"सीवर डेथ पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अब सीवर की सफाई करते समय किसी की डेथ होती है या दिव्यांगता होती है तो उसका बढ़ा हुआ मुआवजा देना होगा। जी हां, भारत में मैन्युअल स्केवेंजिंग यानी इंसानों द्वारा सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों पर 20 अक्टूबर को दिए अपने आदेश में शीर्ष न्यायालय ने कहा कि जो लोग सीवर सफाई के दौरान मारे जाते हैं उनके परिवार को सरकारी अधिकारियों को 30 लाख रुपये मुआवजा देना होगा। खास ये भी कि... इससे पूर्व 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 10-10 लाख रुपए मुआवजा देने के आदेश दिए थे जो करीब आधे मामलों में ही दिए जा सके हैं।"
सुप्रीम कोर्ट जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने शुक्रवार को कहा कि सीवर की सफाई के दौरान स्थायी विकलांगता का शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा। यही नहीं, बेंच ने अपने आदेश में केंद्र और राज्य सरकारों से कहा कि सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी खत्म हो जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सफाई करते हुए कोई कर्मचारी अन्य किसी विकलांगता से ग्रस्त होता है तो उसे 10 लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा।
कोर्ट ने ऐसी मौतों को रोकने के लिए जरुरी कदमों से जुड़े निर्देश भी जारी किए हैं। कहा, सरकारी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं ना हों और हाईकोर्ट को सीवर से होनी वाली मौतों से जुड़े मामलों की निगरानी करने से ना रोका जाए।
दरअसल, हाथ से सीवर की सफाई खतरनाक है। कई बार मजदूर सीवर में सफाई करने के लिए बिना किसी सुरक्षा उपकरण के उतर जाते हैं। ना तो उनके पास जहरीली गैस से बचाव के लिए मास्क होते हैं और ना ही सुरक्षा देने वाले कपड़े और दस्ताने। भारत में इंसानों से सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करवाना बंद करने की सालों से उठ रही मांगों के बावजूद यह अमानवीय काम जारी है। जुलाई 2022 में लोकसभा में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पांच वर्षों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 40% मौतें अकेले उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में हुईं है।
वहीं इसी साल लोक सभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान पूरे देश में 339 लोगों की मौत के मामले दर्ज किये गए। इसका मतलब है इस काम को करने में हर साल औसत 68 लोग मारे गए। सभी मामले 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से हैं।
2019 इस मामले में सबसे भयावह साल रहा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अकेले 2019 में ही 117 लोगों की मौत हो गई। कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन से गुजरने वाले सालों 2020 और 2021 में भी 22 और 58 लोगों की जान गई। 2023 में अभी तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक नौ लोगों की मौत हो चुकी है। महाराष्ट्र में तस्वीर सबसे ज्यादा खराब है, जहां सीवर की सफाई के दौरान पिछले पांच सालों में कुल 54 लोग मारे जा चुके हैं। उसके बाद बारी उत्तर प्रदेश की है जहां इन पांच सालों में 46 लोगों की मौत हुई।
भारत में इंसानों द्वारा नालों और सेप्टिक टैंकों की सफाई एक बड़ी समस्या है। सरकार का भी कहना है कि इन लोगों की मौत का कारण सीवरों और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक तरीकों से सफाई करवाना। इसके साथ ही कानून में दी गई सुरक्षात्मक सावधानी को ना बरतना। सफाई के दौरान सीवरों से विषैली गैसें निकलती हैं जो व्यक्ति की जान ले लेती हैं। इसी से 2013 में एक कानून के जरिए इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था, लेकिन बैन अभी तक सिर्फ कागज पर ही है। देश में आज भी हजारों लोग सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने के उद्देश्य से उनमें उतरने के लिए मजबूर हैं।
करीब आधे मामलों में ही मिल सके पूरे 10 लाख
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) ने आरटीआई के तहत, राज्यों द्वारा दी जानकारी के आधार पर बताया कि, देश के 20 राज्यों में 1993 से लेकर 2019 तक करीब 25 साल में सीवर सफाई के दौरान कुल 814 लोगों की मौत हुई है जिसमें से 455 मामलों में ही पूरे 10 लाख का मुआवजा दिया गया है। द वायर की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि सीवर मौतों का ये आंकड़ा अभी काफी अधूरा है और आयोग बाकी जानकारी जुटाने के लिए राज्यों को लगातार पत्र लिख रहा है।
खास है कि 27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया था कि साल 1993 से सीवरेज कार्य (मैनहोल, सेप्टिक टैंक) में मरने वाले सभी व्यक्तियों के परिवारों की पहचान करें और उनके आधार पर परिवार के सदस्यों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए। लेकिन द वायर द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेज दर्शाते हैं कि कई सारे मामलों में पीड़ित परिवारों को दस लाख रुपये के बजाय इससे कम जैसे कि चार लाख रुपये, पांच लाख रुपये, यहां तक कि दो लाख रुपये तक का मुआवजा दिया जा रहा है। मुआवजा देने की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति जैसे कि कॉन्ट्रैक्टर, नगर निगम, जिला प्रशासन, राज्य सरकार पर होती है।
आयोग द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक सीवर में दम घुटने से सबसे ज्यादा 206 मौतें तमिलनाडु में हुई हैं लेकिन इसमें से सिर्फ 162 मामलों में ही पीड़ित परिवार को पूरे 10 लाख का मुआवजा दिया गया है। इस मामले में गुजरात की हालत काफी खराब है। यहां पर अब तक कुल 156 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान होने की पहचान की गई है, लेकिन सिर्फ 53 मामलों में यानी कि करीब 34 फीसदी पीड़ित परिवारों को ही पूरे 10 लाख का मुआवजा दिया गया है।
उत्तर प्रदेश की भी हालत कुछ ऐसी ही है। यहां पर कुल 78 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान होने की पहचान की गई है और सिर्फ 23 मामलों यानी कि करीब 30 फीसदी पीड़ित परिवारों को ही 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया है।
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कोर्ट ने ऐसी मौतों को रोकने के लिए जरुरी कदमों से जुड़े निर्देश भी जारी किए हैं। कहा, सरकारी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं ना हों और हाईकोर्ट को सीवर से होनी वाली मौतों से जुड़े मामलों की निगरानी करने से ना रोका जाए।
दरअसल, हाथ से सीवर की सफाई खतरनाक है। कई बार मजदूर सीवर में सफाई करने के लिए बिना किसी सुरक्षा उपकरण के उतर जाते हैं। ना तो उनके पास जहरीली गैस से बचाव के लिए मास्क होते हैं और ना ही सुरक्षा देने वाले कपड़े और दस्ताने। भारत में इंसानों से सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करवाना बंद करने की सालों से उठ रही मांगों के बावजूद यह अमानवीय काम जारी है। जुलाई 2022 में लोकसभा में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पांच वर्षों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 40% मौतें अकेले उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में हुईं है।
वहीं इसी साल लोक सभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान पूरे देश में 339 लोगों की मौत के मामले दर्ज किये गए। इसका मतलब है इस काम को करने में हर साल औसत 68 लोग मारे गए। सभी मामले 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से हैं।
2019 इस मामले में सबसे भयावह साल रहा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अकेले 2019 में ही 117 लोगों की मौत हो गई। कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन से गुजरने वाले सालों 2020 और 2021 में भी 22 और 58 लोगों की जान गई। 2023 में अभी तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक नौ लोगों की मौत हो चुकी है। महाराष्ट्र में तस्वीर सबसे ज्यादा खराब है, जहां सीवर की सफाई के दौरान पिछले पांच सालों में कुल 54 लोग मारे जा चुके हैं। उसके बाद बारी उत्तर प्रदेश की है जहां इन पांच सालों में 46 लोगों की मौत हुई।
भारत में इंसानों द्वारा नालों और सेप्टिक टैंकों की सफाई एक बड़ी समस्या है। सरकार का भी कहना है कि इन लोगों की मौत का कारण सीवरों और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक तरीकों से सफाई करवाना। इसके साथ ही कानून में दी गई सुरक्षात्मक सावधानी को ना बरतना। सफाई के दौरान सीवरों से विषैली गैसें निकलती हैं जो व्यक्ति की जान ले लेती हैं। इसी से 2013 में एक कानून के जरिए इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था, लेकिन बैन अभी तक सिर्फ कागज पर ही है। देश में आज भी हजारों लोग सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने के उद्देश्य से उनमें उतरने के लिए मजबूर हैं।
करीब आधे मामलों में ही मिल सके पूरे 10 लाख
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) ने आरटीआई के तहत, राज्यों द्वारा दी जानकारी के आधार पर बताया कि, देश के 20 राज्यों में 1993 से लेकर 2019 तक करीब 25 साल में सीवर सफाई के दौरान कुल 814 लोगों की मौत हुई है जिसमें से 455 मामलों में ही पूरे 10 लाख का मुआवजा दिया गया है। द वायर की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि सीवर मौतों का ये आंकड़ा अभी काफी अधूरा है और आयोग बाकी जानकारी जुटाने के लिए राज्यों को लगातार पत्र लिख रहा है।
खास है कि 27 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया था कि साल 1993 से सीवरेज कार्य (मैनहोल, सेप्टिक टैंक) में मरने वाले सभी व्यक्तियों के परिवारों की पहचान करें और उनके आधार पर परिवार के सदस्यों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए। लेकिन द वायर द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेज दर्शाते हैं कि कई सारे मामलों में पीड़ित परिवारों को दस लाख रुपये के बजाय इससे कम जैसे कि चार लाख रुपये, पांच लाख रुपये, यहां तक कि दो लाख रुपये तक का मुआवजा दिया जा रहा है। मुआवजा देने की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति जैसे कि कॉन्ट्रैक्टर, नगर निगम, जिला प्रशासन, राज्य सरकार पर होती है।
आयोग द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक सीवर में दम घुटने से सबसे ज्यादा 206 मौतें तमिलनाडु में हुई हैं लेकिन इसमें से सिर्फ 162 मामलों में ही पीड़ित परिवार को पूरे 10 लाख का मुआवजा दिया गया है। इस मामले में गुजरात की हालत काफी खराब है। यहां पर अब तक कुल 156 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान होने की पहचान की गई है, लेकिन सिर्फ 53 मामलों में यानी कि करीब 34 फीसदी पीड़ित परिवारों को ही पूरे 10 लाख का मुआवजा दिया गया है।
उत्तर प्रदेश की भी हालत कुछ ऐसी ही है। यहां पर कुल 78 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान होने की पहचान की गई है और सिर्फ 23 मामलों यानी कि करीब 30 फीसदी पीड़ित परिवारों को ही 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया है।
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