आर्थिक मंदी के इस दौर में टैक्स आतंकवाद का नंगा नाच

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: September 13, 2019
‘सरकार’ का मानना था कि कालाधन खत्म करने, भ्रष्टाचार रोकने का रामबाण नुस्खा है – नोटबंदी। आजमा कर देख लिया गया। कोई फायदा नहीं हुआ पर कोई शर्म भी नहीं है क्योंकि 303 का समर्थन है। भले यह 404 से ज्यादा न हो पर न्यूटन को आइंस्टीन कहने वालों को ज्यादा भी लग सकता है। मुद्दा वह नहीं है। मुद्दा यह है कि डरा हुआ कारोबारी कमाएगा कैसे और कमाएगा नहीं तो टैक्स कहां से देगा। ईएमआई ऊपर से। ठीक है कि सख्ती से चोरी नहीं करेगा पर उसके खिलाफ सरकारी कार्रवाई शुरू हो जाएगी तो वह इससे निपटेगा कि कमाएगा? वैसे ही कारोबार आसान नहीं है। और ग्राहकों से टैक्स वसूल कर देने की जिम्मेदारी उसपर थोपी गई है। इसके बदले उसे कुछ नहीं मिलता और चोरी के आरोप का तलवार लटकता रहता है।



आज के हिन्दुस्तान की एक खबर के अनुसार डीआरआई और डीजीजीआई के 1200 अफसरों ने 336 स्थानों पर तलाशी ली और यह जीएसटी चोरी में देश की सबसे बड़ी छापेमारी थी। 1200 अफसरों ने 15 राज्यों में 336 स्थानों पर छापेमारी की। इस दौरान 470 करोड़ रुपये के फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट और इसके आधार पर 450 करोड़ के आईजीएसटी रिफंड के दावों का भंडाफोड़ किया गया। 1200 अफसरों ने 15 राज्यों में 336 स्थानों पर छापेमारी की। इस दौरान 470 करोड़ रुपये के फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट और इसके आधार पर 450 करोड़ के आईजीएसटी रिफंड के दावों का भंडाफोड़ किया गया। यह कार्रवाई अभी जारी रहेगी। पूरी खबर में गिरफ्तारी और जब्ती की कोई सूचना नहीं है। मेरा मानना है कि छापे जैसी कार्रवाई ठोस सूचना पर ही होनी चाहिए वरना इससे डर फैलता है। लाभ की उम्मीद कम रहती है।

शुरू में हर कारोबारी के लिए जीएसटी पंजीकरण एक तरह से जरूरी था और जबरदस्ती भी। जो लोग पंजीकरण करा चुके उनपर छापे से चोरी भले रुक जाए टैक्स कलेक्शन नहीं बढ़ने वाला क्योंकि चोरी करने वाला तो चोरी करने के लिए ही सही, कारोबार करेगा। पर टैक्स चोरी का मुकदमा शुरू हो जाने के बाद उसके पास कारोबार के लिए समय ही नहीं बचेगा। वैसे भी, ग्राहकों से जीएसटी वसूल कर सरकार को देने की मुफ्त की जिम्मेदारी कम बोझ नहीं है। आप जानते हैं कि इनवॉयस या बिल बनते ही टैक्स बन जाएगा और समय पर रिटर्न फाइल करने के साथ टैक्स की राशि भी जमा कराई जानी है। भले कारोबारी को भुगतान न मिले। ठीक है कि अंततः भुगतान नहीं मिलने पर टैक्स वापस हो जाएगा पर तब तक तो कारोबारी का पैसा फंसा रहेगा? भुगतान छह महीने न मिले साल भर भी न मिले। किसी कारण से मिले ही नहीं, कोई देखने वाला नहीं है।

यही हाल टीडीएस का है। टीडीएस भुगतान के समय कट जाता है और आयकर रिटर्न दाखिल करने पर पैसा वापस मिलता है। कारोबार के लिए ये मुश्किलें वैसे ही कम नहीं हैं। आर्थिक मंदी और रोज बदलते नए नियम चाहे वह परिवहन से संबंधित ही क्यों ना हो, कारोबारी को प्रभावित करते ही हैं। लाखों रुपए जुर्माना देने वाले आगे की कार्रवाई से भले बच जाएं पर धंधे का पैसा खर्च होने के बाद धंधा कैसे करेंगे? इन मुश्किल हालात में देश भर में पड़े इस छापे की खबर पढ़िए। ऐसा नहीं है कि ये गड़बड़ियां रिटर्न में नहीं पकड़ी जा सकती हैं। पर सरकार (या छापा मारने का समर्थन करने वाले ईमानदार सलाहकारों) को लगता होगा कि सारे अधिकारी चोर हैं कहीं कारोबारी उनसे मिली भगत न कर लें।

मैं नहीं कहता कि इसकी संभावना नहीं है। लेकिन अगर ऐसा है तो अधिकारियों पर सख्ती होनी चाहिए उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए – कारोबारियों के लिए मुसीबत क्यों खड़ी की जा रही है। मुझे लगता है कि सरकार जी तो जो हैं सो हैं ही उनके समर्थक और सलाहकार भी कम नहीं हैं। और इसका उदाहरण हम देख ही रहे हैं। वैसे भी रिजर्व बैंक का जमा खाने वाले ईमानदार, शाकाहारी सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का पेट चीरने में क्यों परहेज करें। पर अर्थव्यवस्था की मंदी का एक बड़ा कारण यही है। सरकार की समझ और उसके पास रिपोर्ट चाहे जो हो बहुत लोग कारोबार अपने लिए नहीं, कर्मचारियों के लिए करते हैं। किसी भी कारोबर में इतना धन लगा होता है या परिसर का किराया इतना मिल सकता है कि कारोबारी के परिवार का खर्चा आराम से चल जाए।

एक सिस्टम में धंधा चलता रहे, पैसे कम या ज्यादा आते रहें और काम करने वालों को तनख्वाह मिलती रहे उनका भी परिवार चलता रहे तो सुकून रहता है। अगर यह सुकून खत्म हो जाए तो घर चलाने के लिए किसी को कारखाना चलाने की जरूरत नहीं है। कारोबार असल में देश और समाज सेवा ही है। सरकार अगर मानती है कि कारोबारी चोर हैं, बेईमान हैं तो कोई जरूरत नहीं है कि कारोबार किया जाए। कम से कम एक कारोबारी को मैं जानता हूं तो अपनी अच्छी भली चलती हुई कंपनी बंद करके बच्चों के साथ खेल रहा है, उन्हें खिलाड़ी बनाने में लगा है, अपने पैसे से। और सिर्फ इसलिए कि छोटे परिवार वाला वह व्यक्ति अस्पताल में था और किसी सरकारी अधिकारी ने यह जानते हुए कि कारखाने का मालिक बीमार है, अस्पताल में है, भारी जुर्माना ठोंक दिया था। बिना सुनवाई का मौका दिए।

अगर पार्टी चलाना है, संगठन चलाना है, भक्तों की सेवा लेनी है, मूर्खों, शैतानों, बलात्कारियों को सुरक्षा देनी है और यह सब करते हुए देश चलाना है तो सोचना आपको है, कारोबारियों को नहीं। जय श्रीराम।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)

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