाशियों से बाज़ नहीं आयेंगे. बुलंदशहर में अपराध की इस घटना का मुसलमानों या इजितिमा से कोई सम्बन्ध नहीं है और ये बात बुअलन्द्शहर पुलिस खुद कह रही है. घटना बुलंदशहर शहर से करीब 40-45 किलोमीटर दूर की है जहां भीड़ गौ हत्या की बात कहकर प्रदर्शन कर रही थी.
ये कौन लोग हैं जो गौहत्या पे इतने वीभत्स हो जाते हैं कि एक अधिकारी और निरपराध इंसान को गोली मारने में शर्म नहीं करते. ये कौन हैं जो चैनलों पर बैठकर फर्जी खबरें चलाते हैं कि दंगा मुसलमानों के कारण हुआ. ये दंगा नही था. इस भीड़ की राजनीति को समझिये. उन पत्रकारों की राजनीति को भी समझिये जो अपने चैनलों पर झूठ के पुलिंदे परोस रहे हैं. क्या प्रेस कौंसिल को ऐसे अपराधियों के खिलाफ बोलना चाहिए या नहीं ?
सुबोध कुमार सिंह अपनी ड्यूटी पे तैनात थे. उनकी हत्या का विडियो भयावह है. ये दिखा रहा है कैसे समाज में हत्या, हिंसा, वीभत्सता, बलात्कार का सामान्यीकरण किया जा रहा है. हम एक आपराधिक समाज बन रहे है. देश में ऐसे तत्व हावी हो चुके है जो अपराधी है और उन्ही को नेतृत्व दिया जा रहा है. मीडिया तंत्र अब प्रोपगंडा में बदल चुका है और झूठ को सच बनाया जा रहा है. पत्रकार दलाली की भूमिका में है और ज्ञान बाँट रहे है. उनकी डिमांड भी बनता है. जब भी स्वतंत्र भारत में सभ्यता पे हमले और भारत को विभाजन करने वाली ताकतों पर कोई चर्चा होगी तो यहाँ के दलाल पत्रकारों और 'बुद्धिजीवियों' के नाम भी उसमे महत्वपूर्ण दंगाबाज लोगों में शामिल होंगे.
उत्तर प्रदेश पुलिस को चाहिए के इस घटना की पूरी तह में जाए. इस घटना को एक छोटी से आपराधिक घटना मान लेने से काम नहीं चलेगा. इसके पीछे की राजनीती और राजनितिक लोगों के गिरेबान पकड़ने होंगे. इससे पहले के फिर कोई नया झूठ निकलकर ब्रेकिंग न्यूज़ किया जाए पुलिस ईमानदारी से अपने अधिकारी की हत्या की जांच करे. वर्षों पहले एक अधिकारी की हत्या हुए थी प्रतापगढ़ जिले में और उसके तथाकथित हत्यारे आराम से घूम कर मंत्री भी बन गए और घटना को भुला दिया गया. आज पूरे प्रदेश में ऐसी घटनाओं को अंजाम देने की तैय्यारी है क्योंकी आपको चुनाव जितना है और वो भी साम दाम दंड भेद से. ईवीएम् से, दंगा फसाद से, डरा धमका कर, मीडिया को पुर्णतः पंगु और दंडवत झुकाकर.
देश पर गंभीर संकट है. ऐसा संकट जब शासको को को शर्म नहीं के उनके अधिकारी मर रहे, आम इंसान लुट रहा है और पिट रहा है. जिस भीड़ को नोट्बंदी, महंगाई, शिक्षा व्यवस्था, भूमि सुधारों, भुखमरी, छुआछूत, महिला हिंसा के सवालों पर सड़क पर होना चाहिए था वो भीड़ अफवाहों पर दंगा करने और अधिकारियों को मार देने के लिए तैयार है.
आप अर्बन नक्सल करते रहिये. उन्हें गिरफ्तार करिए जिन्होंने कोई दंगा नहीं किया और संविधान को माना लेकिन जो गुंडे गाय के नाम पर लोगो को मार रहे है उन्हें आप देशभक्त और मरने पर शहीद बनाकर घूमिये. आज इसी गुंडई का राष्ट्रीयकरण हो गया है.
योगी आदित्यनाथ हैदराबाद मे आग उगल रहे है. उत्तर प्रदेश में उन्होंने बहुत आग उगल दी. शहरों के नाम बदल रहे हैं. लोगों को देश से बाहर करने की धमकी दे रहे है, चौबीसों घंटे मंदिर मंदिर का जाप कर रहे हैं जैसे प्रदेश की सभी सम्स्व्याओ का हल मात्र मंदिर बनाकर हो जाएगा. देश पर के किसान जब दिल्ली में अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में आये तो लम्पट उनको भाड़े के लोग कह रहे थे.
जब सुश्री मायावती ने बाबा साहेब आंबेडकर और अन्य बहुजन क्रांतिकारियों की मुर्तिया लखनऊ में लगवाई तो खर्चे का हवाला देकर उनकी बहुत निंदा की गयी लेकिन आज हिंदुत्व के मठाधीश मूर्तियों पर अरबो रुपैये खर्च कर रहे हैं और अब कोई नहीं कह रहा के ये आम जनता के पैसो की लूट है. कोई नहीं कह रहा है क्या इन मूर्तियों की इतनी रकम के पीछे भी कोई घोटाला है. कोई ये नहीं कह रहा के ये चाइना में क्यों बन रही है भारत में क्या कलाकारों की कमी है?
भीड़ की राजनीति को समझने की जरुरत है. भीड़ की आड़ में गुंडई, बदमाशी और आपराधिकता को सही ठहराने की कोशिश संघ की राजनीती का हिस्सा है. भीड़ का नाम देकर बाबरी मस्जिद ढहाई गयी. समय समय पर उसे भीड़ या हिंदुत्व की भीड़ का नाम दिया जाता है और ये सब जरूरतों के हिसाब से होता है. जब कोर्ट में जाते है तो साफ़ मुकर जाते हैं लेकिन जब भीड़ को संबोधित करते है तो बाबरी मस्जिद तोड़ने की जिम्मेवारी लेते हैं.
देश के पत्रकारों को जो संविधान और धर्मनिरपेक्षता और पत्रकारिता के मूल्यों पे विश्वास करते हैं उन्हें अब साफ़ तौर पर खड़े होने की जरुरत है. उनके प्रोफेशन में अब अपराधी और गुंडे घुस आये हैं और उसकी अब सफाई की जरुरत है. राजनीति के नाम पर गुंडे देश को दंगो और घृणा की आग में धकलने में भी कोई शर्मिंदगी नहीं महसूस करते. देश को ऐसे लोगों से सावधान रहना होगा. यही लोग सोशल मीडिया को रेगुलेट कहने की बात कर रहे हैं लेकिन उन चैनलों को रेगुलेट करने की बात नहीं करते जो फर्जी खबरे बनाकर दिखा रहे हैं.
देश केवल संविधान की भावनाओं के आधार पर ही चल सकता है. पुलिस, मीडिया या राजनीति के लोग, सभी संविधान की सर्वोच्चता की बात कहकर ही बात आगे बढ़ सकती है. कोई हिंदूवादी नैतिकता नहीं, कोई इस्लामिक नैतिकता नहीं, कोई फिरकापरस्ती नहीं, मात्र संवैधानिक नैतिकता या मूल्य आगे किये जाए. धर्म आपके घर की वास्तु रहे. आप जिसे मानिए या न मानिए ये आपके व्यक्तिगत प्रश्न है. देश में सभी का हक़ है और कम से कम सत्ता में रहने वालो, प्रशासन के लोगो की नैतिकता तो संविधान की सर्वोच्चता को ही कायम रखना हो सकता है क्योंकि उसको छोड़ इस देश को कोई नहीं बचा सकता . देश में मंदिरों, मस्जिदों, गौशालाओ, चर्चो, गुरुद्वारों की कोई कमी नहीं और नहीं इनके सामने कोई पैसो का संकट. देश को आज अच्छी शिक्षा व्यवस्था चाहिए, बच्चो को समान शिक्षा, सबको घर, जन स्वस्थ्य, भूमि अधिकार, दलित आदिवासियों के हक़, पर्यवरण का संतुलन, साफ़ नदिया, साफ़ पानी, सुरक्षित और साफ़ खेती की जरुरत है. कृपया देश को भगवानो के मकडजाल में मत फंसाइए. योगी आदित्यनाथ हो या कोई, जनता ने उन्हें मंदिर मस्जिद बनाने के लिए नहीं चुना. उन्हें प्रदेश को स्वच्छ और साफ़ प्रशासन के लिए चुना. मोदी जी को देश में रोजगार और सुशासन के लिए चुना. देश अभी भी आपसे वही आशा करता है.
गाय के नाम पर राजनीति करने वाले कृपया बताये के गाये क्यों मर रही है. गाय हमारी कृषि व्यस्था का हिस्सा है. गाय पालने वाला किसान आज क्यों आत्महत्या कर रहा है. क्यों लोगो गाय नहीं पालना चाहते. गाय की राजनीति करने वालो ने कितने किसानों को बचाया. गाय पालने वाले आज दुखी है. क्या किया इस गौमाता सरकार ने. आज गाये सडको पर कूड़ा खा रही है. और उनके लिए कोई हॉस्पिटल नहीं है. उत्तर प्रदेश सरकार बताये के उसके पास कितने पशु चिकित्सक हैं जो गाय का ऑपरेशन कर सकते हैं? कितने पशु अस्पताल हैं जिनमें सभी सुविधाएं हैं. ये भी बतायें, कि प्रदेश में कितने स्थानों पर गौचर है. हाँ गौशालाओ की बात भी बतायें कि उनके हाल क्या है. उत्तर प्रदेश में कुल कितनी गौशालाएं हैं और उनको सरकारी अनुदान कितना है और वो कितनी गायों की देखभाल करते हैं और उनके स्थिति कैसी हैं. योगी जी ये भी बतायें कि ये गौशालाएं किनके नाम पर हैं और इनके नाम पर कितनी जमीन है. गायों के असली संरक्षक किसान हैं और वो मर रहे हैं लेकिन इस गौमाता अभियान का उद्देश्य गौशालाओ का धंधा मजबूत करना है ताकि बाद में बड़े सेठ इस पूरे अभियान की मदद से दूध की कंपनिया चलाये. गाय को किसान के हाथ से छुडाकर बड़े धंधेबाजो और सेठों को पहुचाने के लिए ही ये अभियान है.
एक अधिकारी की हत्या दुखद है. वैसे ही एक निर्दोष की हत्या भी दुखद है. देश को नफ़रत की आग में झोंकने वालों से सावधान रहने की जरुरत है. सभी से अनुरोध है कि शांति व्यवस्था रखे. अफवाहों से सावधान रहे और व्हाट्सएप के जरिए दंगा फ़ैलाने की कोशिश करने वालों से सावधान. भीड़ की राजनीति, उसके नेताओं और उनके रिश्तो का पर्दाफाश करें. जब देश के सभी संवैधानिक तंत्र अपनी आस्था और निष्ठा संविधान में रखेंगे तभी ये देश सुरक्षित रह पायेगा.
ये कौन लोग हैं जो गौहत्या पे इतने वीभत्स हो जाते हैं कि एक अधिकारी और निरपराध इंसान को गोली मारने में शर्म नहीं करते. ये कौन हैं जो चैनलों पर बैठकर फर्जी खबरें चलाते हैं कि दंगा मुसलमानों के कारण हुआ. ये दंगा नही था. इस भीड़ की राजनीति को समझिये. उन पत्रकारों की राजनीति को भी समझिये जो अपने चैनलों पर झूठ के पुलिंदे परोस रहे हैं. क्या प्रेस कौंसिल को ऐसे अपराधियों के खिलाफ बोलना चाहिए या नहीं ?
सुबोध कुमार सिंह अपनी ड्यूटी पे तैनात थे. उनकी हत्या का विडियो भयावह है. ये दिखा रहा है कैसे समाज में हत्या, हिंसा, वीभत्सता, बलात्कार का सामान्यीकरण किया जा रहा है. हम एक आपराधिक समाज बन रहे है. देश में ऐसे तत्व हावी हो चुके है जो अपराधी है और उन्ही को नेतृत्व दिया जा रहा है. मीडिया तंत्र अब प्रोपगंडा में बदल चुका है और झूठ को सच बनाया जा रहा है. पत्रकार दलाली की भूमिका में है और ज्ञान बाँट रहे है. उनकी डिमांड भी बनता है. जब भी स्वतंत्र भारत में सभ्यता पे हमले और भारत को विभाजन करने वाली ताकतों पर कोई चर्चा होगी तो यहाँ के दलाल पत्रकारों और 'बुद्धिजीवियों' के नाम भी उसमे महत्वपूर्ण दंगाबाज लोगों में शामिल होंगे.
उत्तर प्रदेश पुलिस को चाहिए के इस घटना की पूरी तह में जाए. इस घटना को एक छोटी से आपराधिक घटना मान लेने से काम नहीं चलेगा. इसके पीछे की राजनीती और राजनितिक लोगों के गिरेबान पकड़ने होंगे. इससे पहले के फिर कोई नया झूठ निकलकर ब्रेकिंग न्यूज़ किया जाए पुलिस ईमानदारी से अपने अधिकारी की हत्या की जांच करे. वर्षों पहले एक अधिकारी की हत्या हुए थी प्रतापगढ़ जिले में और उसके तथाकथित हत्यारे आराम से घूम कर मंत्री भी बन गए और घटना को भुला दिया गया. आज पूरे प्रदेश में ऐसी घटनाओं को अंजाम देने की तैय्यारी है क्योंकी आपको चुनाव जितना है और वो भी साम दाम दंड भेद से. ईवीएम् से, दंगा फसाद से, डरा धमका कर, मीडिया को पुर्णतः पंगु और दंडवत झुकाकर.
देश पर गंभीर संकट है. ऐसा संकट जब शासको को को शर्म नहीं के उनके अधिकारी मर रहे, आम इंसान लुट रहा है और पिट रहा है. जिस भीड़ को नोट्बंदी, महंगाई, शिक्षा व्यवस्था, भूमि सुधारों, भुखमरी, छुआछूत, महिला हिंसा के सवालों पर सड़क पर होना चाहिए था वो भीड़ अफवाहों पर दंगा करने और अधिकारियों को मार देने के लिए तैयार है.
आप अर्बन नक्सल करते रहिये. उन्हें गिरफ्तार करिए जिन्होंने कोई दंगा नहीं किया और संविधान को माना लेकिन जो गुंडे गाय के नाम पर लोगो को मार रहे है उन्हें आप देशभक्त और मरने पर शहीद बनाकर घूमिये. आज इसी गुंडई का राष्ट्रीयकरण हो गया है.
योगी आदित्यनाथ हैदराबाद मे आग उगल रहे है. उत्तर प्रदेश में उन्होंने बहुत आग उगल दी. शहरों के नाम बदल रहे हैं. लोगों को देश से बाहर करने की धमकी दे रहे है, चौबीसों घंटे मंदिर मंदिर का जाप कर रहे हैं जैसे प्रदेश की सभी सम्स्व्याओ का हल मात्र मंदिर बनाकर हो जाएगा. देश पर के किसान जब दिल्ली में अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में आये तो लम्पट उनको भाड़े के लोग कह रहे थे.
जब सुश्री मायावती ने बाबा साहेब आंबेडकर और अन्य बहुजन क्रांतिकारियों की मुर्तिया लखनऊ में लगवाई तो खर्चे का हवाला देकर उनकी बहुत निंदा की गयी लेकिन आज हिंदुत्व के मठाधीश मूर्तियों पर अरबो रुपैये खर्च कर रहे हैं और अब कोई नहीं कह रहा के ये आम जनता के पैसो की लूट है. कोई नहीं कह रहा है क्या इन मूर्तियों की इतनी रकम के पीछे भी कोई घोटाला है. कोई ये नहीं कह रहा के ये चाइना में क्यों बन रही है भारत में क्या कलाकारों की कमी है?
भीड़ की राजनीति को समझने की जरुरत है. भीड़ की आड़ में गुंडई, बदमाशी और आपराधिकता को सही ठहराने की कोशिश संघ की राजनीती का हिस्सा है. भीड़ का नाम देकर बाबरी मस्जिद ढहाई गयी. समय समय पर उसे भीड़ या हिंदुत्व की भीड़ का नाम दिया जाता है और ये सब जरूरतों के हिसाब से होता है. जब कोर्ट में जाते है तो साफ़ मुकर जाते हैं लेकिन जब भीड़ को संबोधित करते है तो बाबरी मस्जिद तोड़ने की जिम्मेवारी लेते हैं.
देश के पत्रकारों को जो संविधान और धर्मनिरपेक्षता और पत्रकारिता के मूल्यों पे विश्वास करते हैं उन्हें अब साफ़ तौर पर खड़े होने की जरुरत है. उनके प्रोफेशन में अब अपराधी और गुंडे घुस आये हैं और उसकी अब सफाई की जरुरत है. राजनीति के नाम पर गुंडे देश को दंगो और घृणा की आग में धकलने में भी कोई शर्मिंदगी नहीं महसूस करते. देश को ऐसे लोगों से सावधान रहना होगा. यही लोग सोशल मीडिया को रेगुलेट कहने की बात कर रहे हैं लेकिन उन चैनलों को रेगुलेट करने की बात नहीं करते जो फर्जी खबरे बनाकर दिखा रहे हैं.
देश केवल संविधान की भावनाओं के आधार पर ही चल सकता है. पुलिस, मीडिया या राजनीति के लोग, सभी संविधान की सर्वोच्चता की बात कहकर ही बात आगे बढ़ सकती है. कोई हिंदूवादी नैतिकता नहीं, कोई इस्लामिक नैतिकता नहीं, कोई फिरकापरस्ती नहीं, मात्र संवैधानिक नैतिकता या मूल्य आगे किये जाए. धर्म आपके घर की वास्तु रहे. आप जिसे मानिए या न मानिए ये आपके व्यक्तिगत प्रश्न है. देश में सभी का हक़ है और कम से कम सत्ता में रहने वालो, प्रशासन के लोगो की नैतिकता तो संविधान की सर्वोच्चता को ही कायम रखना हो सकता है क्योंकि उसको छोड़ इस देश को कोई नहीं बचा सकता . देश में मंदिरों, मस्जिदों, गौशालाओ, चर्चो, गुरुद्वारों की कोई कमी नहीं और नहीं इनके सामने कोई पैसो का संकट. देश को आज अच्छी शिक्षा व्यवस्था चाहिए, बच्चो को समान शिक्षा, सबको घर, जन स्वस्थ्य, भूमि अधिकार, दलित आदिवासियों के हक़, पर्यवरण का संतुलन, साफ़ नदिया, साफ़ पानी, सुरक्षित और साफ़ खेती की जरुरत है. कृपया देश को भगवानो के मकडजाल में मत फंसाइए. योगी आदित्यनाथ हो या कोई, जनता ने उन्हें मंदिर मस्जिद बनाने के लिए नहीं चुना. उन्हें प्रदेश को स्वच्छ और साफ़ प्रशासन के लिए चुना. मोदी जी को देश में रोजगार और सुशासन के लिए चुना. देश अभी भी आपसे वही आशा करता है.
गाय के नाम पर राजनीति करने वाले कृपया बताये के गाये क्यों मर रही है. गाय हमारी कृषि व्यस्था का हिस्सा है. गाय पालने वाला किसान आज क्यों आत्महत्या कर रहा है. क्यों लोगो गाय नहीं पालना चाहते. गाय की राजनीति करने वालो ने कितने किसानों को बचाया. गाय पालने वाले आज दुखी है. क्या किया इस गौमाता सरकार ने. आज गाये सडको पर कूड़ा खा रही है. और उनके लिए कोई हॉस्पिटल नहीं है. उत्तर प्रदेश सरकार बताये के उसके पास कितने पशु चिकित्सक हैं जो गाय का ऑपरेशन कर सकते हैं? कितने पशु अस्पताल हैं जिनमें सभी सुविधाएं हैं. ये भी बतायें, कि प्रदेश में कितने स्थानों पर गौचर है. हाँ गौशालाओ की बात भी बतायें कि उनके हाल क्या है. उत्तर प्रदेश में कुल कितनी गौशालाएं हैं और उनको सरकारी अनुदान कितना है और वो कितनी गायों की देखभाल करते हैं और उनके स्थिति कैसी हैं. योगी जी ये भी बतायें कि ये गौशालाएं किनके नाम पर हैं और इनके नाम पर कितनी जमीन है. गायों के असली संरक्षक किसान हैं और वो मर रहे हैं लेकिन इस गौमाता अभियान का उद्देश्य गौशालाओ का धंधा मजबूत करना है ताकि बाद में बड़े सेठ इस पूरे अभियान की मदद से दूध की कंपनिया चलाये. गाय को किसान के हाथ से छुडाकर बड़े धंधेबाजो और सेठों को पहुचाने के लिए ही ये अभियान है.
एक अधिकारी की हत्या दुखद है. वैसे ही एक निर्दोष की हत्या भी दुखद है. देश को नफ़रत की आग में झोंकने वालों से सावधान रहने की जरुरत है. सभी से अनुरोध है कि शांति व्यवस्था रखे. अफवाहों से सावधान रहे और व्हाट्सएप के जरिए दंगा फ़ैलाने की कोशिश करने वालों से सावधान. भीड़ की राजनीति, उसके नेताओं और उनके रिश्तो का पर्दाफाश करें. जब देश के सभी संवैधानिक तंत्र अपनी आस्था और निष्ठा संविधान में रखेंगे तभी ये देश सुरक्षित रह पायेगा.