चेंचू आदिवासियों की बस्तियों को 4 माह में राजस्व गांव में बदलें: FRA के तहत तेलंगाना हाईकोर्ट ने दिए आदेश

Written by Navnish Kumar | Published on: October 5, 2023
"तेलंगाना हाईकोर्ट ने वनाधिकार कानून (FRA) के तहत, चेंचू आदिवासियों की बस्तियों को चार माह के भीतर राजस्व गांव (Revenue Village) में बदलने के आदेश दिए हैं। ये बस्तियां गरकुर्नूल, महबूबनगर, जोगुलम्बा गडवाल, नारायणपेट और वानापर्थी ज़िले के अंतर्गत आती हैं।"



मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एनवी श्रवण कुमार की खंडपीठ ने जनजातियों के उत्थान की मांग को लेकर शक्ति स्वैच्छिक संगठन द्वारा 2005 में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश जारी किए। दरअसल 2005 में शक्ति नाम के एक गैर सरकारी संगठन ने कोर्ट में आदिवासी क्षेत्रों में विकास की मांग को लेकर याचिका दर्ज की थी। इस बीच साल 2006 में अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी अधिनियम (वनाधिकार कानून) आ गया। इस कानून में सभी आदिवासी क्षेत्रों के वन गावों को राजस्व गांव में बदलने की बात कही गई है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि राज्य सरकार ने कुछ समय पहले पोडु पट्टे जारी किए थे लेकिन 2006 अधिनियम को लागू करने में वह असफल रहे हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत सभी वन गाँवों, पुरानी बस्तियों, सर्वेक्षण रहित गाँवों को राजस्व गांव में बदलने की बात है।

इस पर मुख्य न्यायधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एनवी श्रवण कुमार ने नाराज़गी जाताते हुए राज्य सरकार से पूछा कि अभी तक सरकार ने इन बस्तियों को राजस्व गांव में परिवर्तित क्यों नहीं किया? और चार माह में प्रक्रिया पूरी करने के आदेश दिए।

चेंचू आदिवासी कौन है?

चेंचू द्रविड़ आदिवासियों का ही एक उपसमूह है। एमबीबी न्यूज पोर्टल के अनुसार, ये मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और ओडिशा के घने जंगलों में रहते हैं। ये पहले भोजन के लिए खेती नहीं करते थे अपितु जंगलों से मिले शिकार पर ही निर्भर रहते थे।

चेंचू समुदाय के ज्यादातर लोग वन गांव (forest village) में रहते हैं। जिसकी वज़ह से इन्हें सड़क, पानी और बिजली जैसी कई मुलभूत सुविधाएं नहीं मिल पातीं। यही कारण है की उच्च न्यायालय ने अब ये आदेश जारी किया है कि चेंचू आदिवासियों की सभी बस्तियों को राजस्व गांव revenue village में बदला जाए। राजस्व गाँव में परिवर्तित होने से चेंचू आदिवासी को कई फायदें हो सकते हैं जिसे समझने के लिए हमें राजस्व गाँव और वन गाँव में अंतर को समझना होगा।

राजस्व और वन गांव में अंतर

राजस्व गांव उन्हें कहा जाता है  जिसमें जिला प्रशासन और पंचायत मुख्य रूप से गांव को नियंत्रित करते है और सभी सरकारी योजनाओं का लाभ नागरिकों को मिलता है। इसके साथ ही यहां पर कोई भी विकास कार्य आसानी से किया जा सकता है। क्योंकि इन क्षेत्रों में विकास कार्य करने से पहले वन विभाग की अनुमति लेना अनिवार्य नहीं है।

वहीं वन गांव में अगर कोई भी विकास कार्य करना हो तो उसे पहले वन विभाग की अनुमति लेनी पड़ती है जिसे मिलने में कई बार काफी समय भी लग जाता है। इसके अलावा कई बार यह अनुमति जंगल सरंक्षण को ध्यान में रखते हुए अस्वीकार भी हो जाती है। इसके साथ ही जंगल की ज़मीन सिर्फ खेती के लिए ही दी जाती है। इसे दूसरे व्यक्ति को बेचा नहीं जा सकता। अर्थात इस ज़मीन में आदिवासियों का कोई मालिकाना अधिकार नहीं होता है।

राजस्व गांव में परिवर्तित होने से विकास कार्य आसानी से हो जाते हैं। इसके साथ ही मालिकाना हक के जरिए इसमें सभी आदिवासियों को अपनी ज़मीन बेचने का भी अधिकार होता है।

तेलंगाना में आदिवासी विश्वविद्यालय के प्रस्ताव को भी मंजूरी 

बुधवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तेलंगाना में केंद्रीय आदिवासी जनजातीय विश्वविद्यालय को हरी झंडी दिखाई और विवि स्थापना के लिए 900 करोड़ के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी गई है।

तेलगांना के मुलुगु ज़िले में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 900 करोड़ रुपये की लागत से सममक्का-सरक्का केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय स्थापित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। एमबीबी न्यूज पोर्टल की एक खबर के अनुसार, बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 के तहत प्रस्तावित संशोधन को मंजूरी दे दी गई है। खास है कि चुनावी राज्य तेलंगाना में 1 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दौरे के दौरान मुलुगु में विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की थी।

900 करोड़ रुपये का किया गया आवंटन

तेलंगाना के एक समारोह के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि केंद्र सरकार मुलुगु में एक केंद्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय स्थापित करेगी, जिसका नाम आदिवासी देवी सम्मक्का और सारक्का के नाम पर रखा जाएगा। सरकार ने कहा कि नए विश्वविद्यालय से राज्य में उच्च शिक्षा तक पहुंच बढ़ेगी और गुणवत्ता में सुधार होगा। तेलंगाना में आदिवासी आबादी के लाभ के लिए आदिवासी कला, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों में निर्देशात्मक और अनुसंधान सुविधाएं प्रदान करके उच्च शिक्षा और उन्नत ज्ञान के अवसरों को बढ़ावा देने का काम किया जाएगा।

चुनाव की तैयारी में है सरकार

खास है कि इस साल दिसंबर में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने वाला हैं। एमबीबी के अनुसार, तेलंगाना के मुलुगु जिले में भाजपा सरकार की अब तक ज्यादा भागीदारी नहीं रही है। इसलिए भाजपा सरकार आक्रमक तरीके से राज्य के आदिवासियों को खुश करने में लगे हुए हैं। पीएम नरेंद्र मोदी पिछले एक हफ्तो में दो बार तेलंगाना में दौरा कर चुके हैं। जिससे पता चलता है की भाजपा अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में लगी है और विधानसभा चुनाव में कोई भी चूक छोड़ना नहीं चाहती।

तेलंगाना राज्य की कुल जनसंख्या 3,50,03,674 है। जबकि 2011की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 9.08 प्रतिशत है। कुल आदिवासी समुदाय 32 है। यही नहीं, तेलंगाना में कुल विधानसभा सीटें 119 है और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए आरक्षित 12 निर्वाचन क्षेत्र है।

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