'पीएम को मुसलमान औरतों की चिंता लेकिन देवदासी के नाम पर वैश्या बनाई जा रही बच्चियों की नहीं'

Written by Subhashini Ali | Published on: April 27, 2017
इस साल कर्नाटक के होस्पेट शहर में डॉ बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती हजारों महिलाओं ने मिलकर मनाई। होस्पोट बेल्लारी जिले में है। वही बेल्लारी जिला, जिसके पत्थरों ने कुछ लोगों को खरबपति बना दिया है।  वे गैरकानूनी तरीके से खनन कर ग्रेनाइट पत्थर निकालते हैं और उसका व्यापार करते हैं।  इन्हीं पहाड़ों के पत्थर से इस इलाके में विजयनगर राज्य की राजधानी हम्पी के आसमान छूते मंदिरों को डेढ़ हजार साल पहले बनाया गया था।  ये मंदिर विजयनगर राज्य की शान थे और इन्ही मंदिरों के आकर्षण को बढ़ाने के लिए देवदासियों को तैयार किया गया था।

Subhashni Ali
 
हमारे देश की हर प्रथा या यों कहिए कि कुप्रथा को मान्यता देने के लिए किस्से बनाए जाते हैं। इनमें अपराध कोई करता है और सजा किसी को मिलती है। अहिल्या का किस्सा भी इस श्रेणी में आता है और येल्लाम्मा का भी। किस्सा यह है कि एक बड़े तपस्वी ब्राह्मण थे, जिन्होंने तमाम संबंधों से खुद को अलग कर अपना पूरा ध्यान तप पर केंद्रित कर दिया था।  उनकी आज्ञाकारी पत्नी थी, जो अपने त्यागे जाने के बाद भी अपने पति की सेवा में लगी रही। वह सुबह नदी से जल निकालकर पति को पूजा-अर्चना के लिए देती थी।  एक दिन उन्हें पानी लाने में कुछ देर हो गई, तो उनके पति को उन पर शक होने लगा।  जब वह पानी लेकर आई, तो उन्हें श्राप दे दिया गया। वह घर से दूर रहने के लिए मजबूर हो गई। उनकी ‘गलती’ की, जो केवल उनके पति के दिमाग का फितूर ही था, सजा केवल उनको नहीं, बल्कि करोड़ों गरीब दलित और आदिवासी परिवारों की बच्चियों को भी भुगतनी पड़ी है।  वह तो येल्लाम्मा देवी बन गईं और ये बच्चियां उनको समर्पित देवदासी बना दी गईं।
 
कर्नाटक में लाखो देवदासी परिवार हैं।  अब इन परिवारों की लड़कियों को मंदिरों में तो नहीं भेजा जाता, पर उनको ‘देवी’ को समर्पित कर वेशया बनने के लिए मजबूर किया जाता है। मजबूर करने वाले इन बच्चियों के मां-बाप ही हैं। माताएं इसलिए कि वे खुद भी देवदासी हैं और पिता इसलिए कि उन्होंने उनकी माताओं से विवाह नहीं किया है।
 
कर्नाटक में कुछ हिम्मती देवदासी महिलाओं ने माकपा के सहयोग से देवदासी महिलाओं की यूनियन बनाई है, जिसके 15,000 से अधिक सदस्य हैं।  यूनियन के संघर्षों का ही नतीजा है कि इनके साथ अन्य देवदासी महिलाओं को, जो वेश्या का पेशा छोड़ देती हैं, हर महीने सरकार से पेंशन मिलती है।  पर इनसे शादी करने के लिए कोई तैयार नहीं होता। इनके बच्चों को हर जगह ‘मां  का नाम ही भरना पड़ता है और अपमानित होना पड़ता है। यूनियन की सदस्य हजारों देवदासी महिलाओं ने विगत 15 अप्रैल को  बाबा साहेब को याद करने के लिए बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया था। अंबेडकर जयंती पर अब उन सरकारी ताकतों का कब्जा हो गया है, जो बाबा साहेब के विचारों से सहमत नहीं हैं। अगर होते, तो क्या कर्नाटक में लाखों की संख्या में देवदासियां होतीं?
 
हमारे प्रधानमंत्री मुस्लिम महिलाओं की दुर्दशा को लेकर बहुत चिंतित हैं। उनके साथी कह रहे हैं कि अगर इन महिलाओं को न्याय नही मिलता, तो उन्हें हिंदू बन जाना चाहिए। देवदासी महिलाओं को अच्छी तरह पता है कि उनको न्याय धर्म और धार्मिक समुदायों के बीच चक्कर लगाने से नहीं, बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान का सहारा लेकर, अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ने से ही मिल सकता है।

(लेखिका माकपा की पोलित ब्यूरो सदस्य हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

Courtesy: National Dastak
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