आखिरकार हमें आयातित मूंग ओर मसूर की जहरीली दाल खरीद कर खाने पर क्यो मजबूर किया जा रहा है जबकि देश की सबसे बड़ी सरकारी फूड रेगुलेटर ऑथरिटी (FSSAI) यह साफ कह रही है कि मसूर और मूंग की दाल खाना आप बन्द ही कर दे क्योंकि वह जहरीली है. और हमारे पास ऐसी कोई व्यवस्था नही है जिससे यह पता लगाया जा सके कि यह स्थानीय है या आयातित.
FSSAI ने यह कहा है कि कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के किसान इन मूँग ओर मसूर की फसलों पर वहाँ के किसान एक ज़हरीली शाकनाशी दवा (herbicide ) Glyphosate प्रयोग करते हैं इस दवा के बारे में FSSAI ने लिखा है Glyphosate can adversely affect immunity to serious diseases and the absorption of mineral and vitamin nutrients, apart from disrupting protein-related functions.
कई देशो के स्टैंडर्ड में इस दवाई को शरीर में केंसर पैदा करने वाले तत्वों माना का कारक माना गया है.
आपको एक बात जानकर ओर आश्चर्य होगा कि इस बार दलहन फसलों की रिकार्ड घरेलू पैदावार हुई है चालू फसल वर्ष में दलहन फसलों की पैदावार 2.40 करोड़ टन तक होने का अनुमान है, जो घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है दालों के आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंध भी लगा दिया गया है पैदावार ज्यादा होने के कारण ही घरेलू बाजार में दालों की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बनी हुई हैं इसके बावजूद विदेशों से दालों का आयात अभी भी लगातार हो रहा है जबकि केंद्र सरकार द्वारा तय की गई मात्रा पहले ही पूरी हो चुकी है, अप्रैल से अगस्त के दौरान 8.12 लाख टन आयातित दालें भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुकी हैं.
दलहन कारोबारी बता रहे है कि चेन्नेई बंदरगाह पर लगातार आयातित उड़द पहुंच रही है सरकार कोई रोकथाम नही कर रही हैं कही यह इसलिए तो नही है क्योंकि भारत से प्रभावशाली धंधेबाज अडानी समूह का दाल के धंधे पर ख़ासा नियंत्रण है ? अडानी के पास देश के तटीय क्षेत्रों में व्यापारिक क्षेत्रों के महत्वपूर्ण बंदरगाह है.
अक्टूबर 2015 में अडानी समूह ने इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन एसोसियेशन (आईपीजीए) के साथ करार किया कि वह अपने सभी बंदरगाहों पर दाल का प्रबंधन करेगा. अडानी समूह खाने की सामग्री का व्यापार करने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से भी एक है.
अब आप खुद समझने की कोशिश कीजिए कि यदि पहले से देश मे दालो का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में हुआ है, ओर हमारी इम्पोर्ट लिमिट भी पूरी हो गयी है तो दालों का आयात कर हमे विदेशों से आयातित मूँग ओर मसूर की जहरीली दाल खाने पर मजबूर क्यो किया जा रहा है क्या सिर्फ इसलिए कि बड़े पूंजीपतियों ने इसके सौदे एडवांस में कर लिए थे उसे नुकसान से बचाने के लिए मोदी सरकार हमारा स्वास्थ्य दांव पर लगा रही है ? इससे पहले मोदी सरकार 1961 से प्रतिबंधित खेसारी दाल के उत्पादन पर लगी रोक को उठा चुकी है, एक बार फिर इस विषय मे हिंदी मीडिया की चुप्पी गहरे सवाल खड़े करती है.
FSSAI ने यह कहा है कि कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के किसान इन मूँग ओर मसूर की फसलों पर वहाँ के किसान एक ज़हरीली शाकनाशी दवा (herbicide ) Glyphosate प्रयोग करते हैं इस दवा के बारे में FSSAI ने लिखा है Glyphosate can adversely affect immunity to serious diseases and the absorption of mineral and vitamin nutrients, apart from disrupting protein-related functions.
कई देशो के स्टैंडर्ड में इस दवाई को शरीर में केंसर पैदा करने वाले तत्वों माना का कारक माना गया है.
आपको एक बात जानकर ओर आश्चर्य होगा कि इस बार दलहन फसलों की रिकार्ड घरेलू पैदावार हुई है चालू फसल वर्ष में दलहन फसलों की पैदावार 2.40 करोड़ टन तक होने का अनुमान है, जो घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है दालों के आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंध भी लगा दिया गया है पैदावार ज्यादा होने के कारण ही घरेलू बाजार में दालों की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बनी हुई हैं इसके बावजूद विदेशों से दालों का आयात अभी भी लगातार हो रहा है जबकि केंद्र सरकार द्वारा तय की गई मात्रा पहले ही पूरी हो चुकी है, अप्रैल से अगस्त के दौरान 8.12 लाख टन आयातित दालें भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुकी हैं.
दलहन कारोबारी बता रहे है कि चेन्नेई बंदरगाह पर लगातार आयातित उड़द पहुंच रही है सरकार कोई रोकथाम नही कर रही हैं कही यह इसलिए तो नही है क्योंकि भारत से प्रभावशाली धंधेबाज अडानी समूह का दाल के धंधे पर ख़ासा नियंत्रण है ? अडानी के पास देश के तटीय क्षेत्रों में व्यापारिक क्षेत्रों के महत्वपूर्ण बंदरगाह है.
अक्टूबर 2015 में अडानी समूह ने इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन एसोसियेशन (आईपीजीए) के साथ करार किया कि वह अपने सभी बंदरगाहों पर दाल का प्रबंधन करेगा. अडानी समूह खाने की सामग्री का व्यापार करने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से भी एक है.
अब आप खुद समझने की कोशिश कीजिए कि यदि पहले से देश मे दालो का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में हुआ है, ओर हमारी इम्पोर्ट लिमिट भी पूरी हो गयी है तो दालों का आयात कर हमे विदेशों से आयातित मूँग ओर मसूर की जहरीली दाल खाने पर मजबूर क्यो किया जा रहा है क्या सिर्फ इसलिए कि बड़े पूंजीपतियों ने इसके सौदे एडवांस में कर लिए थे उसे नुकसान से बचाने के लिए मोदी सरकार हमारा स्वास्थ्य दांव पर लगा रही है ? इससे पहले मोदी सरकार 1961 से प्रतिबंधित खेसारी दाल के उत्पादन पर लगी रोक को उठा चुकी है, एक बार फिर इस विषय मे हिंदी मीडिया की चुप्पी गहरे सवाल खड़े करती है.