लोकेश सलारपुरी ने यह तस्वीर अपनी फेसबुक पोस्ट करते हुए लिखा है कि भाजपा और उसके तथाकथित थिंकटैंक का असली डर किसान मूवमेंट की इस ताक़त से है जो इस फ़ोटो में दिख रही है!। मुजफ्फरनगर में जिस ताक़त को सांप्रदायिक दंगे में झोंक कर तोड़ दिया गया था वही साम्प्रदायिक सद्भाव इस किसान मूवमेंट में दोबारा से बनता नजर आ रहा है!। यही भाजपा की परेशानी है!। कहते हैं कि कुल और जल कब कहां बिछड़ कर, कब मिल जाये कोई नही जानता...। किसान भी एक कुल एक परिवार ही है!
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अब अगर इस बात को उर्दू शायर फैज के शब्दों में बयां किया जाए तो कुछ यूं कहा सकता है कि - 'वो बात सारे फसाने में जिसका जिक्र ही न था, वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है।' दरअसल भाजपा की यह सबसे सोची समझी और वैल टेस्टिड रणनीति है कि मुसलमान हो या दलित, किसान हो या मजदूर, बिहार हो या अब पश्चिमी बंगाल, लक्ष्य तय करो और उस पर साम दाम दंड भेद इतना फोकस कर दो कि सभी को वही नजर आए जो वह दिखाना चाहती है। कुछ समय के लिए बाकी चीजे नजर आना ही बंद हो जाए।
शाहीन बाग इसी रणनीति का हिस्सा था तो अब किसान आंदोलन में उसी तरह की कोशिश रणनीति का हिस्सा नजर आ रहा है। भाजपा व उनके प्रचारक डराने की कोशिश कर रहे हैं कि इस आन्दोलन की आड़ लेकर पाकिस्तान और खालिस्तान समर्थक सक्रिय हो गए हैं।
सिखों की संख्या अधिक होने के तथ्य को इस तरह प्रदर्शित किया जा रहा है मानो यह आंदोलन विभाजनकारी उद्देश्य से चलाया जा रहा है।
लेकिन लोग, इस रणनीति को बखूबी समझने लगे हैं और समझ रहे हैं। शाहीन बाग में सिखों आदि का समर्थन के पीछे यही साझी संस्कृति की सोच थी वही अब किसान आंदोलन में वही तस्वीर नजर आ रही हैं।
देश में मुसलमानों के प्रतिष्ठित संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (महमूद मदनी गुट) ने केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हरियाणा से लगती दिल्ली की सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को अपना समर्थन देने की घोषणा की है। संगठन का कहना है, "किसान अन्न उगाते हैं, तो हम खाते हैं, इसलिए हम उनके साथ खड़े हैं और उन्हें अपना समर्थन देते हैं।
यही नहीं, जमीयत राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी के निर्देश पर, संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल बुराड़ी मैदान और सिंघु बॉर्डर गया और किसानों के साथ एकजुटता व्यक्त की।
यही नहीं, कई जगह मस्जिदों ने इन आंदोलनकारी किसानों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। यह भी मालूम हुआ कि ‘युनाइटेड अगेंस्ट हेट’ के कार्यकर्ता इन्हें खाना खिला रहे हैं। लेकिन इस बात को इस आंदोलन के ख़िलाफ़ क्यों इस्तेमाल किया जा रहा है?
भाजपा की इस रणनीति से आंदोलन में शामिल किसान संगठन भी अच्छी तरह से समझ रहे है। तभी किसान नेताओं ने कहा भी है कि जाति-धर्म व व प्रदेशों से इतर, आंदोलन अखिल भारतीय हैं। किसान पंजाब से ज़्यादा आए हैं। हरियाणा के भी हैं, उत्तर प्रदेश से भी आ रहे हैं, राजस्थान और मध्य प्रदेश से भी। पंजाब क़रीब होने के कारण सिख अधिक दिख रहे हैं। यह स्वाभाविक भी है। लेकिन, शायद लोकेश सलारपुरी सही कहते हैं कि ऐसी विवेक को जगाने वाली तस्वीर भले आम लोगो को नई ऊर्जा देती हो लेकिन भाजपा को इससे डर लगता है।