अनुच्छेद 370 की पहली बरसी पर कुछ यादें, कुछ तथ्य

Written by Sanjay Kumar Singh | Published on: August 5, 2020
धारा 370 हटाए जाने के बाद 5 अगस्त 2019 से कश्मीर के कई नेता जेल में बंद हैं। महबूबा मुफ्ती इनमें प्रमुख हैं। हालत ऐसी है कि कश्मीर को ही बड़ी जेल कहा जाने लगा है। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में हिज्जे, व्याकरण की 52 गलतियों को केंद्र सरकार ने एक महीने बाद सुधारा। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि इसे जल्दबाजी में लाया गया है। शायद तभी सुधार करने में करीब एक महीना लग गया। दिलचस्प यह है कि 50 से ज्यादा शब्दों में गलतियों के साथ कानून संसद में पारित हो गया था। कानून एवं न्याय मंत्रालय द्वारा जारी दो पन्ने के नोट के जरिए भाषा की बचकानी गलतियों को दुरुस्त किया गया है।



सैफुद्दीन सोज
प्रमुख कश्मीरी नेता सैफुद्दीन सोज के मामले में सर्वोच्च अदालत में कहा गया कि वे गिरफ्तार नहीं हैं दूसरी ओर, वे वीडियो में यह कहते हुए दिखे कि उन्हें घर से निकलने नहीं दिया जा रहा है। सोज का यह बयान भी छपा कि सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोला जा रहा है। इसके बाद पुलिस ने एक वीडियो जारी किया जिसके जरिए यह साबित करने की कोशिश की गई कि सोज आजाद हैं और अपनी बीमार बहन से मिलने श्रीनगर की ही गुलबर्ग कॉलोनी में गए थे। सोज का दावा है कि उन्हें उनके ही घर में नजरबंद रखा गया है और बहन के घर उनके साथ पुलिस वाले भी गए थे। लौटकर आए तो पुलिस ने उन्हें आजाद बताने के लिए वीडियो जारी किया जो सफेद झूठ है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि इसके बाद वे अपनी बेटी से मिलना चाहते थे पर नहीं जाने दिया गया। इस तरह उन्होंने पुष्टि की कि वे नजरबंद हैं और उन्हें रिहा नहीं किया गया है। सोज के बेटे सलमान अनीस ने ट्वीट किया, इस प्रचार वीडियो को देखिए। प्रो सैफुद्दीन सोज को अपनी बहन को देखने जाने की इजाजत क्यों मिली? उनके साथ गए लोगों को इस दौरे की रिकार्डिंग करने के लिए किसने अधिकृत किया? जम्मू और कश्मीर प्रशासन में किसने इसे प्रचार के लिए लीक किया आपकी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में झूठ क्यों बोला? टेलीग्राफ की खबर के अनुसार यह ट्वीट प्रधानमंत्री को संबोधित था। इसका कोई जवाब मुझे अभी तक तो नहीं दिखा है।

पी चिदंबरम की राय
आप जानते हैं कि अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के साथ-साथ राज्य को विभाजित किया गया, दोनों हिस्से का दर्जा घटा कर केंद्र शासित प्रदेश किया गया इस तरह, इन क्षेत्रों को सीधे केंद्र सरकार के तहत लाया गया, राजनीतिक गतिविधियों का दमन हुआ, कश्मीर घाटी के पचहत्तर लाख डरे-सहमे लोगों को गुलामी में धकेल दिया गया है और अलगाववादियों तथा आतंकवादियों को ताकत से कुचला जा रहे है। इसके बावजूद एक साल में किसी अंत तक नहीं पहुंचा जा सका है। पी चिदंबरम ने लिखा है कि मेरे विचार से मौजूदा व्यवस्था की नीतियों के तहत कभी पहुंचा भी नहीं जा सकेगा।

2001 से 2013 के बीच, आतंकी घटनाओं की काफी कम हो गई थी 2014 से, खासतौर से 2017 के बाद कठोरता और बाहुबल की नीति से हिंसा में जोरदार इजाफा हुआ। कठोर जनसुरक्षा कानून को अंधाधुंध तरीके से लागू कर दिया गया और 444 मामले दर्ज कर लिए गए। घाटी में सेना और केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों का हद से ज्यादा जमावड़ा है। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के बाद अड़तीस हजार अतिरिक्त सैनिकों को और तैनात कर दिया गया। व्यावहारिक तौर पर साल भर से आपराधिक दंड संहिता की धारा 144 के तहत सारे प्रतिबंध लागू हैं। 25 मार्च, 2020 के बाद पूर्णबंदी ने सब कुछ बंद कर देने में प्रशासन की मदद कर दी।

नया कश्मीर मसला
कश्मीर का मसला 1947 से चल रहा था जब पाकिस्तान ने शासकों द्वारा भारत में विलय का विरोध किया था। पाकिस्तान को यह सबक मिला कि वह भारत से जंग के जरिए घाटी पर कब्जा नहीं कर सकता। हालांकि अगस्त 2019 से नया कश्मीर मसला शुरू हो गया है। नए कश्मीर के मसले के कई आयाम हैं- अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने की संवैधानिकता, राज्य का दर्जा घटा कर दो केंद्र शासित प्रदेश बना देना, राजनीतिक और मानवाधिकारों का हनन, अर्थव्यवस्था की तबाही, आतंकवाद का उभार, नई अधिवास नीति, घाटी के लोगों को पूरी तरह से अलग कर देना, और अब नई अधिवास नीति को लेकर जम्मू में और लद्दाख में किसी भी तरह के प्रशासन की गैरमौजूदी से पनप रहा असंतोष।

पुरानी स्थिति
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता देता था। जम्मू - कश्मीर की संविधान सभा को, भारतीय संविधान के उन प्रावधानों की सिफारिश करनी थी जिन्हें राज्य में लागू किया जाना चाहिए या। पर जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के संविधान का निर्माण किया और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश किए बिना खुद को भंग कर दिया। अनुच्छेद 370 को संविधान की एक स्थायी विशेषता माना गया। भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया। इसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया । जम्मू कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका होगी जबकि लद्दाख बिना विधायी वाली केंद्रशासित क्षेत्र होगा। इस प्रावधान को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। अदालत ने अभी इसपर फैसला नहीं दिया है।

राम माधव
राम माधव ने कहा है कि भाजपा जम्मू कश्मीर के लिये राज्य का दर्जा पुनः बहाल करना चाहती है। जाहिर है इससे यह सवाल उठता है कि क्या जम्मू कश्मीर राज्य पुनर्गठन बिल 2019 एक गलत निर्णय था? वैसे भी, यह छप चुका है कि लद्दाख सीमा पर चीन की सक्रियता का संबंध 5 अगस्त 2019 की कार्रवाई से हो सकता है। चीन मामले में भारत की स्थिति आप जानते हैं। मैं नहीं जानता कि जो अखबारों ने नहीं बताया उसमें से कितना आप जानते हैं और कितने पर यकीन करते या नहीं करते हैं।

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