योग दिवस पर एक छोटा सा संवाद

Written by Ravish Kumar, NDTV | Published on: June 21, 2019
"योग में हर व्याधि का उपचार नहीं है। अगर कोई ऐसा कहता है तो ग़लत कहता है, क्योंकि योग कोई उपचारात्मक विज्ञान या विषय नहीं है। हमारा अपना अनुभव रहा है कि अगर जीवनशैली ठीक हो जाएगी तो रोग स्वत: दूर हो जाएंगे। लेकिन अगर जीवनशैली ठीक नहीं होगी, तो तुम कितने ही प्रयास क्यों न करो, ठीक होने के बाद दुबारा गिरोगे। इसलिए योग को हम एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति नहीं मानते, जैसे आज का समाज मानता है। हमारे गुरुजी हमेशा यह बात कहते थे कि तुम योग द्वारा अपने आप को ठीक भले ही कर लो लेकिन तुम्हारी योग यात्रा समाप्त नहीं होनी चाहिए। उसके आगे भी तुम्हें चलते रहना है।



व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए योग में आता है। एक महीने, दो महीने, छह महीने, साल भर योगाभ्यास करता है और फिर छुट्टी। फिर चार-पांच साल बाद जब दुबारा गिरने लगता है, कमज़ोर होने लगता है, तब सोचता है, जब मैं योगाभ्यास करता था तब मुझे अच्छा लग रहा था। अब क्यों न मैं फिर से शुरू कर दूं? इसे योग साधना नहीं कहते । तुम योग के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि अपने ही प्रयोजन को सिद्ध करने करने के लिए अभ्यास कर रहे हो। आज जितने भी योग के केंद्र हैं, वे सब योगाभ्यास के केंद्र हैं, योग साधना केंद्र नहीं ।

यौगिक दृष्टिकोण से दैनिक अभ्यास के लिए पांच आसन ही पर्याप्त हैं। ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटिचक्रासन, सूर्य नमस्कार,संर्वांगासन। ""

यह सारी जानकारी स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती की किताब यौगिक जीवन से ली गई है। हु-ब-हू उतार कर रख दिया है। वैसे योग पर मैं स्वामी जी को पढ़ता हूं। उनके असर को लेकर कुछ लेक्चर हम भी दे सकते हैं। वो फिर कभी। वरना आप घबरा जाएंगे। जीवनशैली बदलिए। क्या वो आपके बस में है? अगर नहीं तो योग आपके बस में नहीं हो सकता? फिर भी योग करते रहिए। सेल्फी के लिए नहीं। सेल्फ के लिए। अभ्यास से आगे जाइये। योग का सच्चा साधक आत्म प्रचार नहीं करता। वह भीड नहीं बनाता है। वह एकांत प्राप्त करता है।

मुंगेर जाइयेगा। मेरा भी मन है। इस टीवी के जंजाल से मुक्ति की कामना इन्हीं सब साधनाओं के लिए है। आजीविका का इंतज़ाम रोकता है। वरना कब का अपने पेशे की दुनिया से बहुत दूर जा चुका हूं। मैं रोज़ अपने आप को सौ मील दूर पाता हूं। आप मुझे रोज़ इस पेशे के ज़ीरो माइल पर देखते हैं। यही माया है। यही संसार है।

मेरी एक बात मान लें। न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दें। आप योग की दिशा में प्रस्थान कर जाएंगे। सुबह योग करें और शाम को आक्रमण के अंदाज़ में खबरों को देखें। यह योग के साथ छल-कपट है। आज कल कपटी योगी बनने का ढोंग कर रहे हैं। भारतीय समाज को न्यूज़ चैनलों के दैनिक दर्शन कुप्रवृत्ति से मुक्त करना ही सबसे बड़ा योग है। आप हर हफ्ते एक नए विषय पर चैनलों की समीक्षा कर रहे होते हैं। कोई लाभ नहीं है।

बीमारी का पावडर बनाकर अपने चेहरे पर मत पोतो। उस पावडर को अपने घर से दूर कर दो। टीवी बंद कर दो। तब पता चलेगा कि आप सही मायने में योग से आत्म नियंत्रण का अभ्यास साधने लगे हैं। न्यूज़ चैनल मानसिक कब्ज़ फैलाते हैं। इस कचरे को जीवन से दूर कीजिए। आपको बहुत लाभ होगा। इतना कि आप खुश होकर मुझे दुआएं देंगे। मन करेगा तो धन भी दीजिएगा। मैं लोककल्याण में लगाऊंगा।

जो आदतन झूठ बोलता है, वह योग का प्रचारक है। जो झूठ के साथ खड़े हैं वह निर्बल लोग हैं। योग आत्मबल का विकास करता है। योग आपको जीवन के सत्य के मार्ग पर ले जाता है। साहस भरता है। मिथ्या और माया से दूर रहने की प्रवृत्ति का विकास करता है। हर नागरिक को योगी होना होगा। सच्चा योगी। कपटी योगी नहीं। जब भी आप योग करें, पूरे दिन और पूरे जीवन के लिए करें। आप मन से सफ़ल होंगे। मन आपका चंचल नहीं रहेगा। जीवन को रिमोट की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

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