मुजफ्फरपुर की घटना से हमे पता चला है कि देश के स्वास्थ्य विभाग के पास अस्पतालों में बेसिक सुविधाओं के विस्तार के लिए भी बजट नही है लेकिन अंतराष्ट्रीय योग दिवस के प्रोग्राम में खर्चने के लिए भरपूर बजट है.
क्या आप जानते है कि 21 जून 2015 को जब पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया तो जो नई दिल्ली के राजपथ पर योग कार्यक्रम का आयोजन किया गया था उस कार्यक्रम पर 15.86 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, सिर्फ दूरदर्शन और आकाशवाणी के माध्यम से प्रचार पर 8.28 करोड़ रुपए जैसी बड़ी रकम खर्च की गयी, इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए सरकारी संस्थाओं और एनजीओ देश के हर जिले में एक-एक लाख रुपए की वित्तीय सहायता दी गई। इस कार्य में कुल 6.70 करोड़ रुपए खर्च हुए, इस तरह से सिर्फ आयुष मंत्रालय ने ही 2015 में योग दिवस की 30 से 35 मिनट की नोटंकी के आयोजन पर लगभग 32 करोड़ रुपए खर्च कर दिए.
यह तो सिर्फ केंद्र सरकार का आंकड़ा है राज्य सरकारों ने भी इस नॉटंकी मे बढ़ चढ़ कर भाग लिया चूंकि 21 जून को देश के अधिकांश हिस्सों में मानसून आ जाता है इसलिए योग दिवस मनाने के लिए बड़े बड़े वॉटरप्रूफ डोम लगाए जाते हैं सिलवासा की एक खबर बताती है कि 21 जून 2017 के विश्व योग दिवस कार्यक्रम से पहले पीडब्ल्यूडी विभाग ने दमण और सिलवासा में टेंट लगाने और उससे जुडी अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सवा करोड रूपए के टेंडर आमंत्रित किये थे.
यानी विभिन्न प्रदेश के जिला मुख्यालय पर इस तरह डोम आदि लगाकर हर साल योग दिवस के आयोजन में कुल मिलाकर तीन सौ चार सौ करोड़ रुपया बर्बाद किया जाता है........ लेकिन मुजफ्फरपुर के बच्चों के लिए एक अस्थायी अस्पताल भी हमारी सरकार नही बनाती है जबकि हर साल यह चमकी बुखार सैकड़ों बच्चों की जान लेता है.
कुंभ का आयोजन हो तो मनोरंजन की हर सुविधाएं जुटा दी जाती है. हजारों करोड़ की अस्थायी टेंट सिटी बसा दी जाती है जिसमे सैकड़ो बेड के अस्थायी अस्पताल बनाए जाते है पिछले साल कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रयागराज के संगम में 100 बेड का हाईटेक अस्थायी अस्पताल बनाया गया था.
क्या ठीक वैसा ही अस्थायी अस्पताल मुजफ्फरपुर में गरीब बच्चों के लिए हमारी सरकार नही बनवा सकती थी?......आखिर सरकार से ऐसे प्रश्न विपक्ष या मीडिया पूछता क्यो नही है?
क्या आप जानते है कि 21 जून 2015 को जब पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया तो जो नई दिल्ली के राजपथ पर योग कार्यक्रम का आयोजन किया गया था उस कार्यक्रम पर 15.86 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, सिर्फ दूरदर्शन और आकाशवाणी के माध्यम से प्रचार पर 8.28 करोड़ रुपए जैसी बड़ी रकम खर्च की गयी, इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए सरकारी संस्थाओं और एनजीओ देश के हर जिले में एक-एक लाख रुपए की वित्तीय सहायता दी गई। इस कार्य में कुल 6.70 करोड़ रुपए खर्च हुए, इस तरह से सिर्फ आयुष मंत्रालय ने ही 2015 में योग दिवस की 30 से 35 मिनट की नोटंकी के आयोजन पर लगभग 32 करोड़ रुपए खर्च कर दिए.
यह तो सिर्फ केंद्र सरकार का आंकड़ा है राज्य सरकारों ने भी इस नॉटंकी मे बढ़ चढ़ कर भाग लिया चूंकि 21 जून को देश के अधिकांश हिस्सों में मानसून आ जाता है इसलिए योग दिवस मनाने के लिए बड़े बड़े वॉटरप्रूफ डोम लगाए जाते हैं सिलवासा की एक खबर बताती है कि 21 जून 2017 के विश्व योग दिवस कार्यक्रम से पहले पीडब्ल्यूडी विभाग ने दमण और सिलवासा में टेंट लगाने और उससे जुडी अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सवा करोड रूपए के टेंडर आमंत्रित किये थे.
यानी विभिन्न प्रदेश के जिला मुख्यालय पर इस तरह डोम आदि लगाकर हर साल योग दिवस के आयोजन में कुल मिलाकर तीन सौ चार सौ करोड़ रुपया बर्बाद किया जाता है........ लेकिन मुजफ्फरपुर के बच्चों के लिए एक अस्थायी अस्पताल भी हमारी सरकार नही बनाती है जबकि हर साल यह चमकी बुखार सैकड़ों बच्चों की जान लेता है.
कुंभ का आयोजन हो तो मनोरंजन की हर सुविधाएं जुटा दी जाती है. हजारों करोड़ की अस्थायी टेंट सिटी बसा दी जाती है जिसमे सैकड़ो बेड के अस्थायी अस्पताल बनाए जाते है पिछले साल कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रयागराज के संगम में 100 बेड का हाईटेक अस्थायी अस्पताल बनाया गया था.
क्या ठीक वैसा ही अस्थायी अस्पताल मुजफ्फरपुर में गरीब बच्चों के लिए हमारी सरकार नही बनवा सकती थी?......आखिर सरकार से ऐसे प्रश्न विपक्ष या मीडिया पूछता क्यो नही है?