क्या सीवर में मौत को लेकर सरकार का जमीर जागेगा?

Written by Dilip Mandal | Published on: July 18, 2017

कश्मीर में हमारी लगभग एक तिहाई सेना तैनात है. सरकारी आंकड़ा है कि 2016 में वहां 60 सुरक्षाकर्मी देश की रक्षा करते हुए मारे गए, जो हाल के वर्षों का सबसे बड़ा आंकड़ा है. कश्मीर एक खतरनाक जगह है.

लेकिन इसी भारत में एक जगह कश्मीर से भी खतरनाक है. वह जगह है सीवर. इनकी सफाई करते हुए एक साल में 22,327 भारतीय नागरिक मारे गए.(स्रोत- एस. आनंद का आलेख, द हिंदू)

कश्मीर पोस्टिंग की तुलना में सीवर में जाने में जान का जोखिम कई गुना ज्यादा है. सीवर से आप जिंदा लौटकर न आएं, इसकी आशंका बहुत ज्यादा है.
लेकिन अगर दिल्ली जैसे किसी शहर में सीवर साफ न हों, तो हफ्ते भर में हैजा और तमाम बीमारियों से हजारों लोग मर जाएंगे, इस मायने में यह काम किसी भी अन्य काम से ज्यादा नहीं तो कम महत्वपूर्ण भी नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी भी हालत में किसी व्यक्ति को सीवर में न भेजा जाए. इसके लिए भारतीय संसद ने मैनुअल स्कैंवेंजर एंड रिहैबिलिटेशन एक्ट 2013 भी पास किया है. सुप्रीम कोर्ट ने सीवर साफ करने के दौरान हुई मौत का मुआवजा 10 लाख फिक्स किया है. लेकिन हालात बदले नहीं है.

दुनिया में भारत की बदनामी की एक बड़ी वजह सीवर में होने वाली मौत है. इसे दुनिया कितनी गंभीरता से लेती है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि इस दिशा में काम करने वाले मित्र बेजवाड़ा विल्सन को मैगसेसे अवार्ड मिला है.

इसके लिए कुछ उपाय किए जाने चाहिए.

1. सीवर साफ करने की न्यूनतम मजदूरी 50,000 रुपए प्रतिमाह तय हो.
2. सीवर में मरने वाले हर मजदूर को राष्ट्रीय शहीद का दर्जा मिले और परिवार को शहीदों के परिवारों वाली सुविधाएं मिले.
3. इस काम का तत्काल मशीनीकरण हो. अर्बन रिन्यूअल मिशन का बाकी सारा काम रोककर सारा पैसा सीवर सफाई के मशीनीकरण पर लगाया जाए.

पूरी पश्चिमी दुनिया में यह हो चुका है.

इस मामले को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की सख्त जरूरत है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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