22 किसान परिवारों का दस्तावेज़ लाद कर दिल्ली में क्यों भटक रहा है राहुल ?

Written by रवीश कुमार | Published on: May 2, 2018
1 मई को ट्रोल की आपाधापी में मुझसे एक चूक हो गई। साथी सहयोगी बता रहे थे कि बिहार से एक लड़का बैग भर कर दस्तावेज़ के साथ रोज़ आता है और सुबह से लेकर शाम तक आपका इंतज़ार करता है। चार दिनों से आ रहा है। सहयोगी तो मिल आए थे, डिटेल ले लिया था मगर वो मुझसे ही मिलना चाहता था। कल जब दफ्तर पहुंचा तो थोड़ी देर पर पहले किसी ने फोन पर भद्दी गालियां दी थीं। उसके असर में बिना बात किए भीतर चला गया। वैसे भी अब मिलना कम कर दूंगा। पता नहीं कौन किस रूप में चला आए।



लेकिन उसे नज़रअंदाज़ कर चले जाने से भीतर से परेशान हो गया। लगा कि कुछ ग़लत किया है। एक मिनट के लिए मिल लेना चाहिए था। रात को वह लड़का जा चुका था। एक पत्र छोड़कर। उस पर नंबर भी था। अभी उसे फोन कर बकायदा माफी मांगी। अब जो उसने पत्र में जो लिखा है मैं यहां लिख रहा हूं ताकि बता चले कि नेताओं की हवाबाज़ी के बीच आम लोग किस तरह परेशान हैं।

राहुल बिहार के रोहतास ज़िले के मकराईन गांव का रहने वाला है। इसके गांव होकर जगदीशपुर हल्दीया गैस पाइल लाइन जा रही है। गेल कंपनी ये काम करा रही है। इस प्रोजेक्ट के कारण 22 किसानों की ज़मीन जा रही है। मगर अभी तक सिर्फ 3 किसानों को मुआवज़े का नोटिस मिला है। मुआवज़े को लेकर किसानों ने तकनीकि आधार पर आपत्ति ज़ाहिर की। चार महीने पहले वे धरना पर भी बैठे। मगर किसानों के इस छोटे से समूह पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दी। पत्र लिखने वाले राहुल का दावा है कि पुलिस महिलाओं को भी हिरासत में ले लिया।

राहुल का कहना है कि गेल कंपनी के नियम के मुताबिक गैस पाइप लाइन रिहाइशी इलाके से नहीं जा सकती है। मगर उसके गांव में आवासीय ज़मीन से जा रही है। इसकी रसीद नगरपालिका से भी हर साल कटती है।

प्रेस में कहा गया कि किसानों को 1962 PMP एक्ट के तहत मुआवज़ा दे दिया गया है जबकि किसान कहते हैं कि नहीं दिया गया है। किसान चाहते हैं कि उन्हें LARR 2013 के मुताबिक मुआवज़ा मिले। राहुल की इस व्यथा को आज तक और बिहार न्यूज़ 18 ने भी दिखाया है। मगर कुछ नहीं हुआ। शायद 22 किसानों की से कौन हमदर्दी रखता है।

पर आप सोचिए कि गांव गांव में लोग सिस्टम से अपने हक के लिए किस कदर परेशान हैं। उन्हें अपनी मामूली बातों के लिए दिल्ली तक आकर चार चार दिन पत्रकार का इंतज़ार करना पड़ता है। इससे ज़्यादा वो अधिकारियों के यहां चक्कर लगाते होंगे। राजनीति कभी जनता का काम नहीं करती है। जनता को उलझा कर रखती हैं।

किसान का बेटा दस्तावेज़ों को कंधे पर लादकर दिल्ली में भटक रहा है, आपका नेता गिरोह बनाकर गुंडे पाल रहा है और बकवास कर रहा है। क्या यह इतनी बड़ी समस्या है जिसके लिए किसी के दर दर भटकना पड़े। आप तय करें।

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