उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित दोषीपुरा इलाके में सालों पुराना विवाद एक बार फिर जाग उठा। विवाद तब शुरू हुआ जब सुन्नी समुदाय के लोग बिना परमिट वाला (नान रजिस्टर्ड) ताजिया लेकर जाने लगे, जिसका शिया समुदाय के लोगों ने विरोध किया। विवाद ने इतना बड़ा रूप ले लिया कि दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे पर टूट पड़े और एक दूसरे पर जमकर पथराव करने लगे। करीब दो घंटे तक चले उपद्रव, बवाल और नारेबाजी के बीच सैकड़ों लोग घायल हो गए। करीब डेढ़ दर्जन बाइकें तहस-नहस कर दी गईं। उपद्रवियों ने पुलिस के कुछ वाहनों को भी तोड़ दिया।
जैतपुरा इलाके के दोषीपुरा में साल 2015 में जनाना इमामबाड़ा का दरवाजा बदलने को लेकर शिया और सुन्नी आपस में भिड़ गए थे। उस समय भी पांच बाइकें तोड़ी गई और दोनों पक्षों से 25लोग घायल हुए थे। बताया जा रहा है कि इस बार पुलिस नींद में थी और दोनों पक्षों के बीच हुए मामूली विवाद ने बड़े संघर्ष का रूप ले लिया। उपद्रवियों को खदेड़ने के लिए पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी। शिया-सुन्नी समुदायों के बीच हुई झड़प के दौरान उपद्रवियों ने करीब बीस बाइकें, पुलिस की एक जीप को क्षतिग्रस्त कर दिया। इस हिंसक वारदात में करीब सौ से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है।
जैतपुरा इलाके के दोषीपुरा में साल 2015 में जनाना इमामबाड़ा का दरवाजा बदलने को लेकर शिया और सुन्नी आपस में भिड़ गए थे। उस समय भी पांच बाइकें तोड़ी गई और दोनों पक्षों से 25लोग घायल हुए थे। बताया जा रहा है कि इस बार पुलिस नींद में थी और दोनों पक्षों के बीच हुए मामूली विवाद ने बड़े संघर्ष का रूप ले लिया। उपद्रवियों को खदेड़ने के लिए पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी। शिया-सुन्नी समुदायों के बीच हुई झड़प के दौरान उपद्रवियों ने करीब बीस बाइकें, पुलिस की एक जीप को क्षतिग्रस्त कर दिया। इस हिंसक वारदात में करीब सौ से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, बनारस के दोषीपुरा मैदान की ओर से ताजिया लेकर जाने की अनुमति नहीं थी। इसके बावजूद भी सुन्नी समुदाय के लोग20वां ताजिया लेकर दोषीपुरा मैदान तक पहुंच गए। शिया समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया गया तो जुलूस में शामिल लोग भिड़ गए और पथराव करने लगे। जवाब में शिया समुदाय के लोगों ने भी जमकर पथराव शुरू कर दिया। दोनों पक्षों के बीच काफी देर तक मारपीट और गुरिल्ला युद्ध चलता रहा। इस दौरान बड़ी तादाद में लोग लहूलुहान हो गए।
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक, इस उपद्रव को लेकर 36 नामजद और 4000 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ है। इसके अलावा 22 लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है।
न्यूजक्लिक पर प्रकाशित विजय विनीत की रिपोर्ट में इस विवाद की प्राचीनता को लेकर बताया गया है कि यह विवाद सदियों पुराना है। इसमें कहा गया है कि बनारस के दोषीपुरा में दो एकड़ जमीन के लेकर शिया और सुन्नी के बीच विवाद अपने आप में भारत के सबसे पुराने मामलों में से एक है। यह मुकदमा साल 1878 में उस समय शुरू हुआ था जब लॉर्ड लिटन भारत के गवर्नर जनरल हुआ करते थे। दुर्भाग्य यह है कि आज तक इसका कोई सर्वमान्य हल नहीं निकल सका है। जिस स्थान पर दोनों समुदायों के बीच विवाद हुआ है उस जमीन के मालिक पहले महाराजा बनारस हुआ करते थे। इसी जमीन पर शिया और सुन्नी दोनों अपना हक़ जताते रहे हैं।
शिया समुदाय के लोग कहते हैं कि महाराजा बनारस ने उन्हें धार्मिक कार्यों के लिए उक्त जमीन दान में दी है। दूसरी ओर, सुन्नियों का कहना है कि यह उनका पुराना कब्रिस्तान है, लिहाजा शियाओं को इस पर किसी भी तरह का धार्मिक आयोजन करने का अधिकार नहीं है। सुन्नी समुदाय लोग इस भूखंड पर अपने समुदाय के दो लोगों की कच्ची कब्रें होने का दावा करते आ रहे हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट दोनों कब्रों के सही होने का दावा खारिज कर चुका है।
दोषीपुरा में शिया-सुन्नी के बीच मुकदमा दसियों अदालतों में चला और सुलह-सफाई की कोशिशें भी बहुत हुईं, लेकिन हर कोशिश नाकाम साबित हुई। आज़ादी के पहले और उसके बाद भी दोनों समुदायों के बीच झगड़ा चलता रहा। साल 1976 में सुन्नी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए। तीन नवंबर 1981 को शीर्ष अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाया और सुन्नी हार गए। ज़्यादातर अदालतों में शिया सही माने गए और सुन्नी गलत।
नहीं हट सकीं कब्रें
सुप्रीम कोर्ट ने बनारस जिला प्रशासन को निर्देश दिया था कि वो बाउंड्री वॉल बनवाएं और मैदान में मौजूद दो कब्रों को हटवाएं, लेकिन सबने हाथ खड़े कर दिए। यूपी सरकार ने भी और प्रशासनिक अफसरों ने भी। सालों से यह तर्क दिया जा रहा है कि कब्रों को हटाने की कोशिश करने पर कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। तब से लेकर अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। तारीखें आगे बढ़ती गईं और मामला लटका रहा।
सुप्रीम कोर्ट कई बार यह कह चुका है कि आपसी बातचीत से इस विवाद को सुलझाया जाए। सुन्नी समुदाय के लोग कहते हैं कि हमारी कब्रें हट नहीं सकतीं। शिया कहते हैं कि मुग़ल बादशाह शाहजहां अपनी बेगम मुमताज़ महल को पहले बुरहानपुर में दफनाया और बाद में ताजमहल में। जब उनकी कब्र हट सकती हैं तो यह कब्रें क्यों नहीं?
कुछ बरस पहले यह तय हुआ था कि विवादित भूखंड पर शिया और सुन्नी दोनों अपने-अपने धार्मिक काम करें। लेकिन शिया समुदाय के लोगों का कहना है कि वो किसी भी कीमत पर सुन्नियों को इस भूखंड पर धार्मिक काम की इजाजत नहीं देंगे। हमारी तादाद बहुत कम है और यहां सुन्नी लाखों में है। हमारी बातें हर जगह भले ही अनसुनी कर दी जाती हैं, लेकिन अदालत हमेशा हमारे पक्ष में फैसला सुनाती रही है।
मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए संघर्ष करने वाले वरिष्ठ पत्रकार अतीक अंसारी कहते हैं,"दोषीपुरा में कई मर्तबा विवाद खड़ा हो चुका है, इसके बावजूद पुलिस ने वो चौकसी नहीं बरती, जो जरूरी थी। हमें लगता है पुलिस नींद में थी और यह विवाद हो गया। इस तरह का विवाद सिर्फ आपसी बातचीत के जरिये ही हल हो सकता है, लेकिन बनारस जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार ने सालों पुराने इस विवाद को सुलझाने में गंभीरता नहीं बरती।"
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जैतपुरा इलाके के दोषीपुरा में साल 2015 में जनाना इमामबाड़ा का दरवाजा बदलने को लेकर शिया और सुन्नी आपस में भिड़ गए थे। उस समय भी पांच बाइकें तोड़ी गई और दोनों पक्षों से 25लोग घायल हुए थे। बताया जा रहा है कि इस बार पुलिस नींद में थी और दोनों पक्षों के बीच हुए मामूली विवाद ने बड़े संघर्ष का रूप ले लिया। उपद्रवियों को खदेड़ने के लिए पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी। शिया-सुन्नी समुदायों के बीच हुई झड़प के दौरान उपद्रवियों ने करीब बीस बाइकें, पुलिस की एक जीप को क्षतिग्रस्त कर दिया। इस हिंसक वारदात में करीब सौ से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है।
जैतपुरा इलाके के दोषीपुरा में साल 2015 में जनाना इमामबाड़ा का दरवाजा बदलने को लेकर शिया और सुन्नी आपस में भिड़ गए थे। उस समय भी पांच बाइकें तोड़ी गई और दोनों पक्षों से 25लोग घायल हुए थे। बताया जा रहा है कि इस बार पुलिस नींद में थी और दोनों पक्षों के बीच हुए मामूली विवाद ने बड़े संघर्ष का रूप ले लिया। उपद्रवियों को खदेड़ने के लिए पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी। शिया-सुन्नी समुदायों के बीच हुई झड़प के दौरान उपद्रवियों ने करीब बीस बाइकें, पुलिस की एक जीप को क्षतिग्रस्त कर दिया। इस हिंसक वारदात में करीब सौ से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, बनारस के दोषीपुरा मैदान की ओर से ताजिया लेकर जाने की अनुमति नहीं थी। इसके बावजूद भी सुन्नी समुदाय के लोग20वां ताजिया लेकर दोषीपुरा मैदान तक पहुंच गए। शिया समुदाय के लोगों ने इसका विरोध किया गया तो जुलूस में शामिल लोग भिड़ गए और पथराव करने लगे। जवाब में शिया समुदाय के लोगों ने भी जमकर पथराव शुरू कर दिया। दोनों पक्षों के बीच काफी देर तक मारपीट और गुरिल्ला युद्ध चलता रहा। इस दौरान बड़ी तादाद में लोग लहूलुहान हो गए।
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक, इस उपद्रव को लेकर 36 नामजद और 4000 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ है। इसके अलावा 22 लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है।
न्यूजक्लिक पर प्रकाशित विजय विनीत की रिपोर्ट में इस विवाद की प्राचीनता को लेकर बताया गया है कि यह विवाद सदियों पुराना है। इसमें कहा गया है कि बनारस के दोषीपुरा में दो एकड़ जमीन के लेकर शिया और सुन्नी के बीच विवाद अपने आप में भारत के सबसे पुराने मामलों में से एक है। यह मुकदमा साल 1878 में उस समय शुरू हुआ था जब लॉर्ड लिटन भारत के गवर्नर जनरल हुआ करते थे। दुर्भाग्य यह है कि आज तक इसका कोई सर्वमान्य हल नहीं निकल सका है। जिस स्थान पर दोनों समुदायों के बीच विवाद हुआ है उस जमीन के मालिक पहले महाराजा बनारस हुआ करते थे। इसी जमीन पर शिया और सुन्नी दोनों अपना हक़ जताते रहे हैं।
शिया समुदाय के लोग कहते हैं कि महाराजा बनारस ने उन्हें धार्मिक कार्यों के लिए उक्त जमीन दान में दी है। दूसरी ओर, सुन्नियों का कहना है कि यह उनका पुराना कब्रिस्तान है, लिहाजा शियाओं को इस पर किसी भी तरह का धार्मिक आयोजन करने का अधिकार नहीं है। सुन्नी समुदाय लोग इस भूखंड पर अपने समुदाय के दो लोगों की कच्ची कब्रें होने का दावा करते आ रहे हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट दोनों कब्रों के सही होने का दावा खारिज कर चुका है।
दोषीपुरा में शिया-सुन्नी के बीच मुकदमा दसियों अदालतों में चला और सुलह-सफाई की कोशिशें भी बहुत हुईं, लेकिन हर कोशिश नाकाम साबित हुई। आज़ादी के पहले और उसके बाद भी दोनों समुदायों के बीच झगड़ा चलता रहा। साल 1976 में सुन्नी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए। तीन नवंबर 1981 को शीर्ष अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाया और सुन्नी हार गए। ज़्यादातर अदालतों में शिया सही माने गए और सुन्नी गलत।
नहीं हट सकीं कब्रें
सुप्रीम कोर्ट ने बनारस जिला प्रशासन को निर्देश दिया था कि वो बाउंड्री वॉल बनवाएं और मैदान में मौजूद दो कब्रों को हटवाएं, लेकिन सबने हाथ खड़े कर दिए। यूपी सरकार ने भी और प्रशासनिक अफसरों ने भी। सालों से यह तर्क दिया जा रहा है कि कब्रों को हटाने की कोशिश करने पर कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। तब से लेकर अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। तारीखें आगे बढ़ती गईं और मामला लटका रहा।
सुप्रीम कोर्ट कई बार यह कह चुका है कि आपसी बातचीत से इस विवाद को सुलझाया जाए। सुन्नी समुदाय के लोग कहते हैं कि हमारी कब्रें हट नहीं सकतीं। शिया कहते हैं कि मुग़ल बादशाह शाहजहां अपनी बेगम मुमताज़ महल को पहले बुरहानपुर में दफनाया और बाद में ताजमहल में। जब उनकी कब्र हट सकती हैं तो यह कब्रें क्यों नहीं?
कुछ बरस पहले यह तय हुआ था कि विवादित भूखंड पर शिया और सुन्नी दोनों अपने-अपने धार्मिक काम करें। लेकिन शिया समुदाय के लोगों का कहना है कि वो किसी भी कीमत पर सुन्नियों को इस भूखंड पर धार्मिक काम की इजाजत नहीं देंगे। हमारी तादाद बहुत कम है और यहां सुन्नी लाखों में है। हमारी बातें हर जगह भले ही अनसुनी कर दी जाती हैं, लेकिन अदालत हमेशा हमारे पक्ष में फैसला सुनाती रही है।
मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए संघर्ष करने वाले वरिष्ठ पत्रकार अतीक अंसारी कहते हैं,"दोषीपुरा में कई मर्तबा विवाद खड़ा हो चुका है, इसके बावजूद पुलिस ने वो चौकसी नहीं बरती, जो जरूरी थी। हमें लगता है पुलिस नींद में थी और यह विवाद हो गया। इस तरह का विवाद सिर्फ आपसी बातचीत के जरिये ही हल हो सकता है, लेकिन बनारस जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार ने सालों पुराने इस विवाद को सुलझाने में गंभीरता नहीं बरती।"
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