यह हमारी श्रृंखला “रिमोट कंट्रोल” का पहला लेख है। हमारा प्रयास है कि टीवी और फिल्म द्वारा समाज में फैलाए जा रहे गलत धारणाओं और अफ़वाहों को उजागर कर सकें। जिससे एक द्वेषहीन व विकारमुक्त समाज की स्थापना की जा सके।
रजत शर्मा के बहुचर्चित शो ‘आप की अदालत’ में 8 जून को एक ओर मुख्तार अब्बास नक़वी (बीजेपी नेता व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री), ज़फर सरेशवाला और मौलाना महमूद मदनी अतिथि के रूप में शामिल हुए। तो वहीं मौलाना सय्यद कल्बे-जव्वाद ने न्यायाधीश बन कर शो में हिस्सा लिया। शो का पैटर्न हमेशा की तरह ही था। एक तरफ स्टूडियो में आए हुए दर्शक सवाल कर रहे थे। तो दूसरी तरफ उनके तथा संचालकल रजत शर्मा के सवालों का जवाब कटघरे में बैठे तीनों अतिथि दे रहे थे।
शो में मौलाना महमूद मदनी ने मोदी जी के ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ भाषण के बाद मुस्लिमों के लिए नई उम्मीद बताई, साथ ही उन्हें मोदी जी पर विश्वास करने की सलाह दी। वहीं 2014 के चुनाव के दौरान मोदी जी के मुस्लिम प्रचारक ज़फर सरेशवाला ने भी कहा कि “प्राइम मिनिस्टर की बात पर हमें भरोसा करना चाहिए और अब हमें वॉक-द-टॉक देखने को मिल रहा है।
मुख्तार अब्बास नक़वी ने भी कहा कि “मोदी जी का ‘विकास का मसौदा’ वोट का सौदा नहीं है।“ उन्होंने कहा कि, हमने अपनी योजनाओं का कभी प्रचार नहीं किया, प्रचार वोट की लालच रखने वाले करते हैं। मंत्री जी ने तो अल्पसंख्यकों के कथित ‘विकास’ के लिए मोदी जी की योजनाओं और स्कॉलर्शिप से जुड़ी घोषणाओं का जिक्र कर उन्हें सबका हितैषी बताया। शो देखते देखते मुख्तार अब्बास नक़वी में संबित पात्रा का झलक देखने को मिली, जो बात बात पर अपने शायराना अंदाज से मुद्दे को ही खत्म कर दे रहे थे।
तथ्यों का विश्लेषण
गौरतलब है कि शो में कई बार अल्पसंख्यकों को दिए बजट और छात्रवृत्ति का कई बार जिक्र किया गया। मुख्तार अब्बास नक़वी ने तो यह दावा तक कर दिया कि उनकी सरकार ने अल्पसंख्यक बजट 2000 करोड़ से 5000 करोड़ कर दिया है। जिस पर हमने थोड़ा अध्ययन किया। जिसके अनुसार वर्ष 2013-14 में अल्पसंख्यक बजट 3,511 करोड़ था, जिसके बाद मोदी सरकार का कार्यकाल शुरू हुआ। सरकारी वेबसाइट के अनुसार 2014-15 में 3711 करोड़, 2015-16 में 3712.78 करोड़ और वर्ष 2018-19 में 4700 करोड़ रुपए अल्पसंख्यक बजट था। इन तथ्यों से यह बात साफ हो जाती है कि मोदी सरकार ने 2014-19 के दौरान 3,511 करोड़ रुपए से 4,700 करोड़ रुपए तक बजट में वृद्धि की है।
परंतु इसमें जनसंख्या दर से जुड़ा कोई तर्क शामिल नहीं है। रीलीजन सेंसेस ऑफ इंडिया, 2011 की रिपोर्ट के अनुसार देश भर में कुल अल्पसंख्यकों की संख्या 20.11 करोड़ थी और देश की कुल जनसंख्या लगभग 102.86 करोड़ थी। एक नए शोध के अनुसार वर्ष 2019 मार्च तक देश की कुल आबादी लगभग 136.87 करोड़ की है। तो जाहिर सी बात है कि अल्पसंख्यकों की संख्या भी देश में बढ़ी होगी। पर इस तर्क का जिक्र नक़वी साहब कहां करने वाले थे। आडियन्स में से शायद कोई इस पर उनका ध्यान ले जाने में सफल हो सकता, अगर शो में जनता के मन की बात सुनी जाती। जनसंख्या के इस तर्क के कारण अल्पसंख्यक बजट और छात्रवृत्ती की बड़ी-बड़ी राशी फीकी दिखाई पड़ती है।
इतना ही नहीं वर्ष 2016-17 में जब नोटबंदी के प्रहार से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी उस समय अल्पसंख्यक बजट भी लगभग 500 करोड़ रुपए से कम कर के अल्पसंख्यकों पर और भी बोझ बढ़ा दिया गया था। जिस पर हमने एक रिपोर्ट भी छापी थी।
शो में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन भी देखने को मिला, एक मुस्लिम महिला ने मुस्लिम समुदाय के साथ हो रहे भेद-भाव और उनके उत्पीड़न पर सवाल उठाया। महिला ने पूछा कि “क्या मोदी जी के सरकार को पता नहीं कि गर्दन किसकी काटी जा रही है? उसे काट कर किसे दिखाया जा रहा है?” इसी दौरान महिला को बीच में ही रोक कर मुख्तार अब्बास नक़वी ने उस शायरी का सहारा लिया, जिसे सुना कर वे हमेशा कन्नी काट जाते हैं- ‘‘तू दरिया में तूफान क्या देखता है। खुदा में निगेहबान क्या देखता है। तू हाकिम बना है तो इंसाफ भी कर। तू हिंदू मुसलमान क्या देखता है।’’ मुसलमानों के सबसे गंभीर मुद्दे पर उस महिला की आवाज़ मंत्री जी की शायरी के बाद तालियों की गड़गड़ाहट में कहीं खो गई।
शो में मौजूद मशहूर हस्तियों की पृष्ठभूमि
अब हम आपका ध्यान शो में मौजूद सभी मशहूर हस्तियों की पृष्ठभूमि की ओर ले जाना चाहते हैं। जिनकी उपस्थिति से शो अपने टीआरपी बढ़ाने में सफल रहा।
मुख्तार अब्बास नक़वी – बीजेपी के गिने चुने मुस्लिम चेहरे में से एक हैं। नेता होने के साथ मोदी-समर्थक भी हैं। वर्ष 1993 से मुख्तार अब्बास नक़वी भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं। हालांकि वर्ष 1993 में वह चुनाव हार गए थे। परंतु 1998 में उत्तर प्रदेश के रामपुर सीट से बीजेपी की ओर से संसद बनाने वाले पहले मुस्लिम नेता है। साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल में उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय का राज्य मंत्री बनाया गया था।
ज़फर सरेशवाला – गुजरात के व्यवसायी, जिन्हें मोदीजी का समर्थन करने के इनाम के तौर पर ‘मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय’ (MANU) का सचिव बनाया गया है। सरेशवाला को वर्ष 2015 में MANU के सचिव नियुक्त किए जाने पर काफी विवाद खड़ा हुआ था। लोगों का कहना था कि शिक्षा से जुड़ा इतना महत्वपूर्व पद उन्हें नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि शिक्षा-संबंधी उनका अनुभव है ही नहीं। आपको बता दें कि ज़फर सरेशवाला 2014 के चुनावों के दौरान बीजेपी के स्टार-मुस्लिम प्रचारक थे। वर्ष 2013 में SEBI ने इनकी कंपनी का ब्रोकर पंजीकरण ही रद्द कर दिया था। गुजरात में दशकों से ज़फर सरेशवाला ‘माननीय मोदी जी’ का समर्थन करते आए हैं। वैसे जफ़र साहब के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े कई मामले भी दर्ज हैं।
मौलाना महमूद मदनी – जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के मुख्य सचिव हैं, जो मुस्लिम समुदाय का प्रभावशाली संगठन है। इसके साथ ही वे राष्ट्रिय लोक दल के संसदभी रह चुके हैं। चुनाव नतीजों से पहले मौलाना साहब बीजेपी को हराने वाले दल का समर्थन करते हुए नज़र आते थे। परंतु नतीजों के बाद समय की नज़ाकत को समझते हुए ‘मोदी-भक्त’ बन गए।
मौलाना सय्यद कल्बे-जव्वाद – प्रतिष्ठित शिया धर्म गुरु हैं। चुनाव के दौरान मौलाना जी खुल कर बीजेपी का समर्थन करते आए हैं।
रजत शर्मा – इस शो के मुख्य संचालक व चैनल के मालिक हैं। रजत शर्मा पीएम मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के काफी नज़दीकी माने जाते हैं। साथ ही कॉलेज के दिनों में बीजेपी के छात्र-विंग ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ के सक्रिय छात्र-नेता भी थे। इतना ही नहीं, इनकी कंपनी में अडानी-रिलायंस जैसे सफल कारोबारियों ने भी निवेश किया है। मीडिया इंडस्ट्री में रजत शर्मा की पहचान मोदी–समर्थक के रूप में है।
संसद में घटता मुस्लिम प्रतिनिधित्व
शो में एक दर्शक ने संसद में मुसलमानों के घटते प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाते हुए कहा कि ‘संसद में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व घट रहा है।‘ मौलाना महमूद मदनी ने यह कहकर मुद्दे को रफा दफा कर दिया कि हमें काम से मतलब है, चाहे वो कोई भी संसद करे।
हमने यह पता लगाने के लिए अध्ययन किया और पाया कि मोदी सरकार में भाजपा का एक भी चुना हुआ मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं है। और पाया कि संसद में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व कभी उतना हुआ ही नहीं जितना उसे होना चाहिए। रीलीजन सेंसेस ऑफ इंडिया, 2011 की रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय की जो जनसंख्या बताई गई है, उसके अनुसार संसद में कम-से-कम 72 मुस्लिम प्रतिनिधि होने चाहिए। लेकिन यह आंकड़ा कभी 50 तक ही नहीं पहुंचा।
इंडिया टूडे की ही खबर के अनुसार वर्ष 1980 में ही संसद में मुस्लिम प्रतिनिधि की संख्या 47 हुई थी। जिसके बाद इस आंकड़े में हमेशा गिरावट ही आई है। वर्ष 2009 में यह संख्या 30 (बीजेपी 1), वर्ष 2014 में 23 (बीजेपी 0) और वर्ष 2019 में 27 (बीजेपी 0) है। परंतु अब यह मुद्दा रहा ही नहीं मुस्लिमों की चिंता का, क्योंकि मौलाना मदनी जी ने कहा है कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व के इस आंकड़े से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है, बस काम होना चाहिए।
मुसलमान क्या चाहता है?
शो में बहुत ही सहजता से मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों को रद्द कर दिया गया और बात बात पर यह बताया गया कि देश का मुस्लिम क्या चाहता है? लेकिन उस सच्चर रिपोर्ट का क्या जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान प्रकाशित की गई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि “किस तरह से मुसलमान आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं, सरकारी नौकरियों में उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है और बैंक लोन लेने में मुश्किलात का सामना करना पड़ता है। साथ ही मुस्लिम समुदाय में साक्षरता की दर भी राष्ट्रीय औसत से कम है जहाँ 6 से 14 वर्ष की आयु समूह के एक-चौथाई मुस्लिम बच्चे या तो स्कूल नहीं जा पाते या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं।
यह आपको याद दिला दें कि यह वही सच्चर कमिटी की रिपोर्ट है जिसके सुझाव को न लागू करने पर 2007 में मौलाना महमूद मदनी ने सरकार को मुसलमानों के देशव्यापी आंदोलन की धमकी दी थी। जिसके बाद भी पूरे शो में बार-बार यही बता कर संचालक और अतिथि, लोगों को गुमराह कर रहे थे कि मुस्लिम समाज की सरकार से क्या अपेक्षा है?
शो में एक बात उभर के आई कि सत्ता में बैठे बीजेपी के नेतागण आए दिन मुसलमानों के प्रति ज़हर उगलते दिखाए देते हैं। इसपर कार्यक्रम के अंत में न्यायधीश मौलना कल्बे जव्वाद साहब ने बड़ी सहजता से फतवा दे दिया कि मुसलमानों को केवल यह देखना चाहिए कि मोदीजी, राजनाथ जी और अमित शाह जी क्या कह रहे हैं, अन्य ज़हर उगलते भाजपाइयों को नज़रअंदाज़ कर के आप खुश रहें।
शो में मौलाना महमूद मदनी ने मोदी जी के ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ भाषण के बाद मुस्लिमों के लिए नई उम्मीद बताई, साथ ही उन्हें मोदी जी पर विश्वास करने की सलाह दी। वहीं 2014 के चुनाव के दौरान मोदी जी के मुस्लिम प्रचारक ज़फर सरेशवाला ने भी कहा कि “प्राइम मिनिस्टर की बात पर हमें भरोसा करना चाहिए और अब हमें वॉक-द-टॉक देखने को मिल रहा है।
मुख्तार अब्बास नक़वी ने भी कहा कि “मोदी जी का ‘विकास का मसौदा’ वोट का सौदा नहीं है।“ उन्होंने कहा कि, हमने अपनी योजनाओं का कभी प्रचार नहीं किया, प्रचार वोट की लालच रखने वाले करते हैं। मंत्री जी ने तो अल्पसंख्यकों के कथित ‘विकास’ के लिए मोदी जी की योजनाओं और स्कॉलर्शिप से जुड़ी घोषणाओं का जिक्र कर उन्हें सबका हितैषी बताया। शो देखते देखते मुख्तार अब्बास नक़वी में संबित पात्रा का झलक देखने को मिली, जो बात बात पर अपने शायराना अंदाज से मुद्दे को ही खत्म कर दे रहे थे।
तथ्यों का विश्लेषण
गौरतलब है कि शो में कई बार अल्पसंख्यकों को दिए बजट और छात्रवृत्ति का कई बार जिक्र किया गया। मुख्तार अब्बास नक़वी ने तो यह दावा तक कर दिया कि उनकी सरकार ने अल्पसंख्यक बजट 2000 करोड़ से 5000 करोड़ कर दिया है। जिस पर हमने थोड़ा अध्ययन किया। जिसके अनुसार वर्ष 2013-14 में अल्पसंख्यक बजट 3,511 करोड़ था, जिसके बाद मोदी सरकार का कार्यकाल शुरू हुआ। सरकारी वेबसाइट के अनुसार 2014-15 में 3711 करोड़, 2015-16 में 3712.78 करोड़ और वर्ष 2018-19 में 4700 करोड़ रुपए अल्पसंख्यक बजट था। इन तथ्यों से यह बात साफ हो जाती है कि मोदी सरकार ने 2014-19 के दौरान 3,511 करोड़ रुपए से 4,700 करोड़ रुपए तक बजट में वृद्धि की है।
परंतु इसमें जनसंख्या दर से जुड़ा कोई तर्क शामिल नहीं है। रीलीजन सेंसेस ऑफ इंडिया, 2011 की रिपोर्ट के अनुसार देश भर में कुल अल्पसंख्यकों की संख्या 20.11 करोड़ थी और देश की कुल जनसंख्या लगभग 102.86 करोड़ थी। एक नए शोध के अनुसार वर्ष 2019 मार्च तक देश की कुल आबादी लगभग 136.87 करोड़ की है। तो जाहिर सी बात है कि अल्पसंख्यकों की संख्या भी देश में बढ़ी होगी। पर इस तर्क का जिक्र नक़वी साहब कहां करने वाले थे। आडियन्स में से शायद कोई इस पर उनका ध्यान ले जाने में सफल हो सकता, अगर शो में जनता के मन की बात सुनी जाती। जनसंख्या के इस तर्क के कारण अल्पसंख्यक बजट और छात्रवृत्ती की बड़ी-बड़ी राशी फीकी दिखाई पड़ती है।
इतना ही नहीं वर्ष 2016-17 में जब नोटबंदी के प्रहार से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी उस समय अल्पसंख्यक बजट भी लगभग 500 करोड़ रुपए से कम कर के अल्पसंख्यकों पर और भी बोझ बढ़ा दिया गया था। जिस पर हमने एक रिपोर्ट भी छापी थी।
शो में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन भी देखने को मिला, एक मुस्लिम महिला ने मुस्लिम समुदाय के साथ हो रहे भेद-भाव और उनके उत्पीड़न पर सवाल उठाया। महिला ने पूछा कि “क्या मोदी जी के सरकार को पता नहीं कि गर्दन किसकी काटी जा रही है? उसे काट कर किसे दिखाया जा रहा है?” इसी दौरान महिला को बीच में ही रोक कर मुख्तार अब्बास नक़वी ने उस शायरी का सहारा लिया, जिसे सुना कर वे हमेशा कन्नी काट जाते हैं- ‘‘तू दरिया में तूफान क्या देखता है। खुदा में निगेहबान क्या देखता है। तू हाकिम बना है तो इंसाफ भी कर। तू हिंदू मुसलमान क्या देखता है।’’ मुसलमानों के सबसे गंभीर मुद्दे पर उस महिला की आवाज़ मंत्री जी की शायरी के बाद तालियों की गड़गड़ाहट में कहीं खो गई।
शो में मौजूद मशहूर हस्तियों की पृष्ठभूमि
अब हम आपका ध्यान शो में मौजूद सभी मशहूर हस्तियों की पृष्ठभूमि की ओर ले जाना चाहते हैं। जिनकी उपस्थिति से शो अपने टीआरपी बढ़ाने में सफल रहा।
मुख्तार अब्बास नक़वी – बीजेपी के गिने चुने मुस्लिम चेहरे में से एक हैं। नेता होने के साथ मोदी-समर्थक भी हैं। वर्ष 1993 से मुख्तार अब्बास नक़वी भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं। हालांकि वर्ष 1993 में वह चुनाव हार गए थे। परंतु 1998 में उत्तर प्रदेश के रामपुर सीट से बीजेपी की ओर से संसद बनाने वाले पहले मुस्लिम नेता है। साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल में उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय का राज्य मंत्री बनाया गया था।
ज़फर सरेशवाला – गुजरात के व्यवसायी, जिन्हें मोदीजी का समर्थन करने के इनाम के तौर पर ‘मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय’ (MANU) का सचिव बनाया गया है। सरेशवाला को वर्ष 2015 में MANU के सचिव नियुक्त किए जाने पर काफी विवाद खड़ा हुआ था। लोगों का कहना था कि शिक्षा से जुड़ा इतना महत्वपूर्व पद उन्हें नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि शिक्षा-संबंधी उनका अनुभव है ही नहीं। आपको बता दें कि ज़फर सरेशवाला 2014 के चुनावों के दौरान बीजेपी के स्टार-मुस्लिम प्रचारक थे। वर्ष 2013 में SEBI ने इनकी कंपनी का ब्रोकर पंजीकरण ही रद्द कर दिया था। गुजरात में दशकों से ज़फर सरेशवाला ‘माननीय मोदी जी’ का समर्थन करते आए हैं। वैसे जफ़र साहब के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े कई मामले भी दर्ज हैं।
मौलाना महमूद मदनी – जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के मुख्य सचिव हैं, जो मुस्लिम समुदाय का प्रभावशाली संगठन है। इसके साथ ही वे राष्ट्रिय लोक दल के संसदभी रह चुके हैं। चुनाव नतीजों से पहले मौलाना साहब बीजेपी को हराने वाले दल का समर्थन करते हुए नज़र आते थे। परंतु नतीजों के बाद समय की नज़ाकत को समझते हुए ‘मोदी-भक्त’ बन गए।
मौलाना सय्यद कल्बे-जव्वाद – प्रतिष्ठित शिया धर्म गुरु हैं। चुनाव के दौरान मौलाना जी खुल कर बीजेपी का समर्थन करते आए हैं।
रजत शर्मा – इस शो के मुख्य संचालक व चैनल के मालिक हैं। रजत शर्मा पीएम मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के काफी नज़दीकी माने जाते हैं। साथ ही कॉलेज के दिनों में बीजेपी के छात्र-विंग ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ के सक्रिय छात्र-नेता भी थे। इतना ही नहीं, इनकी कंपनी में अडानी-रिलायंस जैसे सफल कारोबारियों ने भी निवेश किया है। मीडिया इंडस्ट्री में रजत शर्मा की पहचान मोदी–समर्थक के रूप में है।
संसद में घटता मुस्लिम प्रतिनिधित्व
शो में एक दर्शक ने संसद में मुसलमानों के घटते प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाते हुए कहा कि ‘संसद में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व घट रहा है।‘ मौलाना महमूद मदनी ने यह कहकर मुद्दे को रफा दफा कर दिया कि हमें काम से मतलब है, चाहे वो कोई भी संसद करे।
हमने यह पता लगाने के लिए अध्ययन किया और पाया कि मोदी सरकार में भाजपा का एक भी चुना हुआ मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं है। और पाया कि संसद में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व कभी उतना हुआ ही नहीं जितना उसे होना चाहिए। रीलीजन सेंसेस ऑफ इंडिया, 2011 की रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय की जो जनसंख्या बताई गई है, उसके अनुसार संसद में कम-से-कम 72 मुस्लिम प्रतिनिधि होने चाहिए। लेकिन यह आंकड़ा कभी 50 तक ही नहीं पहुंचा।
इंडिया टूडे की ही खबर के अनुसार वर्ष 1980 में ही संसद में मुस्लिम प्रतिनिधि की संख्या 47 हुई थी। जिसके बाद इस आंकड़े में हमेशा गिरावट ही आई है। वर्ष 2009 में यह संख्या 30 (बीजेपी 1), वर्ष 2014 में 23 (बीजेपी 0) और वर्ष 2019 में 27 (बीजेपी 0) है। परंतु अब यह मुद्दा रहा ही नहीं मुस्लिमों की चिंता का, क्योंकि मौलाना मदनी जी ने कहा है कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व के इस आंकड़े से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है, बस काम होना चाहिए।
मुसलमान क्या चाहता है?
शो में बहुत ही सहजता से मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों को रद्द कर दिया गया और बात बात पर यह बताया गया कि देश का मुस्लिम क्या चाहता है? लेकिन उस सच्चर रिपोर्ट का क्या जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान प्रकाशित की गई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि “किस तरह से मुसलमान आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं, सरकारी नौकरियों में उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है और बैंक लोन लेने में मुश्किलात का सामना करना पड़ता है। साथ ही मुस्लिम समुदाय में साक्षरता की दर भी राष्ट्रीय औसत से कम है जहाँ 6 से 14 वर्ष की आयु समूह के एक-चौथाई मुस्लिम बच्चे या तो स्कूल नहीं जा पाते या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं।
यह आपको याद दिला दें कि यह वही सच्चर कमिटी की रिपोर्ट है जिसके सुझाव को न लागू करने पर 2007 में मौलाना महमूद मदनी ने सरकार को मुसलमानों के देशव्यापी आंदोलन की धमकी दी थी। जिसके बाद भी पूरे शो में बार-बार यही बता कर संचालक और अतिथि, लोगों को गुमराह कर रहे थे कि मुस्लिम समाज की सरकार से क्या अपेक्षा है?
शो में एक बात उभर के आई कि सत्ता में बैठे बीजेपी के नेतागण आए दिन मुसलमानों के प्रति ज़हर उगलते दिखाए देते हैं। इसपर कार्यक्रम के अंत में न्यायधीश मौलना कल्बे जव्वाद साहब ने बड़ी सहजता से फतवा दे दिया कि मुसलमानों को केवल यह देखना चाहिए कि मोदीजी, राजनाथ जी और अमित शाह जी क्या कह रहे हैं, अन्य ज़हर उगलते भाजपाइयों को नज़रअंदाज़ कर के आप खुश रहें।