मधु किश्वर द्वारा ट्विटर पर अफवाह फैलाकर दंगा फसाद करवाने की कोशिश न केवल निंदनीय है अपितु आपराधिक है. इस सन्दर्भ में गुडगाँव पुलिस को उनपर ऍफ़ आई आर करनी चाहिए. भारत में महिला आन्दोलन की प्रमुख मधुकिश्वर ने आखिर में ये साबित कर दिया के महिलावाद और ब्राह्मणवाद में उन्ह्हे क्या प्रिय है. पिछले एक दशक से वह देश में अल्पसंख्यको और दलितों के विरुद्ध जहर उगलने वालो और दंगा फसाद करवाने वालो के साथ कड़ी दिखी है. गुडगाँव में करनी सेना के फसादियो ने जब स्कूल के बच्चो की बस पर पथराव किया तो उसकी सभी जगह कड़ी निंदा हुई, हालाँकि संघियों और उनके बडबोले मंत्रियो ने इस पर भी जुबान नहीं खोली और जिन्होंने कुछ बोला उन्होंने समाज की धार्मिक भावनाओं की बात भी कही, लेकिन सबसे खतरनाक बात यह की मधु ने ट्वीट कर बताया के बच्चो पर पत्थर फेंकने के पीछे कुछ मुस्लिम युवाओं का हाथ है जिनके नाम भी उन्होंने ट्विटर पर शेयर किये. अब गुडगाँव पुलिस ने साफ़ कह दिया है के मधु किश्वर का ट्वीट झूठा है और मधु किश्वर ने माफ़ी मांग ली है लेकिन क्या उनकी माफ़ी काफी है.
ट्विटर और फेसबुक आये दिन उनलोगों के अकाउंट बंद कर रहे है जो सरकार से सवाल पूछ रहे है. क्या मधु किश्वर का ट्वीट अफवाह और एक सामाज के विरुद्ध जानबूझकर भड़काने की कार्यवाही नहीं है. और स्थिति और गंभीर तब होती है जब किसी को फॉलो करने वाले भक्तो की तादाद ज्यादा हो. इसलिए उन्होए तो ज्यादा सावधानी से बोलना चाहिए. अगर एक ट्वीट पर दंगा फसाद हो जाए तो कौन जिम्मेवार ? सवाल इस बात का नहीं है के कौन ये काम कर सकता है या नहीं लेकिन हम सब जानते हैं के झूठो की ऐसे फैक्ट्री व्हात्सप्प पर कौन चला रहा है और प्रतिदिन लाखो की संख्या में ऐसे ही मेसेज जा रहे हैं. यानी तुम दंगा फसाद करो, गुंडई करो, लोगो को खाने पीने और उनके विवाह करने तक में मार डालो, फिर गाली गलोज दो, बच्चो तक को न छोडो लेकिन बाद में उन्सबके लिए दोषी दूसरो को ठहरा दो. कोई भी संघठन इतने खतरनाक खेल नहीं खेल सकता अगर उस पर सर्वोच्च नेताओं का आशीर्वाद न हो.
सोशल मीडिया पर अफवाहे फैलने वाले अचानक नहीं फैला रहे. ये बहुत सोची समझी साजिश है. करणी सेना के गुंडों को टीवी स्टूडियो में बुलाकर नेता बनाने की ठेकेदारी लेकर संघी मीडिया डबल गेम खेलता है. येही खेल उसने उस वक्त भी किया जब हिंदुत्व के लठैत मुसलमानों को गाली देते और खुले धमकी देते रहे हैं. आज सत्ता का जोश सर के ऊपर से निकल रहा है और इसलिए सभी मदहोश हो गए लगते है. देश में ऐसे हालत पैदा कर दिए गए हैं के गुंडई के जरिये लोगो को चुप करवाया जाए या फिर उनको कानूनी कार्यवाही की धमकी देकर. दंगा फसाद करने वाले और करने वाले खुले घूम रहे हैं और जो उनके खिलाफ बोल रहे है उनपर कार्यवाही है.
आखिर चंद्रशेखर आजाद पर कार्यवाही क्यों हो रही है. दलितों के घरो को फूंक कर राख कर देने में जो लोगो शामिल थे उन्हें क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया. उनपर क्यों नहीं राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया. चन्द्रशेकर को लम्बे समय तक जेल में रखने की तैय्यारी है लेकिन दुखद बात यह के कोई पार्टी इस सन्दर्भ में बात करने को राजी नहीं. वोट की राजनीती में सब नंगे दिख रहे हैं . अभी तक पार्टियों ने करणी सेना के विरुद्ध कुछ नहीं बोला है. दुखद ये है के हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकुर जैसे लोग ऐसी सेनाओं के साथ खड़े होने की कोशिश कर रहे है. वैसे सेना का ये खेला संघ का है जो आम चुनावो तक ऐसे खेल खेलते रहेंगे और अंत में पूरे प्रश्न को हिन्दू और मुस्लिम में बांटकर अपनी राजनीती चमकाएंगे लेकिन ऐसे राजनीती और सत्ता का क्या लाभ के आप तो जीत गए लेकिन देश हार जाए .
क्या सरकार का ये कर्त्तव्य नहीं के वह कानून का उल्लंघन करने वालो पर कार्यवाही करे. हम दुनिया भर में अपने लोकतंत्र का डंका पीटते है लेकिन सड़क पर हो रही गूंदागर्दी और खुले आम धमकियों पर चुप रहते है. आज गणतंत्र का दिन है लेकिन ये गन तंत्र में बदल रहा है. लोकतंत्र में हम कानून के शासन की बात करते है लेकिन आज भारत का लोकतंत्र लठैत जातियों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गया है. लोकतंत्र बहुमत का शासन नहीं होता अपितु आदर्श लोकतंत्र वह है जहाँ एक छोटी से छोटी माइनॉरिटी भी निर्भय को कर रह सके लेकिन आज के दौर में मीडिया और सोशल मीडिया देश के दबे कुचलो, अल्प संख्क्य्को के खिलाफ अफवाह फ़ैलाने और बदनाम करने का एक तंत्र बन के रह गया है और सबसे खतरनाक बात यह है के इसमें बड़े बड़े 'नामी गिरामी' लोग भी शामिल हो गए है. अभी तो सरकार के मंत्री भी अफवाह फ़ैलाने वाली ट्वीट करते है, पार्टियों के प्रवक्ता आग उगलते दिखाई दे रहे है और उनको साफ़ तौर पर सम्झाया गया है के अपने विरोधी को कोई जगह नहीं देनी, इज्जत तो बहुत दूर की बात है. वैसे ये प्रवक्ता किसी भी सभ्य समय में रहने लायक नहीं है लेकिन मेरिट का दावा करने वाले ठगों की दुकान में इनका अड्डा होता है.
अभी प्रधानमंत्री जी देवोस में भारत के महान लोकतंत्र और विविधता के गुणगान कर रहे थे और २६ जनवरी के दिन ही उन्होंने इसका परिचय भी दे दिया. देश की मुख्या विपक्षी पार्टी के नेता को उन्होंने राजपथ पर ६ वी पंक्ति में बैठाया गया और प्रथम पंक्ति में मंत्री और मार्ग दर्शक मंडल इत्यादि के न केवल नेता थे अपितु उनके परिवारों के बच्चे बूढ़े भी थे. इन बातो से साफ़ जाहिर होता है के नया युग एक ऐसी बुनियाद पर बना है जहा जो बोला जाए बाते ठीक उसके उलट होती है. पुराने वक़्त तो कमसेकम लोग बोलते ही नहीं थे लेकिन अभी जो बोला जाएगा कार्यवाही उसके ठीक उलट होगी. इसलिए अंदाज लग रहा है के देश की हवा बदल चुकी है, लोग भी बदला लेना चाहते है और ऐसा लगता है जैसे लोगो ने कसम खा ली हो के सभी मौजूदा समसयाओ का अंतिम हल बस अभी निकालना है और उसके लिए विपक्ष को ही मानचित्र से गायब कर देना है . अब विपक्ष केवल राजनैतिक नहीं अप्पितु उससे ज्यादा है वैचारिक विपक्ष इसलिए उनको ख़त्म करने के लिए तो देशद्रोही शब्द इजाद किये गए है. लेकिन धयान देने वाली बात यह है के लोगो मारने की धमकी देने वाले, खुले आम माँ बहिओ की गाली देने वाले, करोडो की प्रॉपर्टी का नुक्सान करने वाले, सरे आम घूम रहे है और जो उनके विरुद्ध कार्यवाही की बात कर रहे है, उनपर कार्यवाही होने का खतरा बना रहता है.
गणतंत्र दिवस पर यदि हम अपने संविधान की सर्वोच्चता को कायम रखना है तो देश के लोगो के मध्य वैमनस्य फ़ैलाने वाली अफवाहों के सौदागरों पर कार्यवाही करनी होगी. गणतंत्र तभी बच पायेगा जब कानून का ईमानदारी और बिना भेदभाव के पालन हो सके. सोशल मीडिया पर अगर लोगो को धमकी देने वालो और घृणा फ़ैलाने वालो के विरुद्ध कार्यवाही नहीं हुई तो लोगो का कानून लागु करने वाली संस्थाओं से पुर्णतः विश्वाश उठ जाएगा. राजनेता तो वोट की राजनीती करते है लेकिन कानून का पालन करने वाली संस्थाओं को राजनितीक दवाब से ऊपर उठ कर काम करना चाहिए ताकि संविधान की मर्यादा बनी रह सके. भारत की संस्थाए इस समय अमेरिका से सीख सकते है किस तरह वे राष्ट्रपति ट्रूप के दवाब में काम नहीं करती और उनके विरुद्ध भी जांच कर रही है और अमेरिका के मीडिया ने अभी भी एक अच्छे विपक्ष की भूमिका अख्तियार की है. भारत में मीडिया से इस समय तो कोई उम्मीद करना बेईमानी होगा लेकिन वहा पर भी जो लोग बचे हैं उन्हें अपने शक्ति देश में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए और घृणा और अफवाहों की राजनीती के विरुद्ध लगा देनी चाहिए. देश के और चाहने वालो के लिए केवल इतना ही के खबरों को धयान से पढ़े और फॉरवर्ड करने से पहले कृपया गंभीरता से जांच परख कर ले. हिंसात्मक वीडियोस को फॉरवर्ड न ही करे तो बेहतर होगा क्योंकि बहुत से विडियो बहुत पुराने होते है और कई विदेशो के भी. क्योंकि घृणा फैलाने वाला एक पूरा उद्योग फल फूल रहा है इसलिए हमें और सावधान रहना है कही हम उन्मादी ताकतों का अजेंडा तो नहीं फैला रहे. इस समय हम सबकी एकता और समझदारी का है ताकि घृणा फैलाने वाले अपने मकसद में कामयाब न हो.
ट्विटर और फेसबुक आये दिन उनलोगों के अकाउंट बंद कर रहे है जो सरकार से सवाल पूछ रहे है. क्या मधु किश्वर का ट्वीट अफवाह और एक सामाज के विरुद्ध जानबूझकर भड़काने की कार्यवाही नहीं है. और स्थिति और गंभीर तब होती है जब किसी को फॉलो करने वाले भक्तो की तादाद ज्यादा हो. इसलिए उन्होए तो ज्यादा सावधानी से बोलना चाहिए. अगर एक ट्वीट पर दंगा फसाद हो जाए तो कौन जिम्मेवार ? सवाल इस बात का नहीं है के कौन ये काम कर सकता है या नहीं लेकिन हम सब जानते हैं के झूठो की ऐसे फैक्ट्री व्हात्सप्प पर कौन चला रहा है और प्रतिदिन लाखो की संख्या में ऐसे ही मेसेज जा रहे हैं. यानी तुम दंगा फसाद करो, गुंडई करो, लोगो को खाने पीने और उनके विवाह करने तक में मार डालो, फिर गाली गलोज दो, बच्चो तक को न छोडो लेकिन बाद में उन्सबके लिए दोषी दूसरो को ठहरा दो. कोई भी संघठन इतने खतरनाक खेल नहीं खेल सकता अगर उस पर सर्वोच्च नेताओं का आशीर्वाद न हो.
सोशल मीडिया पर अफवाहे फैलने वाले अचानक नहीं फैला रहे. ये बहुत सोची समझी साजिश है. करणी सेना के गुंडों को टीवी स्टूडियो में बुलाकर नेता बनाने की ठेकेदारी लेकर संघी मीडिया डबल गेम खेलता है. येही खेल उसने उस वक्त भी किया जब हिंदुत्व के लठैत मुसलमानों को गाली देते और खुले धमकी देते रहे हैं. आज सत्ता का जोश सर के ऊपर से निकल रहा है और इसलिए सभी मदहोश हो गए लगते है. देश में ऐसे हालत पैदा कर दिए गए हैं के गुंडई के जरिये लोगो को चुप करवाया जाए या फिर उनको कानूनी कार्यवाही की धमकी देकर. दंगा फसाद करने वाले और करने वाले खुले घूम रहे हैं और जो उनके खिलाफ बोल रहे है उनपर कार्यवाही है.
आखिर चंद्रशेखर आजाद पर कार्यवाही क्यों हो रही है. दलितों के घरो को फूंक कर राख कर देने में जो लोगो शामिल थे उन्हें क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया. उनपर क्यों नहीं राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया गया. चन्द्रशेकर को लम्बे समय तक जेल में रखने की तैय्यारी है लेकिन दुखद बात यह के कोई पार्टी इस सन्दर्भ में बात करने को राजी नहीं. वोट की राजनीती में सब नंगे दिख रहे हैं . अभी तक पार्टियों ने करणी सेना के विरुद्ध कुछ नहीं बोला है. दुखद ये है के हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकुर जैसे लोग ऐसी सेनाओं के साथ खड़े होने की कोशिश कर रहे है. वैसे सेना का ये खेला संघ का है जो आम चुनावो तक ऐसे खेल खेलते रहेंगे और अंत में पूरे प्रश्न को हिन्दू और मुस्लिम में बांटकर अपनी राजनीती चमकाएंगे लेकिन ऐसे राजनीती और सत्ता का क्या लाभ के आप तो जीत गए लेकिन देश हार जाए .
क्या सरकार का ये कर्त्तव्य नहीं के वह कानून का उल्लंघन करने वालो पर कार्यवाही करे. हम दुनिया भर में अपने लोकतंत्र का डंका पीटते है लेकिन सड़क पर हो रही गूंदागर्दी और खुले आम धमकियों पर चुप रहते है. आज गणतंत्र का दिन है लेकिन ये गन तंत्र में बदल रहा है. लोकतंत्र में हम कानून के शासन की बात करते है लेकिन आज भारत का लोकतंत्र लठैत जातियों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गया है. लोकतंत्र बहुमत का शासन नहीं होता अपितु आदर्श लोकतंत्र वह है जहाँ एक छोटी से छोटी माइनॉरिटी भी निर्भय को कर रह सके लेकिन आज के दौर में मीडिया और सोशल मीडिया देश के दबे कुचलो, अल्प संख्क्य्को के खिलाफ अफवाह फ़ैलाने और बदनाम करने का एक तंत्र बन के रह गया है और सबसे खतरनाक बात यह है के इसमें बड़े बड़े 'नामी गिरामी' लोग भी शामिल हो गए है. अभी तो सरकार के मंत्री भी अफवाह फ़ैलाने वाली ट्वीट करते है, पार्टियों के प्रवक्ता आग उगलते दिखाई दे रहे है और उनको साफ़ तौर पर सम्झाया गया है के अपने विरोधी को कोई जगह नहीं देनी, इज्जत तो बहुत दूर की बात है. वैसे ये प्रवक्ता किसी भी सभ्य समय में रहने लायक नहीं है लेकिन मेरिट का दावा करने वाले ठगों की दुकान में इनका अड्डा होता है.
अभी प्रधानमंत्री जी देवोस में भारत के महान लोकतंत्र और विविधता के गुणगान कर रहे थे और २६ जनवरी के दिन ही उन्होंने इसका परिचय भी दे दिया. देश की मुख्या विपक्षी पार्टी के नेता को उन्होंने राजपथ पर ६ वी पंक्ति में बैठाया गया और प्रथम पंक्ति में मंत्री और मार्ग दर्शक मंडल इत्यादि के न केवल नेता थे अपितु उनके परिवारों के बच्चे बूढ़े भी थे. इन बातो से साफ़ जाहिर होता है के नया युग एक ऐसी बुनियाद पर बना है जहा जो बोला जाए बाते ठीक उसके उलट होती है. पुराने वक़्त तो कमसेकम लोग बोलते ही नहीं थे लेकिन अभी जो बोला जाएगा कार्यवाही उसके ठीक उलट होगी. इसलिए अंदाज लग रहा है के देश की हवा बदल चुकी है, लोग भी बदला लेना चाहते है और ऐसा लगता है जैसे लोगो ने कसम खा ली हो के सभी मौजूदा समसयाओ का अंतिम हल बस अभी निकालना है और उसके लिए विपक्ष को ही मानचित्र से गायब कर देना है . अब विपक्ष केवल राजनैतिक नहीं अप्पितु उससे ज्यादा है वैचारिक विपक्ष इसलिए उनको ख़त्म करने के लिए तो देशद्रोही शब्द इजाद किये गए है. लेकिन धयान देने वाली बात यह है के लोगो मारने की धमकी देने वाले, खुले आम माँ बहिओ की गाली देने वाले, करोडो की प्रॉपर्टी का नुक्सान करने वाले, सरे आम घूम रहे है और जो उनके विरुद्ध कार्यवाही की बात कर रहे है, उनपर कार्यवाही होने का खतरा बना रहता है.
गणतंत्र दिवस पर यदि हम अपने संविधान की सर्वोच्चता को कायम रखना है तो देश के लोगो के मध्य वैमनस्य फ़ैलाने वाली अफवाहों के सौदागरों पर कार्यवाही करनी होगी. गणतंत्र तभी बच पायेगा जब कानून का ईमानदारी और बिना भेदभाव के पालन हो सके. सोशल मीडिया पर अगर लोगो को धमकी देने वालो और घृणा फ़ैलाने वालो के विरुद्ध कार्यवाही नहीं हुई तो लोगो का कानून लागु करने वाली संस्थाओं से पुर्णतः विश्वाश उठ जाएगा. राजनेता तो वोट की राजनीती करते है लेकिन कानून का पालन करने वाली संस्थाओं को राजनितीक दवाब से ऊपर उठ कर काम करना चाहिए ताकि संविधान की मर्यादा बनी रह सके. भारत की संस्थाए इस समय अमेरिका से सीख सकते है किस तरह वे राष्ट्रपति ट्रूप के दवाब में काम नहीं करती और उनके विरुद्ध भी जांच कर रही है और अमेरिका के मीडिया ने अभी भी एक अच्छे विपक्ष की भूमिका अख्तियार की है. भारत में मीडिया से इस समय तो कोई उम्मीद करना बेईमानी होगा लेकिन वहा पर भी जो लोग बचे हैं उन्हें अपने शक्ति देश में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए और घृणा और अफवाहों की राजनीती के विरुद्ध लगा देनी चाहिए. देश के और चाहने वालो के लिए केवल इतना ही के खबरों को धयान से पढ़े और फॉरवर्ड करने से पहले कृपया गंभीरता से जांच परख कर ले. हिंसात्मक वीडियोस को फॉरवर्ड न ही करे तो बेहतर होगा क्योंकि बहुत से विडियो बहुत पुराने होते है और कई विदेशो के भी. क्योंकि घृणा फैलाने वाला एक पूरा उद्योग फल फूल रहा है इसलिए हमें और सावधान रहना है कही हम उन्मादी ताकतों का अजेंडा तो नहीं फैला रहे. इस समय हम सबकी एकता और समझदारी का है ताकि घृणा फैलाने वाले अपने मकसद में कामयाब न हो.