एमपी पुलिस ने किसके आदेश पर एक मुस्लिम दिहाड़ी मजदूर का घर ढहा दिया?

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 1, 2021
एक मामूली आवास को ढहाती जेसीबी, शायद एक समुदाय को राज्य की असीमित शक्तियों के बारे में याद दिला रही है 



'जहां से पत्थर आएंगे, वहीं से तो निकाले जाएंगे', मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के ये शब्द एक गरीब मुस्लिम व्यक्ति का घर ढहाने का जस्टिफिकेशन देने के हैं। यह इस बात का संकेत है कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा संचालित राज्य में चीजें पहले से ही कैसी हैं। मंत्री के शब्द भी एक स्पष्ट संकेत हैं कि राज्य सरकार का मुसलमानों के प्रति दृष्टिकोण, खासकर यदि वे आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के हैं। घर ढहाकर पुलिस ने भीड़ पर ‘पत्थरबाजी’ के आरोपों की तुरंत सजा दी है जिसकी अभी जांच भी नहीं हुई। 

एक दिहाड़ी मजदूर ने बड़ी मशक्कत के बाद पाई पाई जोड़कर घर बनाया था। लेकिन प्रशासन ने जेसीबी चलाकर उसके परिवार को बेघर कर दिया। जेसीबी का यह पंजा शायद पूरे समुदाय के लिए एक मजबूत संदेश है, कि सांप्रदायिक ढलान और हमलों का विरोध करने के किसी भी प्रयास से दृढ़ता से निपटा जाएगा। राज्य के गृह मंत्री ने मुस्लिम के घर पर उज्जैन में किए जा रहे विध्वंस अभियान पर मीडिया के सवालों के जवाब में 'चेतावनी' जारी की थी।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यहां भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) ने कथित रूप से भड़काऊ नारे लगाए। उनका काफिला बेगम बाग क्षेत्र से होकर गुजरा, जिसके परिणामस्वरूप कथित पत्थरबाजी हुई। इसके बाद उज्जैन जिला प्रशासन को 26 दिसंबर को मुस्लिम बहुल इलाके में अपनी विध्वंस कार्रवाई शुरू करने के लिए निर्धारित किया। पीड़ित अब्दुल रफीक था, जिसके घर में कोहराम मच गया।

अब्दुल रफीक को उसकी पड़ोसी मीरा बाई ने पनाह दी है जो एक हिंदू महिला है। वह बहादुरी से रफीक के पक्ष में है और उसका कहना है कि पीड़ित का घर ढहाने का पुलिस के पास कोई कारण नहीं था। वह एक दैनिक मजदूर है, जिसे घर बनाने में 35 साल लगे। पुलिस जिसे अवैध जमीन पर बता रही है वह भूखंड सरकार द्वारा आवंटित किया गया था। 35 साल में बने इस आशियाने को ढहाने में जेसीबी को 35 मिनट से भी कम समय लगा।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, रफीक कहते हैं, "पुलिस को दो महिलाओं की तलाश थी, जिनकी पहचान हीना और यासमीन के रूप में की गई थी," क्योंकि उन्हें कथित तौर पर BJYM की रैली में 25 दिसंबर को मीरा की छत से पथराव करते हुए देखा गया था।" हालाँकि पुलिस को जब पता चला कि "मीरा एक हिंदू है" तो वह अगले दरवाजे की तरफ बढ़ गई जो रफीक का घर था। 10 बच्चों सहित उनका परिवार कुछ ही मिनटों में बेघर हो गया।

राज्य सरकार इस पूरे मामले को भू-माफियाओं पर कार्यवाही का नाम दे रही है। खुद सीएम ऑफिस का ट्वीट इस  बात की गवाही दे रहा है। 



सरकार और प्रशासन का संदेश स्पष्ट है कि उसकी नज़र में एक संप्रदाय विशेष दोयम दर्जे का नागिरक है। इसलिये जैसा चाहे, जिस तरह चाहे उसके साथ सलूक किया जाए, वह संप्रदाय अगर विरोध प्रदर्शन करेगा तो उसके आंदोलन को कुचल जाएगा, प्रदर्शन में शामिल लोगों को मनमाने तरीक़े से परेशान किया जाएगा। अगर दुर्भाग्य से प्रदर्शन में हिंसा हो जाती है तब उन लोगों की संपत्तियों को तहस नहस किया जाएगा। यह सवाल नहीं होगा कि उन्मादी भीड़ भड़काऊ नारे क्यों लगा रही है? और अगर जुलूस निकाला ही जा रहा है तब उसमें एक समुदाय को आतंकित करने, उसे अपमानित करने के नारे क्यों लगाए जा रहे हैं? जिस संप्रदाय के खिलाफ नारेबाजी की जा रही है उसे यह बताने की कोशिश की जा रही है, कि तुम हमारे रहमोकरम पर हो, हम जब चाहें, जैसे चाहें तुम्हारी खिलाफ नारेबाजी कर सकते हैं, तुम्हें आतंकित कर सकते हैं। और फिर बाक़ी काम ‘हमारी’ सरकार और पुलिस करेगी। वह संप्रदाय विशेष के घरों में घुसकर तोड़फोड़ करेगी, महिलाओं के साथ बदसलूकी करेगी, मकानों पर बुल्डोजर चलाएगी और फिर एनएसए जैसे संगीन क़ानून का मनमाना इस्तेमाल किया जाएगा। मध्यप्रदेश के मंदसौर और उज्जैन में बीते दो दिनों में घटी घटनाओं में यह सब देखने को मिला है। 

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