वनाधिकार के लिए एकजुट हुए शिवालिक के वन गुर्जर, स्थानीय सांसद व संगठन के साथ से मिला हौसला

Written by Navnish Kumar | Published on: October 17, 2020
शिवालिक पहाड़ियों में रह रहे वन गुर्जरों ने बेदखली की कोशिशों के खिलाफ अभूतपूर्व एकजुटता दिखाते हुए, संघर्ष की हुंकार भरी है। सभी ने एक सुर में वनाधिकार कानून के दायरे में वन भूमि पर अधिकारों को मान्यता देने तथा प्रस्तावित टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट पर पूर्ण विराम लगाए जाने की मांग की। स्थानीय सांसद हाजी फजलुर्रहमान व युवा गुर्जर संगठन का साथ मिलने से समुदाय का हौसला भी बुलंदियों पर है। 



युवा वन गुर्जर संगठन उत्तराखंड के आह्वान पर कोठड़ी बहलोलपुर (कालूवाला) में सभी खोलों के वन गुर्जर इकट्ठा हुए और पहली बार सभी ने एक सुर में वनाधिकार कानून-2006 के दायरे में वन भूमि पर अधिकारों को मान्यता दिए जाने की मांग की और ''बेदखली नहीं, वनाधिकार दो'', के नारे के साथ अधिकारों के लिए एकजुट संघर्ष का ऐलान किया। 

ग्राम वनाधिकार समिति के पदाधिकारियों व समुदाय के अग्रणी लोगों हाजी अब्दुल करीम कसाना, गुलाम नबी, नूर जमाल, तालिब प्रधान आदि ने कहा कि उनके पूर्वज आजादी के भी बहुत पहले से इन वनों में रहते आ रहे हैं। जंगल व जंगली जानवरों के साथ सह-अस्तित्व की संस्कृति रही है और आज भी उनकी आजीविका पूरी तरह से जंगल पर निर्भर है। 

उन्होंने कहा कि उनका वन विभाग से सैकड़ों साल पहले से वनों से नाता है। वनों से उनका सामंजस्य संस्कृति और पशुपालन व्यवसाय  से लालच का नहीं, सह-अस्तित्व का रहा है। लेकिन आज उन्हें जंगल खाली करने को कहा जा रहा है और बदले में महज 7 बिस्वा जमीन देने की बात की जा रही है। जिसमें पशुपालन आदि संभव ही नहीं है। 

वनाश्रितों ने कहा कि समुदाय अरसे से बड़े अन्याय का शिकार रहा है। आजादी के 74 साल बाद भी बच्चों की पढ़ाई लिखाई तो दूर, सडक बिजली, साफ पानी व स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं तक उनके लिए बेमानी बनी हैं। वनाधिकार क़ानून-2006 आने के बाद उन्हें भी ज़िंदगी में आजादी और सम्मान की रोशनी आने की उम्मीद जगी थी लेकिन पहले सेना की फायरिंग तो अब टाइगर रिजर्व की आड़ में प्रशासन उन्हें, गैरकानूनी तौर से बेदखल करने पर आमादा हैं। 



वन गुर्जरों ने कहा कि एसडीएम बेहट उन्हें धमका रहे हैं कि टाइगर रिजर्व के बनने पर सहमति दो। अन्यथा परमिट कैंसिल करने व जंगल से बल पूर्वक निकालने को धमकाया जा रहा हैं। कहा उन्हें कानून के दायरे में अधिकार चाहिए। इसके लिए कानून के दायरे में रहकर संघर्ष किया जाएगा। 

अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी कहते हैं कि पहली बार है जब शिवालिक के वन गुर्जर एकजुट होकर हक के लिए संघर्ष को ताल ठोक रहे हैं। यही नहीं इनका हौसला, उम्मीद की एक नई रोशनी दिखाता है। हौसला जगे भी क्यों नहीं, संगठन ने इस सोये समुदाय को जगाने का काम किया है। वहीं, पहली बार ज़िले का सांसद इनके हक-हकूक को इनके बीच पहुंचा है। 

वन गुर्जरों के इसी हौसले को मजबूती देते हुए चौधरी कहते हैं कि आप भी देश के इज्जतदार शहरी (नागरिक) हैं। शरणार्थी नहीं हैं। प्रजातंत्र में नागरिक, मालिक होता है। उसके अपने हक हकूक होते हैं। आपके पूर्वज अरसे से वनों में रह रहे हैं, वन विभाग तो बहुत बाद में आया ह। वहीं संविधान साफ कहता है कि जल, जंगल, जमीन के मालिक देश के लोग हैं। 2006 में देश की संसद ने वनाधिकार कानून बनाया है जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने जंगल से किसी की भी बेदखली पर रोक लगाई हुई है। ऐसे में वनाधिकार कानून के तहत आप वन भूमि पर दावे के हकदार हैं। आपको अपने हक से कोई वंचित नहीं कर सकता है। लिहाजा अपने हक पर खड़े हों और हकदारी का दावा करें। कोई आपको जबरन बेदखल नहीं कर सकता है। 

सांसद हाजी फजलुर्रहमान ने कहा कि वन गुर्जरों को जंगल से निकालना वनाधिकार कानून व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि हमें मिलकर कानून के दायरे में अपनी लड़ाई को लड़ना है। वह उनकी आवाज को संसद व अन्य सक्षम फोरम पर उठाने का काम करेंगे। लेकिन यह बात दिमाग से निकाल देनी होगी कि सरकार आपकी मदद करेगी। आपको खुद कानून के दायरे में रहकर इसके लिए जद्दोजहद करनी होगी और इस जद्दोजहद को अपने मिजाज में शामिल करना होगा, जागते रहना होगा। 

सांसद ने वन गुर्जर समुदाय से बच्चों को हर हाल में शिक्षित बनाने का भी आह्वान किया। स्कूल न होने का बहाना नहीं चलेगा। कहा मुश्किलें हैं लेकिन उन्हें हौसलों से हराना होगा। सांसद ने इसके लिए लाल बहादुर शास्त्री के नहर पार-कर 10 किमी दूर जाकर शिक्षा प्राप्त करने, बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर के रेलवे स्टेशन के पोल के नीचे बैठ कर पढाई करने व डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के 10-12 किमी दूर जाकर शिक्षा ग्रहण करने के उदाहरण गिनाते हुए, हर हाल में बच्चों को तालीम दिलाने का संकल्प दिलाया। 

इसके साथ ही सांसद ने संगठन बनाने और युवा गुर्जर साथियों के सहयोग से कानून के दायरे में हक़ के लिए लड़ने का आह्वान किया। कहा वह उनके साथ हैं और रहेंगे। उन्होंने आगे कहा अगर सरकार पुनर्वास भी चाहती हैं तो इसके लिए ठोस प्लान के साथ प्रत्येक परिवार को विधिवत 12-12 बीघा जमीन तथा कानूनी तौर से उसका मालिकाना हक प्रदान करें। 

कैराना  से सपा विधायक नाहिद हसन ने कहा कि सैकड़ों वर्षों से वन गुर्जर समुदाय जंगल में रह रहा है और जंगल पर इनका अधिकार है। नाहिद हसन ने कहा कि वनों के बिना वन गुर्जर कैसे?। कहा वन गुर्जर व वनों को अलग करके नहीं देखा जा सकता हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक है। कहा कि इस मेहनतकश समुदाय को जंगल से निकालना गैर क़ानूनी है। कहा सरकार  वन गुर्जर समुदाय को हल्के में ना लें और आगे आकर इनके हक हकूक बहाल कर समाज की मुख्य धारा में लाने का काम करें।

कहा यदि वन गुर्जरों के साथ अन्याय हुआ तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक का गुर्जर समाज सड़कों पर उतर कर आंदोलन करेगा। उन्होंने एसडीएम के द्वारा वन गुर्जरों को धमकाया जाने को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया। 

वन गुर्जरो को संगठित कर एक मंच पर लाने व अधिकारों की अलख जगाने वाले वन गुर्जर युवा संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अमीर हमजा ने कहा कि शिवालिक जंगल में टाइगर रिजर्व पार्क के प्रस्ताव की आड़ लेकर प्रशासन जंगलों में रहकर गुजर-बसर करने वाले वन गुर्जरों को बेपटरी करने की कोशिश में लगा हुआ है जो नहीं होने दिया जाएगा।

अमीर हमजा ने कहा कि सरकार टोंगिया की तर्ज पर कानून के तहत, इस घुमंतू पशुपालक समुदाय वन गुर्जर के वनाधिकार को मान्यता प्रदान करने का काम करें। न कि गैर कानूनी तरीके से इनकी बेदखली की कोशिश की जाए। कहा ऐसा हुआ तो वन गुर्जर समुदाय सड़को पर उतरने से भी गुरेज नहीं करेगा। सांसद पुत्र मोनिस रज़ा, गुल सनववर प्रधान मोहंड,  बसपा नेता चौ अबूबकर, ज़ाकिर प्रधान नियामतपुर, ताहिर प्रधान कोठड़ी बहलोलपुर, मुख्तार चौपड़ा, इमरान चौधरी, मुन्नू खान, सय्यद हस्सान, ज़िला पंचायत सहारनपुर के पूर्व उपाध्यक्ष इकबाल, डॉ मुरसलीन, अशफ़ाक आदि ने भी संबोधित किया।

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