बाबा साहेब के अांबेडकर सरनेम की सच्ची कहानी

Written by नितिन जयभीम | Published on: May 1, 2018

‪(1) बाबासाहेब डॉ. डॉ. आंबेडकर के गाँव का नाम “आंबेडवे“ है। मैं वहा जाके आया हूं।



(2) पिता सुभेदार रामजी बाबा और माता भीमाई का सरनेम सकपाळ था।

(3) पिता  ख़ुद ब्रिटिश मिलीट्री में उच्च पद पर थे और मिलीट्री स्कूल के प्रिंसिपल थे।

(4) बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की रमाई के साथ शादी तय होने से पहले परिवार के लोगों ने बाबासाह ब का किसी और लड़की के साथ रिश्ता तय किया था। उस रिश्ते को तोड़कर पिता ने बाबासाहेब का रिश्ता रमाई के साथ कर दिया था। इसीलीये समाज को जुर्माना भी दिया था।

(5) बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर खुद कहते है की उनके पिता बहुत डीसीप्लींड व्यक्ति थे। बच्चों के भविष्य और शिक्षा के बारे में वह बहुत सजग थे।

(6) पिता जी के कई मित्र भी शिक्षक थे।

(7) पिता जी आर्मी से रिटायर्ड होने के बाद मध्य प्रदेश जाकर कबीर धर्म की दिक्षा ली थी।

(8) पिता ने कबीर के विचार बाबासाहेब डाॅ. आंबेडकर को अवगत करवाये थे।

(9) बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के तीन गुरू है (1) बुद्ध (2) कबीर (3) फुले।

(10) 1956 के नागपुर में आयोजित धम्म दिक्षा समारोह में दिक्षा भुमी में बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने उनके पिता रामजी बाबा का फ़ोटो पंडाल पर सबसे उँचा लगाया था।

ऐसा बड़ा इंसान रामजी बाबा अपने बच्चे का सरनेम एक छोटे से ब्राह्मण मास्टर को बदलने देगा?

ये असंभव है। ‬

बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का सरनेम उनके पिता रामजी बाबा ने ख़ुद बदलकर अपने गाँव के नाम पर रखा है। क्यूंकी कोंकण में इंसान का सरनेम गाँव के नाम पर ही रखा जाता है।

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