हत्यारों का सम्मान विद जयश्रीराम, ये है अपना न्यू इंडिया!

Written by Mohd Zahid | Published on: August 27, 2019
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को "जय श्रीराम" का नारा लगाते केवल इसलिए मार दिया गया क्योंकि बुलंदशहर में हो रहे मुसलमानों के एक धार्मिक आयोजन में हिंसा की साजिश कर रहे दंगाईयों के सामने वह आ गये, "जयश्रीराम" के उद्घोष के बीच लटका कर वह मार दिए गये।



अखलाक के हत्यारों को निष्पक्ष जाँच करके कानूनी दंड दिलाने के लिए निष्पक्ष प्रयास करने वाले सुबोध कुमार एक ईमानदार और कर्तव्य निष्ठा का पालन करने वाले पुलिस आफिसर थे, और उनके हत्यारों को मिली ज़मानत पर फूल मालाओं से हत्यारों का स्वागत सत्कार "जय श्रीराम" के उद्घोष के साथ किया गया और इन हत्यारों की सुरक्षा सुबोध कुमार की वही पुलिस कर रही थी।

मनोज बाजपेयी की फिल्म "शूल" याद आ गयी और याद आ गया उस फिल्म का नायक "समर प्रताप सिंह"।

गुजरात के दंगों में "जयश्रीराम" के नारों के साथ चलते हिंसक भीड़ से मुसलमानों को बचाने के लिए तत्कालीन मोदी सरकार से भिड़ जाने वाले संजीव भट्ट, भारत के इकलौते आईपीएस हैं जो इस कारण उम्रकैद की सज़ा काट रहे हैं, क्योंकि उनके कप्तान रहते उस जिले के किसी थाने की हिरासत में एक मौत हो गयी थी।

हेमंत करकरे, केवल इसलिए "जय श्रीराम" का उद्घोष करने वालों के लिए घृणा के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने संघ के आतंकवाद को दुनिया के सामने लाकर रख दिया। और मालेगाँव धमाके में झूठे गिरफ्तार मुसलमानों को रिहा करवा कर साध्वी प्रज्ञा और उसके गिरोह को धर दबोचा।

यह तीनों हिन्दू पुलिस अधिकारी हैं या थे, और इनके साथ देश के तीन भागों, गुजरात, यूपी और महाराष्ट्र में हो रहा व्यवहार देश का मौजूदा चरित्र बता रहा है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकारें भी इनके विरुद्ध हैं जबकि यह तीनों अपने कर्तव्य और शपथ का पालन करने वाले लोग रहे हैं। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि इस देश की 44% जनता ऐसी सरकारों को पुनः चुनती है। अर्थात देश की अधिकांश जनता इस अन्याय के साथ है।

राम, कृष्ण, विश्वामित्र, हरिश्चंद्र, धर्मयुद्ध के सिद्धांत सब आज इनके लिए व्यर्थ से हो गये हैं और सब जनमत साधू यादव के साथ है।

तो ऐसी स्थिति में याद आ जाते हैं फिल्म "गंगाजल" के एसपी अमित कुमार।

शहीद सुबोध कुमार की पत्नी रजनी सिंह अपने पति के हत्यारों के बाहर आने पर दहशत में हैं, और उनसे अपनी जान को खतरा बता रही हैं, प्रमाण दे रही हैं कि उनके पति के हत्यारों ने उनको भी जान से मारने की धमकी जेल के अंदर से दी है। सूबे का उपमुख्यमंत्री कह रहा है कि हत्यारों को सम्मानित करने को तिल का ताड़ बनाया जा रहा है।

संजीव भट्ट की पत्नी "श्वेता भट्ट" अपने पति को न्याय दिलाने के लिए इस दरवाजे से उस दरवाजे भटक रही हैं, रो रही हैं बिलख रही हैं, पर उनको न्याय मिलने की कोई उम्मीद दिख नहीं रही।

हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे पति की शहादत के बाद तमाम वित्तीय लाभ को लेने से इंकार करने के बाद स्वयं स्वर्ग सिधार गयीं।

कहने का अर्थ यह है कि इस देश में सिर्फ मुसलमान होना ही गुनाह नहीं है, उनकी रक्षा करना और भगवा गिरोह के खिलाफ काम करना भी गुनाह है। यह तीन हिन्दू पुलिस अधिकारियों की दर्दनाक कहानी है।

सारी व्यवस्था इसीलिए "मोगैम्बो" के सामने नतमस्तक है। यही आज के भारत की असली तस्वीर है।

 

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