कारखाना अधिनियम संशोधन कानून वापस ले योगी सरकार, 12 घंटे काम कराना आधुनिक गुलामी: वर्कर्स फ्रंट

Written by Navnish Kumar | Published on: August 2, 2024
"कारखाना अधिनियम में संशोधन कर काम के घंटे 12 करने का कानून बनाना और बोनस ना देने वाले मालिकों की गिरफ्तारी से छूट देने का कानून मजदूर विरोधी है इसे वापस लिया जाये। कहा कि काम के घंटे 12 करने से मजदूरों की कार्य क्षमता पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ेगा। इस संशोधन से बेरोजगारी बढ़ेगी। करीब 33 परसेंट मजदूरों की छटंनी तय है।"



उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कल विधानसभा में कारखाना अधिनियम संशोधन कानून और बोनस संदाय संशोधन कानून पारित करने का यूपी वर्कर्स फ्रंट ने कड़ा विरोध किया है। वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि उत्तर प्रदेश में कॉर्पोरेट घरानों के पूंजी निवेश को आकर्षित करने और उत्तर प्रदेश की इकोनॉमी को एक ट्रिलियन बनाने के नाम पर उत्तर प्रदेश सरकार मजदूरों को आधुनिक गुलामी में धकेलने में लगी है। कारखाना अधिनियम में संशोधन करके काम के घंटे 12 करने का कानून बनाना और बोनस ना देने वाले मालिकों की गिरफ्तारी से छूट देने का कानून मजदूर विरोधी है, इसे वापस लिया जाना चाहिए।   

उन्होंने बताया कि काम के घंटे 12 करने से मजदूरों की कार्य क्षमता पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ेगा और वह उत्पादन करने में लगातार अक्षम होते जाएंगे। इतना ही नहीं पहले से ही भीषण बेरोजगारी का दंश झेल रहे उत्तर प्रदेश में यह संशोधन बेरोजगारी को और बढ़ाने का काम करेगा। अभी उद्योगों में कार्यरत करीब 33 परसेंट मजदूरों की छटंनी हो जाएगी, जो 8 घंटे की तीन शिफ्ट में आज काम कर रहे हैं। यह कानून काम के घंटे 8 करने के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के कन्वेंशन, जिसका भारत सरकार भी हस्ताक्षर कर्ता है, का सरासर उल्लंघन है।

कोरोना महामारी के समय भी उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे लागू करने का प्रयास किया था। जिस पर वर्कर्स फ्रंट की जनहित याचिका में मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जवाब-तलब करने के बाद सरकार ने वापस ले लिया था। यूपी वर्कर्स फ्रंट द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, इस मजदूर विरोधी संशोधन कानूनों के संबंध में सभी ट्रेड यूनियन संगठनों से बात की जाएगी और उत्तर प्रदेश में इसे वापस कराने के लिए अभियान चलाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि यह बेहद चिंताजनक है कि उत्तर प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी का वेज रिवीजन 2019 से ही लंबित पड़ा हुआ है, और इसे करने को सरकार तैयार नहीं है। परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी केंद्र सरकार के सापेक्ष बेहद कम है। यही नहीं असंगठित मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए 2008 में कानून बना है। साथ ही कारखाना संशोधन अधिनियम को जल्द वापस किया जाय। 

प्रदेश में ई-श्रम पोर्टल पर 8 करोड़ से ज्यादा असंगठित मजदूरों का पंजीकरण हुआ है। लेकिन उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए कोई भी योजना सरकार चलाने को तैयार नहीं है। स्पष्टत: सरकार का चरित्र कॉर्पोरेट पक्षधर और मजदूर विरोधी दिखता है।

मई दिवस पर भी उठाया गया था मुद्दा

मई दिवस पर एजेंडा लोकसभा चुनाव पर मजदूरों से हुए संवाद में ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर ने मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि देश में डंडे का लोकतंत्र चल रहा है। हालत 'जबरा मारे और रोहुअ न दें...' की हो गई है। पूंजीपति घरानों के सामने घुटना टेकने वाली भाजपा सरकार असहमति की आवाज पर बर्बर दमन ढा रही है। पूरा देश जेलखाने में तब्दील हो गया है। उत्तर प्रदेश में ही निजीकरण पर रोक और अपने जायज सवालों को उठाने पर बिजली कर्मचारियों का निर्मम दमन किया गया, सैकड़ों लोगों को सस्पेंड किया गया, वेतन व पेंशन काटा गया और उनके ऊपर एफआईआर दर्ज कराई गई है। यदि देश का नागरिक बोल भी न पाए और अन्याय का प्रतिकार भी न कर सके तो किस बात का लोकतंत्र देश में रहेगा। लोकतंत्र वंचित समुदायों के विकास व अधिकार और शोषण, उत्पीड़न, अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए अनिवार्य है।
 
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में तो हालत बेहद खराब है मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी का भाजपा राज में पिछले 6 सालों से वेज रिवीजन नहीं हुआ। इसके कारण मजदूर इस महंगाई में बेहद मुश्किलों में अपने परिवार का जीवन यापन कर पा रहे हैं। पूरे औद्योगिक क्षेत्र में गैर कानूनी ढंग से ठेका प्रथा चलाई जा रही है, स्थाई कामों में ठेका प्रथा प्रतिबंधित करने के बावजूद बेहद कम मजदूरी पर पूरी जिंदगी मजदूरों से ठेका प्रथा में काम कराया जाता है। ठेका मजदूरों की पक्की नौकरी और उनकी सामाजिक सुरक्षा की गारंटी ही मजदूरों के जीवन में खुशहाली ला सकती है।

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