यूपी विधानसभा सत्र के पहले दिन सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के पैदल मार्च को पुलिस द्वारा रोकने का मुद्दा दूसरे दिन सदन में उठा। समाजवादी पार्टी विधायकों ने पुलिस की ओर से पैदल मार्च रोकने के लिए बाध्य करने का सवाल उठाया। हालांकि, संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने आरोपों के जवाब में कहा कि वे बिना मंजूरी लिए पैदल मार्च करना चाहते थे। ऐसे में इसे अवमानना का मामला नहीं माना जा सकता। इसके साथ ही प्रदेश में बिगड़ी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं का आरोप लगाते हुए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने मंगलवार को विधानसभा में जमकर हंगामा किया।
नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने सरकार पर गरीबों को उचित इलाज और चिकित्सा सुविधाएं नहीं देने का आरोप लगाया। कहा, प्रदेश में लोगों को इलाज नहीं मिलने के कारण मानवाधिकार आयोग को सरकार से जवाब तलब करना पड़ रहा है जबकि डबल इंजन की भाजपा सरकार विश्व में सबसे बेहतरीन कार्य यूपी में होने का दावा करती है। प्रश्नकाल की शुरुआत में सपा और रालोद के सदस्यों ने वेल में आकर नारेबाजी की और सरकार के जवाब से असंतुष्ट होने पर अखिलेश यादव ने वॉक आउट का ऐलान कर दिया। बाद में कार्यवाही शुरू होने के बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष में जमकर सवाल-जवाब हुए।
नेता प्रतिपक्ष ने प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का सवाल उठाते हुए कहा कि अगर सरकार के पास बजट नहीं है तो मुख्यमंत्री को स्वीकार करना चाहिए। प्रश्नकाल शुरू होते ही नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने सीतापुर में एक मरीज को लखनऊ में भर्ती नहीं करने पर मानवाधिकार आयोग की ओर से सरकार को दिए गए नोटिस का मुद्दा उठाया। सपा और रालोद के विधायकों ने मामले को नियम 311 के तहत उठाते हुए सदन की कार्यवाही रोककर इस पर चर्चा कराने की मांग की। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि यह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है कि नियम 311 के तहत सदन की कार्यवाही रोककर चर्चा कराई जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी सदस्य सदन का समय बर्बाद कर बेवजह हंगामा कर रहे हैं। जबकि योगी सरकार में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सहित हर क्षेत्र में सुधार हुआ है।
संसदीय कार्यमंत्री के बयान के बाद सपा और रालोद के विधायकों ने वेल में आकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडेय ने मांग रखी कि प्रश्नकाल के बाद नियम 56 के तहत इस मुद्दे पर चर्चा कराई जाए। जिसके विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना द्वारा मान लिए जाने पर विपक्षी दलों का हंगामा शांत हुआ।
लेकिन प्रश्नकाल समाप्त होने के बाद नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने सीतापुर मामले को पुन: सदन में रखते हुए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर सरकार पर निशाना साधा। अखिलेश ने आरोप लगाया कि अस्पतालों में इलाज नहीं मिलने के कारण मरीजों की मौत हो रही है। मरीजों को घर से अस्पताल तक लाने के लिए एम्बुलेंस नहीं मिल रही है। इतना ही नहीं अस्पताल में जिन मरीजों की मौत हो रही है उन्हें भी वापस घर तक भेजने की कोई व्यवस्था नहीं है। कहीं लोग मोटर साइकिल पर लाश ले जा रहे हैं तो कहीं पर ठेले पर रखकर लाश ले जाने को मजबूर हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पतालों में खून, पेशाब की जांच नहीं हो रही है और एक्सरे, एमआरआई और सीटी स्कैन जैसी जांच को सरकार निजी हाथों में दे रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने गोंडा में गर्भवती महिला को गलत इंजेक्शन लगाने से हुई उसकी मौत का मुद्द उठाते हुए कहा कि कन्नौज मेडिकल कॉलेज के हृदयरोग विभाग पर ताले लगे मिले हैं, मेडिकल कॉलेज में कुत्ते घूमते मिले। अखिलेश ने आरोप लगाया कि सरकार ने एक रुपये की अस्पताल पर्ची की कीमत 10 रुपये कर दी है। यही नहीं, मुख्यमंत्री राहत कोष या विधायक निधि से होने वाले इलाज में भी सरकार कंजूसी कर रही है।
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि झोलाछाप डॉक्टर की तरह उप मुख्यमंत्री भी छापामार मंत्री हो गए हैं। उन्होंने कहा कि जैसे झोलाछाप डाक्टर की कोई मान्यता नहीं है ऐसे ही उप मुख्यमंत्री की भी कोई मान्यता नहीं है। उप मुख्यमंत्री की ओर से इतनी छापेमारी की गई, वह खुद शर्मिंदा भी हुए लेकिन इसका अस्पतालों की व्यवस्था पर कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि इनके उप मुख्यमंत्री बनने से दो मंत्री बेरोजगार हो गए। चिकित्सा विभाग में तबादले हो गए मंत्री को पता नहीं चला। उन्होंने कहा कि लगता है कि नेता सदन उप मुख्यमंत्री को बजट नहीं दे रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि प्रदेश में मेडिकल कॉलेज मानक के विपरीत चलने और सरकार पर चिकित्सकों की स्थायी भर्ती करने की जगह आउटसोर्सिंग करने के भी आरोप लगाए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नेता प्रतिपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि सपा और सच एक नदी के दो किनारे हैं जो कभी एक नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार सहित हर क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रही है ऐसे में नेता प्रतिपक्ष यदि सहयोग नहीं कर सकते हैं तो अड़ंगा भी न लगाएं।
उधर, मंगलवार को बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी प्रदेश की योगी सरकार पर जमकर हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा सरकार विपक्ष के खिलाफ तानाशाही प्रवृत्ति अपना रही है जो कि घातक है। विपक्षी पार्टियों को धरना प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देना भाजपा सरकार की तानाशाही है। माना जा रहा है कि बसपा सुप्रीमो इशारों-इशारों में सपा के समर्थन में बोल रही हैं। चूंकि गत दिवस सपा की पदयात्रा को विधानसभा पहुंचने से पहले ही रोक दिया गया और सपाइयों ने सड़क पर ही छद्म विधानसभा लगाई।
मायावती ने ताबड़तोड़ ट्वीट कर कहा कि विपक्षी पार्टियों को सरकार की जनविरोधी नीतियों व उसकी निरंकुशता तथा जुल्म-ज्यादती आदि को लेकर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देना भाजपा सरकार की नई तानाशाही प्रवृति हो गई है। साथ ही, बात-बात पर मुकदमे व लोगों की गिरफ्तारी एवं विरोध को कुचलने की बनी सरकारी धारणा अति-घातक है।
इसी क्रम में इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा फीस में एकमुश्त भारी वृद्धि करने के विरोध में छात्रों के आन्दोलन को जिस प्रकार कुचलने का प्रयास जारी है वह अनुचित व निन्दनीय है। यूपी सरकार अपनी निरंकुशता को त्याग कर छात्रों की वाजिब मांगों पर सहानुभतिपूर्वक विचार करे, यह बसपा की मांग है। महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, बदहाल सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था आदि के प्रति यूपी सरकार की लापरवाही के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन नहीं करने देने व उनपर दमन चक्र के पहले भाजपा जरूर सोचे कि विधानभवन के सामने बात-बात पर सड़क जाम करके आमजन जीवन ठप करने का उनका क्रूर इतिहास है।
खास है कि विधानसभा सत्र के पहले दिन सोमवार को सपा ने पार्टी कार्यालय से विधानभवन की ओर पैदल मार्च किया था तो उन्हें रोक दिया गया था जिस पर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने नाराजगी जताई थी और कहा था कि भाजपा सरकार ने लोकतंत्र की हत्या की है। सदन की कार्यवाही में शामिल होना विधायकों का संवैधानिक व लोकतांत्रिक अधिकार है। लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि सरकार पुलिस बल लगाकर विधायकों को कार्यवाही में शामिल न होने दें। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार इससे साबित कर रही है कि वह जनाक्रोश के डर से कितना असुरक्षित महसूस कर रही है। सत्ता जितनी कमजोर होती है, दमन उतना ही अधिक बढ़ता है।
यही नहीं, अखिलेश यादव ने एलान किया कि सपा लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने के लिए सदन और सड़क का रास्ता अपनाएगी। भाजपा सरकार की गलत नीतियों का विरोध करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार सभी स्वास्थ्य सेवाओं को प्राइवेट कर देना चाहती है जिससे इलाज आम लोगों से दूर जो जाएगा। उन्होंने इस दौरान सपा सरकार में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर किए गए कार्यों का ब्यौरा दिया। सपा सुप्रीमो ने मॉनसून सत्र से पहले किसानों के मुद्दे पर भी योगी सरकार पर निशाना साधा था। कहा था कि उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रहा है कि कुछ हिस्सों में बाढ़ है, कुछ हिस्सों में सूखा है और अभी भी किसानों को कोई राहत नहीं दी गई है।
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नेता प्रतिपक्ष ने प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का सवाल उठाते हुए कहा कि अगर सरकार के पास बजट नहीं है तो मुख्यमंत्री को स्वीकार करना चाहिए। प्रश्नकाल शुरू होते ही नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने सीतापुर में एक मरीज को लखनऊ में भर्ती नहीं करने पर मानवाधिकार आयोग की ओर से सरकार को दिए गए नोटिस का मुद्दा उठाया। सपा और रालोद के विधायकों ने मामले को नियम 311 के तहत उठाते हुए सदन की कार्यवाही रोककर इस पर चर्चा कराने की मांग की। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि यह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है कि नियम 311 के तहत सदन की कार्यवाही रोककर चर्चा कराई जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी सदस्य सदन का समय बर्बाद कर बेवजह हंगामा कर रहे हैं। जबकि योगी सरकार में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सहित हर क्षेत्र में सुधार हुआ है।
संसदीय कार्यमंत्री के बयान के बाद सपा और रालोद के विधायकों ने वेल में आकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडेय ने मांग रखी कि प्रश्नकाल के बाद नियम 56 के तहत इस मुद्दे पर चर्चा कराई जाए। जिसके विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना द्वारा मान लिए जाने पर विपक्षी दलों का हंगामा शांत हुआ।
लेकिन प्रश्नकाल समाप्त होने के बाद नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने सीतापुर मामले को पुन: सदन में रखते हुए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर सरकार पर निशाना साधा। अखिलेश ने आरोप लगाया कि अस्पतालों में इलाज नहीं मिलने के कारण मरीजों की मौत हो रही है। मरीजों को घर से अस्पताल तक लाने के लिए एम्बुलेंस नहीं मिल रही है। इतना ही नहीं अस्पताल में जिन मरीजों की मौत हो रही है उन्हें भी वापस घर तक भेजने की कोई व्यवस्था नहीं है। कहीं लोग मोटर साइकिल पर लाश ले जा रहे हैं तो कहीं पर ठेले पर रखकर लाश ले जाने को मजबूर हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पतालों में खून, पेशाब की जांच नहीं हो रही है और एक्सरे, एमआरआई और सीटी स्कैन जैसी जांच को सरकार निजी हाथों में दे रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने गोंडा में गर्भवती महिला को गलत इंजेक्शन लगाने से हुई उसकी मौत का मुद्द उठाते हुए कहा कि कन्नौज मेडिकल कॉलेज के हृदयरोग विभाग पर ताले लगे मिले हैं, मेडिकल कॉलेज में कुत्ते घूमते मिले। अखिलेश ने आरोप लगाया कि सरकार ने एक रुपये की अस्पताल पर्ची की कीमत 10 रुपये कर दी है। यही नहीं, मुख्यमंत्री राहत कोष या विधायक निधि से होने वाले इलाज में भी सरकार कंजूसी कर रही है।
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि झोलाछाप डॉक्टर की तरह उप मुख्यमंत्री भी छापामार मंत्री हो गए हैं। उन्होंने कहा कि जैसे झोलाछाप डाक्टर की कोई मान्यता नहीं है ऐसे ही उप मुख्यमंत्री की भी कोई मान्यता नहीं है। उप मुख्यमंत्री की ओर से इतनी छापेमारी की गई, वह खुद शर्मिंदा भी हुए लेकिन इसका अस्पतालों की व्यवस्था पर कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि इनके उप मुख्यमंत्री बनने से दो मंत्री बेरोजगार हो गए। चिकित्सा विभाग में तबादले हो गए मंत्री को पता नहीं चला। उन्होंने कहा कि लगता है कि नेता सदन उप मुख्यमंत्री को बजट नहीं दे रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि प्रदेश में मेडिकल कॉलेज मानक के विपरीत चलने और सरकार पर चिकित्सकों की स्थायी भर्ती करने की जगह आउटसोर्सिंग करने के भी आरोप लगाए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नेता प्रतिपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि सपा और सच एक नदी के दो किनारे हैं जो कभी एक नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार सहित हर क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रही है ऐसे में नेता प्रतिपक्ष यदि सहयोग नहीं कर सकते हैं तो अड़ंगा भी न लगाएं।
उधर, मंगलवार को बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी प्रदेश की योगी सरकार पर जमकर हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा सरकार विपक्ष के खिलाफ तानाशाही प्रवृत्ति अपना रही है जो कि घातक है। विपक्षी पार्टियों को धरना प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देना भाजपा सरकार की तानाशाही है। माना जा रहा है कि बसपा सुप्रीमो इशारों-इशारों में सपा के समर्थन में बोल रही हैं। चूंकि गत दिवस सपा की पदयात्रा को विधानसभा पहुंचने से पहले ही रोक दिया गया और सपाइयों ने सड़क पर ही छद्म विधानसभा लगाई।
मायावती ने ताबड़तोड़ ट्वीट कर कहा कि विपक्षी पार्टियों को सरकार की जनविरोधी नीतियों व उसकी निरंकुशता तथा जुल्म-ज्यादती आदि को लेकर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देना भाजपा सरकार की नई तानाशाही प्रवृति हो गई है। साथ ही, बात-बात पर मुकदमे व लोगों की गिरफ्तारी एवं विरोध को कुचलने की बनी सरकारी धारणा अति-घातक है।
इसी क्रम में इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा फीस में एकमुश्त भारी वृद्धि करने के विरोध में छात्रों के आन्दोलन को जिस प्रकार कुचलने का प्रयास जारी है वह अनुचित व निन्दनीय है। यूपी सरकार अपनी निरंकुशता को त्याग कर छात्रों की वाजिब मांगों पर सहानुभतिपूर्वक विचार करे, यह बसपा की मांग है। महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, बदहाल सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था आदि के प्रति यूपी सरकार की लापरवाही के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन नहीं करने देने व उनपर दमन चक्र के पहले भाजपा जरूर सोचे कि विधानभवन के सामने बात-बात पर सड़क जाम करके आमजन जीवन ठप करने का उनका क्रूर इतिहास है।
खास है कि विधानसभा सत्र के पहले दिन सोमवार को सपा ने पार्टी कार्यालय से विधानभवन की ओर पैदल मार्च किया था तो उन्हें रोक दिया गया था जिस पर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने नाराजगी जताई थी और कहा था कि भाजपा सरकार ने लोकतंत्र की हत्या की है। सदन की कार्यवाही में शामिल होना विधायकों का संवैधानिक व लोकतांत्रिक अधिकार है। लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि सरकार पुलिस बल लगाकर विधायकों को कार्यवाही में शामिल न होने दें। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार इससे साबित कर रही है कि वह जनाक्रोश के डर से कितना असुरक्षित महसूस कर रही है। सत्ता जितनी कमजोर होती है, दमन उतना ही अधिक बढ़ता है।
यही नहीं, अखिलेश यादव ने एलान किया कि सपा लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने के लिए सदन और सड़क का रास्ता अपनाएगी। भाजपा सरकार की गलत नीतियों का विरोध करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार सभी स्वास्थ्य सेवाओं को प्राइवेट कर देना चाहती है जिससे इलाज आम लोगों से दूर जो जाएगा। उन्होंने इस दौरान सपा सरकार में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर किए गए कार्यों का ब्यौरा दिया। सपा सुप्रीमो ने मॉनसून सत्र से पहले किसानों के मुद्दे पर भी योगी सरकार पर निशाना साधा था। कहा था कि उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रहा है कि कुछ हिस्सों में बाढ़ है, कुछ हिस्सों में सूखा है और अभी भी किसानों को कोई राहत नहीं दी गई है।
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