आज हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पढ़कर मुझे इतनी हंसी आई कि आज अखबार नहीं पढ़ने का कोटा पूरा हो गया। अमूमन अखबारों में पढ़ने, हंसने या जानने के लिए कुछ ढूंढ़ना पड़ता है और मुझे अक्सर वह सब द टेलीग्राफ में मिलता है। आज हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे प्रमुखता से उपलब्ध कराया है। अमित शाह देश के गृहमंत्री हैं। सार्वजनिक रूप से सच-झूठ बोलकर उन्होंने अपनी जो छवि बनाई है उसके बाद उनके यह कहने का कि, "सरकार दंगाइयों को धर्म जाति और संबद्धता से अलग होकर सजा देगी" जो मतलब आप लगाना चाहें सो लगाइए। इसके साथ दिलचस्प यह है कि, "आप चाहें तो मुझे दोषी ठहराइए, दिल्ली पुलिस पर आरोप मत लगाइए। उनने पेशेवर ढंग से काम किया और दंगों को फैलने नहीं दिया .... उन्होंने हिंसा को दिल्ली के क्षेत्रफल के चार प्रतिशत और आबादी के 13 प्रतिशत में सीमित रखा।
अब दिल्ली पुलिस के बॉस अगर ऐसे बोलेंगे तो दिल्ली पुलिस को काम करने की क्या जरूरत है? पुलिस रोज शत-प्रतिशत लोगों या क्षेत्रफल के लिए काम नहीं करती है। उससे काम की अपेक्षा वहीं की जाती है जहां जरूरत हो। अव्वल तो उसका अस्तित्व ही शत प्रतिशत काम के लिए होता है और उसे बिना कुछ किए भी सब जगह समान शांति और कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखना होता है। दंगा या झगड़ा भी उसकी नालायकी या कमजोरी से ही होता है। यह बात अमूमन सभी राज्यों की पुलिस पर लागू होती है। पुलिस की जरूरत हिंसा, सांप्रदायिक तनाव, आपसी झगड़े आदि में ही होती है। अगर उसका बॉस ही कहे कि वह आबादी के एक प्रतिशत या लाखवें -करोड़वें हिस्से को सुरक्षा देने में नाकाम रही और उसने अच्छा काम किया है तो नतीजा क्या होगा आप समझ सकते हैं।
आपका पड़ोसी आपको कूट दे, पुलिस बचाने न आए तो आप हिसाब लगाइए कि जमीन से ऊपर 10वें या किसी माले पर क्षेत्रफल के हिसाब से दिल्ली पुलिस कितने छोटे क्षेत्र में चूक गई तथा आबादी में आप और आपका परिवार कितना प्रतिशत है। धन्य है मंत्री जी की यह सोच और तर्क। अगर पार्टी ऐसे ही सोचती है तो उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया जनता की क्या और कैसी सेवा कर पाएंगे उसका अनुमान लगाइए। पर अभी वह मुद्दा नहीं है। गृहमंत्री यह नहीं बता रहे कि दंगों के दौरान कितनी कॉल आई और कितनों पर पुलिस ने कार्रवाई की उसका प्रतिशत क्या है। और पुलिस तो छोड़िए दिल्ली दंगों में दमकल कितने नजर आए। बी टीम का भी इसपर कोई जवाब नहीं है। वे लोगों को बरगला रहे हैं, दिल्ली पुलिस का गलत बचाव कर रहे हैं।
मंत्री जी ने कहा है कि दंगाइयों को सजा दी जाएगी – पिछला इतिहास गवाह है कि सरकार किसी पार्टी की हो सजा नहीं मिलती है। और वे इसके लिए पुलिस को दोषी नहीं ठहरा रहे हैं। सजा तो 84 के दंगाइयों को नहीं मिली ना गुजरात के दंगाइयों को मिली। दो चार मामले अपवाद हैं और इस बारे में उन्हें संसद में असदुद्दीन ओवैसी ने अच्छी तरह बताया है। और सवाल भी पूछे हैं। उन्हें उनकी और नागरिक के रूप में पार्टी व कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी भी बताई है। पर बात दिल्ली दंगे की ही हो रही है। क्या जेएनयू के अपराधियों को सजा नहीं मिलनी चाहिए। या जामिया में लाइब्रेरी में घुसकर छात्रों को पीटने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। जेएनयू मामले में कितने पकड़े गए। कोमल शर्मा का क्या हुआ? वे नहीं बताएंगे ना अखबार वाले पूछेंगे।
बात इतनी ही नहीं है। अमित शाह ने यह भी कहा है कि अगर आप चाहें तो मुझे दोषी ठहराइए। पर यह नहीं कहा कि उससे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। राजनाथ सिंह जी पहले कह चुके हैं कि हमारे यहां इस्तीफे नहीं होते। मैं दोषी हूं या लापरवाह या नालायक आप मुझे दोषी ठहराइए मेरा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। मैं इस्तीफा नहीं देने वाला हूं। इससे मतदाताओं को समझना चाहिए कि वे उन्हें क्या समझते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि मतदाताओं को यह सब अच्छा लगता है या उनके मतलब का नहीं है। इसीलिए उन्हें तरक्की मिली और वे केंद्र में मंत्री हैं। वरना भारतीय जनता पार्टी एक पूर्व तड़ी पार को गृहमंत्री नहीं बनाती और अपने पूर्व गृहमंत्री पर बलात्कार का आरोप लगने पर उनका बचाव वैसे नहीं किया जाता जैसे किया गया है। बाकी क्या लिखना। सब चंगा सी।
अब दिल्ली पुलिस के बॉस अगर ऐसे बोलेंगे तो दिल्ली पुलिस को काम करने की क्या जरूरत है? पुलिस रोज शत-प्रतिशत लोगों या क्षेत्रफल के लिए काम नहीं करती है। उससे काम की अपेक्षा वहीं की जाती है जहां जरूरत हो। अव्वल तो उसका अस्तित्व ही शत प्रतिशत काम के लिए होता है और उसे बिना कुछ किए भी सब जगह समान शांति और कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखना होता है। दंगा या झगड़ा भी उसकी नालायकी या कमजोरी से ही होता है। यह बात अमूमन सभी राज्यों की पुलिस पर लागू होती है। पुलिस की जरूरत हिंसा, सांप्रदायिक तनाव, आपसी झगड़े आदि में ही होती है। अगर उसका बॉस ही कहे कि वह आबादी के एक प्रतिशत या लाखवें -करोड़वें हिस्से को सुरक्षा देने में नाकाम रही और उसने अच्छा काम किया है तो नतीजा क्या होगा आप समझ सकते हैं।
आपका पड़ोसी आपको कूट दे, पुलिस बचाने न आए तो आप हिसाब लगाइए कि जमीन से ऊपर 10वें या किसी माले पर क्षेत्रफल के हिसाब से दिल्ली पुलिस कितने छोटे क्षेत्र में चूक गई तथा आबादी में आप और आपका परिवार कितना प्रतिशत है। धन्य है मंत्री जी की यह सोच और तर्क। अगर पार्टी ऐसे ही सोचती है तो उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया जनता की क्या और कैसी सेवा कर पाएंगे उसका अनुमान लगाइए। पर अभी वह मुद्दा नहीं है। गृहमंत्री यह नहीं बता रहे कि दंगों के दौरान कितनी कॉल आई और कितनों पर पुलिस ने कार्रवाई की उसका प्रतिशत क्या है। और पुलिस तो छोड़िए दिल्ली दंगों में दमकल कितने नजर आए। बी टीम का भी इसपर कोई जवाब नहीं है। वे लोगों को बरगला रहे हैं, दिल्ली पुलिस का गलत बचाव कर रहे हैं।
मंत्री जी ने कहा है कि दंगाइयों को सजा दी जाएगी – पिछला इतिहास गवाह है कि सरकार किसी पार्टी की हो सजा नहीं मिलती है। और वे इसके लिए पुलिस को दोषी नहीं ठहरा रहे हैं। सजा तो 84 के दंगाइयों को नहीं मिली ना गुजरात के दंगाइयों को मिली। दो चार मामले अपवाद हैं और इस बारे में उन्हें संसद में असदुद्दीन ओवैसी ने अच्छी तरह बताया है। और सवाल भी पूछे हैं। उन्हें उनकी और नागरिक के रूप में पार्टी व कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी भी बताई है। पर बात दिल्ली दंगे की ही हो रही है। क्या जेएनयू के अपराधियों को सजा नहीं मिलनी चाहिए। या जामिया में लाइब्रेरी में घुसकर छात्रों को पीटने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। जेएनयू मामले में कितने पकड़े गए। कोमल शर्मा का क्या हुआ? वे नहीं बताएंगे ना अखबार वाले पूछेंगे।
बात इतनी ही नहीं है। अमित शाह ने यह भी कहा है कि अगर आप चाहें तो मुझे दोषी ठहराइए। पर यह नहीं कहा कि उससे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। राजनाथ सिंह जी पहले कह चुके हैं कि हमारे यहां इस्तीफे नहीं होते। मैं दोषी हूं या लापरवाह या नालायक आप मुझे दोषी ठहराइए मेरा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। मैं इस्तीफा नहीं देने वाला हूं। इससे मतदाताओं को समझना चाहिए कि वे उन्हें क्या समझते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि मतदाताओं को यह सब अच्छा लगता है या उनके मतलब का नहीं है। इसीलिए उन्हें तरक्की मिली और वे केंद्र में मंत्री हैं। वरना भारतीय जनता पार्टी एक पूर्व तड़ी पार को गृहमंत्री नहीं बनाती और अपने पूर्व गृहमंत्री पर बलात्कार का आरोप लगने पर उनका बचाव वैसे नहीं किया जाता जैसे किया गया है। बाकी क्या लिखना। सब चंगा सी।